Author : Shivam Shekhawat

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 27, 2023 Updated 0 Hours ago

CPEC में अफगानिस्तान को शामिल करने की संभावना भारत के लिए संप्रभुता और रणनीति से जुड़ी चिंताएं खड़ी करता है.

कनेक्टिविटी पर दांव: चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर अफ़ग़ानिस्तान की महत्वाकांक्षाएं

द चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का ये 144वां लेख है.


चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत एक प्रमुख परियोजना चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) की शुरुआत के 10 साल पूरेहोने पर चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने तालिबान के शासन वाले इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान (IEA) के कार्यवाहक विदेश मंत्रीमावलावी अमीर ख़ान मुत्ताक़ी के साथ मिलकरBRI के तहत त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ाने और साझा तौर पर CPEC का विस्तार अफगानिस्तान तककरनेको लेकर अपनी प्रतिबद्धता कोदोहराया’. ये फैसला 6 मई 2023 को पांचवें चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के डायलॉग केदौरान लिया गया. तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की ये बैठक अफगानिस्तान में मौजूदा शासन के आने के बाद पहली बार आयोजित हुई थी

प्रोजेक्ट की सोच से पहले भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर संरचनात्मक मुद्दे मौजूद थे लेकिन प्रोजेक्ट की आर्थिक जरूरतों ने पाकिस्तान की मुश्किलों में बढ़ोतरी कर दी. पाकिस्तान का फॉरेक्स रिजर्व घट गया और उसका मौजूदा चालू खाते का घाटा बढ़ रहा है.

वैसे तो ये कोई पहला मौका नहीं था जब सार्वजनिक तौर पर इस तरह के इरादे का एलान किया गया हो लेकिन ये CPEC प्रोजेक्ट में अफगानिस्तान कोशामिल करने पर विचार करने के पीछे चीन और पाकिस्तान की सामरिक जरूरत के बारे में बताता है. अफगानिस्तान की सत्ता के लिए ये फैसला एकस्वागत योग्य घटनाक्रम है क्योंकि उसे अपने देश में निवेश को आकर्षित करने में जूझना पड़ रहा है. कुछ भारतीय स्रोतों ने प्रोजेक्ट का विस्तारअफगानिस्तान तक करने की व्यावहारिकता पर सवाल खड़े किए हैं. उनकी दलील है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सुरक्षा की जो गारंटी चीनचाहता है, वो मिलने में मुश्किल होगी. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए नतीजे कुछ भी हो लेकिन प्रोजेक्ट में अफगानिस्तान को शामिल करने कीसंभावना भारत के लिए संप्रभुता और रणनीति से जुड़ी चिंताएं खड़ी करेंगी

CPEC की राजनीति 

2013 में CPEC और उसकी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की सोच को पाकिस्तान के साथ-साथ पूरे क्षेत्र में गेमचेंजर के तौर पर देखा गया था. पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलों का कायापलट करने को लेकर इस परियोजना की क्षमता और चीन एवं पाकिस्तान के बीचहर हालात में दोस्तीकाएक ठोस सबूत बनने के बारे में उम्मीदें और चाह बहुत ज्यादा थी. कॉरिडोर को मौजूदा काराकोरम हाईवे का फायदा उठाना था और इसके आसपासपाकिस्तान के कम विकसित इलाकों में व्यापार के नये रूट का निर्माण करना था. इस तरह चीन के पश्चिमी प्रांत शिनजियांग के वीगर ऑटोनॉमस रीजनको बलूचिस्तान के अरब सागर के तट के साथ जोड़ना था. इसका मकसद पाकिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोरी को भरना और औद्योगिक क्षेत्र कीस्थापना करना था

10 साल के बाद चीन और पाकिस्तान तो इस प्रोजेक्ट कोBRI के चमकते उदाहरणके तौर पर पेश करते हैं लेकिन जमीनी वास्तविकता ये है किहालात इससे खराब कभी नहीं थे. वैसे तो प्रोजेक्ट की सोच से पहले भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर संरचनात्मक मुद्दे मौजूद थे लेकिन प्रोजेक्टकी आर्थिक जरूरतों ने पाकिस्तान की मुश्किलों में बढ़ोतरी कर दी. पाकिस्तान का फॉरेक्स रिजर्व घट गया और उसका मौजूदा चालू खाते का घाटा बढ़रहा है. पाकिस्तान के सभी प्रांतों में एक समान विकास को सुनिश्चित करना तो दूर, इस परियोजना की वजह से बलूचिस्तान प्रांत के लोगों में गुस्सा है. स्थानीय लोग नाराजगी जता रहे हैं कि आर्थिक फायदों से उन्हें दूर रखा गया है और कई अलगाववादी और आतंकी संगठनों ने चीन के कामगारों औरपरियोजना की सुरक्षा करने वाले पाकिस्तान के अर्धसैनिक बलों के जवानों पर हमले किए हैं

तालिबान ने चीन के 'दीर्घकालीन राजनीतिक समर्थन' का स्वागत किया है, उसे उम्मीद है कि चीन अफगानिस्तान में अपना निवेश बढ़ाएगा. अफगानिस्तान के विदेश मामलों के मंत्रालय और अफगानिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इन्वेस्टमेंट- दोनों स्वीकार करते हैं कि कॉरिडोर में उनके देश को शामिल करने से अफगानिस्तान के लिए बेहद जरूरी निवेश मिलेगा और 'लोहा एवं ऊर्जा उत्पादन' के सेक्टर को मदद मिलेगी.

इन चिंताओं के बावजूद चीन और पाकिस्तान ने 2017- जब चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय बातचीत की शुरुआत हुई थी- से हीCPEC में अफगानिस्तान को शामिल करने के बारे में बातचीत की है. जब अफगानिस्तान की गनी सरकार सत्ता से बाहर हुई और तालिबान का कब्जाहुआ तो पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के मामले में CPEC को एक बड़ा माध्यम माना. 2022 में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेशमंत्री मुत्ताकी ने चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी के साथ अपनी पहली बैठक के बाद CPEC में अफगानिस्तान की संभावित एंट्री को लेकर ट्वीटकिया. यहां तक कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की अंतिम वापसी से कुछ महीने पहले भी अफगानिस्तान तक CPEC के विस्तार को शांतिस्थापित करने और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में मदद के तरीके के रूप में देखा गया था

तालिबान की जीत 

चीन के साथ अफगानिस्तान संकरे वाखान कॉरिडोर के जरिए 92 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है जो बदख्शां से लेकर शिनजियांग तक है. वैसे तोकॉरिडोर में तीन दर्रे (पास) हैं लेकिन उनकी खतरनाक लोकेशन BRI में अफगानिस्तान के सीधे प्रवेश को निकट भविष्य में असंभव बनाती है. मौजूदाकाराकोरम हाईवे, जो काबुल को पेशावर से जोड़ने वाले खुंजराब दर्रे से होकर गुजरता है, का विकास काबुल को CPEC और आखिर में चीन के साथजोड़ने के लिए एक व्यावहारिक रूट समझा जाता है

पैसे और असर से दूर तालिबान के लिए अफगानिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और अर्थव्यवस्था की बहाली से जुड़ा कोई भी कदम स्वागत योग्य है. तालिबान चीन के साथ व्यापार के स्तर को बढ़ाने के लिए वाखान कॉरिडोर के जरिए ऐतिहासिक सिल्क रोड व्यापार रूट को खोलने के किसी भी प्रस्तावपर विचार के लिए तैयार है. तालिबान ने चीन के 'दीर्घकालीन राजनीतिक समर्थन' का स्वागत किया है, उसे उम्मीद है कि चीन अफगानिस्तान में अपनानिवेश बढ़ाएगा. अफगानिस्तान के विदेश मामलों के मंत्रालय और अफगानिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इन्वेस्टमेंट- दोनों स्वीकार करते हैं कि कॉरिडोरमें उनके देश को शामिल करने से अफगानिस्तान के लिए बेहद जरूरी निवेश मिलेगा और 'लोहा एवं ऊर्जा उत्पादन' के सेक्टर को मदद मिलेगी. इसेअफगानिस्तान के आत्मनिर्भर बनने और आर्थिक विकास के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहने के रूप में भी महसूस किया जाता है

लेकिन संभावित रूट को लेकर इन आकलन पर कई वर्षों से बहस हो रही है और जमीनी स्तर पर इसमें कोई ठोस प्रगति नहीं हो पाई है. पाकिस्तान मेंCPEC के मौजूदा हालात पर विचार करते हुए जमीनी स्तर पर फैसले को अमल में लाने की संभावना कम है क्योंकि इसमें हालात और व्यावहारिकता सेजुड़ी दिक्कतें हैं

एक ज़िम्मेदार क्षेत्रीय भागीदार? 

हाल के समय में चीन खुद को एक जिम्मेदार देश के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है जो दुनिया के बड़े मुद्दों को लेकर पहल करता है. इन्हींकोशिशों को आगे बढ़ाते हुए चीन ने अफगानिस्तान तक CPEC के विस्तार से जुड़ी विकास और पुनर्निर्माण की संभावना पर जोर दिया है. यहां तक किपाकिस्तान भी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए कॉरिडोर को महत्वपूर्ण मानता है. साथ ही पाकिस्तान कॉरिडोर को भू-राजनीतिक से भू-आर्थिक विदेश नीतिकी तरफ अपने बदलाव को तेज करने का एक जरिया समझता है. लेकिन विकास से जुड़े पहलू (अगर कोई है) के अलावा चीन और पाकिस्तान- दोनों केपास इस फैसले का समर्थन करने के लिए कुछ सामरिक जिम्मेदारियां हैं. काबुल पर तालिबान के कब्जे के समय से उसके साथ चीन की भागीदारीलगातार रही है. चीन तालिबान के साथ इस तरह बातचीत करता है जैसे उसने तालिबान को मान्यता दे दी हो. वैसे तो अमेरिका ने अफगानिस्तान में जोखालीपन की स्थिति पैदा की उससे चीन को वहां अपना असर कायम करने के लिए समय और ठिकाना मिल गया लेकिन अमेरिकी सुरक्षा कीगैर-मौजूदगी की वजह से चीन की ये चिंता भी बढ़ी कि अफगानिस्तान से लगती उसकी सीमा से घुसपैठ करके उग्रवादी पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में जाएंगे. इस डर ने चीन के नजरिये को तय किया है, वहीं तालिबान उग्रवादियों पर नियंत्रण पाने में नाकाम रहा है

भारत और चीन के बीच संबंधों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान तेजी से गिरावट आई है. बेहद संदेह से भरे संबंधों की पृष्ठभूमि में इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ाने की किसी भी कोशिश को भारत में बेचैनी के बिना नहीं देखा जा सकता है.

सुरक्षा चिंताओं से परे चीन के लिए अभी तक इस्तेमाल नहीं किए गए खनिज संसाधनों तक पहुंचना भी महत्वपूर्ण है. चीन अफगानिस्तान का इस्तेमालअपनीयूरेशिया की तरफतेजी के लिए भी करना चाहता है जो कि BRI के लिए एक अभिन्न क्षेत्र शियान में शिखर सम्मेलन के दौरान मध्य एशिया केदेशों तक उसकी हाल की पहुंच से स्पष्ट है. कुछ लोगों के लिए पाकिस्तान में चीन के कामगारों पर हमले जहां चीन के द्वारा अपना निवेश सीमित करनेका एक कारण है, वहीं ये पाकिस्तान में अपनी मोर्चाबंदी को और मजबूत करने की भी एक वजह है. तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान के द्वारासामरिक गहराई बरकरार रखने की उम्मीद जल्द ही टूट गईं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंध बेहद खराब रहे हैं और पाकिस्तान केभीतर तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने कानून और व्यवस्था को गंभीर रूप से अस्थिर किया है. इस संदर्भ में चीन के लिए ये सुनिश्चित करनाजरूरी है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं के बीच थोड़ी स्थिरता बनी रहे. इससे चीन के दूर-दराज के क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जासकेगी.  

भारत के लिए असर: रणनीतिक और संप्रभुता से जुड़ी चिंताएं 

गोवा में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने CPEC को लेकर भारत केसैद्धांतिक विरोध को दोहराया. उन्होंने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि कनेक्टिविटी किसी देश की प्रादेशिक अखंडता या संप्रभुता का उल्लंघन नहींकर सकती. अफगानिस्तान तक CPEC के विस्तार के बावजूद सामान्य तौर पर भारत के द्वारा CPEC का विरोध दो बुनियादों पर टिका है- सामरिक औरसंप्रभुता. सामरिक रूप से खुंजराब पास के इलाके में चीन की मौजूदगी में बढ़ोतरी भारत के सामरिक क्षेत्र को कम करेगी और इस क्षेत्र में सुरक्षा कीस्थिति बिगाड़ेगी. CPEC पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर भी गुजरता है. यही वजह है कि भारत इस प्रोजेक्ट कोअवैध, अनुचित और अस्वीकार्यसमझता है

भारत और चीन के बीच संबंधों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान तेजी से गिरावट आई है. बेहद संदेह से भरे संबंधों की पृष्ठभूमि में इस क्षेत्र में चीन कीमौजूदगी बढ़ाने की किसी भी कोशिश को भारत में बेचैनी के बिना नहीं देखा जा सकता है. अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान केसाथ चीन की भागीदारी के कारण भारत की अहमियत पहले ही कम हो चुकी है जबकि ऐतिहासिक रूप से भारत ने यहां एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कीहै. चीन की मौजूदगी में बढ़ोतरी की वजह से आर्थिक तौर पर तालिबान शासन को फायदे की संभावना वास्तव में अफगानिस्तान के भीतर चीन कीमोर्चाबंदी को और मजबूत करेगी और भारत के लिए खतरे के अनुभव को बढ़ाएगी. भारत के लिए आर्थिक रूप से सशक्त पाकिस्तान भी, जो किचीनकेंद्रित भू-आर्थिक विस्तारसे ज्यादा गहरे तौर पर जुड़ा है, अच्छी खबर नहीं है. लेकिन BRI के विरोध की भारत की रणनीति ने भी क्षेत्रीय स्तर परइंफ्रास्ट्रक्चर विकास को आकार देने की उसकी क्षमता को सीमित कर दिया है. भारत कीकनेक्ट सेंट्रल एशियानीति बहुत ज्यादा फायदा हासिल करनेमें नाकाम रही है जबकि चीन सेंट्रल एशिया के देशों में धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ा रहा है

आगे की राह

तालिबान के गवर्नेंस सिस्टम को लेकर चीन और अफगानिस्तान के बीच कुछ मतभेद जरूर है लेकिन इसके बावजूद दोनों पक्षों ने भागीदारी बढ़ाते हुएदोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू की है और अफ़ग़ान नागरिकों के लिए चीन ने वीजा से जुड़ी पाबंदियां हटा दी है. इसके बावजूद ये पता लगानामुश्किल है कि अगर CPEC का विस्तार अफगानिस्तान तक होता है तो चीन को क्या वास्तविक आर्थिक फायदा होगा. लेकिन असल में ये इन आर्थिकफायदों की कमी ही है जिससे इशारा मिलता है कि चीन के लिए सामरिक जरूरत कितनी महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान आर्थिककनेक्टिविटी के मकसद से एक क्षेत्रीय फायदे का सौदा बन सकता है

पाकिस्तान-अफगानिस्तान के तनावपूर्ण रिश्तों को ठीक करने की चीन की कोशिशों में सफलता तय नहीं लग रही हैं. पिछले दिनों पाकिस्तान केआंतरिक मामलों के मंत्री का बयान, जिसमें उन्होंने अभी भी अफगानिस्तान से दाखिल हो रहे TTP उग्रवादियों को लेकर तालिबान की प्रतिक्रिया के बारेमें असंतोष जताया था, दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी के स्तर के बारे में संकेत देता है. अफगानिस्तान में निवेश बढ़ाकर स्थिरता लाने की चीन कीकोशिशें उम्मीदों के उलट साबित हो सकती हैं क्योंकि स्थिरता नहीं होने से निवेश की योजनाएं पटरी से उतर सकती हैं


शिवम शेखावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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