Author : Gayathri Iyer

Published on Feb 18, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत को चाहिए कि वो अपनी क्षमताओं को चीन के संदर्भ में और विकसित करे. साथ ही साथ अन्य क्षेत्रीय ताक़तों के अनुपात में भी अपनी क्षमताओं का विस्तार करे. न कि वो केवल सूचना की शून्यता को भरने के लिए साझेदारियों का विस्तार करता रहे.

हिंद महासागर क्षेत्र में इनफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर के ज़रिये समुद्री क्षेत्रो के प्रति जागरूकता

2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों ने भारत की छवि को काफ़ी धक्का पहुंचाया था. इस हमले के बाद भारत की तटीय सुरक्षा व्यवस्था और समुद्री क्षेत्र की बेहद सीमित जानकारी की चिंताजनक स्थिति हमारे सामने आई थी. इस आतंकवादी हमले ने भारत को अपनी समुद्रीय रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए मजबूर किया. जिसकी वजह से समुद्र में होने वाली घटनाओं के ज़मीन पर व्यापक असर की अहमियत की समझ बढ़ी.

26/11 के हमले के तुरंत बाद भारतीय नौसेना ने गुरुग्राम में इनफॉरमेशन मैनेजमेंट ऐंड एनालिसिस सेंटर (IMAC) की स्थापना की थी. इसका प्रबंधन भारतीय नौसेना और तट रक्षक दल मिल कर करते हैं. इस संगठन का विशिष्ट दायित्व ये है कि वो भारत की राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाए. इसके लिए आईमैक, भारत के समुद्र तट के आस-पास से गुज़र रहे, व्यापारिक जहाज़ों और मछलियां पकड़ने वाली नौकाओं को ट्रैक करती है. नौकाओं और जहाज़ों की ट्रैकिंग के लिए अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों से मिलने वाले सिग्नल और ज़मीन पर मौजूद सेंसर्स के डेटा का प्रयोग होता है. इसके अलावा अन्य नौसैनिक संसाधनों से मिलने वाले आंकड़े भी इस काम में प्रयुक्त होते हैं.

वर्ष 2017 की शुरुआत में इंडोनेशिया में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) की पहली बैठक हुई थी. इस बैठक में भारत ने दो प्रमुख घोषणाएं की थीं. जिनके अंतर्गत सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग   से अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाया जाना था. भारत ने कहा था कि वो हिंद महासागर क्षेत्र में इनफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर की अपने यहां स्थापना करेगा. और इसके लिए व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट का प्रयोग करेगा. भारत ने दूसरी घोषणा एक प्रस्ताव के रूप में की. जिसके अंतर्गत, भारत के तटीय क्षेत्र स्थित शहर कोच्चि में आईओआरए सेंटर ऑफ़ एक्सेलेंस (ICE) की स्थापना की जानी थी. इसके अतिरिक्त, समुद्री जानकारियों के भंडारण हेतु थिंक टैंक के एक नेटवर्क की भी अभिकल्पना की गई. इन संसाधनों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया. जिससे इस संगठन के सभी देशों के नीति निर्माताओं, अनुसंधानकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को सभी जानकारियां सहज रूप से उपलब्ध हो सकें.

हालांकि, व्हाइट शिपिंग समझौतों की दिशा में काफ़ी प्रगति हुई थी. और इनफॉरमेशन फ्यूज़न सेंटर की स्थापना से मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस को बढ़ाने में काफ़ी मदद मिली है. लेकिन, अब तक आईसीई की स्थापना और थिंक टैंक का नेटवर्क बनाने की दिशा में किसी तरह की प्रगति की सूचना नहीं है.

इनफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटरर IOR

श्वेत समुद्री व्यापारिक गतिविधियों का दायरा और हिंद महासागर में इनकी संभावना इतनी व्यापक है कि किसी एक देश के लिए इस क्षेत्र में अवैध तरीक़े से घुस आने वाले ब्लैक और ग्रे जहाज़ों को ट्रैक करना क़रीब-क़रीब असंभव है. ऐसे में सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हो जाते हैं. ताकि वास्तविक परिस्थितिजन्य जागरूकता और क़ानून व्यवस्था को बनाए रख कर वैश्विक व्यापार को अबाध गति से चालू रखने के दोहरे लक्ष्य हासिल किए जा सकें. आईएफसी-आईओर को भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गुरुग्राम में दिसंबर 2018 में स्थापित किया गया है. इसे इनफॉरमेशन मैनेजमेंट ऐंड एनालिसिस सेंटर (IMAC) के साथ-साथ स्थापित किया गया है. जिसका संचालन और प्रबंधन भारतीय नौसेना व तट रक्षक दल मिल कर करते हैं. इसका कर्तव्य ये है कि ये द्विपक्षीय समझौतों के दायरे से बाहर जाकर व्हाइट शिपिंग यानी वैध व्यापारिक समुद्री पोतों की आवाजाही के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी जमा करे, उनका समेकन करे और अन्य संगठनों से साझा करे. इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के बीच साझा सहमति से इस क्षेत्र के समुद्री ख़तरों को छह व्यापक भागों में विभाजित किया गया है– समुद्री डकैती/समुद्री चोरी, समुद्री आतंकवाद, प्रतिबंधित तत्वों की तस्करी, अवैध मानव स्थानांतरण, ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बिना जानकारी दिये किसी नियमन के दायरे से बाहर मछली पकड़ना और और सामुद्रिक घटनाएं.

चार ऐसे क्षेत्र हैं, जिनको ध्यान में रख कर गुरुग्राम स्थित ये केंद्र समुद्री सुरक्षा और अभिरक्षा की परिस्थिति का आकलन और विश्लेषण करता है. ये हैं:गिनी की खाड़ी, अदन की खाड़ी, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और दक्षिणी पूर्वी एशिया.

भारत ने पहले ही 22 देशों के साथ सूचना के आदान-प्रदान के समझौते किए हैं. इसके अतिरिक्त भारत, एक बहुदेशीय व्यवस्था-वर्चुअल रीजनर मैरीटाइम ट्रैफ़िक सेंटर में भी भागीदार है. इस संगठन के तीस सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय सहयोग की व्यवस्था के अंतर्गत सूचनाओं के आदान-प्रदान हेतु वर्चुअल नेटवर्क की स्थापना और संचालन करते हैं. आईएफसी-आईओआर के तहत सूचनाओं के आदान-प्रदान का प्राथमिक क़दम वर्चुअल माध्यमों से ही उठाया जा रहा है. जैसे कि टेलीफ़ोन कॉल, फैक्स, ई-मेल और इंटरनेट पर वीडियो कॉल के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है. आईएफसी-आईओर का एक लक्ष्य ये भी है कि वो अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदार देशों के साथ मिल कर 40 अंतरराष्ट्रीय संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति करे. अभी तो केवल मुट्ठी भर देशों, जैसे फ्रांस और सिंगापुर ने ही संपर्क अधिकारी नियुक्त किए हैं. जबकि ब्रिटेन ने ऐसे एक अधिकारी की नियुक्ति का अपना इरादा जताया है.

मार्च 2018 से फ्रांस, भारत के साथ हिंद महासागर क्षेत्र को लेकर साझा सामरिक विज़न के अंतर्गत समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. फ्रांस का लक्ष्य है कि वो संसाधनों के बेहतर प्रयोग से समुद्री डकैती और और दक्षिणी हिंद महासागर क्षेत्र में हर तरह की तस्करी को रोकने का प्रयास करे.

सीएसआरएस के अंतर्गत सेशेल्स और मॉरीशस में आठ निगरानी रडार, श्रीलंका में छह रडार और मालदीव में दस रडार लगाए जाने हैं. जिनका सीधा संपर्क भारत के तटों पर लगे 50 रडार के सिस्टम से स्थापित किया गया है. इसका प्राथमिक लक्ष्य समुद्र तटीय सुरक्षा करना है

समुद्री क्षेत्र के प्रति सजगता के ये साझा प्रयास, भारत की विदेश नीति के रवैये में आए बहुत बड़े बदलाव की तरफ़ इशारा करते हैं. 1960 के दशक के अंत से 2015 तक, भारत ने गुट निरपेक्षता को ही अपनी विदेश नीति का प्रमुख अस्त्र बनाया हुआ था. और इसके कारण भारत, हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा के साझा उपायों की तमाम व्यवस्थाओं से दूर ही रहा था. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की सागर योजना (सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ ऑफ़ ऑल इन द रीजन- SAGAR) को सेशेल्स में लॉन्च किया था. ये हिंद महासागर क्षेत्र में रक्षा और सुरक्षा का भारत का नया विज़न है. आपसी सहयोग ही सागर की बनावट की रीढ़ है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत, प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद महत्वाकांक्षी समुद्र तटीय निगरानी रडार सिस्टम (CSRS) की भी घोषणा की थी. इस प्रोजेक्ट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुद्र क्षेत्रीय सजगता को रडार नेटवर्क की स्थापना के माध्यम से और भी व्यापक बनाने का लक्ष्य रखा गया है. सीएसआरएस के अंतर्गत सेशेल्स और मॉरीशस में आठ निगरानी रडार, श्रीलंका में छह रडार और मालदीव में दस रडार लगाए जाने हैं. जिनका सीधा संपर्क भारत के तटों पर लगे 50 रडार के सिस्टम से स्थापित किया गया है. इसका प्राथमिक लक्ष्य समुद्र तटीय सुरक्षा करना है. जिसमें छोटे जहाज़ भी शामिल हैं. क्योंकि ये छोटे रडार के पारंपरिक नेटवर्क से बच निकलते हैं. हाल ही में, अक्टूबर 2019 में बांग्लादेश ने भारत के साथ एक समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इसके अंतर्गत दोनों देश समुद्र तटीय निगरानी सिस्टम का विकास करेंगे. ऐसा ही एक समझौता जल्द ही म्यांमार और थाईलैंड से भी होने की संभावना जताई जा रही है.

भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए. सिंगापुर ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ साझा समुद्री क्षेत्रीय सजगता अभियान की अगुवाई के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया था. इसका निष्कर्ष ये था कि सूचना के आदान-प्रदान के साथ-साथ जानकारी की महत्ता समझाने का भी प्रयास होना चाहिए. व्यापक साझेदारी को ज़्यादा समझ बढ़ाने के काम आना चाहिए. हालांकि, व्यवहारिक रूप से इसे लागू कर पाना मुश्किल होता है. हालांकि, सदस्य देश इस बात के लिए तो राज़ी हो जाते हैं कि सूचनाओं का आदान-प्रदान ही साझा परिचालन की तस्वीर को मुकम्मल बनाने का एकमात्र माध्यम है. ताकि साझा समुद्री चुनौतियों से निपटा जा सके. लेकिन, तमाम देश सूचनाओं के आदान-प्रदान के दौरान इसके मानक को लेकर चुनौतियां झेलते हैं. ख़ास तौर से आंकड़ों को एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने के मामले में. यहां तक कि जब तमाम देश सूचनाएं साझा करने के लिए राज़ी हो जाते हैं, तो भी वो अपने अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व के विस्तार के चक्कर में कई बार सूचनाओं को बार-बार शेयर करते हैं. या फिर कई बार घरेलू राजनीतिक उत्प्रेरण की वजह से भी वो ऐसा करते हैं. कई बार तो सूचनाओं की द्वैधता का एक कारण ये भी होता है कि हर देश का आंकड़ों को संग्रह करने और उनके विश्लेषण का अपना अलग तरीक़ा और पैमाना होता है. साझीदारों का एक बड़ा वर्ग ये समझने में भी असफल रहता है कि विकास के साझा मानकों ने घरेलू स्तर पर आंकड़े संग्रह करने के जो संस्थागत सिस्टम हैं, वो संकीर्ण होंगे. सिंगापुर का अपने साझीदार देशों के साथ का संघर्ष इस बात को भी उजागर करता है कि इस विषय से जुड़े हुए अन्य मसलों को भी इससे जोड़ने की आवश्यकता होती है. इसका अर्थ ये है कि समुद्री सुरक्षा के प्रति जागरूकता के साथ-साथ हवाई, अंतरिक्ष क्षेत्र और साइबर और ज़मीनी दुनिया के ख़तरों से निपटने के भी साझा प्रयास होने चाहिए. साझीदार देश आंकड़ों को लेकर निष्ठा और क़ानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र को लेकर भी संघर्षरत हैं. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि भारत आईएफसी-आईओआर या आईसीई में इन चुनौतियों से निपटने के लिए किस योजना पर अमल करने जा रहा है.

इसके अतिरिक्त, अलग-अलग देशों के थिंक टैंक के एक नेटवर्क की आवश्यकता तो है, जो इस मामले में किसी भी क्षेत्र के देशों के बीच अकादमिक सूचनाओं और समुद्री संसाधनों से जुड़े आंकड़ों को साझा करने में मददगार हो. इसके अलावा थिंक टैंक के एक ऐसे नेटवर्क की भी ज़रूरत है, जो हिंद महासागर की नई व्यवस्था में समुद्री सुरक्षा के लिए नीतिगत विकल्पों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में, संस्थाओं को विकसित करने और रणनीतिक परिचर्चाओं के निर्माण में सहयोग कर सकें. भारत की आईसीई बनाने की घोषणा ये बात पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि इस व्यवस्था के विकास के लिए घरेलू स्तर पर कौन से संस्थागत सहयोग और अकादमिक संसाधन केंद्र उपलब्ध होंगे. न ही ये स्पष्ट है कि साझा नीतिगत अध्ययनों के लिए थिंक टैंक का नेटवर्क कैसा होगा और वो कैसे बनेगा?

अमेरिका और ईरान के बीच जो संघर्ष है. उससे इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के सदस्य देशों के पास ये अवसर है कि वो इस बात का परीक्षण करें कि किस तरह जानकारी साझा करने के पश्चात इस जानकारी का प्रयोग शांति और स्थिरता स्थापित करने में किया जाता है.

पारंपरिक रूप से, भारत के लिए द्विपक्षीय प्रकृति की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए संपर्क की व्यवस्था ज़्यादा उत्पादक साबित होती रही है. जबकि बहुपक्षीय व्यवस्था के नतीजे मिले जुले रहे हैं. इसका कारण ये है कि या तो घरेलू सूचना एजेंसियों में विदेशी सेवाओं से सहयोग की सीमित संभावनाएं हैं. या फिर विदेशी सेवाएं स्वयं में ही अन्य देशों के साथ, इस्तेमाल योग्य आंकड़ों को बराबरी से साझा करने को अनिच्छुक हैं. वो तब तक ऐसा नहीं करते हैं, जब तक उनके विदेशी सहयोगियों के साथ किसी विशेष जानकारी के आदान-प्रदान से सीमित समय के लिए किसी लक्ष्य की प्राप्ति न होती हो.

आईएफसी आईओवार की जो सबसे ताज़ा रिपोर्ट है वो अक्टूबर 2019 की है. इसमें जानकारी दी गई है कि ईरान के झंडे वाला एक कच्चे तेल के टैंकर को लाल सागर में दो संदिग्ध मिसाइलों या रॉकेट निशाना बनाया था. ये घटना ने 11 अक्टूबर 2019 को सऊदी अरब के समुद्र तट के पास ही हुई थी. उस जहाज़ और घटना के बारे में व्यापक जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं है. न ही इसकी पुष्टि हो सकी है. जबकि ऐसी ख़बरें आई थीं कि तेल टैंकर पर इस धरने के बाद लाल सागर में तेल फैल गया था. हालांकि, इस रिपोर्ट में ऑयल टैंकर और इसकी गतिविधियों के बारे में जानकारी तो साझा की थी. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि आख़िर इस जानकारी से, इस साझा फ्रेमवर्क में शामिल हर देश अपने-अपने लिए क्या मायने निकाले. अमेरिका और ईरान के बीच जो संघर्ष है. उससे इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के सदस्य देशों के पास ये अवसर है कि वो इस बात का परीक्षण करें कि किस तरह जानकारी साझा करने के पश्चात इस जानकारी का प्रयोग शांति और स्थिरता स्थापित करने में किया जाता है. अमेरिका और ईरान के साथ भारत के संबंधों की पेचीदगी को देखते हुए, ये अवसर हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा का घेरा प्रदान करने वाले देश के रूप में भारत की भूमिका की भी परीक्षा है. भारत को चाहिए कि वो अपनी क्षमताओं को चीन के संदर्भ में और विकसित करे. साथ ही साथ अन्य क्षेत्रीय ताक़तों के अनुपात में भी अपनी क्षमताओं का विस्तार करे. न कि वो केवल सूचना की शून्यता को भरने के लिए साझेदारियों का विस्तार करता रहे.

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