Author : Manoj Joshi

Published on Apr 06, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत तो डोकलाम को लेकर चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर मसला हल करना चाहता है पर चीन की इसमें कितनी रूचि है?

एक बार फिर डोकलाम: क्या दोबारा टकराव की नौबत आयेगी

प्रधानमंत्री मोदी चीनी राष्ट्रपति शी के साथ

पिछले रविवार यानि 25 मार्च को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने देहरादून में पत्रकारों से कहा कि भारत “डोकलाम में किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति से निपटने के लिए सतर्क और तैयार है।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सेना के आधुनिकीकरण के लिए लगातार प्रयास कर रही है और वे “राष्ट्रीय अखंडता को बरकरार” रखने के लिए तत्पर रहेंगे।

इसी के एक दिन पहले बीजिंग में भारत के राजदूत गौतम बंबावले ने साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट को एक इंटरव्यू में बताया था कि भारतीय सीमा पर यथास्थिति में परिवर्तन के चीन के किसी भी प्रयास से डोकलाम जैसी गतिरोध की स्थिति फिर बनेगी।

इसके पहले इसी महीने सीतारमण ने राज्य सभा को बताया था कि दोनों देशो ने पिछले साल जून के गतिरोध वाले इलाके से दूर अपनी सेनाओं की पुनर्तैनाती कर रखी है। वहां पर चीन की गतिविधि को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इन सैनिकों को ठंड में वहां बनाये रखने के लिए पीएलए ने ने संतरी चौकियों, गड्ढों और हेलीपैड सहित कुछ बुनियादी ढांचों का निर्माण शुरू किया है।

राजदूत बंबावले के शनिवार के बयान में थोड़ा अंतर था। उन्होंने ये दावा नहीं किया था कि भारत की राष्ट्रीय अखंडता एक मुद्दा है बल्कि कहा था कि “चीनी सेना ने डोकलाम इलाके में यथास्थिति में बदलाव किया है और इसीलिए भारत ने इस पर प्रतिक्रिया दी। हमने जो भी कहा वो चीन की सेना द्वारा यथास्थिति में किये गये बदलाव की प्रतिक्रिया मात्र थी।”

इसी संदर्भ में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि हांलाकि राजनीतिक स्तर पर संवाद की शुरूआत हो चुकी है लेकिन दोनों सेनाओं के बीच बातचीत की भी जरूरत है। उन्होंने कहा जमीनी स्तर पर सैनिक टुकड़ियों के बीच संवाद शुरू हो गया है लेकिन जरूरत इस बात की है कि संवाद मुख्यालयों के बीच यानि “बीजिग के सेंट्रल मिलटरी कमीशन और नयी दिल्ली के सैनिक मुख्यालय के बीच हो।”

प्रधानमंत्री मोदी चीनी राष्ट्रपति शी के साथ

पिछले रविवार यानि 25 मार्च को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने देहरादून में पत्रकारों से कहा कि भारत “डोकलाम में किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति से निपटने के लिए सतर्क और तैयार है।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सेना के आधुनिकीकरण के लिए लगातार प्रयास कर रही है और वे “राष्ट्रीय अखंडता को बरकरार” रखने के लिए तत्पर रहेंगे।

इसी के एक दिन पहले बीजिंग में भारत के राजदूत गौतम बंबावले ने साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट को एक इंटरव्यू में बताया था कि भारतीय सीमा पर यथास्थिति में परिवर्तन के चीन के किसी भी प्रयास से डोकलाम जैसी गतिरोध की स्थिति फिर बनेगी।

इसके पहले इसी महीने सीतारमण ने राज्य सभा को बताया था कि दोनों देशो ने पिछले साल जून के गतिरोध वाले इलाके से दूर अपनी सेनाओं की पुनर्तैनाती कर रखी है। वहां पर चीन की गतिविधि को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इन सैनिकों को ठंड में वहां बनाये रखने के लिए पीएलए ने ने संतरी चौकियों, गड्ढों और हेलीपैड सहित कुछ बुनियादी ढांचों का निर्माण शुरू किया है।

राजदूत बंबावले के शनिवार के बयान में थोड़ा अंतर था। उन्होंने ये दावा नहीं किया था कि भारत की राष्ट्रीय अखंडता एक मुद्दा है बल्कि कहा था कि “चीनी सेना ने डोकलाम इलाके में यथास्थिति में बदलाव किया है और इसीलिए भारत ने इस पर प्रतिक्रिया दी। हमने जो भी कहा वो चीन की सेना द्वारा यथास्थिति में किये गये बदलाव की प्रतिक्रिया मात्र थी।”

इसी संदर्भ में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि हांलाकि राजनीतिक स्तर पर संवाद की शुरूआत हो चुकी है लेकिन दोनों सेनाओं के बीच बातचीत की भी जरूरत है। उन्होंने कहा जमीनी स्तर पर सैनिक टुकड़ियों के बीच संवाद शुरू हो गया है लेकिन जरूरत इस बात की है कि संवाद मुख्यालयों के बीच यानि “बीजिग के सेंट्रल मिलटरी कमीशन और नयी दिल्ली के सैनिक मुख्यालय के बीच हो।”

डोकलाम के इस इलाके को जिसे भारत भूटान का हिस्सा मानता है और जिस पर चीन अपना दावा ठोकता है वो राजदूत बंबावले के शब्दों में क्यों “बेहद ही संवेदनशील इलाका है”?

जम्फेरी रिज जो भारतीय सीमा से 6 किलोमीटर पूर्व की ओर है वो डोकलाम का दक्षिणी छोर है। यहां से पूरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर का सीधा नजारा मिलता है। यही वो संकरा ‘चिकेन्स नेक’ है जो भारत के मुख्य भाग को पूर्वोत्तर इलाके से जोड़ता है। हांलाकि यहां 20 किलोमीटर चौड़ी भूटानी भूखंड की पट्टी भी है। भारतीय सेना यहां पीएलए के कब्जे को बहुंत गंभीर मानती है। कितनी गंभीर, यह इस बात से और स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय सेना की लड़ाई की तैयारियों में पहले ही इस पर विचार होता रहा है कि अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो रिज पर सैनिक कब्जा कर लिया जाये।

वर्ष 2005 से 2017 के बीच भारत को रिज इलाके में पीएलए की यदा-कदा की गश्त से कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन यहां सड़क बनाने के फैसले ने ये संकेत दिया कि चीन रिज पर स्थायी रूप से कब्जा करने और निगरानी चौकियों और हथियारों के ठिकानों के निर्माण की योजना बना रहा है जिससे इस कॉरिडोर में भारत की संचार व्यवस्था में हस्तक्षेप किया जा सके। इससे स्पष्ट तौर पर भारत की सुरक्षा पर सर्वाधिक गंभीर प्रभाव पड़ना तय है।

ये स्पष्ट नहीं है कि सीतारमण और वरिष्ठ राजनीतिक नेतृत्व इस स्थिति की जो गंभीरता है उसे समझते हैं या नहीं। डोकलाम का विवाद चीन और भूटान के बीच में है। चीनियों ने उस इलाके में 2005 में कब्जा कर लिया था और उन्होंने सिंच ला दर्रे से लेकर उस जगह तक सड़क बना ली थी जिस इलाके में जून 2017 में गतिरोध शुरू हुआ। इसके बाद से वे वहां अपनी गाड़ियां पार्क कर देते और जम्फेरी रिज के दक्षिणी इलाके में छह से सात किलोमीटर तक गश्त करते। यहीं रॉयल भूटान आर्मी की चौकी स्थित है। ये सब गतिविधियां साफ नजर आती हैं और भारत या भूटान ने इस पर आपत्ति जाहिर नहीं की है।


आखिर क्यों उन्होंने पिछले साल 16 जून को भूटानी चौकी तक वाहन के उपयुक्त सड़क  निर्माण का फैसला किया ये साफ नहीं है लेकिन इस पर दो दिनों में ही तब रोक लग गयी जब भारतीय सैनिक पार्किंग प्वाइंट तक पहुंचे और सड़क निर्माण पर पाबंदी लगा दी। ये गतिरोध तभी खत्म हुआ जब दोनों पक्षों ने उस इलाके में यथास्थिति बनाये रखने पर सहमति जाहिर की।


भूटान की ओर से 29 जून 2017 को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि भूटान सरकार ने रोड बनाने के चीनी प्रयासों का विरोध किया है और वो इसे दोनों पक्षों के बीच के समझौतों का सीधा उल्लंघन मानता है। वे उन दो समझौतों का जिक्र कर रहे थे जिसमें चीनी पक्ष ने चीन-भूटान सीमा पर यथास्थिति बरकरार रखने पर सहमति जाहिर की थी जब तक कि सीमा संबंधी मसलों का अंतिम समाधान नहीं हो जाता।

अगले दिन 30 जून को भारत ने रोड निर्माण पर पाबंदी लगाने के अपने कदम का बचाव करते हुए अपना प्रेस नोट जारी किया। प्रेस नोट में कहा गया था कि वह भूटान के रॉयल गवर्नमेंट के सहयोग के साथ काम कर रहा है लेकिन वह मुद्दा सिर्फ भूटान से संबंधित नहीं था क्योंकि चीनी कार्यवाही भारत के लिए सुरक्षा प्रभावों की यथास्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती।

राजदूत बंबावले ने अपने इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया कि तथाकथित “विवाद स्थल” को लेकर स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि “हो सकता है कि चीनी ज्यादा सैन्य बैरक तैयार कर रहे हों ताकि ज्यादा सैनिकों को रखा जा सकते।“ लेकिन उनके विचार में ये “संवेदनशील इलाके से काफी परे था।”

इस संदर्भ में हाल की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीनी हो सकता है टोर्सा नाले पर पुल बनाकर जम्फेरी रीज तक बनने वाली सड़क के नक्शे में थोड़ा बदलाव कर रहे हों ताकि स्थिति को संभाला जा सके। ये इलाका उस स्थान से करीब चार से लेकर छह किलोमीटर तक पूर्व में होगा जहां पिछले साल गतिरोध शुरू हुआ था और भारत को यहां किसी सड़क के निर्माण पर रोक लगाने के लिए गंभीर सैन्य कार्रवाई की दिशा में प्रयास करना होगा।

सीतारमण के बयान के एक दिन बाद 26 मार्च को चीन की आधिकारिक प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने इस मसले पर चीन के दृष्टिकोण को सामने रखा। उन्होंने भारतीय राजदूत के इस उल्लेख पर अशोभनीय ढंग से सवाल उठाया कि चीन इस इलाके की यथास्थिति को बदल रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा “चीन-भारत सीमा का सिक्किम वाला हिस्सा ऐतिहासिक समझौतों से तय हुआ है और डोंग लांग चीन का भूभाग है।” उन्होंने ये भी कहा कि “यहां यथास्थिति में बदलाव जैसा कोई मसला नहीं है क्योंकि चीन अपनी संप्रभुता का पालन कर रहा है और अपने भूभाग में अपनी संप्रभु गतिविधियां चला रहा है।”

इसलिए स्थिति एक कठिन दौर में पहुंच गयी है। अगर चीन रीज तक सड़क बनाने के इरादे और इस पर अपना कब्जा करने पर कायम रहता है तो स्थिति और गंभीर होगी लेकिन भारत तभी यहां सैन्य दखल दे सकता है जब भूटान इसका अनुरोध करे। अभी के हालात में इसका कोई संकेत नहीं है कि ऐसा होगा। अन्यथा, कूटनीति के लिए रास्ता खुला हुआ है। राजदूत बंबावले के इंटरव्यू से आपको ये संकेत मिल सकता है कि भारत दूसरी राह पर चलना चाह रहा है। सवाल ये है कि चीन इसका प्रत्युत्तर सकारात्मक रूप में देगा या भारत को टकराव के मार्ग पर धकेल देगा जिसके परिणाम सभी पक्षों के लिए भयावह हो सकते हैं।

जम्फेरी रिज जो भारतीय सीमा से 6 किलोमीटर पूर्व की ओर है वो डोकलाम का दक्षिणी छोर है। यहां से पूरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर का सीधा नजारा मिलता है। यही वो संकरा ‘चिकेन्स नेक’ है जो भारत के मुख्य भाग को पूर्वोत्तर इलाके से जोड़ता है। हांलाकि यहां 20 किलोमीटर चौड़ी भूटानी भूखंड की पट्टी भी है। भारतीय सेना यहां पीएलए के कब्जे को बहुंत गंभीर मानती है। कितनी गंभीर, यह इस बात से और स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय सेना की लड़ाई की तैयारियों में पहले ही इस पर विचार होता रहा है कि अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो रिज पर सैनिक कब्जा कर लिया जाये।

वर्ष 2005 से 2017 के बीच भारत को रिज इलाके में पीएलए की यदा-कदा की गश्त से कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन यहां सड़क बनाने के फैसले ने ये संकेत दिया कि चीन रिज पर स्थायी रूप से कब्जा करने और निगरानी चौकियों और हथियारों के ठिकानों के निर्माण की योजना बना रहा है जिससे इस कॉरिडोर में भारत की संचार व्यवस्था में हस्तक्षेप किया जा सके। इससे स्पष्ट तौर पर भारत की सुरक्षा पर सर्वाधिक गंभीर प्रभाव पड़ना तय है।

ये स्पष्ट नहीं है कि सीतारमण और वरिष्ठ राजनीतिक नेतृत्व इस स्थिति की जो गंभीरता है उसे समझते हैं या नहीं। डोकलाम का विवाद चीन और भूटान के बीच में है। चीनियों ने उस इलाके में 2005 में कब्जा कर लिया था और उन्होंने सिंच ला दर्रे से लेकर उस जगह तक सड़क बना ली थी जिस इलाके में जून 2017 में गतिरोध शुरू हुआ। इसके बाद से वे वहां अपनी गाड़ियां पार्क कर देते और जम्फेरी रिज के दक्षिणी इलाके में छह से सात किलोमीटर तक गश्त करते। यहीं रॉयल भूटान आर्मी की चौकी स्थित है। ये सब गतिविधियां साफ नजर आती हैं और भारत या भूटान ने इस पर आपत्ति जाहिर नहीं की है।


आखिर क्यों उन्होंने पिछले साल 16 जून को भूटानी चौकी तक वाहन के उपयुक्त सड़क  निर्माण का फैसला किया ये साफ नहीं है लेकिन इस पर दो दिनों में ही तब रोक लग गयी जब भारतीय सैनिक पार्किंग प्वाइंट तक पहुंचे और सड़क निर्माण पर पाबंदी लगा दी। ये गतिरोध तभी खत्म हुआ जब दोनों पक्षों ने उस इलाके में यथास्थिति बनाये रखने पर सहमति जाहिर की।


भूटान की ओर से 29 जून 2017 को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि भूटान सरकार ने रोड बनाने के चीनी प्रयासों का विरोध किया है और वो इसे दोनों पक्षों के बीच के समझौतों का सीधा उल्लंघन मानता है। वे उन दो समझौतों का जिक्र कर रहे थे जिसमें चीनी पक्ष ने चीन-भूटान सीमा पर यथास्थिति बरकरार रखने पर सहमति जाहिर की थी जब तक कि सीमा संबंधी मसलों का अंतिम समाधान नहीं हो जाता।

अगले दिन 30 जून को भारत ने रोड निर्माण पर पाबंदी लगाने के अपने कदम का बचाव करते हुए अपना प्रेस नोट जारी किया। प्रेस नोट में कहा गया था कि वह भूटान के रॉयल गवर्नमेंट के सहयोग के साथ काम कर रहा है लेकिन वह मुद्दा सिर्फ भूटान से संबंधित नहीं था क्योंकि चीनी कार्यवाही भारत के लिए सुरक्षा प्रभावों की यथास्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती।

राजदूत बंबावले ने अपने इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया कि तथाकथित “विवाद स्थल” को लेकर स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि “हो सकता है कि चीनी ज्यादा सैन्य बैरक तैयार कर रहे हों ताकि ज्यादा सैनिकों को रखा जा सकते।“ लेकिन उनके विचार में ये “संवेदनशील इलाके से काफी परे था।”

इस संदर्भ में हाल की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीनी हो सकता है टोर्सा नाले पर पुल बनाकर जम्फेरी रीज तक बनने वाली सड़क के नक्शे में थोड़ा बदलाव कर रहे हों ताकि स्थिति को संभाला जा सके। ये इलाका उस स्थान से करीब चार से लेकर छह किलोमीटर तक पूर्व में होगा जहां पिछले साल गतिरोध शुरू हुआ था और भारत को यहां किसी सड़क के निर्माण पर रोक लगाने के लिए गंभीर सैन्य कार्रवाई की दिशा में प्रयास करना होगा।

सीतारमण के बयान के एक दिन बाद 26 मार्च को चीन की आधिकारिक प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने इस मसले पर चीन के दृष्टिकोण को सामने रखा। उन्होंने भारतीय राजदूत के इस उल्लेख पर अशोभनीय ढंग से सवाल उठाया कि चीन इस इलाके की यथास्थिति को बदल रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा “चीन-भारत सीमा का सिक्किम वाला हिस्सा ऐतिहासिक समझौतों से तय हुआ है और डोंग लांग चीन का भूभाग है।” उन्होंने ये भी कहा कि “यहां यथास्थिति में बदलाव जैसा कोई मसला नहीं है क्योंकि चीन अपनी संप्रभुता का पालन कर रहा है और अपने भूभाग में अपनी संप्रभु गतिविधियां चला रहा है।”

इसलिए स्थिति एक कठिन दौर में पहुंच गयी है। अगर चीन रीज तक सड़क बनाने के इरादे और इस पर अपना कब्जा करने पर कायम रहता है तो स्थिति और गंभीर होगी लेकिन भारत तभी यहां सैन्य दखल दे सकता है जब भूटान इसका अनुरोध करे। अभी के हालात में इसका कोई संकेत नहीं है कि ऐसा होगा। अन्यथा, कूटनीति के लिए रास्ता खुला हुआ है। राजदूत बंबावले के इंटरव्यू से आपको ये संकेत मिल सकता है कि भारत दूसरी राह पर चलना चाह रहा है। सवाल ये है कि चीन इसका प्रत्युत्तर सकारात्मक रूप में देगा या भारत को टकराव के मार्ग पर धकेल देगा जिसके परिणाम सभी पक्षों के लिए भयावह हो सकते हैं।

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