Published on Aug 04, 2023 Updated 0 Hours ago

इस लेख में ऑनलाइन माध्यमों पर आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद से जुड़े रुझानों की पड़ताल की गई है. टेक कंपनियों द्वारा अपनाए जा रहे रुख़ों में से कुछ की समीक्षा की गई है.

#Cyber Terrorism: ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स से आतंकी सामग्रियों की पहचान कर हटाना, ‘क्रॉस-प्लेटफ़ॉर्म’ समाधान से ही मुमकिन!
#Cyber Terrorism: ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स से आतंकी सामग्रियों की पहचान कर हटाना, ‘क्रॉस-प्लेटफ़ॉर्म’ समाधान से ही मुमकिन!

ये लेख रायसीना एडिट 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.


ये लेख रायसीना एडिट 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.आतंकवाद-निरोधी मोर्चे पर अब भी काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है. अलग-अलग टेक प्लेटफ़ॉर्मों द्वारा किए जा रहे ज़्यादातर प्रयास लोगों की निग़ाहों से दूर है. वैसे निश्चित रूप से इस मोर्चे पर काफ़ी तरक़्क़ी हुई है. इस ख़तरे से पार पाने में अगले क़दमों की पहचान के लिए तमाम घटनाक्रमों की पहचान ज़रूरी हो गई है. इस लेख में ऑनलाइन माध्यमों पर आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद से जुड़े रुझानों की पड़ताल की गई है. टेक कंपनियों द्वारा अपनाए जा रहे रुख़ों में से कुछ की समीक्षा की गई है. साथ ही ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों के बीच और सभी संबंधित किरदारों के समाधान तैयार करने की क़वायदों पर नज़र दौड़ाई गई है. इस लेख में ग्लोबल इंटरनेट फ़ोरम टू काउंटर टेररिज़्म (GIFCT), सदस्य कंपनियों और टेक अगेंस्ट टेररिज़्म से जुड़ी भागीदारी और ग्लोबल नेटवर्क ऑन एक्स्ट्रिमिज़्म एंड टेक्नोलॉजी से शोध और अंदरुनी जानकारियां जुटाई गई हैं. 

आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी इंटरनेट का कैसे इस्तेमाल करते हैं?

आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी ऑनलाइन साधनों और प्लेटफ़ॉर्मों को आम लोगों की तरह ही इस्तेमाल करते हैं. वो अलग-अलग मक़सद पूरे करने और तमाम समूहों तक अपने संदेश पहुंचाने के लिए भिन्न-भिन्न प्लेटफ़ॉर्मों को प्रयोग में लाते हैं. इस तरह ऑनलाइन माध्यमों से आतंकी संदेश अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्मों पर फैलाए जाते हैं. लिहाज़ा एक समूह की मौजूदगी या दुष्प्रचार को किसी एक प्लेटफ़ॉर्म या इकलौती सरकार के प्रयासों के ज़रिए पूरी तरह से ख़त्म करना समय के साथ-साथ मुश्किल होता जा रहा है. 

आतंकी और हिंसक चरमपंथी गुटों के सरगना आपस में तालमेल बिठाने के लिए अक्सर छोटे और ढीले-ढाले नियमनों वाले प्लेटफ़ॉर्मों का इस्तेमाल करते हैं. आपसी तालमेल बिठाने से जुड़ी इन क़वायदों में फ़ंड ट्रांसफ़र करने के लिए वित्तीय प्रौद्योगिकियों का प्रयोग या ज़रूरी सामानों के जुगाड़ के लिए बाज़ार से जुड़ी साइट्स का इस्तेमाल शामिल है.

इस सिलसिले में इस्तेमाल हो रहे प्लेटफ़ॉर्मों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है: तालमेल बनाने वाला प्लेटफ़ॉर्म, सामग्रियां इकट्ठा करने वाला माध्यम और संदेश का विस्तार करने वाली इकाईयां. आतंकी और हिंसक चरमपंथी गुटों के सरगना आपस में तालमेल बिठाने के लिए अक्सर छोटे और ढीले-ढाले नियमनों वाले प्लेटफ़ॉर्मों का इस्तेमाल करते हैं. आपसी तालमेल बिठाने से जुड़ी इन क़वायदों में फ़ंड ट्रांसफ़र करने के लिए वित्तीय प्रौद्योगिकियों का प्रयोग या ज़रूरी सामानों के जुगाड़ के लिए बाज़ार से जुड़ी साइट्स का इस्तेमाल शामिल है. आंतरिक और रसद जुटाने से जुड़े काम दबे-छिपे ढंग से किए जाते हैं. ये तमाम गुट व्यापक रूप से लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ऑनलाइन मुहिमों का भी सहारा लेते रहते हैं. ये आतंकी समूह वीडियो शेयरिंग साइट्स, शेयर्ड स्टोरेज साइट्स और आर्काइवल साइट्स पर सामग्रियां तैयार कर उनका प्रचार-प्रसार करते हैं. इससे सोर्स कंटेंट को हटाने की क़वायद बेहद मुश्किल हो जाती है. ऐसे गुट व्यापक जनसमूह तक पहुंचने के लिए (चाहे भर्ती के लिए या डराने-धमकाने के लिए)  हमेशा सोशल मीडिया से जुड़े बड़े साइट्स का ही सहारा लेते रहते हैं. बड़ी साइट तक सामग्रियों के पहुंचते-पहुंचते वो अक्सर थर्ड-पार्टी साइट पर एक URL लिंक के स्वरूप में सामने आता है, या फिर साइट पर उसकी एक कॉपी साझा की जाती है. हालांकि सोर्स कंटेंट एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म पर बरक़रार रहते हैं. 

आतंकवादियों द्वारा ऑनलाइन संसार में एक से ज़्यादा प्लेटफ़ॉर्मों और विभिन्न ऑनलाइन साधनों के इस्तेमाल के अनेक उदाहरण दिख जाते हैं. ISIS के दुष्प्रचार तंत्र से जुड़े Rumiyahon की ट्विटर पर सक्रियता को लेकर ऑटलिंक्स के अध्ययनों में 11,520 पोस्ट्स की निगरानी की गई. इनके 244 अलग-अलग होस्ट साइट्स के साथ संबंध पाए गए. यूरोपोल की सबसे ताज़ा पारदर्शिता रिपोर्ट से 250 ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं से जुड़े 16,753 सामग्रियों के सूत्र यूरोपोल के SIRIUS प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ने की बात ज़ाहिर हुई है. टेक अगेंस्ट टेररिज़्म द्वारा तैयार 2021 टेररिस्ट कंटेंट एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म (TCAP) की पारदर्शिता रिपोर्ट में 65 अलग-अलग टेक कंपनियों से जुड़े 18,958 URLs का पता चला. आतंकवादियों और हिंसक चरमपंथी गुटों द्वारा इस्तेमाल में लाए गए प्लेटफ़ॉर्म कई कारकों पर निर्भर करते हैं. मसलन वो गुट भौगोलिक रूप से कहां मौजूद है, किसी प्लेटफ़ॉर्म की गोपनीयता या निगरानी के बारे में धारणा क्या है या उस प्लेटफ़ॉर्म को लेकर सांस्कृतिक रुख़ क्या हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि टेक कंपनियां ऑनलाइन माध्यमों में आतंकी सामग्रियों से कैसे निपटती हैं?

जब कोई टेक कंपनी ये तय कर लेती है कि आतंकी सामग्रियों को कैसे परिभाषित करना है तो वो मानवीय और टूलिंग संसाधनों की उसी के मुताबिक तैनात करती है. दुनिया भर की टेक कंपनियों और विशेषज्ञों से बारीक़ जानकारियां जुटाना हमेशा आसान नहीं होता.

आतंकी और हिंसक उग्रपंथी सामग्रियों की काट

हर प्लेटफ़ॉर्म अपने अलग तरीक़े से काम करता है. वो पहले से सक्रिय होकर या/और जवाबी या प्रतिक्रिया जताने के तौर पर काम करते हैं. वो ये सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि अवैध सामग्रियों और उनकी सेवा शर्तों का उल्लंघन करने वाली सामग्रियों को अपने मंच से हटा दें. जब कोई टेक कंपनी ये तय कर लेती है कि आतंकी सामग्रियों को कैसे परिभाषित करना है तो वो मानवीय और टूलिंग संसाधनों की उसी के मुताबिक तैनात करती है. दुनिया भर की टेक कंपनियों और विशेषज्ञों से बारीक़ जानकारियां जुटाना हमेशा आसान नहीं होता. वर्गीकरण और परिभाषाओं पर GIFCT की रिपोर्ट में इसकी समीक्षा की गई. ऑनलाइन माध्यमों पर नुक़सानदेह गतिविधियों की रोकथाम के लिए बड़ी और समृद्ध कंपनियों के पास हमेशा ज़्यादा संसाधन होंगे. दूसरी ओर छोटी और संसाधनों की किल्लत झेल रही कंपनियों की जवाबी समीक्षा, प्रक्रियाओं और सीमित उपकरणों पर ही निर्भर रहने के आसार हैं.  

बड़ी कंपनियों की पारदर्शिता से जुड़ी क़वायदों पर नज़र डालें तो हमें ऐसे अनेक औज़ार दिखाई देते हैं जिन्हें सामग्रियों की समीक्षा और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें हटाने के लिए सक्रिय रूप से सामने लाया जाना मुमकिन है. ऐसी कंपनियां ज़रूरत के मुताबिक इन साधनों की तैनाती कर सकती हैं. वैसे कंपनियां अक्सर हाईब्रिड मॉडलों का इस्तेमाल करती हैं. इसके तहत अपनाई गई टूलिंग की प्रक्रिया सामग्रियों को सतह पर ला देती है. इसके बाद इन्हें संतुलनकारी बदलाव लाने वाली माकूल इंसानी टीमों के साथ जो़ड़ दिया जाता है. भाषा और विषय वस्तु की विशेषज्ञता के आधार पर इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है. ऑनलाइन माध्यमों पर सामग्री का संतुलन बनाए रखने वाली टीमें आंतरिक रूप से नियमों का उल्लंघन करने वाली सामग्रियों की पहचान करती हैं. इसके बाद कई कंपनियां फ़ोटो और वीडियो मैचिंग टेक्नोलॉजी के ज़रिए सामग्रियों को बार-बार साझा करने की क़वायदों को बेपर्दा करती हैं. कुछ कंपनियां ऑडियो मैचिंग, दोबारा अपराध करने की प्रवृतियों के उभार का पता लगाकर और नेटवर्क मैपिंग के ज़रिए आतंकियों या हिंसक चरमपंथी गुटों से जुड़ी शख़्सियतों की रूपरेखा का पता लगाती हैं. वैसे इन सभी मामलों में टूलिंग का इस्तेमाल बढ़ाने के बावजूद मानवीय समीक्षा और निगरानी की ज़रूरतों में शायद ही कभी कोई कमी आती है. अक्सर इन औज़ारों से समीक्षा के लिए छांटी जाने वाली सामग्रियों की तादाद बढ़ जाती है. 

वैसे तो ज़्यादातर कंपनियां अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट में एक-एक करके और नुक़सानों के हिसाब से डेटा की छंटाई करने की क़वायद नहीं करती. हालांकि कुछ बड़े प्लेटफ़ॉर्मों के पास इस तरह की सूचनाएं मौजूद होती हैं. इससे आंतरिक तौर पर सक्रियता के साथ पहले से ख़तरा भांपकर कार्रवाई करने को लेकर तमाम जानकारियां मिल जाती हैं.

वैसे तो ज़्यादातर कंपनियां अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट में एक-एक करके और नुक़सानों के हिसाब से डेटा की छंटाई करने की क़वायद नहीं करती. हालांकि कुछ बड़े प्लेटफ़ॉर्मों के पास इस तरह की सूचनाएं मौजूद होती हैं. इससे आंतरिक तौर पर सक्रियता के साथ पहले से ख़तरा भांपकर कार्रवाई करने को लेकर तमाम जानकारियां मिल जाती हैं. मिसाल के तौर पर अपनी सबसे ताज़ा पारदर्शिता रिपोर्ट में ट्विटर ने जनवरी-जून 2021 की मियाद में 44,974 खातों को आतंकवाद की रोकथाम से जुड़े नियमों के उल्लंघन के चलते हटा दिया. यूट्यूब ने अक्टूबर और दिसंबर 2021 के बीच हिंसक अतिवादी सामग्रियों के चलते 71,789 वीडियो को बाहर कर दिया. इनमें से 90 प्रतिशत सामग्रियों को 10 व्यूज़ हासिल होने से पहले ही हटा दिया गया. फ़ेसबुक ने अक्टूबर से दिसंबर 2021 के कालखंड में आतंकवाद से जुड़ी नीतियों के उल्लंघन के आरोप में 77 लाख सामग्रियों को अपने मंच से निकाल दिया. इनमें से 97.7 फ़ीसदी सामग्रियों को उपयोगकर्ताओं द्वारा ध्यान दिलाए जाने से पहले  ही सक्रिय रूप से हटा दिया गया. इसी तरह इंस्टाग्राम ने 905300 सामग्रियों की अपने प्लेटफ़ॉर्म से सफ़ाई कर दी. इनमें से 79.5 फ़ीसदी सामग्रियों को उपयोगकर्ताओं द्वारा ध्यान दिलाए जाने से पहले ही सक्रिय रूप से बाहर कर दिया गया. 

ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों द्वारा अपने स्तर से ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाने के प्रयास जारी है. बड़े प्लेटफॉर्म आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाने और उन्हें किसी भी तरह का मंच मुहैया न कराने से जुड़ी क़वायदों को लगातार आगे बढ़ाते जा रहे हैं. हालांकि इसके बावजूद शैतानी किरदार वहां से हटकर कम संसाधनों और निगरानी वाले छोटे प्लेटफ़ॉर्मों का रुख़ कर लेते हैं. आतंकवादी और हिंसक उग्रवादी पकड़ में आने और हटाए जाने से बचने के लिए बड़ी साइट्स पर अपने बर्तावों में भी बदलाव ले आते हैं. ऐसे में ऑनलाइन माध्यमों पर आतंकवादी हरकतों की प्रभावी रूप से काट करने की क़वायद से सभी प्लेटफ़ॉर्मों को जोड़ा जाना ज़रूरी है. इसके अलावा ऐसी कार्रवाइयों की संरचना में तमाम किरदारों को एकजुट करने की दरकार है. 

प्लेटफ़ॉर्मों के आर-पार समाधान तैयार करने की क़वायद

आतंकवादियों और हिंसक उग्रवादियों द्वारा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के दुरुपयोग की रोकथाम के लिए 2017 में GIFCT का गठन किया गया था. इस सिलसिले में एक अहम सवाल ये है कि निजता का उल्लंघन किए बिना और मानव अधिकारों की चिंता के साथ तमाम प्लेटफ़ॉर्मों में सिग्नलों को किस तरह से साझा किया जाए. फ़िलहाल सदस्य कंपनियों के बीच हैश शेयरिंग डेटाबेस के प्रबंधन से इस क़वायद को अंजाम दिया जा रहा है.

GIFCT की सदस्य कंपनियां सोर्स कंटेंट या सामग्री से जुड़े यूज़र डेटा को साझा किए बग़ैर फ़ोटो और वीडियो को “हैश” कर देती हैं. इस तरह वो दूसरे प्लेटफ़ॉर्मों के साथ सिग्नल साझा करते हैं. व्यावहारिक रूप से किसी फ़ोटो और वीडियो को डिजिटल फ़िगरप्रिंट (या हैश) में बदल दिया जाता है ताकि गणितीय रूप से नज़दीकी हैश समेत समान दिखने वाली दूसरी तस्वीरें सामने आ सकें. हैश मौलिक सामग्रियों की गणितीय नुमाइंदगी करते हैं. GIFCT मेंबर प्लेटफ़ॉर्म पर सामग्रियों पर हैश चलाने की क़वायद के ज़रिए उसे सामने लाया जा सकता है. इस तरह ऑनलाइन आतंकी सामग्रियों के दोबारा वितरण को रोका जा सकता है. 

ग्लोबल टेररिज़्म इंडेक्स ने 2014 से 2019 के बीच “धुर दक्षिणपंथी आतंकवादी” घटनाओं की कुल तादाद में 320 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की थी. इसमें कई नस्लीय राष्ट्रवादी और घरेलू हिंसक उग्रवादी समूह शामिल हैं. टेक कंपनियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वैधानिक ढांचे के अभाव में सामग्रियों को हटाने से जुड़ी अपनी क़वायद को जायज़ ठहराना कठिन हो जाता है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समेकित प्रतिबंध सूची के इर्द-गिर्द तैयार क़रारों की बुनियाद पर ये डेटाबेस लॉन्च किए गए हैं. आतंकी और हिंसक अतिवादी सामग्रियों को सैद्धांतिक तौर पर परिभाषित करने के तरीक़ों पर धीरे-धीरे इनका विस्तार किया जाना तय किया गया है. कुछ साल पहले न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में एक आतंकी हमला हुआ था. श्वेत नस्ल की कथित सर्वोच्चता से जुड़ी विचारधारा से प्रेरित हमलावर ने मस्जिद को निशाना बनाया था. उसने अपनी करतूत का ऑनलाइन माध्यमों पर सीधा प्रसारण भी किया था. इस घटना के बाद GIFCT ने कंटेंट इंसिडेंट प्रोटोकॉल (CIP) तैयार किया था. इस कड़ी में ख़ासतौर से CIP को सक्रिय करने पर हैशेज़ को लेबल करने की क्षमता भी जोड़ दी गई थी. जुलाई 2021 में आई GIFCT की पारदर्शिता रिपोर्ट के मुताबिक इस डेटाबेस में सामग्रियों के 3 लाख 20 हज़ार ख़ास हिस्से वाले 23 लाख हैशेज़ जमा हैं. 

बहरहाल, आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ संसार के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग स्वरूप में सामने आते हैं. मिसाल के तौर पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप में एक अकेले हमलावर द्वारा किए जाने वाले हमलों में श्वेत नस्ल की सर्वोच्चता के विचारों से प्रभावित और नव-नाज़ी गुटों से जुड़े लोगों की तादाद धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद सरकारों द्वारा तैयार की जा रही आतंकियों की सूची में इस तरह के लोगों के नाम शायद ही कभी शुमार किए जाते हैं. ग्लोबल टेररिज़्म इंडेक्स ने 2014 से 2019 के बीच “धुर दक्षिणपंथी आतंकवादी” घटनाओं की कुल तादाद में 320 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की थी. इसमें कई नस्लीय राष्ट्रवादी और घरेलू हिंसक उग्रवादी समूह शामिल हैं. टेक कंपनियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वैधानिक ढांचे के अभाव में सामग्रियों को हटाने से जुड़ी अपनी क़वायद को जायज़ ठहराना कठिन हो जाता है. “आतंकवादी सामग्रियों” के कई स्वरूप होने से ये दुविधा और बढ़ जाती है. इस दिशा में किए जा रहे ज़्यादातर प्रयासों में तस्वीरों और वीडियो पर तवज्जो दिया जाता है. हालांकि दूसरी सामग्रियों में ऑडियो, PDF और URLs भी शामिल हैं. इसी वजह से जुलाई 2021 में GIFCT ने अपने हैश शेयरिंग डेटाबेस से जुड़े वर्गीकरण में तीन नए खाने शामिल किए. ये हैं- हमलावरों का इश्तिहार, घोषित रूप से आतंकी और हिंसक उग्रवादी सामग्री और TCAP से सह-संबंध रखने वाले URLs. इन खानों से इस बात की पहचान होती है कि भिन्न-भिन्न व्यवहारों वाली सामग्री का हिंसक उग्रवादी उपसंस्कृतियों में किस तरह से फैलाव होता है. आगे चलकर इसे प्लेटफ़ॉर्म की नीतियों के साथ जोड़ा जा सकता है. इस प्रक्रिया में GIFCT की ओर से PDFs और URLs को हैश करने की क्षमता विकसित की जा रही है. इससे प्लेटफ़ॉर्मों द्वारा किए जाने वाले सिग्नलों में विविधता लाना मुमकिन हो सकेगा. 

अनेक किरदारों की भागीदारियां

प्लेटफ़ॉर्मों के आर-पार जाने वाले उपकरण छोटे और मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए ख़ासतौर से मददगार हो सकते हैं. इनकी मदद से ये कंपनियां वैसा स्तर और रफ़्तार हासिल कर सकती हैं जैसा इससे पहले उपलब्ध नहीं था. हालांकि, इसके बावजूद तमाम क्षेत्रों के बीच अनेक किरदारों वाली व्यवस्था स्थापित करने की बेइंतहा ज़रूरत है. इस प्रक्रिया में औज़ारों की तैनाती और मानव अधिकारों की सुरक्षा के बेहतरीन इंतज़ाम सुनिश्चित करना निहायत ज़रूरी है. GIFCT ने 2021 में मानव अधिकारों के प्रभावों का आकलन किया. इसका मक़सद ये सुनिश्चित करना था कि इस दिशा में किए जा रहे प्रयास बुनियादी और सार्वभौम मानव अधिकारों की क़ीमत पर न हों. तमाम क्षेत्रों के बीच और अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी समूहों की एक श्रृंखला तैयार करने से GIFCT की सदस्य कंपनियों को सरकारों, सिविल सोसाइटी और इस दिशा में काम करने वाले पेशेवरों के साथ काम करने का मौक़ा मिलता है. इससे संकट के समय प्रतिक्रिया जताने से लेकर पारदर्शिता की रिपोर्टिंग से जुड़ी तमाम बारीक़ियों, ज़रूरतों और सीमाओं को समझने में आसानी होती है.

ज़्यादा से ज़्यादा टेक कंपनियों और अनेक प्रकार के प्लेटफ़ॉर्मों को टुकड़ों में काम करने की बजाए एकजुट होकर काम करना होगा. सरकारों की ओर से भी पहले से ज़्यादा सामग्रियां मुहैया करा जाने की दरकार है. ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस के रुझानों और चिंताओं की व्याख्या करते हुए क़ानून का पालन सुनिश्चित करवाने की क़वायद से टेक कंपनियों को अपने प्रयासों की वरीयता तय करने में मदद मिलती है. 

बहरहाल, इस दिशा में और भी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है. ज़्यादा से ज़्यादा टेक कंपनियों और अनेक प्रकार के प्लेटफ़ॉर्मों को टुकड़ों में काम करने की बजाए एकजुट होकर काम करना होगा. सरकारों की ओर से भी पहले से ज़्यादा सामग्रियां मुहैया करा जाने की दरकार है. ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस के रुझानों और चिंताओं की व्याख्या करते हुए क़ानून का पालन सुनिश्चित करवाने की क़वायद से टेक कंपनियों को अपने प्रयासों की वरीयता तय करने में मदद मिलती है. शिक्षा जगत और विशेषज्ञों की ओर से ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियां मिलने से कंपनियों के लिए ऑनलाइन संसार में शत्रुतापूर्ण बदलावों की पड़ताल करना आसान हो जाता है. ख़तरे की ज़द में रहने वाले समुदायों, मानव अधिकार विशेषज्ञों और उग्रवाद-निरोधक गतिविधियों से जुड़े लोगों से जुटाई गई अधिक से अधिक जानकारियां टेक कंपनियों के लिए मददगार होती हैं. इससे उन्हें अपने उपकरणों में संरचना के हिसाब से सुरक्षित ढांचा तैयार करने और संतुलनकारी अभ्यासों की समझ विकसित करने में मदद मिलती है. 

निश्चित रूप से इस दिशा में और भी ज़्यादा प्रयास किए जाने की दरकार है. ख़ुशक़िस्मती से हमारे पास आगे की क़वायदों के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा मौजूद है. ऐसे में ऑनलाइन माध्यमों में प्रभावी रूप से आतंकवाद-निरोधी क़वायदों की बुनियाद रखने का काम ज़ोरों पर है. 

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