Published on Dec 31, 2020 Updated 0 Hours ago

यूरोपीय संघ यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ऐसा ना हो कि यूके यूरोपीय संघ से बाहर निकलकर भी एक सदस्य की तरह तमाम फ़ायदे लेता रहे मगर नौकरशाही से जुड़ी चुनौतियों से कन्नी काट ले.

ब्रेक्जिट से उपजी उदासी: ईयू-यूके व्यापार वार्ताओं का संचालन

इस साल की शुरुआत में यूनाइटेड किंगडम यूरोपीय संघ से आधिकारिक तौर पर अलग हो गया. इसके बाद से ही दोनों के भावी संबंधों- ख़ासतौर से व्यापारिक रिश्तों के भविष्य को लेकर चल रही वार्ताओं का मुद्दा राजनीतिक बहसों में छाया है. 11 महीनों के इस संक्रमण काल  में जिन मुख्य मुद्दों पर चर्चा होनी है उनमें मछली पालन से जुड़े व्यवसाय तक पहुंच, व्यापार के लिए एक समान अवसरों और उत्तरी आयरलैंड में शांति प्रक्रिया जैसे मुद्दे अहम हैं. इन्हीं मुद्दों पर अतीत में गतिरोध के हालात रहे हैं. यूके की नज़र में यूरोपीय संघ का रवैया ढीठ और ज़िद्दी है जबकि यूरोपीय संघ की नज़र में यूके बिना तैयारी के और कहीं न कहीं अविश्वसनीय प्रतीत होता है. बहरहाल, कोविड-19 महामारी ने दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचाया है और ऐसे में समन्वय और सहयोग की महत्ता बढ़ गई है.

वार्ता के मुख्य मुद्दे और पेच

यूरोपीय संघ हमेशा से सभी सदस्यों के लिए व्यापार के समान अवसरों की अपनी मुख्य मांग पर टिका रहा है. उसका कहना है कि व्यापार के मामलों में सबको समान अधिकार मिलने चाहिए और नियम-क़ायदे सबके लिए एक जैसे होने चाहिए. सदस्य देशों की सरकारों को इसमें किसी भी तरह की एकतरफ़ा मदद पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रतिस्पर्धी बाज़ार में किसी भी एक पक्ष को अनुचित लाभ हासिल नहीं हो सके. मगर यूके इस तरह की किसी भी शर्त से खुद को आज़ाद रखना चाहता है. ब्रेक्जिट व्यापार वार्ताओं के दौरान हमेशा से यही मुद्दा छाया रहा है. व्यापार के संदर्भ में एक लचीला और सबके फ़ायदे वाला रिश्ता कायम करने की बातें अबतक हवा हवाई ही साबित हुई हैं. विवाद का एक और मुद्दा मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर है. यूके यूरोपीय बाज़ार में अपनी मछली बेचना चाहता है जबकि यूरोपीय संघ यूके की समुद्री सीमा के भीतर मछली पकड़ने का अधिकार चाहता है. मौजूदा हालात में दोनों ही बातें संभव नहीं जान पड़ती क्योंकि यूके अब यूरोपीय संघ से आज़ाद है और इस नाते अपने तट पर और अपनी समुद्री सीमा पर उसका स्वतंत्र कब्ज़ा है.

व्यापार के संदर्भ में एक लचीला और सबके फ़ायदे वाला रिश्ता कायम करने की बातें अबतक हवा हवाई ही साबित हुई हैं.

‘आयरलैंड के सवाल’ ने वार्ताओं को और पेचीदा बना दिया है. ब्रेक्जिट के परिणामस्वरूप उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य के बीच की 310 मील की सीमा ही यूके और यूरोपीय संघ के बीच की इकलौती ज़मीनी सीमा रह गई है. ये हालात ख़ासतौर से यूके के लिए सिरदर्द का कारण हैं. ऐसे में मौजूदा परिस्थिति में यूके के पास दो ही विकल्प रह गए हैं. पहला, ये कि ग्रेट ब्रिटेन में सीमा पर चौकियां बनाई जाएं लेकिन ऐसा करने पर चाहे-अनचाहे यूके और उत्तरी आयरलैंड के बीच अनौपचारिक सरहद खड़ी हो जाएगी. दूसरा विकल्प ये है कि उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य के बीच सरहद बनाई जाए. लेकिन ये दूसरा विकल्प गुड फ्राइडे समझौते के खिलाफ होगा. यह समझौता उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य के बीच शांति कायम करने के मकसद से दोनों हिस्सों में बेरोकटोक यातायात का अधिकार देता है. ज़ाहिर है कि ये दोनों ही विकल्प आदर्श नहीं हैं. इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती ये है कि यूके उस निकास समझौते को किस तरह अमल में लाए जो उसने यूरोपीय संघ के साथ किया है. इस समझौते के तहत यूके ग्रेट ब्रिटेन में सीमा चौकियों के निर्माण के लिए रज़ामंद हुआ ताकि आयरिश शांति प्रक्रिया पर कोई असर न पड़े. साफ शब्दों में इसका मतलब ये है कि यूके ईयू के कस्टम यूनियन से अलग हो जाएगा लेकिन उत्तरी आयरलैंड के बंदरगाहों पर कृषि उत्पादों समेत दूसरी वस्तुओं के व्यापार के लिए ईयू के कस्टम कोड लागू रहेंगे. इस तरह उत्तरी आयरलैंड को यूके और ईयू, दोनों के बाज़ारों का लाभ मिल सकेगा.

यहां यह संभावना भी है कि यूके और उत्तरी आयरलैंड के बीच कोई अनौपचारिक सीमा बन जाए. हालांकि कई लोगों की चिंता है कि अगर ऐसा होता है तो इलाके में अलगाववादी स्वर फिर उभरने लगेंगे. इससे आगे की बात करें तो हाल ही में प्रकाशित आंतरिक बाज़ार विधेयक में उत्तरी आयरलैंड और यूके के बाकी हिस्सों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के मुक्त प्रवाह की सुविधा दिए जाने की बात है. इस तरीके से व्यापार समझौते पर सहमति न बन पाने की सूरत में भी  उत्तरी आयरलैंड का बाज़ार ग्रेट ब्रिटन से जुड़ा रहेगा. साथ ही यूके के मंत्रियों को निकास समझौते को ‘चुनिंदा तरीके से मगर एक हद तक’ अपने हिसाब से ढालने में मदद मिल जाएगी. हालांकि इस तरह की किसी भी व्यवस्था पर यूके के अंदर और ईयू में कई सवाल खड़े किए गए हैं. यूके की विश्वसनीयता और भविष्य में होने वाले किसी भी व्यापार समझौते को ठीक से लागू किए जाने को लेकर प्रश्नचिन्ह लगाए गए हैं. आयरलैंड ने भी इस विधेयक से पैदा हुए खतरों के बरकरार रहते किसी भी सौदे के लिए होने वाली वार्ताओं को रोकने की चेतावनी दे डाली है.

तरजीह और परंपरा के हिसाब से कहें तो यूनाइटेड किंगडम के पास मोटे तौर पर चुनने को दो ही विकल्प मौजूद हैं- या तो वो नॉर्वे का मॉडल चुने या कनाडा का. हालांकि दोनों ही मॉडल आदर्श नहीं हैं.

यूके और उत्तरी आयरलैंड के बीच एक अनौपचारिक सरहद बनने की भी संभावना है.

इन गहरी चुनौतियों के साथ-साथ एक समस्या ये भी है कि अब आगे यूके और ईयू के बीच के संबंधों की परिभाषा क्या हो. यूं तो यूनाइडेट किंगडम हमेशा से यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते का इच्छुक रहा है लेकिन इसके साथ ही वह नीति-निर्माण के मामलों में अपनी स्वायत्तता बरकरार रखते हुए ही ऐसे किसी समझौते का पक्षधर रहा है. ऐसे में उसकी सोच यूरोपीय संघ के साथ आंशिक एकीकरण की ही रही है. साथ रहकर भी अलग रहने की उसकी इस इच्छा के चलते यूरोपीय संघ में यूनाइटेड किंगडम का स्थान व्यापार की चाहत रखने वाले किसी आम तीसरे देश की तरह का ही रहा है. तरजीह और परंपरा के हिसाब से कहें तो यूनाइटेड किंगडम के पास मोटे तौर पर चुनने को दो ही विकल्प मौजूद हैं- या तो वो नॉर्वे का मॉडल चुने या कनाडा का. हालांकि दोनों ही मॉडल आदर्श नहीं हैं. नॉर्वे का मॉडल वैसे तो यूके को यूरोपीय संघ के बाज़ार में पूरी पहुंच देगा लेकिन इसके लिए उसे निर्णय लेने के अपने अधिकार से हाथ धोना पड़ेगा. और तो और इस मॉडल के तहत यूके को यूरोपीय संघ के संस्थानों द्वारा बनाए गए आम नियम-क़ानूनों का भी पालन करना होगा. दूसरी ओर कनाडा का मॉडल है जो मुक्त व्यापार समझौते (ईयू- कनाडा समग्र आर्थिक और व्यापार समझौता, सीईटीए) के एक तय मानक पर आधारित है. इसके दायरे में व्यापार तो आता है लेकिन वित्तीय सेवा क्षेत्र को लगभग इसमें नज़रअंदाज़ किया गया है. इस मॉडल को लागू करने पर यूके को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि सेवा क्षेत्र का यहां की अर्थव्यवस्था में करीब 80 प्रतिशत हिस्सा है. यूके के लिए आदर्श स्थिति ये होगी कि वो कनाडा मॉडल को ही थोड़े-बहुत सुधार के साथ अपनाए. इसके तहत पहले से तय शर्तों के साथ बिना ज़्यादा रुकावटों के नॉर्वे-मॉडल जैसा बाज़ार अधिकार हासिल करने पर ज़ोर दिया जा सकता है. लेकिन यूरोपीय संघ मौजूदा नियम-क़ानूनों के पार जाकर किसी स्वनिर्धारित सौदे पर अपनी रज़ामंदी नहीं देना चाहता. दूसरी समस्या ये है कि बाज़ारों तक पहुंच बढ़ने के साथ ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. साथ ही साथ ऐसी व्यवस्थाओं में सभी राष्ट्रों के सामूहिक नियंत्रण वाली समानांतर संस्थाओं का दखल भी बढ़ जाता है. ऐसी संस्थाओं का नियंत्रण कबूल करने में यूके ने हमेशा ही अपनी अनिच्छा जताई है. बहरहाल, यूके आखिरकार जो भी मॉडल चुने, ‘बीच का रास्ता’ भी उसे इन ज़िम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त नहीं करेगा.

यूके के लिए आदर्श स्थिति ये होगी कि वो कनाडा मॉडल को ही थोड़े-बहुत सुधार के साथ अपनाए.

यूके ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि अगर निर्धारित समय सीमा के भीतर कोई समझौता नहीं होता तो वो वैकल्पिक तौर पर ‘ऑस्ट्रेलिया’ मॉडल का भी चयन कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया का यूरोपीय संघ से व्यापार जीनेवा-स्थित विश्व व्यापार संगठन (आयात-निर्यात पर शुल्क के साथ) द्वारा तय किए गए नियमों के मुताबिक होता है. यह यूके के लिए बिना सौदे वाले ब्रेक्जिट जैसा ही है. यूरोपीय संघ के साथ यूनाइटेड किंगडम के व्यापारिक रिश्तों की ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के बीच के व्यापारिक संबंधों से तुलना नहीं की जा सकती. एक तो भौगोलिक दूरी के मामलों में दोनों में काफी अंतर है दूसरा व्यापार का परिमाण भी एक जैसा नहीं है. ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले यूरोपीय संघ का यूनाइटेड किंगडम के साथ व्यापार बहुत ज़्यादा मात्रा में होता है और दोनों ही अक्सर आखिरी वक्त पर आपूर्ति-श्रृंखला तक पहुंच के मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 में यूके के कुल निर्यात का 43 प्रतिशत और कुल आयात का 51 प्रतिशत अकेले यूरोपीय संघ के साथ रहा. इस तरह यूरोपीय संघ के साथ व्यापारिक रिश्तों के मामले में ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले यूके का काफी कुछ दांव पर लगा है. ऑस्ट्रेलिया तो दुनिया के दूसरे छोर पर है और यूरोपीय संघ के साथ उसका व्यापार भी काफी सीमित है.

यूरोपीय संघ मौजूदा नियम-क़ानूनों के पार जाकर किसी स्वनिर्धारित सौदे पर अपनी रज़ामंदी नहीं देना चाहता.

बिना सौदों वाले ब्रेक्जिट का परिणाम

अगर 31 दिसंबर तक कोई सौदा नहीं हुआ तो यूरोपीय संघ के साथ यूके का व्यापार डब्लूटीओ के नियमों के मुताबिक होगा. हाल ही में बीमा क्षेत्र से जुड़ी कंपनी आलियांज़ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में इशारा किया गया है कि बिना सौदे वाली ब्रेक्जिट के नतीजों के तौर पर यूरोपीय संघ को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. यह नुकसान करीब 33 अरब यूरो के बराबर होगा. इस घाटे की मार जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड्स पर सबसे ज़्यादा पड़ेगी. यूरोपीय संघ अबतक ‘बिना सौदे वाली’ या ऑस्ट्रेलिया-जैसी डील के बारे में सोचकर बेफिक्र नज़र आ रहा था, मगर इस रिपोर्ट से साफ है कि उसके लिए यह मामला काफी जोखिम भरा है. सिर्फ़ आर्थिक नुक़सान ही चिंता का कारण नहीं है, अभी हाल ही में कैथम हाउस द्वारा प्रकाशित एक पत्र में बताया गया है कि मौजूदा और भावी आर्थिक नुकसान के अतिरिक्त यूरोपीय संघ के लिए ब्रेक्जिट के दूरगामी नतीजे भी होंगे. ब्रेक्जिट के बाद ‘मुक्त-व्यापार के पक्ष में आवाज़ बुलंद करने’ की यूरोपीय संघ की क्षमता कम हो गई है और विश्व बिरादरी के समक्ष एक संयुक्त मोर्चे के तौर पर अपनी बात रखने की उसकी काबिलियत पर असर पड़ा है. (शिनेडर-पेटसिंगर, 2019 पीपी.18-19).

आसान शब्दों में कहें तो यूरोपीय संघ का रुख साफ है, वो चाहता है कि किसी भी कीमत पर राष्ट्रों का यह समूह सुरक्षित रहे और एकल बाज़ार के उसके सिद्धांतों पर कोई आंच न आए. इसके तहत घरेलू बाज़ार में चार आर्थिक मोर्चों- वस्तुओं, सेवा, मानव संसाधन और पूंजी के मामलों में बिना शर्तों वाली आज़ादी शामिल हैं. इसके साथ ही अलग-अलग सेक्टरों के लिए एक निश्चित बाज़ार का आश्वासन भी है (पटेल, 2019. पीपी 8-9). यहां ख़ासतौर से इस बात की अहमियत बढ़ जाती है कि यूनाइटेड किंगडम के यूरोपीय संघ से बाहर जाने के बाद दूसरे देशों में भी इसी तरह की अलगाववादी प्रवृत्ति को पनपने न दिया जाए और ‘ब्रेक्जिट का संक्रमण’ फैलने से रोका जाए. यूरोपीय संघ यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ऐसा ना हो कि यूके यूरोपीय संघ से बाहर निकलकर भी एक सदस्य की तरह तमाम फ़ायदे लेता रहे मगर नौकरशाही से जुड़ी चुनौतियों से कन्नी काट ले. ऐसा हुआ तो यूरोपीय संघ को संदेह की नज़रों से देखने वाले दूसरे राष्ट्रों को भी यूके की राह अपनाने की प्रेरणा मिलेगी.

बहरहाल, अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्षिक आकार और आर्थिक मोर्चे पर परस्पर निर्भरता के लिहाज से देखें तो ‘बिना सौदे’ वाले नतीजे का यूके पर यूरोपीय संघ के मुकाबले और भी ज़्यादा बुरा असर पड़ेगा. अगर निर्धारित समय तक कोई सौदा नहीं हो पाया तो यूके की जीडीपी में 5 प्रतिशत और निर्यात में 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है. यूके के राजकोष को तत्काल करीब 90 अरब पाउंड तक का नुकसान देखने को मिल सकता है. इतना ही नहीं सौदा न होने पर 4 लाख 82 हज़ार नौकरियां जाने का ख़तरा है. योग्यताओं और नियामक ढांचे को आपसी मान्यता के अभाव में कई सेक्टरों भारी घाटे में पड़ सकते हैं.

अगर निर्धारित समय तक कोई सौदा नहीं हो पाया तो यूके की जीडीपी में 5 प्रतिशत और निर्यात में 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है. यूके के राजकोष को तत्काल करीब 90 अरब पाउंड तक का नुकसान देखने को मिल सकता है.

दोनों पक्षों के अड़ियल रवैये ने मौजूदा वार्ता प्रक्रिया की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. ख़ासतौर से यूरोपीय संघ ने व्यापार समझौते पर सहमति हासिल किए बिना और आंतरिक बाज़ार विधेयक का ख़तरा बरकरार रहते सुरक्षा और विदेश नीति जैसे दूसरे अहम मुद्दों पर चर्चा करने से भी इनकार कर दिया है. यह विधेयक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए भी चुनौती पेश कर रहा है. अमेरिका में बाइडन के चुने जाने के बाद से ही यह साफ है कि अमेरिका और यूके के बीच कोई भी भावी समझौता तभी संभव है जब यूके गुड फ्राइडे समझौते का पालन करे.

व्यापार समझौते की समयसीमा नज़दीक आती जा रही है लेकिन अभी तक दोनों पक्ष किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं. और जैसा कि ऊपर स्पष्ट रूप से बताया गया है ऐसा लगता नहीं कि दोनों पक्ष किसी समझौते पर रज़ामंद होंगे. विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि कोई सौदे न हो पाने वाली स्थिति की संभावना अब 40 फीसदी बढ़ गई है. किसी भी हाल में व्यापार वार्ताएं अगले दो हफ्तों में पूरी हो जानी चाहिए ताकि उनकी विधिवत मंज़ूरी के लिए पर्याप्त समय मिल सके. एक तो इतना कम समय और उसपर महामारी के चलते मची उथल-पुथल के बीच ऐसा नहीं लगता कि यूके और यूरोपीय संघ दोनों ही बिना सौदे वाले नतीजों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. देखना होगा कि क्या व्यापार वार्ताएं बेनतीजा रहती हैं और यूरोपीय संघ और यूके के रिश्तों में दूरियां बढ़ जाती हैं या फिर दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंच जाते हैं और अपने रिश्तों को टूटने से बचाने में कामयाब हो जाते हैं.

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