Published on Aug 05, 2023 Updated 0 Hours ago

ये सुझाव दिया जाना चाहिए कि ‘बॉटम अप’ शांति निर्माण, जिसकी शुरुआत सामुदायिक स्तर से शुरू करके और कई प्रकार के स्थानीय मुद्दों और डाइनैमिक्स को संबोधित किया जाना, का इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

समुदायों का सशक्तिकरण: एक शांतिप्रिय और टिकाऊ भविष्य के लिए समावेशी समाधान!
समुदायों का सशक्तिकरण: एक शांतिप्रिय और टिकाऊ भविष्य के लिए समावेशी समाधान!

ये लेख हमारी—रायसीना एडिट 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.


सन् 1945 के बाद से आज, विश्वव्यापी स्तर पर संघर्ष अधिक सक्रिय हैं. संघर्ष अब पहले से कहीं ज़्यादा जटिल एवं लंबा हो चुका है, क्योंकि अपने अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, गैर राज्यीय सशस्त्र समूह, प्रांतीय एवं ग्लोबल शक्तियां प्रतिबद्ध हैं. 

समकालीन सशस्त्र टकराव की जटिलता और विखंडन का शांति बहाली और मध्यस्थता के प्रयास हेतु महत्वपूर्ण निहितार्थ है. इस बात की ज़रुरत हैं कि रूढ़िवादी दृष्टिकोण से ऊपर उठकर शांति की बहाली प्रक्रिया के लिए प्रयास किये जाने चाहिए और ये सुझाव दिया जाना चाहिए कि ‘बॉटम अप’ शांति निर्माण, जिसकी शुरुआत सामुदायिक स्तर से शुरू करके, और कई प्रकार के स्थानीय मुद्दों और संदर्भों को संबोधित किया जाना, इस दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण क़दम होगा. 

विश्व के चंद सबसे विनाशकारी समकालीन संघर्षों, जिनमें सीरिया, लीबिया, यमन और इराक़ शामिल हैं, इनमें महिलाएं शांति स्थापना की दिशा में काफी आवश्यक योगदान दे रही हैं.

अपने ख़ुद के भविष्य को एक बेहतर आकार देने के लिए समुदायों का सशक्तिकरण एक अवसर है ये सुनिश्चित करने के लिए कि समाधान समावेशी हैं, स्थानीय स्वामित्व वाले हैं, और इसलिए ज़्यादा टिकाऊ हैं. इसमें महिलाओं द्वारा अपने समुदायों के बीच एक मध्यस्थ और शांति निर्माता की भूमिका का लाभ उठाना शामिल हैं. विश्व के चंद सबसे विनाशकारी समकालीन संघर्षों, जिनमें सीरिया, लीबिया, यमन और इराक़ शामिल हैं, इनमें महिलाएं शांति स्थापना की दिशा में काफी आवश्यक योगदान दे रही हैं. उन्होंने सफलतापूर्वक स्थानिय सीज़फायर में मध्यस्थता की हैं, सशस्त्र संगठनों संग बाल सैनिकों की बहाली संबंधी वार्ता की हैं, राजनीतिक बंदियों की रिहाई में मध्यस्थता, और क्रॉसलाइन वार्ता के ज़रिए जल और अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों की पहुँच को सुगम बनाया है. उनके योगदान को बेहतर परिचय और सहयोग दिया जाना चाहिए. 

जो बातें यहां की जा रही हैं उनका मतलब इस तरह के सुझाव देने के नहीं हैं कि समुदाय के नेतृत्व वाली प्रक्रियाएं, राष्ट्रीय स्तर के लोगों की जगह ले सकता है. स्थानीय एवं राष्ट्रीय शांति प्रयास काफी जटिल है और उनके बातचीत करने के कई अन्य तरीके हैं. फिर भी, अगर स्थानीय मध्यस्थता के प्रयास अगर पूरक के साथ ही, एकीकृत, अथवा राष्ट्रीय शांति प्रक्रिया से पूरी तरह से अलग हो, जो कि किसी भी प्रकार की रुचि, दायरा, और राष्ट्रीय प्रक्रियाओं को संबोधित करने की क्षमता से परे हों, तब भी वे संघर्ष के स्थानीय चालकों को संबोधित करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. समुदाय आधारित दृष्टिकोण से प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जलवायु संबंधी सुरक्षा ख़तरे आदि की बात ही लीजिए, जहां स्थानीय महिलाएं शमन और अनुकूलन के प्रयास हेतु न सिर्फ़ अपने दम पर बदलाव ला रहीं बल्कि बेहद सजग भी हैं.

जलवायु कार्यवाही में सबसे आगे महिलाओं की भूमिका 

जलवायु में बदलाव संभवतः हमारे वक्त़ की सबसे विकट चुनौती हैं. काफी महिलाएं अपने स्थानीय समुदाय में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं चूंकि वे जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक संसाधनों के संग्रह को बढ़ाती हैं. संरक्षण और स्थिरता के रूप में बेहतर परिणाम देने के लिए ये सुझाव रूपी काफी मज़बूत प्रमाण उपलब्ध हैं. विकासशील देशों में कृषि श्रम शक्ति, विश्वभर के दो तिहाई पशुधन कीपर, और ख़निक कारीगर का कुल 43 प्रतिशत महिलायें धारण करती हैं, इसलिए उन्हें इन प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन एवं ज़मीन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने संबंधी काफी बेहतर एवं लंबा अनुभव है. 

दक्षिण एशिया में हुए एक अध्ययन से ये साफ़ दिखता हैं कि अक्सर ही, महिलाओं के पास बाढ़ से नष्ट हो रही आजीविका की रक्षा करने हेतु एक लंबी पोषित स्ट्रैटेजी होती है. लीबिया और यमन में, प्राकृतिक संसाधन पर हो रहे विवाद के निपटारण के लिए, स्थानीय वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. 

दक्षिण एशिया में हुए एक अध्ययन से ये साफ़ दिखता हैं कि अक्सर ही, महिलाओं के पास बाढ़ से नष्ट हो रही आजीविका की रक्षा करने हेतु एक लंबी पोषित स्ट्रैटेजी होती है. लीबिया और यमन में, प्राकृतिक संसाधन पर हो रहे विवाद के निपटारण के लिए, स्थानीय वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. यमन के, टाइज़ शहर में, महिलाओं के नेतृत्व में क्रॉस लाइन वार्ता की गई, जिसने संसाधन प्रबंधन डील, के साथ-साथ जल तक की पहुँच की राह प्रशस्त की. इन सफलताओं को भुनाया जाना चाहिए और क्रमशः ऐसी और सफलताओं का निर्माण भी किया जाना चाहिए. 

बाधाओं को दूर करने से समावेश तक 

जलवायु परिवर्तन लैंगिक भूमिका और आजीविका पद्धति को कई प्रकार से प्रभावित करता है जो कि महिलाओं को संघर्ष के रोकथाम और शांति के निर्माण, के लिए नए प्रवेश बिन्दु बना सकता है. उदाहरण के लिए, समुदायों में जहां जलवायु की वजह से संसाधनों में कमी होने के कारण, अपनी जीविका कमाने के लिये जब परिवार के पुरुष बेहतर वैकल्पिक स्थानों में पलायन कर जाते हैं, तब महिलाएं ऐसी भूमिका ले लेती हैं जो पारंपरिक तौर पर लैंगिक मापदंडों को चुनौती देता है, जैसे स्थानीय संघर्षों में मध्यस्थता, या फिर- पारंपरिक तौर पर पुरुष प्रधान आर्थिक क्षेत्र में काम करना आदि. अगर इन सेक्टर को प्रभावी ढंग से पूंजीकृत किया जाए तो, तो मुमकिन है कि ये छोटे-छोटे मौके शांति बहाली की प्रक्रिया में, महिला सशक्तिकरण की दिशा में लंबे समय से चली आ रही बाधाओं से पार पाने में आने वाली मुश्किलों को कम कर दे. और जहां और जिन मुद्दों पर लगातार संघर्ष होते रहे हैं, वहां राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक स्तर कहीं ज़्यादा लैंगिक समावेशी और पर्यावरण के स्तर पर संतुलित और टिकाऊ आधारभूत संरचना का निर्माण किया जा सकेगा.    

हालांकि, महिला शांति निर्माताओं, मानवाधिकार रक्षक और ज़मीनी कार्यकर्ता के ऊपर होने वाले हमले और धमकियां अपने चरम पर हैं, और इसकी वजह से उनकी सहभागिता और नेतृत्व पर काफी असर पड़ने वाला है, ख़ासकर, उस परिप्रेक्ष्य में जहां महिलायें को सामाजिक जीवन में दाख़िल होने के लिए, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक या अन्य बाधाओं को पार पाना पड़ता है. समुचित सुरक्षा उपाय की कमी, हर स्तर पर शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं के समुचित और समान सहभागिता की दिशा में एक बुनियादी व्यवधान है, और इसलिए, तात्कालिकता और प्राथमिकता की भावना के साथ, जिसकी वो पूरी तरह से हक़दार हैं, उसे जल्द से जल्द संबोधित किया जाना चाहिए. 

ग़ैर-समान इंटरनेट कनेक्टिविटी, टेक्नॉलजी एवं हार्डवेयर का सीमित इस्तेमाल, निजता संबंधी चिंतन, और प्रौद्योगिक सुविधायुक्त लिंग आधारित हिंसा, ऑनलाइन स्पेस में महिलाओं की भागीदारी के प्रति एक व्यवधान के रूप में कार्य कर सकती है. इसलिए, टेक्नॉलजी के बहिष्कार के स्थायी तौर-तरीकों के जोख़िम को कम करने के लिए, ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए और उनके समावेशी क्षमता का नए एवं परिवर्तनकारी तरीकों से लाभ उठाया जाना चाहिए. 

स्थानीय मध्यस्थता, शांति निर्माण, और जलवायु क्रिया हेतु महिलाओं के प्रयास, अक्सर अनजान रह जाते हैं. महिला मध्यस्थ एवं शांति निर्माताओं को वार्ता और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए अक्सर ये साबित करना पड़ता है कि उनमें इन सब के लिए ज़रूरी ‘हुनर’ है – एक ऐसी चीज़ जो माना जाता हैं कि मुख्य तौर पर पुरुषों में ही पाया जाता हैं. महिलायें कभी-कभी संघर्ष समाधान की दिशा में, परदे के पीछे, कम अनौपचारिक भूमिकाएं मान लेती हैं – चाहे वो एक नीति के तहत अथवा प्रतिबंधात्मक सामाजिक मानदंडों की वजह से जो उन्हें किसी शीर्ष पदों पर आसीन होने से रोकती हैं – उन्हें ज़्यादा श्रेय एवं ध्यान दिया जाना चाहिए. महिलाओं की शांति के निर्माण और मध्यस्थता संबंधी कार्यों को बेहतर तरीके से प्रमाणित, समझा एवं समर्थित किया जाना चाहिए. 

अंततः शांति कार्यों में बढ़ते डिजिटलीकरण न केवल नए अवसर प्रदान कर रहे है, बल्कि समावेशन के लिए नई चुनौतियाँ भी खड़े कर रहे हैं. जहां नए डिजिटल उपकरण के पास ज़मीनी तौर पर कम प्रतिनिधित्व वाले निर्वाचन क्षेत्र तक पहुँचने की क्षमता है, डिजिटल लैंगिक विभेद बनी हुई हैंग़ैर-समान इंटरनेट कनेक्टिविटी, टेक्नॉलजी एवं हार्डवेयर का सीमित इस्तेमाल, निजता संबंधी चिंतन, और प्रौद्योगिक सुविधायुक्त लिंग आधारित हिंसा, ऑनलाइन स्पेस में महिलाओं की भागीदारी के प्रति एक व्यवधान के रूप में कार्य कर सकती है. इसलिए, टेक्नॉलजी के बहिष्कार के स्थायी तौर-तरीकों के जोख़िम को कम करने के लिए, ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए और उनके समावेशी क्षमता का नए एवं परिवर्तनकारी तरीकों से लाभ उठाया जाना चाहिए. 

समावेशी समाधान टिकाऊ समाधान हैं

व्यवधानों को तोड़ पाने में असफलता और हर स्तर पर शांति प्रयासों में, महिलाओं के पूर्ण, समान और सार्थक भागीदारी के प्रति एक माहौल बनाने से न केवल महिलाएं अपने बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित रह जाएंगी बल्कि इसके ये भी मायने होते हैं कि हम सब उनके अनुभव, दक्षता और संसाधन-पूर्णता की क़ाबिलियत से वंचित रह जायेंगे. शांति को सीधे ऊपर से नीचे की ओर लागू नहीं किया जा सकता, इसे उन लोगों को निजी तौर पर मुहैय्या कराना होगा जो इन हालातों में फंसे हैं, और संघर्ष से सीधे-सीधे प्रभावित हुए हैं. ऐसे लोगों को शांति-पूर्वक जीवन जीने के अवसर प्रदान करने होंगे.

स्थानीय स्तर पर लैंगिक स्तर पर पुरुष एवं महिलाओं और हर वर्ग और पृष्टभूमि से आने वाले लोगों के सशक्तिकरण, बढ़ते जटिल और असाध्य संघर्ष के आलोक में, संघर्ष के समाधान और अपने समुदाय के भविष्य को बेहतर आकार एवं शांति देने के लिए रूढ़िवादी सीमाएं और मध्यस्थता के तौर-तरीकों व प्रक्रिया से पार पाने के लिए हमारे पास कोई जादू की छड़ी या सिल्वर बुलेट नहीं है लेकिन, ये साफ़ है कि ज्यों-ज्यों हम शांति स्थापित करने के लिए नए और रचनात्मक दृष्टिकोण तैयार करने की कोशिश करेंगे, सही मायने में सफलता और टिकाऊ परिणाम सिर्फ़ समावेशी समाधान द्वारा ही प्राप्त किये जाने की संभावना है. 

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