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बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, उभरती बहुध्रुवीयता और यूरोप के भारत की ओर बढ़ते झुकाव के मद्देनजर भारत-जर्मनी संबंध नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.
यह कोई छिपी हुई बात नहीं कि जर्मनी के साथ भारत के रिश्ते अन्य यूरोपीय देशों, जैसे- फ्रांस के मुकाबले पीछे रह गए. जर्मनी का चीन को ज्यादा तवज्जो देना भी इसकी एक वजह है. लेकिन यह स्थिति तेजी से बदल रही है. दिलचस्प संयोग कहिए कि चांसलर ओलाफ शोल्ज की पहली भारत यात्रा तभी हुई, जब यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा हो रहा था. यूक्रेन पर रूसी हमला इस लिहाज से भी ऐतिहासिक है कि यह जर्मनी की सुरक्षा नीति में बदलाव का कारण बना. इसी बदलाव की वजह से जर्मनी ने सामरिक मामलों को लेकर दशकों से चली आ रही उदासीनता छोड़ने का फैसला किया. इसकी तस्दीक अपना रक्षा खर्च बढ़ाकर जीडीपी के 2 फीसदी करने के जर्मनी के इरादे से भी होती है.
रूस और चीन के साथ रिश्तों में बढ़ती अनिश्चितता के कारण पूरे यूरोप में समान विचार वाले देशों के साथ मूल्य आधारित साझेदारी कायम करने का आग्रह बढ़ रहा है, जिससे जर्मनी और भारत के करीब आने के मौके भी बने हैं.
यूक्रेन युद्ध और चीन के आक्रामक रुख ने व्यापार के जरिए बदलाव लाने के जर्मनी के नजरिए को सवालों के घेरे में ला दिया, जिससे वहां ऊर्जा और व्यापार के मामले में निर्भरता कम करने पर गंभीर पुनर्विचार शुरू हो गया. रूस और चीन के साथ रिश्तों में बढ़ती अनिश्चितता के कारण पूरे यूरोप में समान विचार वाले देशों के साथ मूल्य आधारित साझेदारी कायम करने का आग्रह बढ़ रहा है, जिससे जर्मनी और भारत के करीब आने के मौके भी बने हैं.
बैठकों में जिन मुद्दों पर बात हुई, उनमें मिलिट्री हार्डवेयर का मिलजुलकर विकास और तकनीकी हस्तांतरण के अलावा 5.2 अरब डॉलर का वह समझौता शामिल है, जिसके मुताबिक जर्मनी भारत में संयुक्त रूप से छह पारंपरिक पनडुब्बी का निर्माण करने वाला है. यही नहीं, 2024 में फ्रांस, भारत और जर्मनी मिलकर पहला सैन्याभ्यास भी करेंगे
अब चूंकि भारत भी रूस पर सैन्य निर्भरता घटाने की सोच रहा है और जर्मनी भी अपनी हथियार निर्यात नीति पर पुनर्विचार कर रहा है, तो जर्मनी, भारत का अहम डिफेंस पार्टनर बन सकता है. बैठकों में जिन मुद्दों पर बात हुई, उनमें मिलिट्री हार्डवेयर का मिलजुलकर विकास और तकनीकी हस्तांतरण के अलावा 5.2 अरब डॉलर का वह समझौता शामिल है, जिसके मुताबिक जर्मनी भारत में संयुक्त रूप से छह पारंपरिक पनडुब्बी का निर्माण करने वाला है. यही नहीं, 2024 में फ्रांस, भारत और जर्मनी मिलकर पहला सैन्याभ्यास भी करेंगे. फिर भी जरूरी है कि दोनों देश अपनी अपेक्षाओं को जमीनी हकीकतों से जोड़कर रखें.
जर्मनी यूरोपियन यूनियन में भारत का सबसे बड़ा पार्टनर है. इस लिहाज से भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत की दोबारा शुरुआत से जो अजेंडा उभरा है, उसमें स्वाभाविक ही व्यापार केंद्र में है. पिछले साल ग्रीन एंड सस्टेनेबल डिवेलपमेंट पार्टनरशिप और ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में सहयोग की शुरुआत से क्लीन एनर्जी और ग्रीन टेक्नॉलजी में सहयोग, इस पार्टनरशिप के मुख्य स्तंभ के रूप में सामने आया है. जर्मनी में स्किल्ड मैनपावर की कमी के मद्देनजर मोबिलिटी और माइग्रेशन का मुद्दा भी फोकस में है. इस बिंदु पर टेक्निकली स्किल्ड इंडियंस उसके लिए खासे उपयोगी साबित हो सकते हैं.
जर्मनी में स्किल्ड मैनपावर की कमी के मद्देनजर मोबिलिटी और माइग्रेशन का मुद्दा भी फोकस में है. इस बिंदु पर टेक्निकली स्किल्ड इंडियंस उसके लिए खासे उपयोगी साबित हो सकते हैं.
यह देखना सुखद है कि आर्थिक साझेदारी की उलझनों तक सीमित रहने के बजाय भारत और जर्मनी का रिश्ता धीरे-धीरे व्यापक साझेदारी के रूप में उभरा है. बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, उभरती बहुध्रुवीयता और यूरोप के भारत की ओर बढ़ते झुकाव के मद्देनजर भारत-जर्मनी संबंध नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.
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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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