Author : Amrita Narlikar

Published on Aug 11, 2020 Updated 0 Hours ago

ज़्यादातर गठबंधनों के बारे में, और ख़ासतौर से विकासशील देशों की सदस्यता वाले गठबंधनों के बारे में अक्सर क़यामत की चेतावनी देने वाले यही कहते हैं कि ऐसे संगठन अपनी उम्र नहीं पूरी कर पाएंगे. ब्रिक्स भी लंबे समय से ऐसी ही आशंकाओं का निशाना बनता रहा है.

महामारी के दौरान ब्रिक्स की राजनीति: कैसे करें दोस्त और दुश्मन की पहचान?

फोटो कैप्शन-7 जुलाई 2015 को रूस के उफा में हुए ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान इंटरनेशनल मीडिया सेंटर में मौजूद पत्रकार.

कॉपीराइट-रिया नोवोस्ती/गेटी

बहुत पुरानी कहावत है- मुश्किल वक़्त में काम आने वाला ही असली दोस्त होता है. संकट के दौरान ही वास्तविक मित्र की पहचान होती है. इस लेख में मैं इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करूंगी- नए कोरोना वायरस की मौजूदा महामारी के दौरान एक राजनीतिक संगठन के तौर पर ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन औऱ दक्षिण अफ्रीका) की कितनी अहमियत है और ये कितना मज़बूत गठबंधन है?[i] इस संकट के समय सदस्य देशों के लिए ब्रिक्स संगठन कितना कारगर हुआ है? यही उसकी सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है. इसके सभी सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं अपने आप में विकास की कुछ अनूठी चुनौतियों का सामना करती हैं. ऐसे में भरोसेमंद साझेदार देश होने से इन देशों को संकट के दौर में मूल्यवान संसाधनों (जैसे कि दवाएं, इलाज के उपकरण, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी, तकनीक और एक दूसरे के अनुभवों से सीखना) की उपलब्धता सुनिश्चित करने में काफ़ी मदद मिलती है. इसके साथ साथ ये बात भी महत्वपूर्ण है कि ब्रिक्स के सदस्य देश अपने दायरे से बाहर कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं. अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और छोटे व बड़े खिलाड़ियों के ऊपर उनका कितना असर होता है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि वो आपसी तालमेल की मदद से मिलकर विश्व के सामने एक सामूहिक मोर्चा प्रस्तुत कर पाते हैं अथवा नहीं. वहीं, अगर ब्रिक्स देशों के बीच आपसी मतभेदों की दरारें चौड़ी होती हैं, तो इससे नए सहयोगी और गठबंधन के साझेदारों के लिए अवसरों के द्वार भी खुलते हैं.

ये लेख तीन भागों में विभाजित है. पहले भाग में मैं उन क़दमों का उल्लेख करूंगी जिन्हें ब्रिक्स ने एक संगठन के तौर पर उठाए हैं, ताकि वो ये संकेत दे सकें कि सभी सदस्य देश मिलकर कार्य करने और सहयोग के लिए तत्पर हैं. दूसरे भाग में मैं ब्रिक्स देशों के इन संकेतों की सीमाओं के बारे में चर्चा करूंगी और साथ ही ये भी बताऊंगी कि किस तरह ब्रिक्स देशों के बीच अंदरूनी तौर पर ध्रुवीकरण हो रहा है. और तीसरे भाग में इन दोनों भागों की परिचर्चा के आधार पर कुछ निष्कर्ष और नीतिगत सुझाव होंगे.

वर्ष 2011 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद ब्रिक (BRIC) बढ़कर ब्रिक्स (BRICS) में तब्दील हो गया. ब्रिक्स देशों द्वारा आपसी सहयोग के कई क़दम उठाए गए. जैसे कि एक नए विकास बैंक की स्थापना. इससे कई विशेषज्ञों को ये लगा कि ब्रिक्स में एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय संगठन के तौर पर उभरने की काफ़ी संभावनाएं हैं, जिससे ये संगठन मौजूदा विश्व व्यवस्था के समानातंर एक बहुपक्षीय संगठन के तौर पर खड़ा हो सकेगा

महामारी के दौरान ब्रिक्स की मज़बूत दीवार बनी?

ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन (BRIC) के एक साथ मिलकर एक संगठन बनाने और काम करने की प्रक्रिया 2001 में वित्तीय संगठन गोल्डमैन सैक्स के जिम ओ नील के एक अध्ययन से शुरू हुई थी.[ii] गोल्डमैन के इस अध्ययन को लेकर उस समय चारों ही देशों ने अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया दी थी. रूस बेहद ख़ुश हुआ था, तो चीन हैरान था. ब्राज़ील को इस प्रस्ताव पर आशंकाएं थीं तो भारत को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता दिखा.[iii]  लेकिन, इसके कुछ ही वर्षों के भीतर इन सभी देशों ने आपस में मिलकर काम करने का फ़ैसला कर लिया था. ब्रिक (BRIC) देशों के नेता पहली बार वर्ष 2008 में जापान के होक्कैडो शहर में हुए G-8 शिखर सम्मेलन में मेहमान के तौर पर मिले थे. 2009 में रूस के येकाटेरिनबर्ग में इन देशों के नेताओं का पहला आधिकारिक सम्मेलन हुआ था. उसके बाद से इन सभी देशों के नेता नियमित रूप से मिलते रहे हैं. इन मुलाक़ातों में कई मंत्री शामिल होते रहे हैं. ब्रिक के देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग के आधिकारिक रास्ते तलाश लिए हैं. जैसे कि टैक्स और राजस्व, भ्रष्टाचार निरोध, सुरक्षा. इसके अलावा, ब्रिक्स के देश आपसी सहयोग के लिए अपने अपने समाज के कई अन्य तबक़ों के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं, जैसे कि अकादेमिक और कारोबारी. वर्ष 2011 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद ब्रिक (BRIC) बढ़कर ब्रिक्स (BRICS) में तब्दील हो गया. ब्रिक्स देशों द्वारा आपसी सहयोग के कई क़दम उठाए गए. जैसे कि एक नए विकास बैंक की स्थापना. इससे कई विशेषज्ञों को ये लगा कि ब्रिक्स में एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय संगठन के तौर पर उभरने की काफ़ी संभावनाएं हैं, जिससे ये संगठन मौजूदा विश्व व्यवस्था के समानातंर एक बहुपक्षीय संगठन के तौर पर खड़ा हो सकेगा.[iv]

जब कोरोना वायरस से महामारी का संकट उत्पन्न हुआ तो ब्रिक्स देशों ने भी इस पर त्वरित प्रतिक्रिया दी. 11 फ़रवरी को ब्रिक्स के शेरपाओं/उप शेरपाओं की बैठक में, रूस की अध्यक्षता वाले ब्रिक्स ने बयान जारी किया और कहा कि, ‘ब्रिक्स देश चीन के साथ नज़दीकी से सहयोग के लिए तैयार हैं.’ ब्रिक्स देशों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, ‘इस महामारी से निपटने के अति उत्साह में किसी के साथ भेदभाव करने, या उन्हें इस महामारी के लिए दोषी ठहराने से बचना भी बेहद महत्वपूर्ण है’. इसके अतिरिक्त, ब्रिक्स ने इस बयान में ये भी कहा कि संक्रामक बीमारियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैज्ञानिक सहयोग को और मज़बूत किया जाना चाहिए.[v]

19 मार्च 2010 को ब्रिक्स के नए विकास बैंक ने चीन को कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए 7 अरब रेनमिन्बी के आपातकालीन क़र्ज़ को भी मंज़ूरी दी. इस लोन का प्रमुख मक़सद चीन के तीन सबसे अधिक कोरोना प्रभावित राज्यों, हूबे, गुआंगडॉन्ग और हेनान तक मदद पहुंचाना था. इस क़र्ज़ के लिए विकास बैंक के सामने चीन ने मंज़ूरी देने का प्रस्ताव रखा था. और इसे रिकॉर्ड एक महीने के भीतर सहमति दे दी गई.[vi]

जैसे-जैसे कोरोना वायरस की महामारी फैलती गई, और इसके कारण लोगों की जान जाने लगी, अर्थव्यवस्था को नुक़सान होने लगा, तो ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्री 28 अप्रैल को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मिले. इस बैठक में सदस्य देशों ने बहुपक्षीय सहयोग की महत्ता पर ज़ोर दिया और इसे लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इसके साथ साथ पांचों देशों के विदेश मंत्री इस बात पर भी सहमत हुए कि आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने के लिए 15 अरब डॉलर के क़र्ज़ की व्यवस्था की जाए.[vii]

ये सभी क़दम ये इशारा करते हैं कि ब्रिक्स के सदस्य देश कोरोना वायरस की महामारी के दौरान एकजुट होकर खड़े रहे. लेकिन, अब इस ऊपरी तौर पर दिख रही एकता की बारीक़ी से समीक्षा की ज़रूरत है.

ब्रिक्स के मोर्चे के पीछे, विभाजन की रेखा खिंच रही है?

ज़्यादातर गठबंधनों के बारे में, और ख़ासतौर से विकासशील देशों की सदस्यता वाले गठबंधनों के बारे में अक्सर क़यामत की चेतावनी देने वाले यही कहते हैं कि ऐसे संगठन अपनी उम्र नहीं पूरी कर पाएंगे. ब्रिक्स भी लंबे समय से ऐसी ही आशंकाओं का निशाना बनता रहा है. इसकी बड़ी वजह ये है कि ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच काफ़ी असमानताएं हैं. इसके कारण एकदम स्पष्ट हैं. इस संगठन में एक ओर तानाशाही व्यवस्था वाले रूस और चीन जैसे देश हैं. तो, दूसरी तरफ़ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं वाले भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य हैं. अलग-अलग महाद्वीपों में आबाद इन देशों की सामाजिक संरचना भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. इनके संसाधन, विकास का सफर और ऐतिहासिक परंपराओं के बीच भी कोई मेल नहीं दिखता है. कोविड-19 की महामारी ने ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच पहले से मौजूद अंदरूनी विभेदों को उजागर कर दिया है. और, ये विभिन्नताएं अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से दिखती हैं. मगर, इनमें से सबसे अलग विभिन्नता ये है कि ब्रिक्स के बाक़ी देश, इसके सबसे बड़े सदस्य चीन से कई मामलों में बिल्कुल जुदा हैं. और मैं इन विभिन्नताओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित कर रही हूं.

ज़्यादातर गठबंधनों के बारे में, और ख़ासतौर से विकासशील देशों की सदस्यता वाले गठबंधनों के बारे में अक्सर क़यामत की चेतावनी देने वाले यही कहते हैं कि ऐसे संगठन अपनी उम्र नहीं पूरी कर पाएंगे. ब्रिक्स भी लंबे समय से ऐसी ही आशंकाओं का निशाना बनता रहा है.

अगर हम ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग की बात करें, तो सबसे अच्छा सहयोग रूस और चीन के बीच दिख रहा है. मिसाल के तौर पर अप्रैल में विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव ने कहा कि, ‘जब हम चीन के साथ सहयोग की बात करते हैं, तो हम तथ्यों के साथ ये बात रखते हैं. और ऐसे बहुत से तथ्य हैं. हम उन्हें किसी से छुपा नहीं रहे हैं. इनमें विशेष तरह की मदद भी शामिल है: चीन ने हमें मानवीय ज़रूरतों के सामान की आपूर्ति की. दवाएं और टेस्टिंग किट भेजी. महामारी फैलते ही मेडिकल विशेषज्ञों और स्वास्थ्य कर्मियों को भेजा. हम आपस में लगातार सलाह मशविरा करते रहे हैं और हमने आपसी सहयोग के कई अन्य क़दम भी उठाए हैं.’[viii] लेकिन, रूस और चीन के बीच इस क़रीबी संबंध में भी महामारी के दौरान दरार पड़ती देखी गई. उदाहरण के लिए, रूस उन शुरुआती देशों में शामिल था, जिन्होंने सबसे पहले चीन के साथ अपनी सीमाएं सील की थीं.[ix]

वहीं, ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों के साथ चीन का द्विपक्षीय सहयोग और भी मुश्किल में पड़ता दिख रहा है. जहां तक ब्राज़ील और चीन की बात है, तो जैसे ही नए कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा, तो दोनों ही देशों ने एक दूसरे का नाम ले लेकर इल्ज़ाम लगाने शुरू कर दिए.[x] अन्य अफ्रीकी देशों की ही तरह, दक्षिण अफ्रीका ने भी चीन पर ये आरोप लगाया है कि चीन में उसके नागरिकों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया गया.[xi] लेकिन, महामारी के दौरान ब्रिक्स देशों के बीच सबसे ख़राब द्विपक्षीय संबंध शायद चीन और भारत के द्विपक्षीय संबंध दिखे हैं. एक समय चीन और भारत के दोस्ताना ताल्लुक़ात की इतनी तारीफ़ होती थी. लेकिन, आज दोनों देश सीमा पर संघर्ष कर रहे हैं. इसकी शुरुआत, 2017 में दोनों देशों के बीच डोकलाम में तनातनी के साथ ही हो गई थी. तभी ये लग गया था कि ब्रिक्स हो या न हो, दोनों देशों के संबंध ऐसे तनावपूर्ण ही रहने हैं. हाल ही में भारत ने दो ऐसे क़दम उठाए हैं, जिन्होंने चीन के साथ उसके पहले से ही ख़राब चल रहे संबंधों को और बिगाड़ दिया है. भारत ने कोविड-19 महामारी का फ़ायदा उठाकर चीन को अपने यहां की कंपनियों पर चीन के आधिपत्य जमाने से रोकने के लिए, पड़ोसी देशों से अपने यहां आने वाले विदेशी निवेश को लेकर नए और सख़्त प्रतिबंध लगा दिए.[xii] माना जा रहा है भारत में विदेशी निवेश से जुड़े इन नए नियमों का निशाना चीन ही है. क्योंकि, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले विदेशी निवेश को लेकर भारत में ये नियम तो पहले से ही लागू थे. भारत ने दूसरा बड़ा क़दम ये उठाया कि उसने कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट के चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा दिए. भारत का कहना था कि चीन से आ रही टेस्टिंग किट में काफ़ी गड़बड़ियां थीं और इनके सही होने की संभावना केवल 5 प्रतिशत थी. चीन के प्रवक्ता ने भारत के इस क़दम को, ‘भेदभाव से भरा और ग़ैर ज़िम्मेदाराना बताया था.’

हाल ही में भारत ने दो ऐसे क़दम उठाए हैं, जिन्होंने चीन के साथ उसके पहले से ही ख़राब चल रहे संबंधों को और बिगाड़ दिया है. भारत ने कोविड-19 महामारी का फ़ायदा उठाकर चीन को अपने यहां की कंपनियों पर चीन के आधिपत्य जमाने से रोकने के लिए, पड़ोसी देशों से अपने यहां आने वाले विदेशी निवेश को लेकर नए और सख़्त प्रतिबंध लगा दिए

इन सभी बातों को एक साथ मिलाकर देखें, तो ये केवल कूटनीतिक टकराव भर नहीं हैं. ये चीन की क्षेत्रीय और वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को लेकर तमाम देशों में बढ़ रही आशंकाओ के संकेत हैं. चीन की महत्वाकांक्षा कितनी बड़ी है, इसके संकेत हम उसके बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव में देख सकते हैं. इसके अलावा, हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी मोतियों की माला (String of Pearls) नीति, अपने आस पास के समुद्री क्षेत्र में आक्रामकता, पिछले कुछ महीनों के दौरान भारत के साथ लगने वाली सीमा पर तनातनी और ब्रिटेन से हस्तांतरण के समय चीन द्वारा हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए दिए गए वचन का मज़ाक बनाने वाले नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून जैसे क़दम, चीन की क्षेत्रीय और वैश्विक महत्वाकांक्षा को साफ़तौर पर प्रस्तुत करते हैं.[xiii]  इन सबसे ऊपर इस महामारी के दौरान बहुत से देशों को ये बात अच्छी तरह से समझ में आ गई है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और ज़रूरी स्वास्थ्य उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला को कई देश अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे में चीन ने कोरोना वायरस के नाम पर जो अपना कूटनीतिक जाल बिछाया है, उसके बावजूद चीन पर निर्भरता को लेकर बहुत से देश फ़िक्रमंद हो गए हैं. इसी वजह से आने वाले समय में ब्रिक्स देशों के अंदरूनी मतभेद और गहराने की आशंका है.[xiv]

निष्कर्ष

कोविड-19 महामारी ने ब्रिक्स के एक समूह करने की क्षमता पर बहुत बुरा असर डाला है. इसने सदस्य देशों के बीच पुरानी दरारों न सिर्फ़ उजागर किया है बल्कि उन्हें और चौड़ा कर दिया है. ब्रिक्स के अंदर ही अंदर एक अलग तरह की गोलबंदी होती दिख रही है. उदाहऱण के लिए, अन्य देशों की तुलना में रूस और चीन के बीच नज़दीकी बढ़ रही है. ख़ासतौर से तब जब, चीन ब्रिक्स के बाहर के देशों से उलझ रहा है. वहीं ब्राज़ील और भारत के बीच नज़दीकी बढ़ती दिख रही है. इसकी मिसाल के तौर पर भारत द्वारा ब्राज़ील को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और पैरासीटामॉल के निर्यात को देख सकते हैं. जिसके बाद ब्राज़ील ने भारतीय परंपराओं का हवाला देते हुए भारत के प्रति कृतज्ञा जताई थी. आख़िर ब्रिक्स के बीच इन मतभेदों और गोलबंदी का ख़ुद इस संगठन और बाक़ी दुनिया के लिए क्या अर्थ निकलता है?

पहली बात तो ये है कि ब्रिक्स अब अपने सदस्य देशों के बीच वार्ता के लिए मंच का काम कर पाने में असफल होता दिख रहा है. क्योंकि, सदस्य देशों के हित बिल्कुल अलग-अलग दिख रहे हैं. महामारी के कारण हर देश के हित में ये फ़र्क़ बिल्कुल साफ़ तौर पर दिखने लगा है. भले ही अभी भी ब्रिक्स के सदस्य देश बहुपक्षीय संगठनों की महत्ता का गुणगान करते हों, मगर ये दिखावे के सिवा कुछ नहीं. हक़ीक़त ये है कि किसी एक देश पर सामानों की आपूर्ति के लिए निर्भरता का अर्थ यही निकल रहा है कि वो देश इसे दूसरों के ख़िलाफ़ हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है. और अगर दो प्रतिद्वंदी देशों के बीच आपसी निर्भरता है, तो ये जोखिम और बढ़ जाता है. चीन और भारत के द्विपक्षीय संबंध कई दशकों से मुक़ाबले और दुश्मनी वाले रहे हैं. अगर हम इसमें हाल के कुछ हफ़्तों के दौरान, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका द्वारा चीन के प्रति नाराज़गी जताने को भी जोड़ लें, तो साफ़ है कि ब्रिक्स संगठन के सदस्य देशों के बीच अब एकजुटता नहीं बची है. अब ये संगठन एक नई और समानांतर विश्व व्यवस्था का मंच बनने के लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ रहा है. यहां तक कि अब इस में मौजूदा विश्व व्यवस्था में सुधार ला पाने की भी क्षमता नहीं बची है. लेकिन, इसका ये अर्थ भी नहीं है कि ब्रिक्स संगठन का विघटन हो जाएगा. हालांकि, इसका ये अर्थ ज़रूर है कि विश्व व्यवस्था में ब्रिक्स का जो सीमित प्रभाव था, वो अब और भी संकुचित हो जाएगा.

और दूसरी बात ये है कि अब तक केवल अमेरिका और चीन के बीच ही अलगाव की चर्चा हो रही है. लेकिन, इस महामारी के कारण अन्य देशों के बीच की जो दरारें उजागर हुई हैं, उनमें ब्रिक्स के सदस्य देशों के मतभेद भी शामिल हैं. अब साफ़ है कि ब्रिक्स के कई देश चीन और अमेरिका के बीच नए शीत युद्ध से बचने के अधिक इच्छुक हैं. उदाहरण के लिए भारत और दक्षिण अफ्रीका आपस में सहयोग बढ़ाना चाहते हैं. यूरोपीय संघ अपने जैसी विचारधारा वाले देशों के साथ नज़दीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में ब्रिक्स के कुछ सदस्य देश मिलकर बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधार के लिए काम कर सकते हैं. भूमंडलीकरण को लेकर नए सिरे से मोल-भाव कर सकते हैं. और आपस में मिलकर, उदारवादी विश्व व्यवस्था में नई जान डालने की कोशिश कर सकते हैं.


[i] As such, my focus is fundamentally different from the plethora of writings on how the pandemic will affect the growth prospects of the emerging markets. For a useful analysis of the economic consequences, see Adam Tooze, ‘The Coronavirus is the biggest emerging markets crisis ever,’ Foreign Policy, 28 March 2020.

[ii] Jim O’Neill, Building Better Global Economic BRICs, Goldman Sachs Global Economics, Paper No. 66, 30 November 2001.

[iii] Gillian Tett, ‘The Story of the BRICs,’ Financial Times, 15 January 2010.

[iv] Oliver Stuenkel, ‘Post-Western World and the Rise of a Parallel Order’. The Diplomat, 26 September 2016.

[v] Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, ‘Russian BRICS Chairmanship Statement on the Novel Coronavirus Pneumonia Epidemic Outbreak in China’. issued on February 11, 2020 at the 1st Meeting of BRICS Sherpas/Sous-Sherpas in St.Petersburg.

[vi] The NDB’s website proudly highlights this achievement: “The Program is NDB’s first emergency assistance program in response to an outbreak in its member countries. The preparation and processing time from the request to NDB by the Chinese Government to the approval of the Program by NDB’s Board is about a month, which is a new record for NDB’s loan preparation and processing time with efficiency and quality, in efforts to ensure the timeliness of the Program and to accommodate the urgency of the outbreak”.

[vii] Maha Siddiqui, CNN News-18, ‘BRICS Nations Propose $15 Billion Loan Instrument to Rebuild Coronavirus-hit Global Economy’, 28 April 2020.

[viii] Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, ‘Foreign Minister Sergey Lavrov’s statement and answers to media questions at a news conference following an extraordinary meeting of the BRICS Ministers of Foreign Affairs/International Relations’, Moscow, April 28, 2020.

[ix] Alexander Gabuev, ‘The Pandemic could tighten China’s grip on Eurasia,’ Foreign Policy, 23 April 2020.

[x] Bryan Harris and Andres Schipani, ‘Brazil-China ties strained by social media war over coronavirus,’ Financial Times, 21 April 2020.

[xi] Simon Marks, ‘Coronavirus ends China’s honeymoon in Africa’, Politico, 17 April 2020.

[xii] Ministry of Commerce & Industry, India, Review of Foreign Direct Investment (FDI) policy for curbing opportunistic takeovers/acquisitions of Indian companies due to the current COVID-19 pandemic: Press Note No. 3 (2020 Series), Department for Promotion of Industry and Internal Trade FDI Policy Section, 17 April 2020.

[xiii] Benjamin Parkin, ‘India moves to curb Chinese takeovers,’ Financial Times, 18 April 2020.

[xiv] Ameya Pratap Singh and Urvi Tembey, ‘The Logic behind India’s new Investment Policy’, The Diplomat, 22 April 2020.

[xv] BBC, ‘India cancels supply of “faulty” China rapid test kits,’ 28 April 2020.

[xvi] Amrita Narlikar, ‘Regional Powers’ Rise and Impact on International Conflict and Negotiation: China and India as Global and Regional Players,’ Global Policy, 10 (2), May 2019.

[xvii] Henry Farrell and Abraham Newman, ‘Weaponized Interdependence: How Global Economic Networks shape State Coercion,’ International Security, Vol. 44, No. 1 (Summer 2019), pp. 42-79.

[xviii] Charles Dunst, ‘Beijing’s Propaganda is finding few takers,’ Foreign Policy, 20 April 2020.

[xix] Revathi Krishnan, ‘Like Hanuman got medicine: Brazil’s Bolsonaro invokes Ramayana in Covid-19 letter to Modi The Print, 8 April 2020.

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