Author : Gurjit Singh

Published on Dec 28, 2020 Updated 0 Hours ago

एक स्थायी और लगातार विकास कर रहे देश इथोपिया में ऐसे चुनौतीपूर्ण वक्त में गृह युद्ध जैसी स्थिति का उत्पन्न होना निश्चित तौर पर चिंताजनक है.

इथोपिया में संघवाद पर अनावश्यक युद्ध

अगर कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां पेश कीं तो इथोपिया ने स्वयं के लिए कम बड़ी चुनौती नहीं पैदा कर ली है. एक स्थायी और लगातार विकास कर रहे देश इथोपिया में ऐसे चुनौतीपूर्ण वक्त में गृह युद्ध जैसी स्थिति का उत्पन्न होना निश्चित तौर पर चिंताजनक है. कुछ महीने पहले तक इथोपिया ग्रैंड इथोपियन रेनेसा डैम (जीईआरडी) को लेकर सबसे बड़ा ख़तरा महसूस कर रहा था जिसमें इथोपिया और मिश्र के बीच पानी के बहाव को लेकर विवाद चल रहा था. बात यहीं तक सीमित नहीं थी बल्कि इस विवाद में अमेरिका भी इथोपिया पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहा था जिसमें इथोपिया को मिलने वाली अमेरिकी सहायता राशि के बंद होने का जोख़िम भी शामिल था और ऐसे ही वक्त में टिगरे संकट भी पैदा हो गया. इसमें दो राय नहीं कि कोई भी सरकार किसी एक राज्य के द्वारा स्थापित किए गए सैन्य शासन के अधीन ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर पाएगा. इसके लिए ज़रुरी है कि यह राजनीतिक परिस्थितियों के साथ ही सैन्य स्थिति पर भी नियंत्रण में रह सके.

इथोपिया में साल 1991 से सरकार का नेतृत्व टिग्रेरी पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) करता आ रहा है जिसने इथोपियन पीपुल्स रिवॉल्युशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (ईपीआरडीएफ) की स्थापना की थी और जिसमें एक विचार और सोच वाली पार्टियां जैसे, अमहारा (अमहारा नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट या एएनडीएम जो अब अमहारा डेमोक्रेटिक पार्टी या एडीपी के नाम से जाना जाता है), ओरोमिया (ओरोमो पीपुल्स डेमोक्रेटिक ऑर्गेनाइजेशन या ओपीडीओ जिसे अब ओरोमो डेमोक्रेटिक पार्टी या ओडीपी) और दक्षिण प्रांत (साउदर्न इथोपियन पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट या एसईपीडीएम) शामिल थीं. इरटेरिया की मौजूदा सत्ताधारी दल के साथ विमुक्तिकरण की जंग में टीपीएलएफ की जीत हुई थी जिसके साथ बाद में टीपीएलएफ का विवाद बढ़ता गया. दरअसल टीपीएलएफ एक ऐसी जंगी समूह का नाम है जिसने डर्ग के साथ 17 साल तक जंग लड़ा जिसमें उसे इस बात का कभी यकीन नहीं रहा कि जीत भी कभी उसकी मुमकिन हो पाएगी. साल 2012 में टीपीएलएफ के दूरदर्शी नेता मेलिस जेनावी की असमय मौत तक टीपीएलएफ सत्ताधारी पार्टी के केंद्र में रही. इसके बाद पार्टी का नेतृत्व एसईपीडीएम से हेलिमारियम देसालेग्न के हाथों चली गई लेकिन ओरामिया और अमहारा की बड़ी आबादी का भले सत्ता पर नियंत्रण नहीं रहा लेकिन उनकी भूमिका को नज़रअंदाज़ कर पाना कठिन हो गया.

एक देश जो पिछले 30 सालों से शांतिप्रिय रहा वहां पिछले दो सालों के गृह युद्ध में जान गंवाने वालों की संख्या हैरानी पैदा करती है. टिगरे में कानून व्यवस्था की हालत इसे और बाधित करती है.

साल 2018 में ओरोमा गुट ने प्रांतवाद की चिंगारी भड़कानी शुरू की और सालों से संघवाद के आदर्शों पर चल रहे इथोपिया में नई चुनौती पेश की. यह वही साल था जब अबिय अहमद (विरोधी मुस्लिम नाम के साथ) के नेतृत्व में सत्ता का हस्तांतरण सुनिश्चित किया गया जिससे ओरोमा समुदाय में बढ़ते उन्मादी और अलगाववादी गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके लेकिन दुर्भाग्यवश यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी क्योंकि ओरोमिया समुदाय के ज़्यादातर गुट इस विचार के पोषक थे कि उनके प्रधानमंत्री ने उनके लिए काफी कुछ किया था. इसी प्रकार अमराहों – जिन्होंने टिगरे के हाथों से सत्ता के विकेंद्रीकरण का समर्थन किया था – को भी प्रांतवाद और संकुचित सोच की प्रतिद्वन्द्वी भावना के हाथों काफी कुछ सहने पर मजबूर होना पड़ा. एक देश जो पिछले 30 सालों से शांतिप्रिय रहा वहां पिछले दो सालों के गृह युद्ध में जान गंवाने वालों की संख्या हैरानी पैदा करती है. टिगरे में कानून व्यवस्था की हालत इसे और बाधित करती है.

राजनीतिक समावेशन

साल 1991 के बाद की इथोपिया की प्रगति में वहां के प्रजातांत्रिक संविधान का संघीय ढांचा एक बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है. मेलिस जेनावी ने देश के संविधान में एक ऐसे राज्य की परिकल्पना को सुनिश्चित किया था जो विकासोन्मुख था. दरअसल ईपीआरडीएफ अनेकता में एकता की भावना को सुदृढ़ करने की मज़बूत कड़ी थी. मेलिस को लगता था कि इथोपिया का विस्तार बतौर एकल राज्य मुमकिन नहीं है और यही वजह है कि इथोपिया के लिए नस्लीय और धार्मिक विविधता को स्वीकार करना आवश्यक है. यही नहीं शहर में निवास करने वाले लोगों, पशुचारकों और पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच जो अंतर है उनमें एक निश्चित अंतर होना आवश्यक है. हालांकि, मेलिस के अधिकार वाले राज्य और अर्थव्यवस्था की प्रजातांत्रिक रूपरेखा उन देशों को उचित नहीं लगी जो इथोपिया को मदद के तौर पर सहायता राशि दिया करते थे लेकिन यह भी एक कटु सत्य जैसा था कि मेलिस अपने देश को ज़्यादा अच्छी तरह से जानते थे. वो आदेशात्मक अर्थव्यवस्था से बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहे थे तो राजनीतिक रूप से भी एकदलीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के मुकाबले बहुदलीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था की ओर आगे बढ़ रहे थे. साल 2007 में दिल्ली में फोरम ऑफ फेडरेशन की बैठक के बाद जब मेलिस ने काफी गर्व के साथ मुझसे कहा कि यूगोस्लाविया और 1991 के सोवियत संघ की तरह ही इथोपिया ने भी इरेट्रिया की अलगाववादी कोशिशों को झेला था.

साल 2012 में मेलिस सरकार के बाद जब सत्ता हेलिमारियम देसालेग्न के हाथों चली गई तब वो इथोपिया के डिप्टी प्रधान मंत्री थे. तब यह सत्ता परिवर्तन इस आधार पर संभव हो सका कि मेलिस सरकार के दौरान जो भी वरिष्ठ नेता थे उन्हें राजदूत बनाकर विदेशों में भेजा गया. 2010 में मेलिस ने जिन नौजवान मंत्रियों को सत्ता में शामिल किया था उन्हें तब ज़्यादा से ज़्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी गई. हेलिमारियम देसालेग्न ने ईपीआरडीएफ का नेतृत्व काफी संभल कर किया और साल 2015 के चुनावों में पार्टी को जीत दिलाई. इस कामयाबी ने उन्हें ख़ुद की वैधता दी.

लेकिन 2018 में सुधारों की गति में आई कमी के चलते ओरोमिया में खास तौर पर असंतोष बढ़ने लगा जो अदिश अबाबा के वृहतर ओरोमा लैंड के विस्तार में रोड़े अटकाने लगा . इस कोशिश के खिलाफ की गई कार्रवाई कहीं ज़्यादा सख्त और मजबूत थी और परंपरा के हिसाब से इसे लेकर सुरक्षा बल में टिगरियन की मौजूदगी को इसकी बड़ी वजह बताई गई. ईपीआरडीएफ के लिए यह क्रांति बेहद अहम थी क्योंकि इसने पार्टी के अंदर पीढ़ीगत बदलाव को जन्म दिया और ओरोमा समुदाय को नेतृत्व में हिस्सेदारी दिलाई और इस तरह साल 2018 में एक पूर्व सेना के जवान अबिय अहमद के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन संभव हो सका जिसके तहत अबिय अहमद देश के प्रधान मंत्री बने .अबिय अहमत के सत्ता संभालने के बाद उन्होंने जो सुधारवादी नीतियों को लागू किया उससे लोगों की उम्मीदें कई गुना बढ़ गई .राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया, मीडिया की आज़ादी हासिल हो गई, सुरक्षा प्रतिष्ठानों को अलर्ट कर दिया गया .इरेट्रिया के प्रति प्रेम का नज़रिया बढ़ाया गया और आखिरकार उसे जीत लिया गया. इस वक्त ऐसा लग रहा था मानो इथोपिया नए संकल्पों के साथ नई राह पर निकल पड़ा हो .नतीजा ये हुआ कि इथोपिया के इस बदलाव को अंगिकार करने के लिए पश्चिमी देश स्वागत को आगे आए क्योंकि इन देशों का मानना था कि इथोपिया के विकास के लिए ऐसी ही सुधारवादी नीतियां आवश्यक हैं जिसे मेलिस ने अपने कार्यकाल के दौरान लागू करने में काफी देर कर दी थी. लेकिन यह बदलाव टीपीएलएफ को खटकने लगी क्योंकि उसे ये नीतियां टिगेरी समुदाय के विरूद्ध प्रतीत होने लगा क्योंकि इन नीतियों को अमली जामा पहनाने में टिगरी समुदाय से कोई विचार विमर्श नहीं किया गया था . सुरक्षा व्यवस्था में सुधार, भ्रष्टाचार रोकने के लिए चलाए गए अभियान, और इरेट्रिया के साथ शांति बहाली की कोशिशें टीपीएलएफ को किनारा करने की रणनीति के तौर पर समझी गई और जिन नीतियों की बहाली के लिए नोबेल के शांति पुरस्कार दिए गए उन्हें लेकर टीपीएलएफ में भारी असंतोष घिरने लगा . सुधारवादी नीतियों के खिलाफ प्रचंड विरोध और राजनीतिक बंदियों को रिहा करने का यह नतीजा हुआ कि ओरोमिया और अमहारा में कई वैकल्पिक संगठनों ने जन्म लेना शुरू कर दिया और इन संगठनों ने नस्लीय हिंसा और अशांति की आग को भड़का दिया. इन गतिविधियों के साथ ही सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी, राजनीतिक विरोधियों को जेल में बंद किया जाने लगा, इंटरनेट पर रोक लगा दी गई, प्रेस की आज़ादी छीन ली गई और धीरे धीरे सरकार की ऐसी कार्रवाई समर्थन खोने लगा. इस दौरान जो अकेली पार्टी मज़बूती से खड़ी रही वो टीपीएलएफ थी जबकि अबिये की ओपीडीओ, मौजूदा डिप्टी प्रधानमंत्री की एएनडीएम और वित्त मंत्री मेक्कोनेन को उन्हीं के राज्य में चुनौती झेलनी पड़ गयी. इस दौरान ओरोमिया, अमहारा, सोमालिया और बेनिशुंगुल गुमुज (जहां जीईआरडी बनाया गया है)में चल रही हिंसक घटनाओं से टिगेरी समुदाय ने ख़ुद को अलग कर लिया और अचानक ही अदिश अबाबा की राजनीतिक राजधानी चारों ओर से बिखरने लगी. साल 2019 में ईपीआरडीएफ की सत्ताधारी पार्टियों को यूनाइटेड प्रोसपैरिटी पार्टी गठबंधन में शामिल करने के फैसले का असर यह हुआ कि ये पार्टियां अबिये के साथ आ गईं लेकिन टीपीएलएफ ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. परिणामस्वरूप सरकार से सभी टीपीएलएफ पार्टी के मंत्रियों को हटा दिया गया और 1991 के बाद यह पहली बार हो रहा था कि टीपीएलएफ सत्ता से बाहर थी. इस बदलाव के बाद टीपीएलएफ तेजी से अदिश अबाबा को खाली कर अपनी राजधानी मेक्कल में संगठित होने लगे. मैं इसे राजनीतिक गलती मानता हूं लेकिन टिगरी समुदाय के नेताओं ने मुझसे कहा कि उन्हें अपनी जान की फिक्र थी और सरकार की मौजूदा कार्रवाई यह संकेत दे रही थी कि टीपीएलएफ नेताओं को अपने भविष्य का डर सताना कहीं से गलत नहीं था. हालांकि उनका नेता देब्रेशन ग्रेब्रेमिशेल भले ही मंत्री नहीं थे लेकिन मेलिस के वो काफी भरोसेमंद थे. वो इथोपिया के आईसीटी डेवलपमेंट एजेंसी के प्रमुख थे और साल 2007 में अफ्रीका में ई नेटवर्क प्रोजेक्ट को साकार करने में उनकी अहम भूमिका थी. उनके बारे में कहा जाता था कि वो काफी साफ विचारों वाले और मजबूत प्रशासक थे जिन्हें कोई काम कैसे कराया जाता है ये बेहतर आता था. इसके बाद सभी टिगरी समुदाय के पूर्व मंत्री मेक्कल में जुटने लगे तो पुलिस और सेना से टिगरी जवान भी मेक्कल की ओर रुख करने लगे. ये वही टिगरी जवान थे जिन्होंने इथोपिया के विकास को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा मुहैया कराने में अहम योगदान दिया था. उनके बिना नई सेना की ताकत और काबिलियत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता था. 2008 तक इथोपिया और इरेट्रिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन(यूएनएमईई) में शामिल अधिकारियों ने भी इस बात को लेकर चिंता जताई थी कि बगैर टिगरी समुदाय के जवानों और उनके नेतृत्व के इथोपिया की सेना वैसी हो नहीं सकती जो दिसंबर 2006 में सोमालिया में दाखिल हुई थी जब मोगादिशू में इस्लामिक कोर्ट यूनियन ने कब्ज़ा कर लिया था. अदिश अबाबा के पुराने नागरिक जिन्होंने देश में शांतिपूर्ण विकास को महसूस किया है उनका भी यही सोचना है कि अदिश अबाबा को लेकर नीतियों को बनाने में देरी और मौजूदा नेतृत्व जो इथोपिया के ना तो स्वतंत्रता संग्राम और ना ही संविधान बनाने में हिस्सेदार है उसका असर भी हुआ है. इतना ही नहीं बगैर टिगरी समुदाय को दंडित किए या फिर गैम्बेला, बेनुशुंगुल गुमुज, अफार और सोमालिया को नज़रअंदाज़ किए किसी भी सख्त कदम को उठा पाना मुमकिन नहीं है जबकि यही विकल्प सबसे ज़्यादा मुमकिन हो सकता है.

अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी इथोपिया में जिस गति से घटनाएं हुई और उसका जो असर हुआ उसे लेकर हैरान हैं. जहां एकता चुनौती है, जहां कोरोना महामारी महाशत्रु के रूप में सामने है, जिस देश की सिकुड़ती अर्थव्यवस्था भविष्य के लिए चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं वहां गृह युद्ध बेहद ही अनावश्यक और व्यक्तिगत तथा सामूहिक आकांक्षाओं के लिए हानिकारक है लेकिन ऐसी परिस्थिति में सबसे ज़्यादा अहम मानवीय पहलू हैं.

मेलिस का मानना था कि राजनीतिक मांगों को लेकर संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है. अनेकता को बाधित कर एकता की तरफ झुकाव या फिर अनेकता के लिए ज़्यादा झुकाव होने पर केंद्र की शक्तियां प्रतिक्रियावादी हो जाती हैं जिसने इथोपिया के नस्लीय संघवाद के लिए ख़तरा पैदा किया है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी इथोपिया में जिस गति से घटनाएं हुई और उसका जो असर हुआ उसे लेकर हैरान हैं. जहां एकता चुनौती है, जहां कोरोना महामारी महाशत्रु के रूप में सामने है, जिस देश की सिकुड़ती अर्थव्यवस्था भविष्य के लिए चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं वहां गृह युद्ध बेहद ही अनावश्यक और व्यक्तिगत तथा सामूहिक आकांक्षाओं के लिए हानिकारक है लेकिन ऐसी परिस्थिति में सबसे ज़्यादा अहम मानवीय पहलू हैं. मेरे साथ जो संभाषी हैं उनके मुताबिक टिगरी में महीनों के लिए राशन का स्टॉक मौजूद है लेकिन सूडान में आने वाले शरणार्थी एक गंभीर चुनौती हैं.

ऐसे वक्त में इथोपिया के बुजुर्ग और 2019 के रिकॉन्सिलिएशन कमीशन के साथ सिविल सोसाइटी के लोग शांति बहाली प्रक्रिया में शामिल हों क्योंकि बुजुर्ग नेता इथोपिया के लिए बनाई जा रही नीतियों को लेकर ख़ुद को अलग थलग महसूस कर रहे हैं. जीईआरडी को लेकर अमेरिका ने अदिश अबाबा पर प्रतिबंध लगा रखे हैं जिससे सरकार पर इसके प्रभाव भी काफी सीमित हो गए हैं. चीन यहां पर काफी प्रभावी है लेकिन यहां की राजनीतिक व्यवस्था की बहाली में वो अपनी भूमिका निभाएगा यह काफी दूर की कौड़ी लगती है क्योंकि चीन अपने आर्थिक हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेगा. जहां तक अरब देशों का सवाल है जो इस क्षेत्र में सक्रिय हैं वो यहां की राजनीतिक व्यवस्था बहाली में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं लेकिन टिगरी के ईसाई होने की वजह से यह भी खटाई में पड़ती दिखती है. इस बीच सरकार भी जब तक टिगरी ख़ुद को सरेंडर करने की मुद्रा में नहीं आते हैं तब तक किसी भी शांति बहाली की प्रक्रिया को अमल में लाने देगी जबकि टिगरी समुदाय के नेताओं का कहना है कि दुनिया हमें देखेगी कि हम कैसे सरकार से लोहा ले रहे हैं .

ऐसी स्थिति में अबिय के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इथोपिया के विकास के लिए वह कैसे आंतरिक सामंजस्य को बिठा सकें. इसके लिए धैर्य और लगातार अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने की कोशिशों को जीवित रखना पड़ेगा. इथोपिया के सुनहरे भविष्य के लिए उनकी सोच को वरिष्ठों की सलाह की भी ज़रुरत है और इस प्रवृत्ति के बने रहने की भी आवश्यकता है. जैसा कि मेलिस सोचा करते थे कि एक बेहतर संघीय संतुलन नस्लीय और धार्मिक हित के लिए आवश्यक है और ख़ुद के देश में रक्तपात मचाना इन कोशिशों को ठेस पहुंचाना है.

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