Published on May 12, 2021 Updated 0 Hours ago

अब नेपाल में भी हालात बेहद चिंताजनक बनते जा रहे हैं, क्योंकि, टेस्ट में नेपाल में हर पांच में से दो लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए जा रहे हैं.

नेपाल में कोरोना वायरस की दूसरी लहर नियंत्रण से बाहर होती जा रही है

ऐसा लगता है कि बदक़िस्मती से दक्षिण एशिया, कोरोना वायरस की दूसरी लहर का केंद्र बन गया है. क्योंकि, इस समय इस क्षेत्र के सारे देश कोरोना वायरस की महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं. इनमें भारत के साथ नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान भी शामिल हैं. हर गुज़रते दिन के साथ हालात नियंत्रण में आने के बजाय और भी बेक़ाबू होते जा रहे हैं. अब नेपाल में भी हालात बेहद चिंताजनक बनते जा रहे हैं, क्योंकि, टेस्ट में नेपाल में हर पांच में से दो लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए जा रहे हैं.

मार्च के पहले तक, नेपाल में कोरोना की सेकेंड वेव का बमुश्किल ही कोई असर दिख रहा था. 8 मार्च को नेपाल में केवल 89 नए केस सामने आए थे, जबकि कोरोना वायरस से उस दिन सिर्फ़ एक व्यक्ति की मौत हुई थी. लेकिन, उसके बाद से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. क़रीब तीन करोड़ आबादी वाले नेपाल में कोरोना वायरस महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या अचानक से नौ हज़ार के पार चली गई है. इस महामारी से नेपाल में अब तक 3500 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. सिर्फ़ पिछले तीन हफ़्तों के दौरान ही 400 से अधिक लोगों की जान कोरोना वायरस ले चुका है.

ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि जो पर्वतारोही हिमालय की चोटियों पर चढ़ाई कर रहे थे. माउंट एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, वो भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं.

महामारी की दूसरी लहर ने न सिर्फ़ काठमांडू घाटी को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, बल्कि पहाड़ी और तराई इलाक़ों में स्थित देश के अन्य शहर भी इसकी चपेट में आ गए हैं. हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि अब तो गांवों में भी लोग इस वायरस से संक्रमित होने लगे हैं. आज हालात ऐसे हैं कि नेपाल के दूर दराज़ के इलाक़े भी इस वायरस से अछूते नहीं रह गए हैं. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि जो पर्वतारोही हिमालय की चोटियों पर चढ़ाई कर रहे थे. माउंट एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, वो भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं. अब तक नेपाल में क़रीब दो दर्जन से अधिक पर्वतारोही कोरोना पॉज़िटिव पाए गए हैं. इनमें विदेशी नागरिक और उनके शेरपा गाइड भी शामिल हैं.

हालात की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने नेपाल में सरकार के सभी तीन स्तरों का ध्यान इस चुनौती की ओर आकर्षित किया है. इनमें संघीय सरकार, राज्यों की सरकारें और स्थानीय प्रशासन शामिल हैं. आयोग ने इन सभी से महामारी का मुक़ाबला मिलकर करने की अपील की है.

नेपाल में कोरोना वायरस से संक्रमित ज़्यादातर लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं. क्योंकि, अस्पतालों में ICU बेड और वेंटिलेटर के साथ साथ उनके इलाज के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति की भी ज़रूरत है और इन सभी की भारी कमी है. रेमडेसिविर जैसी दवाएं और अन्य मेडिकल उपकरणों को भारी क़ीमत पर बेचा जा रहा है.

अस्पतालों की भारी कमी

देश भर में अस्पताल, कोरोना वायरस के मरीज़ों को इलाज के लिए अपने यहां भर्ती नहीं कर पा रहे हैं. इसकी वजह यही है कि अचानक से कोविड-19 के मरीज़ों की बाढ़ आ गई है. कई अस्पताल तो कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को भर्ती करने से साफ मना कर दे रहे हैं.

ऐसा लगता है कि टीके लगाकर कोरोना वायरस की सेकेंड वेव पर क़ाबू पाने का मौक़ा नेपाल के हाथ से निकल चुका है. इसकी बड़ी वजह टीके ख़रीदने मे दलालों का शामिल होना रही है. 

ऐसे मामलों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जब कोरोना वायरस से संक्रमित लोग, पैसों की कमी के चलते अस्पतालों में इलाज नहीं करा पा रहे हैं. ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं, जब वायरस से संक्रमित लोगों की जान इसलिए चली गई, क्योंकि उनके पास इलाज के लिए देने लायक़ पैसे ही नहीं थे. कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज इतना महंगा है कि आम लोग निजी अस्पतालों में इलाज का ख़र्च ही नहीं वहन कर सकते, क्योंकि निजी अस्पताल कोविड-19 के इलाज के लिए बहुत पैसे वसूल रहे हैं. सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में बेड न होने से बहुत से मरीज़ों के पास अस्पताल की लॉबी और गलियारों में इलाज के लिए पड़े रहने के सिवा कोई और चारा नहीं है.

नेपाल सरकार ने अब तक क्या किया?

ऐसा नहीं है कि नेपाल सरकार ने कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिए कुछ किया ही नहीं. नेपाल दुनिया के उन पहले देशों में शामिल था, जिन्होंने अपने यहां कोरोना का टीकाकरण अभियान शुरू किया था. नेपाल ने कोविशील्ड वैक्सीन की दस लाख ख़ुराक के साथ 27 जनवरी को अपने यहां टीकाकरण अभियान शुरू किया था. उसे ये टीके भारत ने उपलब्ध कराए थे. उस समय तक नेपाल सरकार की योजना ये थी कि वो मई महीने तक 14 साल या उससे ज़्यादा उम्र के 72 प्रतिशत नागरिकों को कोरोना का टीका लगा दे.

ऐसा नहीं है कि नेपाल सरकार ने कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिए कुछ किया ही नहीं. नेपाल दुनिया के उन पहले देशों में शामिल था, जिन्होंने अपने यहां कोरोना का टीकाकरण अभियान शुरू किया था. 

शुरुआत में नेपाल ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट को टीकों की बीस लाख डोज़ के लिए भुगतान किया था. लेकिन, नेपाल को उन बीस लाख़ ख़ुराक़ों में से 21 फ़रवरी तक केवल दस लाख वैक्सीन ही मिल सकी थीं. इसके अलावा, 7 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स सुविधा के अंतर्गत भी नेपाल को 3,48,000 कोविशील्ड वैक्सीन मिली थीं.

लेकिन, नेपाल में टीका लगवाने के पात्र लगभग 2.2 करोड़ लोगों में से केवल दस प्रतिशत को ही वैक्सीन लगी थी कि स्टॉक ख़त्म हो गया. इसका नतीजा ये हुआ कि 65 साल या उससे ज़्यादा उम्र के उन वरिष्ठ नागरिकों को भी वैक्सीन की दूसरी ख़ुराक नहीं मिल सकी, जिन्हें कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज़ दी जा चुकी थी.

जब ये संकट खड़ा हुआ, तो नेपाल सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट से कोविशील्ड वैक्सीन की पचास लाख ख़ुराक ख़रीदने की योजना बनाई. लेकिन, नेपाल में सीरम इंस्टीट्यूट के स्थानीय एजेंट इस सौदे में दस प्रतिशत कमीशन चाहते थे. इसके चलते नेपाल सरकार को अपने क़दम वापस खींचने पड़े. पहले तो नेपाल सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट ने चार डॉलर प्रति डोज़ की दर से वैक्सीन ख़रीदी थी. लेकिन, बाद में नेपाल में कंपनी के एजेंट टीके की एक ख़ुराक के लिए 6.30 डॉलर मांगने लगे थे.

टीके ख़रीदने की राह में बाधाएं

कोरोना की वैक्सीन ख़रीदने मे देरी पर अपनी वेदना जताते हुए, नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्री हृदयेश त्रिपाठी ने कहा था कि टीके ख़रीदने की प्रक्रिया में दलालों के शामिल होने से ये मसला पेचीदा हो गया और इसमें 27 दिनों की देर हो गई. ये वो महत्वपूर्ण समय था, जब देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर बड़ी तेज़ी से फैल गई. हृदयेश ने ये भी कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट, नेपाल को वैक्सीन की दूसरी खेप इसलिए नहीं दे सका कि इसी दौरान भारत में भी तबाही मचाने वाली दूसरी लहर ने क़हर बरपाना शुरू कर दिया था. इसके चलते टीकों का निर्यात सीमित कर दिया गया.

कोरोना की वैक्सीन ख़रीदने मे देरी पर अपनी वेदना जताते हुए, नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्री हृदयेश त्रिपाठी ने कहा था कि टीके ख़रीदने की प्रक्रिया में दलालों के शामिल होने से ये मसला पेचीदा हो गया और इसमें 27 दिनों की देर हो गई. ये वो महत्वपूर्ण समय था, जब देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर बड़ी तेज़ी से फैल गई.

ऐसा लगता है कि टीके लगाकर कोरोना वायरस की सेकेंड वेव पर क़ाबू पाने का मौक़ा नेपाल के हाथ से निकल चुका है. इसकी बड़ी वजह टीके ख़रीदने मे दलालों का शामिल होना रही है. हालांकि, अभी ये नहीं साफ़ नहीं हो सका है कि आख़िर नेपाल सरकार ने टीके ख़रीदने के इन मध्यस्थों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. क्योंकि, इन दलालों ने अपने लालच के चलते टीकों के दाम चार डॉलर प्रति ख़ुराक से पचास प्रतिशत से भी ज़्यादा बढ़ाकर 6.30 डॉलर प्रति डोज़ कर दी थी. भारत के प्रतिष्ठित संस्थान सीरम इंस्टीट्यूट की साख भी इन दलालों के चलते दांव पर लग गई, क्योंकि ये दलाल और कोई नहीं, कंपनी के एजेंट ही हैं. अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी गतिविधियों से नेपाल में भारत की अच्छी छवि पर भी दाग़ लग गया है. भारत ने सीरम इंस्टीट्यूट के टीके कोविशील्ड की दस लाख डोज़ नेपाल को मदद के तौर पर उपलब्ध कराकर जो विश्वसनीयता बनाई थी, उसे भी क्षति पहुंची है.

इस संकट के मौक़े पर जब नेपाल में लोग टीके न लगने से मर रहे हैं, तो भारत को चाहिए कि वो ये सुनिश्चित करे कि नेपाल को बिना दलालों के उसके हिस्से के टीके मिल जाएं. इस बारे में नेपाल की सरकार को भी भारत सरकार से सीधे बात करनी चाहिए, जिससे कि वो कम से कम अपने देश के उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए तो टीके हासिल कर सके, जिन्हें वैक्सीन की एक ख़ुराक दी जा चुकी है. अगर भारत, नेपाल के 2.2 करोड़ लोगों को लगाने के लिए कोरोना की 4.4 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं है, तो नेपाल को चाहिए कि वो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से ये टीके ख़रीदे. हो सकता है कि इसके लिए उसे ज़्यादा रक़म अदा करनी पड़े. लेकिन, इस समय टीकों की क़ीमत से ज़्यादा अहम लोगों की जान बचाना है.

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