Published on Mar 26, 2019 Updated 0 Hours ago

दोनों देशों के बीच आधिकारिक व्यापार 2.4 बिलियन डॉलर से कम है। यह इससे कई गुना अधिक हो सकता था।

भारत और पाकिस्तान पर युद्ध का आर्थिक बोझ

पेशावर, पाकिस्तान का बाज़ार। फ़ोटो: Chris Hondros/Getty

द इकोनॉमिस्ट द्वारा भारत और पाकिस्तान को कभी ‘व्यापार का प्राकृतिक भागीदार (the natural trade partners)’ के रूप में वर्णित किया गया था। वास्तव में, अगर दोनों पड़ोसियों के बीच दोस्ताना संबंध होते तो दोनों मुल्क़ों के बीच व्यापार और निवेश साझेदारी पनपती और दोनों हिस्सों के आम लोगों को इसका फ़ायदा मिलता। खेती, उत्पादन और सेवाओं में दोनों देश बहुत हद कर एक-दूसरे के पूरक हैं यानी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। 1.3 बिलियन आबादी और विशाल संसाधनों के साथ भारत पाकिस्तान का विशाल पड़ोसी मुल्क़ है। भारत की तुलना में पाकिस्तान की आर्थिक हालत बेहद ख़राब है। फ़िलहाल पाकिस्तान बढ़ती महंगाई, बढ़ते आधिपत्य और घरेलू क़र्ज़, गिरती मुद्रा (एक डॉलर = 138.39 पाकिस्तानी रुपया) और 5.1 फ़ीसदी के वित्तीय घाटे से जूझ रहा है।

दोनों देशों के बीच आधिकारिक व्यापार 2.4 बिलियन डॉलर से कम है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़ यह इससे कई गुना अधिक हो सकता था और 37 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता था अगर दोनों देशों के बीच कोई टैरिफ़ या नॉन टैरिफ़ बैरियर नहीं होता।

दोनों देशों की सीमा पर सालाना 5 बिलियन डॉलर का अवैध कारोबार होता है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सिंगापुर जैसे तीसरे देशों के माध्यम से भी 5 से 10 बिलियन डॉलर तक का ठोस व्यापार होता है। 2012 के बाद दोनों देशों के बीच आगे कोई व्यापारिक बातचीत नहीं हुई। सितंबर 2012 में दोनों देशों के वाणिज्यिक सचिवों द्वारा व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया था। 2014 में दोनों मुल्क़ों के प्रधानमंत्रियों की बैठक हुई और व्यापार को सामान्य बनाने की कोशिश की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से आनेवाले कारोबारियों को वीज़ा देने की प्रक्रिया को आसान बनाने का वादा किया था।

पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा छीन लिया। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के मुताबिक़ 1996 में पाकिस्तान को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा दिया था। दरअसल विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के मुताबिक़ हर सदस्य देश को अपने ट्रेड पार्टनर्स को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा देना होता है, जो इसके सदस्य देश हैं।

हाल में, पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा छीन लिया। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के मुताबिक़ 1996 में पाकिस्तान को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा दिया था। दरअसल विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के मुताबिक़ हर सदस्य देश को अपने ट्रेड पार्टनर्स को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा देना होता है, जो इसके सदस्य देश हैं। इसके तहत सभी ट्रेड पार्टनर्स को समान टैरिफ़ की सुविधा देनी होती है। भारत दो दशक से ज़्यादा समय तक पाकिस्तान को समान टैरिफ़ की सहूलियत देता रहा। लेकिन हाल के विवाद के बाद, भारत पाकिस्तान से होने वाले सभी निर्यात पर 200 फ़ीसदी टैरिफ़ शुल्क लगाने की तैयारी में है।

बीते सालों में, पाक संसद की मंज़ूरी के बाद भी पाकिस्तान भारत को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा देने से बचता रहा। भारत द्वारा कस्टम ड्यूटी में बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद यह संभव है कि कई सामान्य पाकिस्तानी, ख़ास कर सूक्ष्म, लघु और मंझोले उद्योगों में काम करने वाले लोग बुरी तरह प्रभावित होंगे। ऐसी ख़बरें हैं कि पाकिस्तान के निर्यात की वस्तुएं वाघा-अटारी बॉर्डर पर पड़ी हुई हैं, क्योंकि टैरिफ़ शुल्क में भारी-भरकम इज़ाफ़े के बाद भारतीय कारोबारी वर्ग इन्हें नहीं ले रहा है। इनमें खेल-कूद के सामान, चाकू, कैंची और सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट जैसे स्टील के उपकरण और सीमेंट शामिल हैं।

पहले भी कभी भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बढ़ नहीं सका है, हालांकि हमने अपना बेहतरीन प्रयास किया और सार्क के अंतर्गत SAFTA (साउथ एशियन फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट) के तहत प्रतिबन्धित सामानों की नकारात्मक सूची को कम से कम किया। पाकिस्तान ने 1209 सामानों की एक लंबी नकारात्मक सूची जारी रखी, जिसने एक प्रभावी नॉन टैरिफ़ ट्रेड बैरियर की तरह काम किया। पाकिस्तान की प्रतिबंधित सूची में टेक्सटाइल, गार्मेंट्स, फ़ार्मास्यूटिकल्स, प्लास्टिक और पॉलीमर, कार, ट्रक और ऑटो पार्ट्स शामिल थे।

वास्तव में भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार कभी बढ़ा ही नहीं।

भले ही भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में व्यापार अहम भूमिका नहीं निभा रहा हो, लेकिन पाकिस्तान भारत के साथ लंबे समय तक संघर्ष नहीं कर सकता है क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था काफ़ी जर्जर हालत में है और ऐसे में भारत के साथ विवाद की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। जर्जर अर्थव्यवस्था को राह पर लाने और महंगाई को क़ाबू करने के लिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से तत्काल 12 बिलियन डॉलर की मदद की ज़रूरत है। पाकिस्तान को ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी मदद और दूसरे स्रोतों से क़र्ज़ की ज़रूरत है लेकिन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा इसकी क्रेडिट रेटिंग (क़र्ज़ चुकाने की रेटिंग) घट गई है। हाल में, सऊदी अरब और चीन दोनों देशों ने पाकिस्तान को 2-2 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ दिया है।

पाकिस्तान का विशुद्ध विदेशी मुद्रा भंडार बहुत ही कम 7.2 बिलियन डॉलर है, जिससे महज़ छह हफ़्तों का आायात संभव है। पाकिस्तान का व्यापार घाटा 31.2 बिलियन डॉलर है। विदेशी निवेश का प्रवाह व्यापार घाटे को पाटने के लिए पर्याप्त नहीं है।

405 बिलियन डॉलर के विशुद्ध मुद्रा कोष के साथ भारत पाकिस्तान की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में है। लेकिन भारत का आर्थिक दृष्टिकोण पहले की तरह उज्ज्वल नहीं है, क्योंकि हाल में जीडीपी गिरकर 6.6 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। विदेशी निवेश का प्रवाह भी सुस्त पड़ गया है और निवेशक दो पहलूओं पर नज़र बनाए हुए हैं और इंतज़ार कर रहे हैं- आगामी लोकसभा चुनावों के नतीजे और भारत-पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष बढ़ने का भय। निवेशकों को फिर से भरोसे में लेने के लिए दोनों मुल्क़ों को एक मज़बूत संकेत देने की ज़रूरत है कि दोनों देश आपसी संघर्ष को कम करने की दिशा में काम करेंगे। साथ ही बालाकोट एयर स्ट्राइक को लेकर विस्तार से स्थिति साफ़ करना भी मददगार होगा, क्योंकि वेस्टर्न मीडिया में इस हमले को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स में फ़रहाद मंजू की रिपोर्ट ने दोनों पक्षों के दावों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है।

लंबे समय तक संघर्ष का ख़तरा भारत में आनेवाले FPI (फ़ॉरेन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टमेंट) की रफ़्तार को सुस्त कर सकता है, जिसका रुपये की सेहत पर ख़राब असर होगा। पुलवामा हमले के बाद FPI (फ़ॉरेन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टमेंट) ने भारतीय बाज़ारों से 3,000 करोड़ रुपये निकाल लिए।

संघर्ष बढ़ने का मतलब होगा विकास और जन कल्याणकारी कामों की जगह हथियारों की ख़रीद पर बजटीय संसाधनों का इस्तेमाल।

रॉयल बैंक ऑफ़ कनाडा ने अनुमान जताया है कि 2019 में रुपये में भारी गिरावट देखने को मिलेगी और एक डॉलर 80 रुपये के बराबर हो जाएगा। भारत अपनी पेट्रोलियम ज़रूरतों का 83 फ़ीसदी आयात करता है और अगर कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी होती है तो रुपया औंधे मुंह गिर जाएगा।

संघर्ष बढ़ने का मतलब होगा विकास और जन कल्याणकारी कामों की जगह हथियारों की ख़रीद पर बजटीय संसाधनों का इस्तेमाल। हथियार ख़रीद के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। दो विकासशील देशों के लिए रूस, इज़रायल और अमेरिका जैसे उन्नत देशों से लगातार हथियारों की ख़रीद करना बहुत ज़्यादा सार्थक नहीं लगता है, तब जब दोनों मुल्क़ों में लाखों की आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे गुज़र-बसर करती है। भारत और पाकिस्तान दोनों ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) की रैंकिंग में बहुत पीछे हैं और ख़राब सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे के बोझ से दबे हैं। दोनों देशों में बेरोज़गारी चरम पर है और दोनों ही पड़ोसी मुल्क़ों को तत्काल स्वास्थ्य और शिक्षा की बेहतरी के लिए पैसे ख़र्च करने की ज़रूरत है।

ऐसी परिस्थितियों में, युद्ध की कोई भी संभावना दोनों मुल्क़ों पर आर्थिक बोझ को बढ़ाएगी और इसका असर आम लोग पर होगा क्योंकि तब सरकारें जीवन की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान देने से ज़्यादा हथियारों की ख़रीद पर ख़र्च करेंगी। इस मोड़ पर इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत होना बहुत ज़रूरी और महत्वपूर्ण है।

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