Published on Aug 02, 2017 Updated 0 Hours ago

वर्तमान में शी जिनपिंग परिस्थितियों को अपने मनमाफिक मोड़ पाने की बेहद मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं।

शी जिनपिंग के लिए डोकलाम गतिरोध शुभ संकेत नहीं

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (बायें से दूसरे) ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल में आयोजित 18वें सीपीसी के समापन सत्र के दौरान

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) एवं भारतीय सेना के बीच डोकलाम गतिरोध पिछले एक महीने से बना हुआ है और हाल के वर्षों में यह सबसे लंबा गतिरोध है। इसके कारणों और पीएलए की कार्रवाई के समय के बारे में कयास लगाना महत्वपूर्ण हो सकता है। सवाल यह उठता है कि ‘अभी क्यों’ और ‘किस स्तर पर यह निर्णय लिया गया।’ सीमा से संबंधित अधिकांश उल्लंघन अति उत्साही स्थानीय कमांडरों द्वारा किए जाते हैं। लेकिन गतिरोध का लंबा समय और पीएलए बलों द्वारा दिए जा रहे पुरजोर समर्थन से ऐसा प्रतीत होता है कि इस कार्रवाई को उच्च अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है। किसी भी स्थिति में, पीएलए के अतिक्रमण-चाहे वे बड़े हों या छोटे-आम तौर पर समग्र चीनी नीति के दायरे में ही होते हैं जिनमें तीन तत्व होते हैं:

  • जहां पीएलए का पहले से ही नियंत्रण है, वहां आधारभूत संरचना में सुधार एवं स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण के द्वारा अपनी स्थिति को और मजबूत बनाना,
  • ज्हां भारतीय एवं चीनी सेनाएं दोनों ही अलग अलग समय समय पर गश्त करती हैं, वहां धीरे धीरे घुसपैठ करने एवं वहां टिकने के लिए एक ‘सलामी स्लाइस’ यानी धीरे धीरे और छोटी छोटी घुसपैठ और अतिक्रमण करना, एवं
  • जहां भारत मजबूत स्थिति में है, वहां मौके की नजाकत भांपने और थाह लेने के लिए कभी कभार उकसाने वाली कार्रवाई करना।

इस घटना को दोनों देशों, खासकर चीन द्वारा, युद्ध की स्थिति तक लाने के बाद, हुए मीडिया कवरेज के उपरांत अब छवि खराब हुए बिना सुलह के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़़ी है। विदेश सचिव जयशंकर ने सिंगापुर में एक समारोह के दौरान के एक प्रश्न के जवाब में कुछ टिप्पणियां कीं (जानबूझ कर या अनजाने में ) जिसमें चीन के लिए एक अवसर या एक छोटी गुंजाइश दिखी। उन्होंने कहा कि ‘ऐसा (भारत-चीन सीमा विवाद) कोई पहली बार नहीं हुआ है। आप इससे कैसे निपटते हैं, यह हमारी परिपक्वता का परीक्षण है। अतीत में हमने ऐसी कई स्थितियों का निपटारा किया है, तो मुझे नहीं लगता कि हम इसका समाधान नहीं कर पाएंगे।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘दोनों देशों को अपने मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना चाहिए।’ चीन बखूबी इस बयान का उपयोग अपने लहजे को नरम करने के लिए कर सकता था और फिलहाल कुछ समय के लिए इस मुद्दे को शांत होने दे सकता था, भले ही वह अपने रुख या उक्त स्थान से पीछे नहीं भी हटता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि इसकी जगह चीन ने इस अवसर को अस्वीकार कर दिया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि ‘यह मामला सीमा के अस्पष्ट क्षेत्रों में होने वाली पहले की झड़पों से अलग है।’

पहले इस तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि चीन की कार्रवाई शी जिनपिग की प्रिय परियोजना ओबीओर (वन बेल्ट वन रोड) में शामिल न होने पर भारत को सबक सिखाने के लिए थी। भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरता है, पर संप्रभुता का मुद्वा उठाते हुए मई 2017 में बीजिंग में हुए बेल्ट एंड रोड फोरम समिट में भाग लेने के आमंत्रण को ठुकरा दिया था। डोकलाम मुद्वे को ओबीओर से जोड़ने का यह तर्क अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है क्योंकि चीन की सरकार भारत से यह उम्मीद नहीं कर सकती कि वह ऐसे भोंडी चालों की वजह से अपना मन बदलेगा। दूसरी तरफ, यह भारत के रुख को और सख्त कर सकता है।

भूटान में अगले वर्ष आयोजित होने वाले चुनावों को भी एक कारण बताया गया है। चीन भूटान के साथ राजनयिक संबंध बनाने की हर संभव कोशिश कर रहा है।

वे चीन के साथ सहानुभूति रखने वालों की वहां एक छोटी लॉबी बनाना चाहते हैं जो वर्तमान में महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होता। भूटान को इस गतिरोध से संदेश यह जा सकता है कि चीन डोकलाम पठार जैसे विवादित क्षेत्रों के बदले उत्तर भूटान में कुछ क्षेत्रों को बदलने के लिए तैयार हो जाएगा। बेशक, यह एक सर्वविदित तथ्य है कि चीन ने हाल के दिनों में भूटान की तरफ कई कदम उठाए हैं। भूटान के कुछ युवकों को चीन में पढ़ने के लिए छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। भारत में चीनी राजदूत की पत्नी ने हाल में थिम्पू की यात्रा की थी और प्रकट रूप से बौद्ध धर्म पर विचार विमर्श करने के लिए राजा और रानी मां से मुलाकात की थी।

शी जिनपिंग के लिए इस घटना का समय क्यों एक शुभ संकेत नहीं है, इसकी दो वजह है:

पहली वजह यह है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की अगली बैठक इस वर्ष सितंबर में शियामेन (चीन) में आयोजित होगी।

जाहिर है कि मेजबान देश होने के कारण चीन इसे काफी सफल बनना चाहेगा और इसकी कामयाबी का श्रेय सीधे शी को ही मिलेगा। अब डोकलाम सीमा पर इस तनातनी की वजह से, ब्रिक्स बैठक को लेकर होने वाले मूल प्रचार और चर्चा में धीरे धीरे काफी कमी आ गई है। पिछले कुछ ब्रिक्स सम्मेलनों के दौरान, दुनिया ने देखा हैकि पुराने और घिसेपिटे विचारों को ही इन सम्मेलनों में बार बार दुहराया जाता है। बेशक, न्यू डेवेलपमेंट बैंक (आईएनडीबी) और कांटीन्जेन्सी रिजर्व अरेंजमेंट (सीआरए) की स्थापना और वह भी बेहद कम समय में, निश्चित रुप से एक बड़ी उपलब्धि रही है। लेकिन इसके साथ साथ ब्रिक्स के भीतर विरोधाभासों और सामरिक प्रतिस्पर्धा में लगातार बढोतरी होती गई है जो आंशिक रूप से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों की वजह से भी हुई है। यह विरोधाभास और प्रतिस्पर्धा विशेष रूप से चीन, भारत और रूस के बीच ज्यादा सुस्पष्ट है। ऐसा लगता है कि इन तीनों को लेकर दुनिया के नजरिये में भी काफी फर्क है। इन सभी कारकों को देखते हुए, शियामेन शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए चीन को काफी मशक्कत करनी होगी। निश्चित रूप से भारत और चीन के बीच वर्तमान गतिरोध से भी चीन के लिए मुश्किलें और बढेंगी।

दूसरी वजह यह है कि, महत्वपूर्ण समारोह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीसी) की 19वीं कांग्रेस बैठक है। यह एक बेहद महत्वपूर्ण अवसर है जिसका आयोजन हर पांच वर्ष पर किया जाता है और यह पार्टी के लिए अगले पांच वर्षों के लिए एवं देश के लिए अगले 10 वर्षों की दिशा भी निर्धारित करता है। उस समय एक नई पेलित ब्यूरो स्थायी समिति का निर्माण किया जाएगा। वर्तमान में, शी जिनपिंग परिस्थितियों को अपने मनमाफिक मोड़ पाने की बेहद मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। जब से उन्होंने 2012 में पार्टी के महासचिव का पदभार संभाला और 2013 में राष्ट्रपति बने, तब से वह लगातार सुनियोजित तरीके से अपनी स्थिति और अधिक मजबूत बनाते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम, जोकि वहां की आम जनता के बीच बेहद लोकप्रिय है, के तहत उन्होंने अपने कई प्रतिद्वंदियों को दरकिनार कर दिया। अभी हाल में, उन्होंने चोंगकिंग के राज्यपाल सुन झेंगकाई को उनके पद से हटा दिया। पोलित ब्यूरो स्थायी समिति के वर्तमान सदस्यों में से पांच को उम्र सीमा के कारण कांग्रेस के दौरान अपना पद छोड़ना होगा। केवल शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली केकियांग नई स्थायी समिति में जाएंगे। खबरों के अनुसार, शी यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि नए सदस्य उनके आश्रित होंगे, जो मुख्य रूप से पार्टी के पुराने वरिष्ठ नेताओं के निकट संबंधियों आदि से संबंधित होंगे।

शी जिनपिंग की स्थिति को 2022 तक (अर्थात) पार्टी की 20वीं कांग्रेस तक कोई खतरा नहीं है। बहरहाल, अफवाहों से संकेत मिल रहा है कि वह नवंबर में अपने उत्तराधिकारी का नाम लेने से परहेज कर सकते हैं जो 2022 में पद भार ग्रहण करेगा।

कुछ लोगों का कहना है कि शी परंपरा तोड सकते हैं और 2022 के बाद तीसरी बार भी पदभार ग्रहण कर सकते हैं। पिछले वर्ष ‘प्रमुख नेता (कोर लीडर)’ के रूप में उनका चुना जाना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम प्रतीत होता है। बेशक ये सब कयास हो सकते हैं, लेकिन शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षाओं के बारे में किसी को कोई संदेह नहीं है। लेकिन यह सारा कुछ खतरे में पड़ सकता है, अगर डोकलाम गतिरोध नियंत्रण से बाहर हो जाता है और चीन के सामने उसकी छवि को खोने की स्थिति पैदा हो जाती है। शी के नजरिये से तनाव बढ़ाने का उद्वेश्य चीन का एकछत्र प्रभुत्व सुनिश्चित करना है। लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है। एक बहुत छोटी सी झड़प को भी मीडिया बहुत अधिक तूल दे सकता है। तो क्या चीन की सरकार को नियंत्रित मीडिया की चिल्ल-पों से नुकसान हो सकता है? इसे लेकर जितना ज्यादा कोलाहल और शोर-शराबा होगा, चीन के लिए किसी समझौते पर आ पाने की डगर उतना ही अधिक कठिन होती जाएगी। गौरतलब है कि पिछले जो दो गतिरोध अधिक समय तक बने रहे थे-उनमें एक 1967 में नाथू ला में था और दूसरा 1986-87 में सुमदोरोंग चु में था और उन दोनों के ही परिणाम चीन केे लिए बहुत अनुकूल नहीं रहे थे।

उपरोक्त सभी कारकों पर विचार करने के बाद अगला सर्वश्रेष्ठ कदम यह होगा कि:

  • बयानबाजी में नरमी लाएं और धीरे धीरे इस मुद्वे को सुर्खियों से दूर ले जाएं, और
  • तनाव दूर करने के लिए अनुवर्ती कार्रवाई यानी इसका फॉलो-अप करें और अस्थायी ही सही, किसी प्रकार का कोई समझौता कर लें।

लेकिन, फिलहाल यह नामुमकिन सा प्रतीत होता है कि बिना बातचीत की प्रक्रिया आरंभ किए चीन भारतीय सेना की वापसी पर जोर देता रहे। भारत इस पूर्व-शर्त को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

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