Author : Anand Raghuraman

Published on Aug 04, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिका के लिए ये ज़रूरी है कि वो भारत के साथ रिश्ते मज़बूत करने के लिए मिले इस अवसर को न गंवाएं. क्योंकि, चीन पर दबाव बढ़ाने का ये सुनहरा मौक़ा है, जिसे बर्बाद नहीं होने देना चाहिए.

अमेरिका और भारत की साझा डिजिटल रणनीति से चीन की सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाई जा सकती है

क्या दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश एक साथ आ सकते हैं, जिससे कि वो चीन के ज़मीनी अतिक्रमण और साइबर दुनिया में उसकी सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगा सकें? ये सवाल, अमेरिका के नीति निर्माताओं के ज़हन में लगातार कौंधना चाहिए. ख़ासतौर से जब से भारत ने चीन के ख़िलाफ़ तेज़ी से बढ़ते आर्थिक अभियान के तहत चीन के 146 (59+47) ऐप्स को अपने यहां प्रतिबंधित किया है.

भारत के चीन के ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने की बारीक़ी से समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि इस क़दम को लेकर जितना शोर मचाया जा रहा है, चीन पर इसका उतना बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है.

चीन के ऐप्स पर ये पाबंदी, भारत ने लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर चीन की घुसपैठ के बाद लगाई. भारत के इस क़दम को चीन पर ‘डिजिटल एयरस्ट्राइक’ कहा जा रहा है. स्थानीय टीवी चैनलों और राजनेताओं तक ने मोदी सरकार के इस क़दम की सराहना की है. लेकिन, भारत के चीन के ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने की बारीक़ी से समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि इस क़दम को लेकर जितना शोर मचाया जा रहा है, चीन पर इसका उतना बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के प्रतिबंध लगाने से चीन के इन ऐप्स के मार्केट शेयर पर आगे जाकर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ेगा. लेकिन, फ़ौरी तौर पर देखें, तो चीन की कंपनियों को इससे कोई ख़ास आर्थिक नुक़सान नहीं उठाना पड़ेगा. मिसाल के तौर पर, टिकटॉक ऐप की मालिक कंपनी बाइटडांस का साला वैश्विक राजस्व वर्ष 2019 में क़रीब 17 अरब डॉलर था. भारत के टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने से बाइटडांस को महज़ 58 लाख डॉलर का वार्षिक आर्थिक झटका लगने की आशंका है. इसके अलावा, भारत के प्रतिबंध लगाने के बावजूद, उसके मुख्य डिजिटल इको-सिस्टम में चीन की कंपनियों का प्रभुत्व भी बिल्कुल कम नहीं होगा. क्योंकि, चीन के शाओमी, ओप्पो, विवो, वन प्लस और रियल मी जैसे स्मार्टफ़ोन ब्रांड का भारत के 80 प्रतिशत बाज़ार पर क़ब्ज़ा है.

तल्ख़ सच्चाई ये है कि भले ही भारत ने डिजिटल ड्रैगन को क़ाबू करने का साहस दिखाया है. लेकिन, भारत द्वारा अपने घरेलू बाज़ार में चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने की राह में बड़ी मुश्किलें दिखाई देती हैं. और किसी भी चुनौती का सामना तभी किया जा सकता है, जब हम भरोसेमंद साझेदारों के साथ उसका मुक़ाबला करें.

डिजिटल एयरलिफ्ट की शुरुआत

यहीं पर अमेरिका के लिए बहुत बड़ा अवसर इंतज़ार कर रहा है. क्या अमेरिका तेज़ी और सामरिक दृष्टिकोण के साथ इस संकट के दौरान भारत का सहयोग कर सकता है. जिससे चीन के ख़िलाफ़ भारत के इस डिजिटल अभियान को मज़बूत किया जा सके? जैसे 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान, उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने भारत की मदद के लिए विमान रवाना कर दिए थे. वैसे ही अब समय आ गया है कि अमेरिका, तीन प्रमुख लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को डिजिटल एयरलिफ्ट दे.

लक्ष्य-1:चीन को फौरी तौर पर आर्थिक क्षति पहुंचाना

अमेरिका से डिजिटल मदद का लक्ष्य ये होना चाहिए कि वो भारत को चीन के ख़िलाफ़ डिजिटल स्ट्राइक करने में मदद करे. जिससे, भारतीय सीमा में अतिक्रमण की चीन को भारी क़ीमत चुकानी पड़े. इस काम में भारत के चीनी ऐप पर प्रतिबंध को शुरुआती क़दम कहा जा सकता है. इसके बाद अमेरिका, उन चीनी ऐप्स के साझेदारों और सहयोगियों के ख़िलाफ़ एक्शन ले सकता है, जिन्हें भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया है. अमेरिका भी इसी का हवाला देकर चीन के ख़िलाफ़ डिजिटल स्ट्राइक कर सकता है. इसके साथ साथ अमेरिका, अपने साथी देशों को भी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर चीन के ऐप्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है. जो इससे भी महत्वपूर्ण क़दम अमेरिका उठा सकता है, वो ये है कि चीन के ऐसे ऐप्स पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जो डिजिटल वैल्यू चेन का हिस्सा हैं और सीधे ग्राहकों को नहीं प्रभावित करते हैं.

अमेरिका, उन चीनी ऐप्स के साझेदारों और सहयोगियों के ख़िलाफ़ एक्शन ले सकता है, जिन्हें भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया है. अमेरिका भी इसी का हवाला देकर चीन के ख़िलाफ़ डिजिटल स्ट्राइक कर सकता है

ऐसे प्रयासों की मदद से ट्रंप प्रशासन, चीन की टेलीकॉम कंपनी हुवावे को दुनिया के तमाम देशों के 5G नेटवर्क से प्रतिबंधित करने के अपने अभियान को और मज़बूती दे सकता है. मगर, एक ही जैसी दबाव वाली रणनीति अपनाने के बजाय, अमेरिका को चाहिए कि वो भारत की मदद करने वाला राजनीतिक माहौल तैयार करे. जिससे कि भारत और अन्य देश हुवावे व ZTE जैसी चीनी टेलीकॉम कंपनियों के ख़िलाफ़ मज़बूती से एक्शन लें और अपनी संप्रभुता की रक्षा कर सकें. अमेरिका के FCC ने हाल ही में हुवावे और ZTE को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित किया है. इससे भारत को भी आगे चल कर इन कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का हौसला मिलेगा.

लक्ष्य-2:भारत की साइबर सुरक्षा क्षमताओं का विकास करे

भारत ने चीन पर जो डिजिटल स्ट्राइक की है, उससे आने वाले दिनों में चीन भी भारत पर पलटवार कर सकता है. इसकी आशंका तब और बढ़ जाएगी, अगर, भारत अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों को चीन के ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रेरित करने में सफल हो जाता है. और जैसा कि हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने साइबर अटैक की शक्ल में भुगता है. चीन अपनी साइबर शक्ति का इस्तेमाल करके अपनी भौगोलिक सामरिक ताक़त को बनाए रखना चाहेगा. इसीलिए, डिजिटल क्षेत्र में भारत की मदद का दूसरा अमेरिकी लक्ष्य यही होना चाहिए कि वो भारत की साइबर सुरक्षा की शक्ति को बढ़ाने में सहयोग प्रदान करे.

अमेरिका व भारत को चाहिए कि सितंबर में होने वाले अमेरिका-भारत ICT डायलॉग के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों को कम अवधि के ख़तरों से निपटने के गुर सिखा सकें.

अमेरिका को चाहिए कि उसके वरिष्ठ और कार्यकारी स्तर के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ, भारत के विशेषज्ञों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखें. अमेरिकी विशेषज्ञ, साइबर हमलों के अपने पिछले अनुभवों के आधार पर भारत को संभावित चीनी साइबर अटैक से बचने में मदद कर सकते हैं. नियमित रूप से सहयोग और ख़ुफ़िया जानकारियां साझा करने से अमेरिका, चीन के ख़िलाफ़ तब साइबर हमलों का पलटवार कर सकता है, जब भारत, चीन से ऐसे साइबर अटैक का शिकार हो. इसके लिए अमेरिका, भारत से सिर्फ़ खोखले वादे करने के बजाय उसको और ताक़तवर डिजिटल हथियार मुहैया करा सकता है. निजी क्षेत्र की कमज़ोर कड़ियों को दूर करना भी एक महत्वपूर्ण क़दम होगा. और अमेरिका व भारत को चाहिए कि सितंबर में होने वाले अमेरिका-भारत ICT डायलॉग के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों को कम अवधि के ख़तरों से निपटने के गुर सिखा सकें.

लक्ष्य-3: सूचना और संचार तकनीक के प्रमुख निर्माण केंद्र के तौर पर भारत की प्रगति को बढ़ाने में मदद

अमेरिकी उद्योग, अमेरिकी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण संपदा हैं. जिनका इस्तेमाल करके वहां की सरकार चीन को आर्थिक नुक़सान पहुंचाने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में भी मज़बूत आयाम जुड़ेगा. इसका एक स्पष्ट अवसर हमें भारत के सूचना और संचार तकनीक क्षेत्र में दिखता है. जहां पर अमेरिका की मदद से भारत निर्माण क्षेत्र की शक्ति बढ़ा सकता है. भारत इस क्षेत्र में विदेशी कंपनियों से निवेश को लुभाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है. ऐसी कंपनियां, जो चीन से आपूर्ति श्रृंखला को तोड़कर भारत लाना चाह रही हैं, वो कोविड-19 के बाद के दौर में अमेरिका की मदद से ऐसा कर सकती हैं. इसीलिए, अमेरिका का डिटिजट क्षेत्र में भारत को सहयोग का तीसरा लक्ष्य यही होना चाहिए कि वो इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण का बड़ा केंद्र बनने में भारत की मदद करे.

इसके लिए आने वाले समय में ट्रंप या जो बाइडेन प्रशासन को व्यापक दूरदृष्टि से काम लेना होगा. उन्हें भारत के साथ व्यापारिक और डिजिटल सहयोग बढ़ाने के लिए, मज़बूती से प्रयास करने होंगे. अमेरिकी कंपनियों द्वारा अपने निर्माण केंद्र चीन से हटाकर भारत लाने की आलोचना करने और इन कंपनियों पर निर्माण केंद्र वापस अमेरिका लाने का दबाव बनाने भर से काम नहीं चलने वाला. अमेरिकी सरकार को चाहिए कि वो अमेरिकी कंपनियों को मेक इन इंडिया अभियान में मदद करने का हौसला दें. इससे स्थानीय स्तर पर आपूर्ति श्रृंखलाएं विकसित होंगी. भारत का निर्यात बढ़ेगा. इसी तरह से अमेरिका को चाहिए कि अगर उसके और भारत के बीच में सेक्शन 301 तहत लंबे समय से चल रही व्यापार वार्ता असफल रहती है, तो भी वो भारत से सूचना और संचार तकनीक से जुड़े उत्पादों के निर्यात अपने यहां टैक्स न लगाए. इन क़दमों को उठाने से अमेरिकी हितों को कोई नुक़सान नहीं होगा. न ही इनसे द्विपक्षीय व्यापार पर कोई ख़ास असर होगा. हालांकि, इन क़दम को उठा कर अमेरिका अपनी व्यापार नीति को अपने सामरिक लक्ष्यों के साथ जोड़ सकता है. इसीलिए अमेरिका को चाहिए कि वो अपने व्यापार घाटे को कम करने के फौरी टारगेट पर ही न अटका रहे.

एक सुनहरे अवसर का लाभ कैसे उठाएं?

हिमालय पर्वत की चोटियों पर चीन के विस्तारवाद ने भारत और चीन की शक्ति के बीच बढ़ते फ़र्क़ को उजागर कर दिया है. इसी कारण से आज भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी को मज़बूत करने की ज़रूरत और बढ़ गई है. आज ये बात बहुत अहम है कि अमेरिका इस अवसर को गवाएं बग़ैर भारत के साथ संबंधों को नई धार और रफ़्तार दे. वो इस सुनहरे अवसर को न गवाएं और चीन पर दबाव बढ़ाने की दिशा में तेज़ी से काम करे. अगर, भारत को अमेरिका डिजिटल सहयोग देता है, तो इससे दोनों ही देश रणनीति के नए हथियारों का इस्तेमाल करके, बिना अपनी सेनाओं को ज़मीन पर उतारे चीन का मुक़ाबला कर सकेंगे. ट्रंप प्रशासन के लिए ये फ़ायदे का सौदा होगा कि वो इन लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़े. और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बाद जो भी जीतता है, वो वर्ष 2020 के बाद भी इस रणनीति को आगे बढ़ाता रहे.

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