Author : K. Yhome

Published on Sep 14, 2020 Updated 0 Hours ago

नागरिक सरकार और तत्मादाव के बीच व्यावहारिकता पर आधारित संबंध को बनाए रखना लगातार मुश्किल होता जा रहा है.

म्यांमार में चुनाव और नागरिक-सैन्य संबंध?

म्यांमार में सेना-नागरिक संबंधों में खींचतान की घटनाओं की श्रृंखला में, सबसे ताज़ा देश के सेना प्रमुख मिन औंग हलैंग की एक रूसी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में की गई टिप्पणी है. उन्होंने कहा: “एक व्यक्ति के लिए संबंधित संस्थाओं और व्यक्तियों से विचार-विमर्श किए बिना [देश के लिए] फैसले लेना बहुत ख़तरनाक है.” इस टिप्पणी को स्टेट काउंसलर (प्रधानमंत्री) आंग सान सू की तरफ़ इशारा माना जा रहा है, जो सत्तारूढ़ दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की नेता भी हैं.

एनएलडी जब 2016 में विशाल बहुमत के साथ सत्ता में आई थी, और उसका मुख्य चुनावी मुद्दा संविधान का लोकतांत्रिक बनाना था, तो कई लोगों ने सवाल उठाया था: नागरिक सरकार और सशस्त्र बल (या तत्मादाव) एक दूसरे के हितों से किस हद तक तालमेल कर पाएंगे?  एनएलडी का सत्ता में आना सत्ता-साझीदारी व्यवस्था का भी इम्तिहान था- जो सेना के तैयार किए 2008 के संविधान में निहित थी, जो राजनीति में विशेष शक्तियों के साथ तत्मादाव की भूमिका की गारंटी देता है- एक पार्टी के रूप में एनएलडी का लंबे समय तक सबसे मुखर विरोध संविधान की अलोकतांत्रिक प्रकृति को लेकर था.

नागरिक राजनीतिज्ञ अभिजात्य वर्ग और फ़ौजी जनरलों ने शायद सोचा कि किसी एक के हितों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा ज़ोर देने से पूरी संक्रमण प्रक्रिया पटरी से उतर जाने का ख़तरा है. इसने शायद दोनों पक्षों को मुख्य रूप से व्यावहारिकता से संचालित नागरिक-सैन्य संबंधों को विकसित करने का मौका दिया.

म्यामांर जबकि इस साल नवंबर में होने जा रहे एक और आम चुनाव के लिए तैयार है- 2010 में राजनीतिक सुधार शुरू होने के बाद से यह तीसरा आम चुनाव है- यह देखना ज़रूरी है कि एनएलडी सरकार और तत्मादाव ने पिछले पांच सालों में अपने रिश्तों को कैसे चलाया, और किस तरह अपने मतभेदों को खुली दुश्मनी में बदल जाने से रोका. नागरिक राजनीतिज्ञ अभिजात्य वर्ग और फ़ौजी जनरलों ने शायद सोचा कि किसी एक के हितों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा ज़ोर देने से पूरी संक्रमण प्रक्रिया पटरी से उतर जाने का ख़तरा है. इसने शायद दोनों पक्षों को मुख्य रूप से व्यावहारिकता से संचालित नागरिक-सैन्य संबंधों को विकसित करने का मौका दिया. असल में यह व्यावहारिक सहयोग और एक-दूसरे को मौक़ा देना हाल तक प्रमुख क्षेत्रों में काम कर गया, वर्ना नागरिक सरकार और तत्मादाव के बीच इन्हीं मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा होता.

यहां तक ​​कि एनएलडी की बुनियादी राजनीति भी संविधान के लोकतंत्रीकरण के सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन कोई भी यह सवाल उठा सकता है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने पिछले साल तक संवैधानिक बदलाव लाने के लिए कोई गंभीर प्रयास शुरू नहीं किया था. जनवरी 2019 में एनएलडी ने संसदीय चार्टर संशोधन समिति बनाई. लेकिन संविधान में संशोधन के लिए पार्टी की कोशिश अमल में नहीं लाई जा सकी. इसी तरह, हाल ही में पहली बार सेना प्रमुख ने सरकार से राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद (एनडीएससी) की बैठक बुलाने की मांग की— यह 11 सदस्यीय परिषद सुरक्षा के मुद्दों पर फैसला लेने वाली शीर्ष संस्था है, जिसमें सेना 6 का बहुमत रखती है. 2016 में सत्ता में आने के बाद एनएलडी सरकार ने एक बार भी एनडीएससी की बैठक नहीं बुलाई.

यह एक बार फिर एनएलडी सरकार द्वारा एनडीएससी को दरकिनार किए जाने का स्पष्ट संकेत था. एनएलडी सरकार और तत्मादाव भी चुनावों को देखते हुए एक दूसरे पर बढ़त दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.

मार्च के अंत में म्यांमार में पहला कोविड-19 पॉज़िटिव मामला सामने आने के बाद सेना समर्थित यूनियन सॉलिडारिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) की तरफ़ से एनडीएससी की बैठक बुलाने का एक प्रस्ताव आया था. प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया गया और एनएलडी सरकार ने महामारी फैलने से रोकने के लिए एक संयुक्त नागरिक-सैन्य समिति बनाने का फैसला लिया. यह एक बार फिर एनएलडी सरकार द्वारा एनडीएससी को दरकिनार किए जाने का स्पष्ट संकेत था. एनएलडी सरकार और तत्मादाव भी चुनावों को देखते हुए एक दूसरे पर बढ़त दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी तत्मादाव ने दोहराया है कि वह महामारी के खिलाफ लड़ाई में नागरिक सरकार के साथ सहयोग और मदद कर रहा है, साथ ही ख़ुद को एक संस्था के रूप में पेश करने के मक़सद से, जो “लोगों को कोविड -19 से बचाने के लिए” तैयार और तत्पर है, विभिन्न समूहों के लिए चिकित्सा सहायता मुहैया करा रहा है.

हाल ही में, सेना प्रमुख ने एनएलडी सरकार के तहत जातीय शांति प्रक्रिया को नाकाम बताया और तत्मादाव द्वारा 2019 में घोषित किए गए हथियारबंद जातीय समूहों के साथ नौ महीने के युद्धविराम का लाभ उठाने में असैनिक नागरिक सरकार की असमर्थता पर नाख़ुशी ज़ाहिर की. दो दिन बाद आंग सान सू की ने कहा कि शांति प्रक्रिया पटरी पर है और इस महीने के अंत में होने वाले चौथे पैंगलांग शांति सम्मेलन के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

संभावना यही है कि चुनाव के बाद नागरिक सरकार-सेना संबंध सामान्य हो जाएंगे. दोनों पक्षों के बीच प्रतीकों की भी लड़ाई है. जून में सेना-समर्थित यूएसडीपी और 29 संबद्ध राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय नायक जनरल आंग सान — आंग सान सू की के पिता की तस्वीरों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की थी— इस आधार पर इससे चुनावी अभियानों में एनएलडी पार्टी को फ़ायदा होगा, हालांकि, चुनाव आयोग ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया. नागरिक सरकार और तत्मादाव के बीच पिछले पांच सालों में विकसित हुए व्यावहारिक संबंध को चला पाना मुश्किल होता जा रहा है, इसके साथ ही एवजी पार्टियां ख़ुद को आगामी आम चुनावों में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश कर रही हैं.

संभावना है कि चुनाव के बाद नागरिक-सैन्य संबंध सामान्य हो जाएंगे, हालांकि, उनके रिश्ते चुनाव नतीजे के स्वरूप के साथ-साथ तत्मादाव नेतृत्व में बदलाव पर निर्भर करेंगे और/या अगर मौजूदा सेना प्रमुख अपना मन बदलता है तो उस रिश्ते का स्वरूप बिगड़ जाएगा, जिसकी फिलहाल निकट भविष्य में संभावना नहीं दिखती है.

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