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इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोविड-19 के बाद के दौर में चीन, पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध को और मज़बूत बनाने की कोशिश करेगा. लेकिन, चीन की कूटनीति की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि मीकॉन्ग डेल्टा के देशों के साथ उसके संबंध कैसे रहते हैं.
चीन के सामरिक समीकरणों में कूटनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मीकॉन्ग उप क्षेत्र की अहमियत बढ़ती जा रही है. ख़ास तौर से तब और जब चीन को अमेरिका और अन्य देशों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है. कोविड-19 की वैश्विक महामारी ने मीकॉन्ग डेल्टा क्षेत्र के देशों के साथ चीन के संबंधों को एक नई दिशा देने का काम किया है. तेज़ी से उभर रहे इस परिदृश्य में इस बात की संभावना काफ़ी अधिक है कि चीन, कोविड-19 के बाद के दौर में मीकॉन्ग उप क्षेत्र पर अपनी गंभीर नज़र बनाए रखेगा.
चीन और मीकॉन्ग क्षेत्र के कई देशों के बीच आपसी सहयोग वाले संबंध और मज़बूत हो रहे हैं. चीन की मास्क कूटनीति ने इन देशों के नागरिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. क्योंकि इन देशों के नागरिक चाहते हैं कि उनकी सरकारें, चीन को लेकर सावधानी वाली नीति पर चलें. इस इलाक़े के जिन देशों के साथ चीन के रिश्ते विवादित रहे हैं, वो चीन की कूटनीतिक पहल को सकारात्मक नज़रिए से नहीं देखते हैं. मीकॉन्ग क्षेत्र के देशों के साथ चीन का एसियान के मंच के माध्यम से सहयोग तो होता ही रहा है. इसके अलावा चीन ने, कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम के साथ मिलकर लैन्कैंग मीकॉन्ग सहयोग (LMC) नाम का एक उप क्षेत्रीय सहयोग संगठन स्थापित किया है. इस मंच के माध्यम से चीन, कोविड-19 महामारी से लड़ने में इन देशों की मदद कर रहा है. फरवरी महीने में चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वैंग यी ने लाओस की राजधानी वियेनतिएन का दौरा किया था. वैंग यी, वहां LMC के विदेश मंत्रियों की पांचवीं बैठक में हिस्सा लेने गए थे. इस बैठक में चीन के विदेश मंत्री ने अपील की कि कोविड-19 से मुक़ाबला करने के लिए तमाम देशों को मिलकर ‘सघन प्रयास’ करने होंगे.
चीन और मीकॉन्ग क्षेत्र के कई देशों के बीच आपसी सहयोग वाले संबंध और मज़बूत हो रहे हैं. चीन की मास्क कूटनीति ने इन देशों के नागरिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. क्योंकि इन देशों के नागरिक चाहते हैं कि उनकी सरकारें, चीन को लेकर सावधानी वाली नीति पर चलें.
इस वैश्विक महामारी ने चीन और कम्बोडिया को अपनी सहयोगात्मक साझेदारी को और मज़बूत करने का अवसर प्रदान किया है. फरवरी महीने की शुरुआत में कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने चीन का दौरा किया था. कम्बोडिया के प्रधानमंत्री उस समय चीन के दौरे पर गए थे, जब पूरी दुनिया में चीन के ख़िलाफ़ माहौल बन रहा था. तब कम्बोडिया के प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा करके उसके साथ पक्की दोस्ती का संदेश दिया था. कम्बोडिया और चीन के रिश्तों को पड़ोसी के साथ शानदार संबंध के मॉडल के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा है.
कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने के बाद, चीन और उसके पड़ोसी देशों के बीच पहली उच्च स्तरीय बैठक तब हुई थी, जब चीन के विदेश मंत्री वैंग यी ने कम्बोडिया के उप प्रधानमंत्री होर नाम होंग के साथ 16 जून को पांचवीं चीन-कम्बोडिया समन्वय समिति की बैठक में हिस्सा लिया था. ये मीटिंग वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई थी. इस बैठक के दौरान वैंग के हवाले से कहा गया था कि दोनों देशों ने अपनी पारंपरिक दोस्ती को और मज़बूत करने का फ़ैसला किया है. इसके लिए दोनों देश कोरोना वायरस के प्रकोप से लड़ने में एक दूसरे की मदद करेंगे. कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए चीन और कम्बोडिया ने आपस में फास्ट ट्रैक की स्थापना की थी. जिससे कि इस वायरस के प्रकोप के बीच भी, दोनों देशों के बीच सामानों की आवाजाही तेज़ गति से हो सके. इसके अलावा जब चीन ने हॉन्गकॉन्ग के स्वायत्त शासित क्षेत्र के लिए नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून को पारित किया था, तब कम्बोडिया ने खुलकर उसका समर्थन किया था. ये बातें, चीन और कम्बोडिया के मज़बूत होते सामरिक संबंधों का सबूत हैं.
कम्बोडिया की ही तरह, एक अन्य पड़ोसी देश लाओस के साथ भी चीन अपने संबंध को मज़बूत कर रहा है. इस महामारी के दौरान दोनों ने आपसी रिश्तों को और दृढ़ करने के लिए कई क़दम उठाए हैं. लाओस की सरकार ने, चीन और आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक बुलाने में अहम भूमिका अदा की थी. ये बैठक फरवरी महीने में LMC की मंत्री स्तरीय बैठक के साथ हुई थी. इसमें कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने में आपसी सहयोग बढ़ाने के तरीक़ों पर चर्चा हुई थी. जब लाओस में कोविड-19 के संक्रमण के केस सामने आए थे, तब चीन ने मेडिकल टीम और साज-ओ-सामान लाओस भेजा था. इसे चीन की तरफ़ से लाओस को ‘रिटर्न द काइंडनेस’ का नाम दिया गया था.
कम्बोडिया की ही तरह, एक अन्य पड़ोसी देश लाओस के साथ भी चीन अपने संबंध को मज़बूत कर रहा है. इस महामारी के दौरान दोनों ने आपसी रिश्तों को और दृढ़ करने के लिए कई क़दम उठाए हैं.
3 अप्रैल को लाओस के राष्ट्रपति बोउनहैंग वोराचिथ के साथ फ़ोन पर बातचीत के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने लाओस को भरोसा दिया कि वो अपने पड़ोसी देश को इस महामारी से लड़ने में हर तरह की मदद आगे भी देता रहेगा. इसी तरह, 20 मई को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने म्यांमार के राष्ट्रपति यू विन मिन्ट के साथ भी बातचीत की. इस दौरान भी शी जिनपिंग ने म्यांमार को कोरोना वायरस के प्रकोप से लड़ने में हर संभव सहयोग और मदद का भरोसा दिया था. म्यांमार को चीन से कोविड-19 से लड़ने के लिए तकनीकी मदद और मेडिकल सामान की आपूर्ति हो रही है. हालांकि, म्यांमार में कई लोगों ने चीन के मेडिकल सहयोग को लेकर चिंताएं जताई हैं.
दक्षिणी चीन सागर पर अधिकार के विवाद और मीकॉन्ग नदी पर चीन के बांध बनाने जैसे पुराने मसलों के कारण चीन और मीकॉन्ग डेल्टा के देशों के बीच संबंधों पर असर पड़ता रहा है. वियतनाम के लिए, कई और कारणों से भी चीन के साथ संबंध को मधुर बनाए रखना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. अप्रैल महीने की शुरुआत में वियतनाम की एक मछली मारने की नौका को चीन ने दक्षिणी चीन सागर में तब डुबो दिया गया था, जब वियतनाम की ये नाव चीन के समुद्री निगरानी वाले एक जहाज़ से जा टकराई थी.
दक्षिणी चीन सागर पर अधिकार के विवाद और मीकॉन्ग नदी पर चीन के बांध बनाने जैसे पुराने मसलों के कारण चीन और मीकॉन्ग डेल्टा के देशों के बीच संबंधों पर असर पड़ता रहा है. वियतनाम के लिए, कई और कारणों से भी चीन के साथ संबंध को मधुर बनाए रखना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
वियतनाम और चीन के पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों में एक नया आयाम और जुड़ गया है. क्योंकि वियतनाम भी अपने पड़ोसी देशों, कम्बोडिया और लाओस को कोरोना वायरस के प्रकोप से लड़ने के लिए मेडिकल सहायता उपलब्ध करा रहा है. वियतनाम के इस क़दम को इस क्षेत्र में चीन की कोविड कूटनीति के प्रभुत्व को चुनौती देने के तौर पर देखा जा रहा है. जबकि, सच तो ये है कि वियतनाम अपने पड़ोसी देशों को मदद पहुंचा कर इस क्षेत्र में स्वयं को एक ज़िम्मेदार राष्ट्र के तौर पर स्थापित करना चाह रहा है. ऐसे में वियतनाम के इस क़दम के भौगोलिक सामरिक महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती है.
फिर भी, अप्रैल महीने की शुरुआत में एक और घटना ने मीकॉन्ग डेल्टा के देशों के साथ चीन के संबंध की पेचीदगी को उजागर किया था. तब एक अध्ययन प्रकाशित किया गया था. इसमें कहा गया था कि मीकॉन्ग पर चीन द्वारा बनाए गए बांधों के कारण ही मीकॉन्ग बेसिन के क्षेत्रों में सूखा पड़ रहा है. चूंकि, इस स्टडी को अमेरिकी सरकार से आर्थिक मदद मिली थी. इसलिए, चीन ने इस अध्ययन से निकले नतीजों को लेकर सवाल उठाए थे. लेकिन, इस स्टडी ने मीकॉन्ग देशों की चिंताओं को एक बार फिर उजागर कर दिया था. तमाम अधिकार संगठन चीन से इस मामले में और पारदर्शिता बरतने की मांग करते रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोविड-19 के बाद के दौर में चीन, पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध को और मज़बूत बनाने की कोशिश करेगा. लेकिन, चीन की कूटनीति की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि मीकॉन्ग डेल्टा के देशों के साथ उसके संबंध कैसे रहते हैं. ख़ास तौर से उसके बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर, चीन के पड़ोसी देश या अन्य देश कैसा रुख़ अपनाते हैं, ये देखने वाली बात होगी.
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K. Yhome was Senior Fellow with ORFs Neighbourhood Regional Studies Initiative. His research interests include Indias regional diplomacy regional and sub-regionalism in South and Southeast ...
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