Author : Vinitha Revi

Published on Jan 03, 2022 Updated 0 Hours ago

कोलंबो दुनिया के 25 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है. ऐसे में इस प्रस्तावित परियोजना को न सिर्फ़ श्रीलंका बल्कि दक्षिण एशिया के लिए 'वर्ल्ड क्लास सिटी' के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. 

कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट: विवादों से है पैदाइशी नाता

2014 में चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Xinping) की श्रीलंका (Sri Lanka) यात्रा के दौरान कोलंबो पोर्ट सिटी (CPC-Colombo City Project) प्रोजेक्ट का ऐलान किया गया था. हालांकि इस परियोजना का विचार पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) के कार्यकाल (2005-15) के दौरान ही सामने आ गया था. CPC राष्ट्रपति शी जिनपिंगकी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख अंग है. साथ ही ये चीन की प्रमुख परियोजनाओं में से एक है. ये प्रोजेक्ट 1 अरब 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है. समंदर के नीचे से दोबारा हासिल की गई 269 हेक्टेयर ज़मीन इसके दायरे में आती है. ये श्रीलंका की सबसे बड़ी निवेश परियोजना है. ग़ौरतलब है कि कोलंबो दुनिया के 25 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है. ऐसे में इस प्रस्तावित परियोजना को न सिर्फ़ श्रीलंका बल्कि दक्षिण एशिया के लिए ‘वर्ल्ड क्लास सिटी’ के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है.

इस प्रोजेक्ट में श्रीलंका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने की अपार क्षमता मौजूद है. साथ ही इससे वहां की स्थानीय आबादी के लिए रोज़गार के दरवाज़े भी खुलेंगे. 

2015-16 में थोड़े समय के लिए इस परियोजना का काम रोक दिया गया था. समुद्र की तलहटी में खुदाई को लेकर पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं के चलते ये क़दम उठाया गया था.  उस वक़्त श्रीलंका में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे का शासन था. हालांकि चीन की ओर से उच्चस्तरीय राजनयिक यात्रा (चीन के तत्कालीन विदेश उपमंत्री लियु झेमिन की यात्रा) के बाद बढ़ते दबावों के चलते श्रीलंका ने जल्दी ही इस परियोजना का काम दोबारा शुरू कर दिया. सत्ता में वापसी के बाद से राष्ट्रपति गोटाबाया के नेतृत्व वाला राजपक्षे प्रशासन चट्टान की तरह इस परियोजना के पीछे खड़ा है. श्रीलंका की सरकार इस परियोजना के दो मुख्य फ़ायदे गिना रही है. सरकार के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में श्रीलंका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने की अपार क्षमता मौजूद है. साथ ही इससे वहां की स्थानीय आबादी के लिए रोज़गार के दरवाज़े भी खुलेंगे. अगर सबकुछ वादे के मुताबिक होता है तो हज़ारों श्रीलंकाइयों के लिए रोज़गार और पारिवारिक आमदनी सुनिश्चित करने वाली चीनी निवेश की ये पहली परियोजना होगी.

पर्यावरण से जुड़ा प्रसंग

CPC को लेकर शुरुआत से ही चिंताएं जताई जाती रही हैं. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर इसे लेकर चौतरफ़ा आलोचनाओं होती रही हैं. आलोचक इस परियोजना को तंज भरे लहज़े में “एक और चीनी अड्डा” कहकर बुलाते हैं. पर्यावरणवादियों ने शुरू से ही इसका कड़ा विरोध किया है. परियोजना के लिए पत्थरों की निकासी से जैव-विविधता और समुद्री जीवन पर विपरीत प्रभावों को लेकर गहरी चिंता जताई गई है. इसके अलावा मछुआरा समुदायों की ओर से भी इस परियोजना का विरोध किया गया है. उन्हें इस परियोजना से अपनी रोज़ी-रोटी के लिए ख़तरा पैदा होने का डर है. कम्मालतोटा के तटीय इलाक़ों में रहने वाले मछुआरों का कहना है कि उनकी आमदनी में पहले से गिरावट आ गई है. उनका आरोप है कि परियोजना के लिए रेत निकाले जाने की वजह से मछलियों की तादाद घट गई है. इसके चलते उनकी आय घट गई है. थालेहेना के हेंडाला से बसियावेट्टा तक समुद्र की तलहटी से रेत की निकासी के चलते इस इलाक़े में और इसके आसपास मछली पालन पर आधारित स्थानीय समुदायों की आजीविका पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है.

थालेहेना के हेंडाला से बसियावेट्टा तक समुद्र की तलहटी से रेत की निकासी के चलते इस इलाक़े में और इसके आसपास मछली पालन पर आधारित स्थानीय समुदायों की आजीविका पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है. 

रेत की निकासी से लैगूनों (ख़ासतौर से मशहूर नेगोम्बो लैगून) पर भी बुरा असर पड़ने की आशंका है. वैसे तो CPC परियोजना का तीन बार पर्यावरण प्रभाव आकलन (Enviornmental Impact Assessments) पूरा हो चुका है, लेकिन इन आकलनों की रिपोर्ट की आलोचना होती रही है. दरअसल आलोचकों का कहना है कि इन आकलनों में अनेक संबंधित मसलों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया गया है. परियोजना का काम आगे बढ़ने पर इससे जुड़े अनेक मसले सामने आ सकते हैं. इनमें जल प्रदूषण, कूड़ा फेंकना, बंदरगाह के नीचे से निकासी, कार्गो से गंदे पानी (ballast water) का निकास, भूमि प्रदूषण, अम्लीकरण और अम्लीय बारिश जैसी समस्याएं प्रमुख हैं.

CPC आर्थिक आयोग क़ानून

अप्रैल 2021 में श्रीलंका की सरकार ने CPC आर्थिक आयोग विधेयक संसद में पेश किया. राजनीतिक विपक्ष, ग़ैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और सिविल सोसाइटी से जुड़े समूहों ने इस क़दम का विरोध किया था. इस विधेयक में एक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया. इस आयोग के पास तमाम मसलों पर फ़ैसले लेने का अधिकार होगा. इन मसलों में टैक्स में छूट और दूसरी रियायतें देना, कारोबार की अर्ज़ियों को मंज़ूरी देना और अपवाद वाले मामले तय करना शामिल हैं. मसौदा विधेयक के मुताबिक आयोग के सदस्य देश की संसद या संसदीय समितियों के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे. श्रीलंका के ऑडिटर जनरल (जिसे संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं) के प्रति भी उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी.

विपक्षी दलों ने आर्थिक वृद्धि, विकास और रोज़गार निर्माण से जुड़ी संभावनाओं के लिहाज़ से तो CPC का स्वागत किया है. हालांकि आयोग के गठन को लेकर उन्होंने अपना कड़ा एतराज़ जताया है. विपक्ष के मुताबिक ये एक “सर्वशक्तिशाली आयोग है जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है”. उनका आरोप था कि ये विधेयक श्रीलंका की संप्रभुता का हनन करता है क्योंकि इसके तहत CPC आयोग को श्रीलंकाई क़ानूनों से पूरी तरह से छूट मिल जाती है. कुछ बौद्ध भिक्षुओं ने भी इन्हीं बुनियादों पर इस क़ानून का विरोध किया. विपक्ष के नेता सजित प्रेमदासा ने भी विधेयक को लेकर कड़ा एतराज़ जताया था. उनके मुताबिक ये ‘एक देश-एक अधिनियम’ के विचार के ख़िलाफ है. ग़ौरतलब है कि राजपक्षे प्रशासन बाक़ी दूसरे मामलों में इसी विचार को आगे बढ़ाता रहा है. प्रेमदासा का मानना था कि “अगर ये क़ानून पारित हो जाता है तो देश में एक क़ानून होगा, जबकि पोर्ट सिटी में दूसरा.” कैंडी डिस्ट्रिक्ट के सांसद लक्ष्मण किरिएल्ला के मुताबिक CPC संसदीय निगरानी के बाहर एक अलग राज्यसत्ता की तरह होगा क्योंकि संसद द्वारा पारित 25 क़ानून वहां लागू ही नहीं होंगे. JVP के नेता अनुरा कुमार दिसानायके ने दो टूक कहा था कि ये प्रस्तावित क़ानून पोर्ट सिटी को चीन के एक प्रांत में बदल देगा.

ये विधेयक श्रीलंका की संप्रभुता का हनन करता है क्योंकि इसके तहत CPC आयोग को श्रीलंकाई क़ानूनों से पूरी तरह से छूट मिल जाती है. 

इस मसले पर विपक्षी दलों और ग़ैर सरकारी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कीं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून में कुछ संशोधन करने की सिफ़ारिश की. श्रीलंका की सरकार ने इन संशोधनों को स्वीकार कर लिया. संशोधनों के ज़रिए श्रीलंकाई क़ानूनों के तहत दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत से छूट दे दी गई है. सरकार अगर मसौदा विधेयक को वैसे ही पारित कराने की कोशिश करती तो उसे दो-तिहाई बहुमत की दरकार होती. बहरहाल, मई 2021 में संसद ने 149 सदस्यों के बहुमत (225 में से) से इस विधेयक को पास कर दिया. 58 सदस्यों ने बिल के ख़िलाफ़ मतदान किया. विधेयक के पारित होते ही श्रीलंका के पहले विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के निर्माण का आधिकारिक एलान हो गया.

अमेरिकी प्रतिक्रिया

अगस्त 2021 में दिए एक इंटरव्यू में श्रीलंका में अमेरिका की तत्कालीन राजदूत एलाइना बी. टेपलिट्ज़ ने “चिंता जताते हुए कहा था कि सरकार को पोर्ट सिटी में निवेश आकर्षित करने के लिए यथासंभव बेहतर कारोबारी माहौल बनाना चाहिए. “इसके साथ ही उन्होंने कारोबार के नामुनासिब तौर-तरीक़ों, कालेधन, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार से बचने की भी ताकीद की थी.  तमाम दूसरे पर्यवेक्षक भी इसी तरह की चिंता जता चुके हैं. इनमें ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल श्रीलंका (TISL) भी शामिल है. TISL का विचार है कि इस परियोजना में निगरानी से जुड़े तंत्र में ढिलाई बरते जाने से मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा मिल सकता है.

क्वॉड और हिंद-प्रशांत से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए राजदूत टेपलिट्ज़ का कहना था कि “हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दुनिया का ये विशाल इलाक़ा सबकी पहुंच के दायरे में हो. यहां के हालात गतिशील रहें और यहां का प्रशासन अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक हो.  मुक्त आवागमन और विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे जैसे मुख्य सिद्धांतों के ज़रिए ही इस इलाक़े का संचालन हो… लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के तौर पर अमेरिका और श्रीलंका को साझा मकसदों के हिसाब से ही आगे बढ़ना चाहिए.”

भारत की चिंताएं

CPC के संदर्भ में ऐसे अनेक मसले हैं जिनको लेकर भारत की चिंता स्वाभाविक है. हालांकि भारत ने आधिकारिक तौर पर इन चिंताओं को ज़ाहिर नहीं किया है. पहली बात ये है कि CPC भौगोलिक रूप से कन्याकुमारी में भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु के अंत (land’s end) से महज़ 290 किमी दूर स्थित है. श्रीलंका के दक्षिणी हिस्से में मौजूद हम्बनटोटा में चीन की मौजूदगी से भारत के लिए ख़तरे की घंटी बज चुकी है. यहां से चीन ख़ुफ़िया जानकारियां जुटा सकता है, निगरानी और टोह लगा सकता है. आगे चलकर चीन को यहां अपनी पनडुब्बियों का पड़ाव डालने की मंज़ूरी (berthing rights) भी मिल सकती है. कोलंबो और हम्बनटोटा दोनों ही हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सामरिक मोर्चा मुहैया कराते हैं. हालांकि श्रीलंका की सरकार ने इस बात का खंडन किया है. श्रीलंका में चीन के राजदूत क्वी झिनहॉन्ग ने ज़ोर देकर कहा है कि इन दो परियोजनाओं पर चीन का पूरा ध्यान है. उन्होंने इन्हें “विकास का दोहरा इंजन” करार दिया है.

दूसरी बात भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.  ग़ौरतलब है कि श्रीलंका ने घरेलू विरोध और संप्रभुता से जुड़ी चिंताओं की बुनियाद पर ईस्ट कंटनेर टर्मिनल (ECT) करार को रद्द कर दिया था. हालांकि वहां की सरकार ने इसी तरह की चिंताओं के बावजूद आर्थिक आयोग विधेयक को निर्णायक तौर पर आगे बढ़ाकर अपने मुकाम तक पहुंचाया. श्रीलंका का ये दोहरा बर्ताव भारत से छिपा नहीं है. विधेयक को जल्दबाज़ी में पारित कराया गया. सांसदों को बिल के संशोधित मसौदे की समीक्षा के लिए पर्याप्त समय ही नहीं दिया गया. इसको लेकर गंभीर चिंताएं भी ज़ाहिर की गईं. इतना ही नहीं इस परियोजना में कालेधन के बहाव और इस्तेमाल को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं. हालांकि परियोजना की रफ़्तार पर इन तमाम चिंताओं का कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है.

श्रीलंका के साथ चीन का आर्थिक जुड़ाव दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है. काफ़ी कम समय में ही दोनों के बीच मज़बूत आर्थिक रिश्ते बन गए हैं. 

तीसरा, इसमें कोई शक़ नहीं है कि भारत और श्रीलंका के रिश्ते बहुआयामी और अनूठे हैं. बहरहाल, श्रीलंका के साथ चीन का आर्थिक जुड़ाव दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है. काफ़ी कम समय में ही दोनों के बीच मज़बूत आर्थिक रिश्ते बन गए हैं. ये बात तय है कि श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक हालात (ख़ासतौर से विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर) का चीन आगे भरपूर फ़ायदा उठाएगा. द्वीप देशों के आर्थिक विकास में सीधे विदेशी निवेश (FDI) का अहम रोल होता है. इस सिलसिले में CPC द्वारा श्रीलंका में भारी तादाद में FDI आकर्षित करना तय है. कुल मिलाकर CPC दो प्रमुख तथ्यों को रेखांकित करती है: पहला, अपनी अर्थव्यवस्थाओं को रफ़्तार देने की जुगत में लगे छोटे द्वीप देशों के लिए चीनी दौलत को ना करना (उनसे जुड़े प्रत्यक्ष और वास्तविक चिंताओं के बावजूद) सचमुच आगे चलकर एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है. दूसरा, हिंद-प्रशांत में महाशक्तियों के बीच बढ़ते संघर्ष के बीच तमाम द्वीप देश और उनपर प्रभाव जमाने के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा चीन और भारत दोनों के लिए अहम होती जाएगी.

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