Author : Abhishek Mishra

Published on Dec 15, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन द्वारा युगांडा के हवाई अड्डे के कथित अधिग्रहण ने "क़र्ज-जाल" के मुद्दे पर बहस को एक बार फिर हवा दी है.

चीन और युगांडा का एंटेबे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: सच्चाई की पड़ताल

सेनेगल के डकार में हाई-प्रोफाइल फोरम ऑन चाइना अफ्रीका कोऑपरेशन (एफओसीएसी) मंत्रिस्तरीय कॉन्फ्रेंस की आठवीं बैठक से कुछ दिन पहले चीन एक बड़ी मुश्किल में घिर गया. डेली मॉनिटर न्यूजपेपर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक युगांडा को लोन वापस करने में विफल होने की वजह से कथित तौर पर अपनी एक राष्ट्रीय संपत्ति- एंटेबे इंटरनेशनल एयरपोर्ट को चीन की एक्ज़िम (ईएक्सआईएम) बैंक के समक्ष सरेंडर करना पड़ा. चीनी अधिकारियों ने एंटेबे हवाईअड्डे को अपग्रेड करने और उसके नवीनीकरण के लिए 2015 में दिए गए 200 मिलियन यूएस डॉलर लोन की कुछ कड़ी शर्तों पर फिर से बातचीत के युगांडा के आग्रह को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया था. यह बात बड़ी तेज़ी से सोशल मीडिया पर फैल गई थी और कई मीडिया संस्थानों ने इसको लेकर रिपोर्ट्स भी प्रकाशित की थीं.

 चीनी अधिकारियों ने एंटेबे हवाईअड्डे को अपग्रेड करने और उसके नवीनीकरण के लिए 2015 में दिए गए 200 मिलियन यूएस डॉलर लोन की कुछ कड़ी शर्तों पर फिर से बातचीत के युगांडा के आग्रह को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया था. 

रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, जिसे पेवॉल के तहत रखा गया था, उसके अनुसार:  “युगांडा सिविल एविएशन अथॉरिटी का कहना है कि यदि एंटेबे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के विस्तार के लिए प्राप्त किए गए लोन के फाइनेन्सिंग एग्रीमेंट के कुछ प्रावधानों को नहीं बदला गया तो कानूनी लड़ाई में बीजिंग की जीत होने की स्थिति में एयरपोर्ट के साथ-साथ दूसरी सरकारी संपत्तियों का चीन द्वारा अधिग्रहण कर लिया जाएगा.”

युगांडा ने अपने ट्रांसपोर्ट सेक्टर का विस्तार करने और घरेलू इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए वर्ष 2015 में एक महत्वाकांक्षी सिविल एविएशन मास्टर प्लान लॉन्च किया था. इस मास्टर प्लान में उसके एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को अपग्रेड करना भी शामिल था. इसमें एंटेबे एयरपोर्ट पर एक नए टर्निमल और कार्गो के निर्माण के साथ-साथ हवाईपट्टी का विस्तार और फ्यूल सेंटर्स का निर्माण होना था. इसके लिए युगांडा की सरकार ने 31 मार्च, 2015 को चीन की एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक (ईएक्सआईएम) के साथ एक लोन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे.

आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू

हालांकि, निर्माण कार्य शुरू होने के बाद युगांडा सिविल एविएशन अथॉरिटी (यूसीएए) के कुछ टेक्नोक्रेट्स और मैनेजरों ने कुछ आपत्तियां दर्ज़ कीं. यह कहा गया कि लोन एग्रीमेंट के 13 क्लॉज़ व्यवहारिक नहीं है और एंटेबे एयरपोर्ट को चीन को सौंपे जाने की बात कहते हैं. इसमें सबसे अधिक परेशानी पैदा करने वाला क्लॉज़ था, यूसीएए द्वारा अपने बजट और रणनीतिक प्लान के लिए चीनी कर्ज़दाता से मंज़ूरी लेने की शर्त, जिसे युगांडा के अधिकारी लोन एग्रीमेंट में बदलवाना चाह रहे थे. एक अन्य विवादास्पद नियम यह भी था, जिसमें युगांडा की सरकार और चीन की एक्ज़िम बैंक (ईएक्सआईएम) के मध्य किसी भी मतभेद या विवाद होने पर उसके समाधान का अधिकार बीजिंग स्थित चाइना इंटरनेशनल इकोनॉमिक एंड ट्रेड आर्बीट्रेशन कमीशन (सीआईईटीएसी) को दिया गया था.

एक अन्य विवादास्पद नियम यह भी था, जिसमें युगांडा की सरकार और चीन की एक्ज़िम बैंक (ईएक्सआईएम) के मध्य किसी भी मतभेद या विवाद होने पर उसके समाधान का अधिकार बीजिंग स्थित चाइना इंटरनेशनल इकोनॉमिक एंड ट्रेड आर्बीट्रेशन कमीशन (सीआईईटीएसी) को दिया गया था.

इन तथ्यों के सामने आने और डेली मॉनिटर की ख़बर प्रकाशित होने के तत्काल बाद युगांडा और चीन की सरकार ने तत्परता से इन आरोपों का खंडन किया. यूसीएए के प्रवक्ता विआन्ने लुग्गया ने कहा, “सरकार एयरपोर्ट जैसी राष्ट्रीय संपत्ति को नहीं सौंप सकती है. न ऐसा हुआ है और न ऐसा होगा.” उन्होंने आगे कहा कि चाइना एक्ज़िम बैंक द्वारा वित्तपोषित प्रोजेक्ट की गारंटी युगांडा के संविधान के आर्टिकल 160 के तहत युगांडा के सॉवरेन क्रेडिट के तौर पर संयुक्त एकाउंट पर लिए सार्वजनिक ऋण के रूप में है. इतना ही नहीं, युगांडा अभी सात साल के ग्रेस पीरियड के अंतर्गत है, जो दिसंबर 2022 में ख़त्म होगा. कर्ज़ की वापसी 20 वर्षों में 2 प्रतिशत ब्याज दर के साथ की जानी है. किसी और चिंता के बजाए, युगांडा के अधिकारियों ने इन शर्तों को अपने अनुकूल पाया है.

चीनी पक्ष ने भी आरोपों को ख़ारिज करते हुए इन्हें “आधारहीन” और “दुर्भावना से प्रेरित” बताया. चीनी विदेश मंत्रालय में अफ्रीकी मामलों के विभाग के डायरेक्टर जनरल वू पेंग ने स्पष्ट तौर पर कहा, “चीन का ऋण देने में विफ़ल रहने की वजह से अफ्रीका के किसी भी प्रोजेक्ट को चीन ने अधिग्रहित नहीं किया है. कर्ज़ के जाल का यह दुष्प्रचार तथ्यों से परे है.” इन बातों के सामने आने के बाद से युगांडा के अधिकारी लगातार तीन मुद्दों पर ज़ोर दे रहे हैं: पहला यह कि ग्रेस पीरियड अभी खत्म नहीं हुआ है और युगांडा की सरकार कर्ज़ के भुगतान में कोई की चूक नहीं होने को लेकर आश्वस्त है. दूसरा यह कि लोन की शर्तें सेमी-कंसेशनल तरह की हैं, जो युगांडा के इन्फ्रास्ट्रक्चर फायनेंसिंग प्रोग्राम के मुताबिक हैं. और तीसरा, पारदर्शिता के मद्देनज़र सरकार ने पार्लियामेंट के सदस्यों को लोन एग्रीमेंट उपलब्ध कराया है.

इनमें से अधिकतर दावे सही हैं. लेकिन बड़ा मुद्दा निर्भरता के एक ऐसे स्वरूप का है, जो चीन न सिर्फ पैदा कर रहा है, बल्कि इसका लाभ वो अफ्रीकी देशों के साथ अपने रणनीतिक विषम संबंधों को बरकरार रखने और उन्हें मजबूत करने में उठा रहा है. 

इनमें से अधिकतर दावे सही हैं. लेकिन बड़ा मुद्दा निर्भरता के एक ऐसे स्वरूप का है, जो चीन न सिर्फ पैदा कर रहा है, बल्कि इसका लाभ वो अफ्रीकी देशों के साथ अपने रणनीतिक विषम संबंधों को बरकरार रखने और उन्हें मजबूत करने में उठा रहा है. चीन के डेपलपमेंट प्रोजेक्ट और उसकी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को फायनेंस करने में दिखने वाली दरियादिली किसी भी लिहाज से दूसरे को लाभ देने वाली नहीं हैं. दो प्रमुख मुद्दे सामने आते हैं- बेहद असुंतलित और एकतरफा व्यापार संबंध, जो चीनी हित में हैं और पर्यावरण पर प्रभाव के आकलन एवं अफ्रीकी सिविल सोसाइटी के संगठनों तथा स्थानीय लोगों के साथ उचित विचार-विमर्श का पूरा आभाव. फोलाशाद साउले ने कलेक्टिव फॉर द रिन्यूवल ऑफ अफ्रीका (सीओआरए) के लिए लिखे अपने एक कॉलम में इन दोनों बिंदुओं को रेखांकित किया था. इसमें लेखक ने अधिक लाभदायक और न्यायोचित अफ्रीका-चाइना संबंधों की सिफ़ारिश की थी.

चीन बनाम भारत के साथ व्यापारिक संबंध

कई मामलों में एफओसीएसी का आठवां संस्करण सफल रहा. अफ्रीकी देशों के लिए चीन का कोविड-19 वैक्सीन की 1 मिलियन डोज़ का प्रावधान, 10 बिलियन अमेरिका डॉलर की क्रेडिट लाइन, इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के हाल ही में जारी किए गए स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआरएस) के अपने हिस्से से 10 बिलियन यूएस डॉलर अफ्रीका को देना, अफ्रीकी यूनियन के प्रमुख प्रोजेक्ट- द ग्रेट ग्रीन वॉल को समर्थन करने वाला एक ग्रीन डेवलपमेंट प्रोग्राम जैसी ये सभी पहलें स्वागतयोग्य हैं. इतना ही नहीं कॉन्फ्रेंस के दौरान अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी के नए युग के बारे में बताने वाले श्वेत पत्र की भांति कई दस्तावेज़ों को न सिर्फ़ जारी किया गया, बल्कि अपनाया भी गया. इसके अलावा डकार एक्शन प्लान (2022-2024), जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक घोषणापत्र और एफओसीएसी-8 पर एक संयुक्त परिपत्र भी इस सम्मेलन की उपलब्धियों में हैं.

फिर भी चीन और अफ्रीका के संबंधों में असुंतलन विवाद का एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. महाद्वीप के नेताओं जैसे सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सैल, कांगो के राष्ट्रपति फेलिक्स शीसेकेडी, दक्षिण अफ्रीका के प्रेसिडंट सिरिल रामाफोसा, एयू कमीशन के चेयरपर्सन मॉसा फकी महामत ने अधिक न्यायोचित और “विन-विन” साझेदारी को लेकर अपनी इच्छा प्रकट की, जो सिर्फ बयानबाज़ी के बजाए व्यवहारिक परिणामों पर आधारित है. सेनेगल के इकोनॉमी मिनिस्टर एमादो होट ने एफओसीएसी के दौरान कहा, “हमने डेब्ट में बहुत अधिक निवेश किया है, हमें इक्विटी में निवेश की अधिक आवश्यकता है.”

 चीनी मार्केट में पहुंचने वाले अफ्रीकी उत्पादों पर बहुत अधिक शुल्क लगता है. यह भारत के सीधे विपरीत है, जिसके साथ अफ्रीका एक सकारात्मक व्यापार संतुलन अनुभव करता है. 

चीन के साथ बढ़े व्यापार घाटे को कम करना आज कई अफ्रीकी देशों की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. यह सच्चाई है कि चीन और अफ्रीका का व्यापार पारंपरिक है. यानि कि अफ्रीका कच्चा माल निर्यात करता है और वो चीन में निर्मित सामनों के आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है. हालांकि, चीनी मार्केट में पहुंचने वाले अफ्रीकी उत्पादों पर बहुत अधिक शुल्क लगता है. यह भारत के सीधे विपरीत है, जिसके साथ अफ्रीका एक सकारात्मक व्यापार संतुलन अनुभव करता है. इतना ही नहीं भारत की ड्यूटी फ्री टैरिफ प्रिफरेंस (डीएफटीपी) योजना के तहत अफ्रीका को भारत की लगभग 98 प्रतिशत टैरिफ लाइन्स में ड्यूटी फ्री और विशेष वरीयता बरताव मिलने से लाभ होता है.

इन विशेष मुद्दों पर बहस के बीच एक चीज निश्चित है, वो है अफ्रीका के साथ चीन के संबंधों का नैरेटिव बयानबाज़ी और साझा भविष्य की हवा-हवाई बातों से हटकर आपसी लाभकारी पार्टनरशिप की ओर बढ़ना चाहिए. एफओसीएसी कॉन्फ्रेंस से पहले सोशल मीडिया पर तहलका मचाने वाली चीन द्वारा युगांडा के एंटेबे एयरपोर्ट के कथित अधिग्रहण की घटना का समय ऐसा था, जिसने नकारात्मक मीडिया कवरेज को सुनिश्चित किया, जैसा कि चाइना-अफ्रीका संबंधों को लेकर अक्सर होता है.

तथ्यों की जांच पड़ताल के बग़ैर, जल्दबाज़ी में चीन को अफ्रीका में एक “नियो कोलोनाइजर” प्रचारित करने के लिए इस तरह की सनसनीखेज मीडिया रिपोर्ट्स नुकसानदायक हैं. उतावलेपन में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले साक्ष्यों का पता लगाना हमेशा बुद्धिमानी होती है. भले ही ऐसा हो, लेकिन चीन का गैर-पारदर्शी व्यवहार, इसके छिपाए हुए और गोपनीय क्लॉज़, स्थानीय सिविल सोसाइटी संगठनों के साथ विचार-विमर्श की कमी और इसकी रणनीतिक, वाणिज्यिक और डिज़िटल निर्भरता बनाने की आदत एक सच्चाई है और चीन के साथ काम करने में, उससे संबंध बनाने में इस सच्चाई को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

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