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आज क्षेत्रीय कूटनीति के तेज़ी से बढ़ते माहौल में भारत का एक सामरिक लक्ष्य ये भी है कि वो अपने पुराने संपर्कों के आधार पर छोटे पड़ोसी देशों से अपने संबंध को नए सिरे से परिभाषित करे और नए-नए क्षेत्र में संबंध भी बनाए.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे होने के मौक़े पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ज़ोर देकर दोहराया था कि भारत की विदेश नीति की पहली प्राथमिकता अपने पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करना है. उन्होंने भारत की नेबरहुड फ़र्स्ट यानी ‘पड़ोसी पहले’ की विदेश नीति के दो अहम पहलुओं के बारे में बताया. विदेश मंत्री ने कहा कि पड़ोसी देशों के साथ उच्च स्तर के राजनीतिक संवाद स्थापित करना और छोटे पड़ोसी देशों से बिना किसी अपेक्षा के संबंधों को आगे बढ़ाना. इन सर्वविदित तथ्यों के अलावा पड़ोसियों को तरज़ीह देने की भारतीय विदेश नीति की जड़ में व्यवहारिकता का पुट शामिल है, जो ये कहता है कि भारत अपने आस-पास के कूटनीतिक संपर्क को अपने हित में और बेहतर करे.
भारत तब अपने पड़ोसियों से संबंध सुधारने की नीति को प्राथमिकता दे रहा है, जब इसके विशाल पड़ोसी देश चीन के अमेरिका से ताल्लुक़ात में कड़वाहट बढ़ती जा रही है. आम तौर पर किसी देश के आस-पास के देशों को उसका ‘स्फेयर ऑफ़ इनफ्लुएंस’ या प्रभाव क्षेत्र माना जाता है. भारत, अमेरिका की चीन पर दबाव बनाए रखने में मदद कर के अपने क्षेत्र में सामरिक और रणनीतिक हित साधने की कोशिश कर रहा है. लेकिन, ये भारत की अपने पड़ोसियों के प्रति हालिया नीति का एक हिस्सा मात्र है.
अपने छोटे पड़ोसी देशों में अपनी हार्ड पावर यानी आर्थिक और सैन्य शक्ति से बदलाव लाने की भारत की कोशिशें हमेशा सफल नहीं हुई हैं. भारत ने जब भी अपनी सामरिक ताक़त या आर्थिक नाकेबंदी से पड़ोसियों पर दबाव बनाया है, तो उसका उसके हिसाब से नतीजा निकला हो, ऐसा नहीं है. 2015 में भारत ने गैर-आधिकारिक रूप से नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी की थी. इसका नतीजा ये हुआ कि नेपाल ने चीन के साथ व्यापारिक और आवाजाही के समझौते कर लिए. इस अघोषित आर्थिक नाकेबंदी की वजह से नेपाल और दूसरे पड़ोसी देशों में भारत विरोधी माहौल भी बना.
विश्व राजनीति में अपना-अपना प्रभाव बनाने की भारत और चीन के बीच की होड़ भारत की पड़ोसियों के साथ की नीति का अहम हिस्सा लंबे समय से रहा है. पिछले काफ़ी समय से भारत ये देख कर फिक्रमंद है कि चीन किस तरह अपनी आर्थिक और सामरिक पहुंच, उसकी सीमाओं के इर्द-गिर्द बढ़ा रहा है. आज की तारीख़ में चीन, भारत के ज़्यादातर पड़ोसी देशों का प्रमुख व्यापारिक साझीदार और बड़ा निवेशक बन गया है. आज भारत की सामरिक चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता रखने और पड़ोसी देशों में भारत के दखल के आरोप के बीच की रेखा मिटती जा रही है. क्योंकि भूटान के अलावा, भारत के सभी पड़ोसी देश चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बन चुके हैं.
आज भारत दुनिया की बड़ी ताक़तों के साथ अलग-अलग नीतियों पर अमल कर रहा है. साथ ही साथ वो अपने छोटे पड़ोसी देशों को ये संकेत भी दे रहा है कि वो दूसरे देशों के साथ उनके उन संबंधों के ख़िलाफ़ नहीं है, जिससे उन्हें फ़ायदा हो रहा हो.
भारत के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए चीन के साथ संबंध बढ़ाना, भारत के सभी पड़ोसियों की विदेश नीति का हिस्सा बन गया है. अपने पड़ोस में चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती तनातनी के बीच भारत ने लो प्रोफ़ाइल बनाए रखा है. इससे भी शायद भारत की परेशानियां बढ़ गई हैं. आज भारत के छोटे पड़ोसी देश अमेरिका और चीन की तनातनी के बीच दोनों देशों से अपने संबंध मधुर बनाए रखने की जद्दोज़हद कर रहे हैं. ऐसे में इन देशों में अपना प्रभुत्व बनाने की भारत और चीन की होड़ पीछे चली गई है. हाल ही में अमेरिका की इंडो-पैसिफिक या ब हिंद-प्रशांत रणनीति को लेकर नेपाल का जो रुख़ रहा है, उससे साफ़ होता है कि भारत के छोटे पड़ोसी देशों के सामने कैसी दुविधा खड़ी है.
भारत ने ख़ुद को पड़ोसी देशों के सामने इस तरह प्रस्तुत किया है कि वो उनकी बढ़ती उम्मीदों के साथ खड़ा है. आज भारत दुनिया की बड़ी ताक़तों के साथ अलग-अलग नीतियों पर अमल कर रहा है. साथ ही साथ वो अपने छोटे पड़ोसी देशों को ये संकेत भी दे रहा है कि वो दूसरे देशों के साथ उनके उन संबंधों के ख़िलाफ़ नहीं है, जिससे उन्हें फ़ायदा हो रहा हो. भारत को पता है कि इस खेल का वो बड़ा खिलाड़ी है. इससे भारत के छोटे पड़ोसी देशों का ये तर्क कमज़ोर हो जाता है कि भारत उन्हें दूसरे बड़े राष्ट्रों से संबंध नहीं बनाने देता. इस विवाद को इस नज़रिए से देखा जाता है कि बड़े राष्ट्र, छोटे देशों को बाक़ी देशों से संबंध बनाने से रोकते हैं. उन्हें स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने से मना करते हैं.
भारत और इसके छोटे पड़ोसी देशों के बीच विवाद का एक विषय ये भी रहा है कि भारत इन देशों की अंदरूनी राजनीति और विदेश नीति में दखल देता है. आज अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंदिता के बावजूद भारत ने आक्रामक रुख़ नहीं अपनाया है. इसके ज़रिए भारत ये संदेश देना चाहता है कि वो अपनी तरक़्क़ी के लाभ, पड़ोसी देशों से भी साझा करना चाहता है. इसका सामरिक अर्थ ये हुआ कि भारत को अपने छोटे पड़ोसी देशों के साथ संबंध को नए सिरे से जोड़ना होगा. इसकी बुनियाद संपर्क, व्यापार और कनेक्टिवटी बनेंगे.
ऐसा लगता है कि भारत इस मामले में दक्षिण पूर्व एशिया में अपने अनुभव का फ़ायदा उठा रहा है. जैसे-जैसे इस इलाक़े में अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ी है, वैसे-वैसे भारत की रणनीतिक अहमियत बढ़ती गई है. आज भारत दक्षिणी पूर्वी एशिया में स्थायित्व और संतुलन बनाने वाली ताक़त बन कर उभरा है. आज भारत के पड़ोस में जैसी विश्व कूटनीति हो रही है, वैसे माहौल में भारत के पास मौक़ा है कि वो एक बार फिर ख़ुद को क्षेत्रीय स्थायित्व और सामरिक संतुलन बनाने वाली ताक़त के तौर पर पेश कर सके. भारत अपने आस-पास के देशों से संबंध सुधारने की बेहतर स्थिति में है. इसकी वजह भारत का भूगोल है. इसके अपने पड़ोसी देशों से पुराने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध भी इसके लिए कारगर साबित होते हैं. हाल ही में हम ने इसकी मिसाल मालदीव में देखी थी. जहां राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार ने पिछले साल नवंबर में सत्ता में आने के बाद ‘इंडिया फ़र्स्ट’ को अपनी विदेश नीति का अहम हिस्सा बनाया था.
भारत अपने आस-पास के देशों से संबंध सुधारने की बेहतर स्थिति में है. इसकी वजह भारत का भूगोल है. इसके अपने पड़ोसी देशों से पुराने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध भी इसके लिए कारगर साबित होते हैं. हाल ही में हम ने इसकी मिसाल मालदीव में देखी थी.
आज भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ जिस रणनीति पर अमल कर रहा है, उसके कारण बाहरी भी हैं और अपनी ख़ुद की ज़रूरतें भी हैं. आज क्षेत्रीय कूटनीति के तेज़ी से बढ़ते माहौल में भारत का एक सामरिक लक्ष्य ये भी है कि वो अपने पुराने संपर्कों के आधार पर छोटे पड़ोसी देशों से अपने संबंध को नए सिरे से परिभाषित करे और नए-नए क्षेत्र में संबंध भी बनाए. पिछले कुछ वर्षों में हम ने देखा है कि भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय प्रोजेक्ट के करार किए हैं. इन में दो देशों के बीच पाइपलाइन बिछाने, बिजली के आदान प्रदान, रेल और सड़क परिवहन की योजनाएं, जल परिवहन की योजनाएं, सीमा पार से व्यापार और भारतीय शहरों से पड़ोसी देशों के सरहदी शहरों बीच बस सेवाओं की शुरुआत हुई है.
भारत की अंदरूनी रणनीतिक ज़रूरत ये है कि भारत के लिए अपने कम विकसित सीमावर्ती इलाक़ों का विकास करना आवश्यक है. आज भारत के हितों का सीमा के आर-पार विस्तार हो रहा है. ऐसे में इस बात की सख़्त ज़रूरत है कि भारत अपनी सीमाओं की स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करे. क्योंकि ये वो इलाक़े हैं, जिनके माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध और बेहतर कर सकता है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक अहम तत्व ये भी है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर ऐसे प्रोजेक्ट पर काम करे, जो दोनों ही देशों के लिए फ़ायदेमंद हों. इसके लिए भारत ने जापान और एशियाई विकास बैंक जैसे बाहरी साझीदारों के साथ मिलकर सीमा के आर-पार बुनियादी ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. इससे भारत के अपने छोटे पड़ोसी देशों के संपर्क और मज़बूत होंगे.
आज अगर हम ये सोचते हैं कि चीन और अमेरिका की बढ़ती प्रतिद्वंदिता से भारत के सामरिक प्रभाव का क्षेत्र सिमट रहा है, तो ये सोच ग़लत है. क्योंकि मौजूदा विश्व कूटनीतिक माहौल में भारत के पास शानदार मौक़ा है कि वो अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर सके. इसके लिए भारत को एक उभरती वैश्विक ताक़त के तौर पर अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करना होगा. भारत को ये संकेत देना होगा कि वो अपने विकास में अपने पड़ोसी देशों को भी साझीदार बना रहा है और उन्हें विकास के पथ पर साथ लेकर चल रहा है. अपने पड़ोसी देशों के साथ नज़दीकी संबंध को नए सिरे से परिभाषित कर के, उन्हें और मज़बूत बना कर, भारत अब दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, आसियान, यूरोपीय यूनियन और दूसरे नए साझीदार भी इस काम में बना सकता है. इसके ज़रिए, भारत अपने पड़ोसी देशों को कूटनीति के नए विकल्प मुहैया करा सकेगा.
आज चीन का बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव और अमेरिका के हिंद-प्रशांत दृष्टांत भारत के आस-पास अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में होड़ लगा रहे हैं. ऐसे में भारत का अपने छोटे पड़ोसी देशों से फिर से ताल्लुक़ मज़बूत करने पर काम करना, इसी के हित में है. भारत की वैश्विक कूटनीति में ‘द फ़र्स्ट सर्किल’ यानी क्षेत्रीय संबंधों और पड़ोसी देशों को तरज़ीह देना, एक अहम तत्व बना रहेगा. तभी भारत एक व्यापक क्षेत्र में अपना प्रभाव बना सकेगा और विश्व राजनीति की दशा-दिशा तय कर सकेगा.
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K. Yhome was Senior Fellow with ORFs Neighbourhood Regional Studies Initiative. His research interests include Indias regional diplomacy regional and sub-regionalism in South and Southeast ...
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