Published on Jan 05, 2021 Updated 0 Hours ago

एक भयंकर महामारी- जिसकी शुरुआत चीन में हुई थी- का बेहद कम ख़राब असर पड़ा है जिसकी वजह से चीन ने कोविड-19 के प्रकोप से अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को बचा रखा है.

नई उंचाईयों को छूता चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम: भारत के लिए क्या है मायने?

2020 के अंतिम 10 महीनों में चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम में जो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं, उन पर ध्यान देना ज़रूरी है. साथ ही उनका सावधानीपूर्वक विश्लेषण भी ज़रूरी है ताकि भारत के लिए इन कार्यक्रमों का मतलब निकाला जा सके. जिन तीन क्षेत्रों का विश्लेषण ज़रूरी है, वो हैं:

  1. अंतरिक्ष में चीन के कार्यक्रमों की लॉन्च की रफ़्तार
  2. कम लागत वाले सैटेलाइट प्रोपल्शन ईंधन के विकास में विदेशी स्पेस स्टार्टअप के साथ चीन का सहयोग, और
  3. चीन के द्वारा रियूज़ेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) का कथित सफल परीक्षण

ऐसा लगता है कि इन तीनों क्षेत्रों में चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने पिछले साल अच्छी खासी प्रगति की है. यहां पर उल्लेख किये गए हर कामयाबी से पता चलता है कि एक भयंकर महामारी- जिसकी शुरुआत चीन में हुई थी – उसका चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर बेहद कम या यूं कहें कि आंशिक तौर पर ही ख़राब असर पड़ा है, जिसकी वजह से चीन ने कोविड-19 के प्रकोप से अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को पूरी तरह से बचा लिया.

एक अनुमान के मुताबिक़ 2020 के ख़त्म होने तक चीन लगभग 40 सैटेलाइट लॉन्च करेगा और संभवत: अमेरिका से आगे रहेगा. वैश्विक महामारी और दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के ख़राब प्रदर्शन को देखते हुए चीन का अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना असाधारण है. 

हम शुरुआत करते हैं इस लेख में इंगित किए गए पहले क्षेत्र या पहले सेगमेंट से जिसका संबंध लॉन्च की रफ़्तार से है. 2018 से अब तक लगातार तीसरे साल पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने अंतरिक्ष में सबसे ज़्यादा सैटेलाइट भेजे हैं. 17 नवंबर 2020 तक चीन ने सफलतापूर्वक 34 सैटेलाइट लॉन्च किए हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ 2020 के ख़त्म होने तक चीन लगभग 40 सैटेलाइट लॉन्च करेगा और संभवत: अमेरिका से आगे रहेगा. वैश्विक महामारी और दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के ख़राब प्रदर्शन को देखते हुए चीन का अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना असाधारण है. इस पूरे घटनाक्रम में जो एकमात्र चेतावनी सामने आयी वो ये रही कि, अंतरिक्ष से जुड़े मामलों में अन्य विकसित देशों के मुक़ाबले चीन को अपने सैटेलाइट लॉन्च के दौरान ज़्यादा नाकामी हाथ लगी. इस वजह से चीन हर साल ऑर्बिट में सैटेलाइट भेजने के मामले में अभी भी अमेरिका और रूस से पीछे है. इसके बावजूद सिर्फ़ 2020 में चीन ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में कई बड़ी कामयाबी हासिल की है. चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम सिर्फ़ संख्य़ा के मामले में महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि अंतरिक्ष यान, लॉन्च व्हीकल में इस्तेमाल ईंधन और जिन प्लेटफॉर्म से लॉन्च किए गए, उनको लेकर चीन की बड़ी छलांग के बारे में भी बताता है. पिछले साल जिन महत्वपूर्ण अंतरिक्ष यानों को लॉन्च किया गया उनमें टियानटोंग-1 (02) मोबाइल कम्युनिकेशन सैटेलाइट शामिल है. नवंबर 2020 के आख़िरी हफ़्ते में चीन ने चांग ई-5 अंतरिक्ष यान भेजा जो चंद्रमा से मिट्टी और पत्थर के नमूने लेकर पृथ्वी पर लौटा.

चीन के स्पेस स्टार्टअप्स ने यूरोप के स्टार्टअप्स के साथ समझौता किया है. इस सहयोग का सबसे बड़ा उदाहरण है फ्रांस के प्रोपल्शन स्टार्टअप थ्रस्टमी के साथ चीन के स्टार्टअप स्पेसटाई का समझौता. 

चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम, जिस पर कम-से-कम भारत की नज़र अब तक नहीं गई है, वो है कि किस तरह चीन के स्पेस स्टार्टअप्स ने यूरोप के स्टार्टअप्स के साथ समझौता किया है. इस सहयोग का सबसे बड़ा उदाहरण है फ्रांस के प्रोपल्शन स्टार्टअप थ्रस्टमी के साथ चीन के स्टार्टअप स्पेसटाई का समझौता. समझौते के बाद 2019 में थ्रस्टमी ने कुछ प्रमुख इन-ऑर्बिट तकनीकों जैसे “आयोडिन स्टोरेज, डिलीवरी और वाष्पीकरण के बाद फिर से ठोस बनने की क्रिया” का स्पेसटाई के शियाओशियांग 1-08 पर परीक्षण किया. ये एक प्रदर्शन का हिस्सा था जिसमें स्पेसटाई द्वारा निर्मित छोटे अंतरिक्ष यान के उड़ने में आयोडिन आधारित प्रक्षेपक का परीक्षण किया गया. हाल के लॉन्च के बाद चीन और फ्रांस के लिए वास्तव में पहली बार स्पेसटाई द्वारा डिज़ाइन किए गए क्यूब सैटेलाइट बीहांगकोगशी-1 के ऊपर आयोडिन प्रोपल्शन इलेक्ट्रिक सिस्टम का पूरी तरह परीक्षण किया जाएगा. इस प्रदर्शन में नये विकसित एनपीटी-12 इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा. छोटे सैटेलाइट के लिए आयोडिन आधारित प्रोपल्शन को पूरी दुनिया में मान्यता मिल रही है क्योंकि ये अंतरिक्ष यान के द्रव्यमान को घटाने के साथ-साथ उसके उड़ने की लागत और जोखिम को भी कम करता है. उदाहरण के लिए, नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) का आईसैट स्मॉल सैटेलाइट (एससैट) एक और अंतरिक्ष कार्यक्रम है जिसमें आयोडिन आधारित प्रॉपल्शन का परीक्षण किया गया है. ये कोशिश नासा के द्वारा प्रदर्शन मिशन का एक हिस्सा है.

सर्रे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड, गॉमस्पेस, आईएसआईएस और थेल्स एलेनिया स्पेस जैसी यूरोप की कई कंपनियां हैं जो चीन की कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं. ये साफ़ नहीं है कि मौजूदा महामारी की वजह से यूरोप की स्पेस कंपनियों और चीन की कंपनियों के बीच सहयोग पर काफ़ी ज़्यादा असर पड़ा है या नहीं.

ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि स्पेसटाई और थ्रस्टमी के बीच गठजोड़ चीन और यूरोप के स्टार्टअप के बीच सहयोग के मामले में एक अहम क़दम है. इस ज्वाइंट वेंचर (जेवी) को ग़ैर-ईयू और ग़ैर-पश्चिमी देश के साथ यूरोपियन यूनियन (ईयू) के नरम रेगुलेटरी माहौल से काफी हद तक मदद मिली है जिसके कारण ये सफल हो पाया. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स कंट्रोल (आईटीएआर) या निर्यात नियंत्रण क़ानून के तहत अमेरिकी स्पेस कंपनी और ग़ैर-अमेरिकी कंपनी के बीच सहयोग को लेकर बेहद सख़्त शर्तें हैं. वास्तव में यूरोप की कंपनियां आईटीएआर की शर्तों से अलग अंतरिक्ष यान बना रही हैं और तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं. चीन और फ्रांस के स्टार्टअप के बीच सहयोग बताता है कि यूरोप के देश चीन के स्टार्टअप और कंपनियों के साथ सहयोग को लेकर बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं हैं. सर्रे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड, गॉमस्पेस, आईएसआईएस और थेल्स एलेनिया स्पेस जैसी यूरोप की कई कंपनियां हैं जो चीन की कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं. ये साफ़ नहीं है कि मौजूदा महामारी की वजह से यूरोप की स्पेस कंपनियों और चीन की कंपनियों के बीच सहयोग पर काफ़ी ज़्यादा असर पड़ा है या नहीं. स्पेसटाई-थ्रस्टमी के बीच गठजोड़ की एक अतिरिक्त ख़ूबी ये है कि जोख़िम स्पेसटाई ने उठाया जिसकी वजह से थ्रस्टमी ने स्पेसटाई के अंतरिक्ष यान पर अपने नवनिर्मित प्रोपल्शन सिस्टम का परीक्षण किया. नये प्रोपल्शन सिस्टम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि वो छोटे सैटेलाइट को ऑर्बिट से बाहर जाने की शक्ति देकर मलबे को कम करेगा, ऑर्बिट में अंतरिक्ष यान की उम्र को बढ़ाएगा और ऑर्बिट में सैटेलाइट की टक्कर को रोकेगा. हालांकि, यूरोप की स्पेस कंपनियों और चीन की कंपनियों के बीच गहरा और टिकाऊ सहयोग होना अभी अपने शुरुआती चरण में है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है.

आख़िर में 4 सितंबर 2020 को ऐसा लगा कि चीन ने सफलतापूर्वक रियूज़ेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) को लॉन्च किया. इस घटना पर भी भारत की नज़र नहीं पड़ी. हालांकि गोबी रेगिस्तान के जियुकुआन सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से लॉन्च किए गए चीन के आरएलवी के बारे में विस्तार से जानकारी अभी भी सार्वजनिक नहीं हुई है. आरएलवी के बारे में माना जाता है कि उसने एक सैटेलाइट को ऑर्बिट में भेजा और “2 दिनों तक ऑर्बिट में उड़ने के बाद 6 सितंबर को अपनी तय जगह पर सफलतापूर्वक लौट आया.” दिसंबर के आख़िर में चीन ने लॉन्ग मार्च-8 रॉकेट को भी लॉन्च किया जिसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि वो स्पेस-X की तरह के फाल्कन-9 के उड़ने और लैंडिंग का काम अंजाम देगा. हालांकि ज़्यादा संभावना इस बात की है कि लॉन्ग मार्च-8 एक विस्तारित रूप होगा और ज़्यादा-से-ज़्यादा वर्टिकल टेकऑफ और वर्टिकल लैंडिंग (वीटीवीएल) रियूज़ेबल रॉकेट के मूलभूत अंग के रूप में काम आएगा. चाइना एरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन (सीएएससी) के एक बड़े टेक्नोलॉजिस्ट वू यांगशेंग ने भी कबूल किया कि 2025 तक भरोसेमंद वीटीवीएल की क्षमता पाना संभव नहीं होगा.

भारत के लिए मतलब

ये सभी घटनाक्रम चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए वास्तविक विकास के बारे में बताते हैं जबकि भारत के लिए कुछ मुश्किल सवाल खड़ा करते हैं. क्या भारत का कोविड-19 लॉकडाउन बेहद सख़्त था और इसकी वजह से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्राइवेट उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं को इसरो के अंतरिक्ष मिशन की ज़रूरतों को पूरा करने से रोका गया? वास्तव में इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने जून के आख़िर में माना: “इसकी (महामारी) वजह से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया. कोविड-19 की समस्या का समाधान होने के बाद हमें एक आकलन करना होगा. लॉकडाउन की वजह से गगनयान पर असर पड़ेगा.

इसरो के लॉन्च के बीच इतना अंतराल बहुत ज़्यादा है और लॉकडाउन की वजह से भले ही पूरी तरह लॉन्च पंगु नहीं हुए हों लेकिन इसके कारण अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य के मिशन में देरी होगी. 

सभी उद्योगों ने अभी काम करना शुरू नहीं किया है. सभी मिशन (चंद्रयान 3 समेत) पर असर पड़ा है.” 2020 में इसरो ने क़रीब 11 महीने के अंतराल के बाद 7 नवंबर को एकमात्र लॉन्च किया जिसमें 10 सैटेलाइट को ऑर्बिट में भेजा गया. इसरो के लॉन्च के बीच इतना अंतराल बहुत ज़्यादा है और लॉकडाउन की वजह से भले ही पूरी तरह लॉन्च पंगु नहीं हुए हों लेकिन इसके कारण अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य के मिशन में देरी होगी. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता की दर महामारी से पहले भी दुनिया में अंतरिक्ष कार्यक्रम चलाने वाले चुनिंदा देशों में सबसे कम में से थी. आरएलवी के सफल परीक्षण को लेकर चीन के दावे के बावजूद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन पश्चिमी देशों के साथ चीन के स्टार्टअप के सहयोग के मामले में ऐसी बात नहीं है. भारत के उभरते स्पेस स्टार्टअप सेक्टर के लिए मतलब साफ़ है: उसे भी स्पेसटाई और थ्रस्टमी जैसा गठजोड़ करने की ज़रूरत है. क्या भारतीय स्पेस स्टार्टअप स्पेसटाई जैसा जोखिम उठाएंगे? क्या विदेशी स्टार्टअप भारतीय स्टार्टअप के साथ सहयोग करेंगे? इन सवालों का कोई तय जवाब नहीं है लेकिन क़ानून में तब्दील होने वाला अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक शायद कई विलंब करने वाले मुद्दों का हल निकालने में मदद करेगा. इसरो और भारतीय स्पेस स्टार्टअप को अगर चीन की बराबरी करनी है तो उन्हें आगे बेहद कठिन मेहनत करनी होगी.

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