Published on Sep 26, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिकी नीतियों में अपने सहयोगियों पर रणनीतिक अनिश्चितता थोपने का सिलसिला जारी है. चीन का जहां तक प्रश्न है तो अमेरिका आज भी उत्तरी कोरिया से चीन के रिश्तों का अनुमोदन नहीं करता.

ट्रंप की उत्तरी कोरिया नीति का मूल्यांकन ; तरीका अलग लेकिन रणनीतिक अस्पष्टता बरकरार

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल के पहले साल (2017) में, लिटिल रॉकेटमैन और ‘डोटार्ड’ लिखे ट्वीटों का आदान प्रदान हुआ तथा उत्तरी कोरिया में परमाणु हथियारों का परीक्षण जारी रहा तो ऐसा लगा कि दुनिया, अमेरिका-उत्तरी कोरिया नीति के नए दौर में रणनीतिक धैर्य से हटकर अधिक कड़ी कार्रवाई की ओर जा रही है. उत्तरी कोरिया पर हमले के लिए अमेरिका के ‘सन्नद्ध’ होने के बावजूद साल 2017 से तीन साल की अवधि की विशेषता यह रही कि न तो अमेरिका ने आक्रमण किया और न ही उत्तरी कोरिया ने किया. इसके बजाय वियतनाम तथा सिंगापुर में दो शिखर वार्ता हुईं हालांकि, उनमें वायदे बहुत सारे हुए मगर यथार्थ में कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखा. इसलिए उत्तरी कोरिया के प्रति राष्ट्रपति ट्रंप की नीति का हम कैसे मूल्यांकन करें? यह कहना बहुत आसान होगा — भले ही कुछ आलस्यपूर्ण — कि उत्तरी कोरिया के प्रति राष्ट्रपति ट्रंप का रूख एकदम विफल रहा. इसी प्रकार यह भी (और किया भी गया) दावा आसान है कि ट्रंप ने किम जोंग उन से बातचीत के ज़रिए जहां काफ़ी कुछ हासिल किया वहीं अधिकतर से हाथ धो बैठे. इस रिश्ते के बारे में कोई निष्कर्ष निकाल कर उससे संबंधित सबूत का उल्लेख करके समुचित विवरण जुटाया जाना एकदम उचित लगता है.

उत्तरी कोरिया पर हमले के लिए अमेरिका के ‘सन्नद्ध’ होने के बावजूद साल 2017 से तीन साल की अवधि की विशेषता यह रही कि न तो अमेरिका ने आक्रमण किया और न ही उत्तरी कोरिया ने किया.

इस आलेख में हम दो मुद्दों की पड़ताल करना चाहते हैं. पहला यह कि डीपीआरके के प्रति अमेरिकी नीति में क्या घटित हुआ है तथा क्या यह पिछले राष्ट्रपतियों की नीतियों से कुछ अलग है? दूसरा यह कि इस नीति के परिणामस्वरूप व्यापक क्षेत्रीय रिश्तों पर क्या असर पड़ा? इन दो मुद्दों से फिर हम यह मूल्यांकन देंगे कि अमेरिका ने मोटे तौर पर पिछले राष्ट्रपतियों का ढुलमुल रणनीतिक रवैया ही अपनाया है. बस जिन कार्यप्रणालियों के ज़रिए इसे प्राप्त किया गया वे राजनयिक अतिवाद का प्रतीक हैं. यह नीति भले ही मुख्य रूप में बरकरार रही हो मगर अन्य क्षेत्रीय भागीदारों पर विनाशक प्रभाव, एक-दूसरे से तथा अमेरिका से संबंध अधिक गंभीर रूप में क्षतिग्रस्त हुए हैं.

अमेरिकी नीति एवं प्रभाव

उत्तरी कोरिया के प्रति राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीति के बारे में ट्रंप ने अपनी टिप्पणी में इसका चरित्र चित्रण रणनीतिक धैर्य की नाकाम नीति के रूप में किया. उन्होंने इसे ‘पराजयजनक’ नीति बता कर इसके धुर्रे बिखेरे जिससे कारण धीरे-धीरे डीपीआरके का परमाणुकरण होता रहा. राष्ट्रपति ओबामा की रणनीतिक धैर्य नीति के तहत डीपीआरके से अमेरिका का कूटनीतिक व्यवहार उत्तरी कोरिया द्वारा परमाणु निषेध तथा छहपक्षीय बातचीत में फिर से शामिल होने के लिए सियोल से सलाह-मशविरे की प्रतिबद्धता, दोनों सापेक्ष सीमित रहा. ओबामा की रणनीतिक धैर्य की नीति उस विस्तृत अमेरिकी नीति में बख़ूबी समाती है जिसमें रणनीतिक अस्पष्टता के ज़रिए क्षेत्रीय गठबंधनों को प्रदक्षित एवं वचनबद्ध करना शामिल है.

अस्पष्टता की अवधारणा को सहयोगियों को आश्वस्त करने तथा प्रतिपक्षियों एवं अन्य सभी को ख़बरदार करने के लिए समझ सकते हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि ‘सीमा रेखा’ कहां पर हैं जिससे सैन्य अथवा राजनयिक दबाव की नौबत आ सकती हो. सोवियत संघ के विखंडन के समापन के बाद क्षेत्र से अमेरिका के रिश्तों के इतिहास में इस क्षेत्र से अमेरिका के व्यवहार में वैकल्पिक किस्मों एवं गहराई में हमेशा यही नीति निहित है.

उत्तरी कोरिया के प्रति ट्रंप की कार्रवाइयों के अवलोकन में यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति कार्यालयों के बीच तो बातचीत हिचकिचाहट भरी रही ही बल्कि उनके चार वर्षों पर भी उसकी छाप दिखती है. इसमें उत्तरी कोरिया द्वारा 2017 में अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र दागने की आदेश 13810 द्वारा संयमित निंदा से लेकर 2018 में सिंगापुर शिखर वार्ता के अस्थाई निलंबन पर उत्तरी कोरिया को सैन्य कार्रवाई की धमकी देने जैसे अधिक प्रतिरोधी तेवर दिखाना शामिल हैं.

उत्तरी कोरिया के प्रति ट्रंप की कार्रवाइयों के अवलोकन में यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति कार्यालयों के बीच तो बातचीत हिचकिचाहट भरी रही ही बल्कि उनके चार वर्षों पर भी उसकी छाप दिखती है.

क्या यह व्यवहार सफल रहा है? परमाणुविहीन उत्तरी कोरिया के उद्देश्य को हासिल करने की पृष्ठभूमि में यदि मूल्यांकन करें तो— नहीं, यह सफल नहीं रहा. लेकिन जब इस उच्च लक्ष्य की कसौटी के बरअक्स मूल्यांकन किया जाए तो यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसने अन्य राष्ट्रपतियों से बहुत ही कम उपलब्धि अर्जित की है. अलबत्ता समान परिणाम अर्जित करने (परमाणुविहीनता की अनुपस्थिति) में ट्रंप ने कहीं अधिक खोया है. उदाहरण के लिए, शिखर वार्ता में साथ बैठ कर उत्तरी कोरिया एवं किम जोंग उन का दर्ज़ा बढ़ाया एवं वैधता प्रदान की. इसलिए ऐसा नहीं है कि इसमें नीति लागू करने में सफलता कम मिली हो बल्कि बस इतना है कि उसकी कीमत अधिक चुकानी पड़ी.

साल 2017 से मुख्य नीतिगत घटनाएं:

3 सितंबर, 2017: प्योंगयांग ने अपना छठा परमाणु परीक्षण किया, दावा किया कि ये हाइड्रोजन बम है.

19 सितंबर, 2017: ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र 72वें साधारण सभा सत्र में डीपीआरके के विरूद्ध निंदात्मक बयान जारी किया.

7 से 11 अगस्त, 2017: एक के बाद एक ट्वीट में ट्रंप ने गुआम में अमेरिका के नौसैनिक अड्डे पर डीपीआरके के हमले की धमकी का जवाब दिया. उन्होंने कहा के अमेरिका पूरी तरह ‘सन्नद्ध’ है एवं डीपीआरके को ‘तोपों की बाढ़ एवं प्रकोप’ से जवाब मिलेगा.

मार्च 2018: राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा किम जोंग उन के साथ द्विपक्षीय सिंगापुर शिखर वार्ता को मंजूरी.

मई 2018: किम जोंग उन द्वारा उपराष्ट्रपति पेंस को दिए बयान के कारण राष्ट्रपति ट्रंप ने सिंगापुर शिखर वार्ता रद्द की; वार्ता रद्द होने से पहले ही डीपीआरके ने अमेरिका के तीन युद्ध बंदियों को रिहा किया और पुन्ग्ग्ये री की परमाणु परीक्षण सुविधा को ढहा दिया.

जून, 2018: ट्रंप द्वारा दोबारा सिंगापुर शिखर वार्ता को मंज़ूरी, उसमें शामिल होकर प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त करने के लिए अस्पष्ट समझौते पर दस्तख़त किए.

फरवरी, 2019: अमेरिका-डीपीआरके हनोई द्विपक्षीय शिखर वार्ता हुई,मगर ट्रंप को वार्ता बीच में छोड़ कर जाना पड़ा क्योंकि उत्तरी कोरिया के सबसे बड़े परमाणु केंद्र योंगब्योन को ध्वस्त करने के एवज में घटाए जाने वाले प्रतिबंधों के पैमाने पर सहमति नहीं बन पाई.

जून, 2019: ट्रंप सीमारेखा (डीएमजैड) को पार करने वाले पहले कार्यरत राष्ट्रपति बने, उत्तरी कोरिया में किम जोंग उन के साथ बैठक.

अमेरिकी क्षेत्रीय संबंध

आक्रामकता से सुलह के बीच में झूलने की गतिमान अमेरिकी नीति भी तनावग्रस्त क्षेत्रीय रिश्ते और अधिक भड़कने का कारण बनी प्रतीत होती है. पहले भी हम जैसा देख चुके कि रणनीतिक अस्पष्टता की भी गठबंधन वाली कूटनीति में महत्वपूर्ण जगह है, विशेषकर सहयोगियों के साथ संबंधों के प्रबंध में. फिर भी पूर्वोत्तर एशिया का जटिल गठबंधन ढांचा (जापान-आरओके तनावों के साथ-साथ अमेरिका-जापान एवं अमेरिका-आरओके)गठबंधन कूटनीति के इस पहलू को लागू करना खासकर पेचीदा बना देता है— ख़ासकर उत्तरी कोरिया से संबंध में.

ट्रंप के राष्ट्रपति काल की वर्तमान अवधि में इसे और अधिक कठिन बना दिया गया. उत्तरी कोरिया से निपटने के सबसे उपयुक्त तरीक़े पर मून जाए-इन के अंतर्गत दक्षिण कोरिया तथा शिंजो आबे के नेतृत्व में जापान के अलग— अलग विचार रहे हैं. मून ने उत्तरी कोरिया से बातचीत का स्पष्ट रूख अख़्तियार किया है— जिसे कभी-कभी नई सनशाइन अथवा ‘मूनशाइन’ (मतलब मून की) नीति भी कहा जाता है. उनके विपरीत आबे का रूख उत्तरी कोरिया से अधिक सख्ती से निपटने तथा परमाणु मुक्ति की ठोस मांग करने का है. (जापान-आरओके तनावों के साथ-साथ अमेरिका-जापान एवं अमेरिका-आरओके)

ट्रंप द्वारा 2017 में अपनाए गए कड़े रूख को जापान में किसी हद तक समर्थन मिला प्रतीत हुआ मगर सियोल में उसके प्रति संशय की स्थिति रही. होक्केदो के ऊपर से 2017 में प्रक्षेपास्त्र दागे जाने पर प्रधानमंत्री आबे ने ट्रंप के अस्पष्ट जवाब के अनुमोदन का संकेत किया था:” (राष्ट्रपति ट्रंप) मेरे सामने सभी विकल्प खुले हैं….हम इसको उच्च महत्व देते हैं.” प्रधानमंत्री आबे द्वारा ट्रंप पर जापानी अपहृतों के ग़ैर-परमाणु मुद्दे पर दबाव डालने की भी पूरी मंशा जताई गई; लेकिन ट्रंप द्वारा 2019 के हनोई शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे के उल्लेख के आगे बात बढ़ ही नहीं पाई.

आक्रामकता से सुलह के बीच में झूलने की गतिमान अमेरिकी नीति भी तनावग्रस्त क्षेत्रीय रिश्ते और अधिक भड़कने का कारण बनी प्रतीत होती है. पहले भी हम जैसा देख चुके कि रणनीतिक अस्पष्टता की भी गठबंधन वाली कूटनीति में महत्वपूर्ण जगह है, विशेषकर सहयोगियों के साथ संबंधों के प्रबंध में.

सिंगापुर शिखर वार्ता के बाद, राष्ट्रपति मून ने ट्रंप एवं किम के साथ त्रिपक्षीय बैठक करने की मांग की मगर बैठक नहीं हो पाई और ट्रंप द्वारा किम जोंग उन को अमेरिका-आरओके संयुक्त सैन्य अभ्यास मुल्तवी करने की पेशकश ने मून को अप्रत्याशित रूप में झटका दिया. ट्रंप ने मई में प्रस्तावित सिंगापुर शिखर सम्मेलन रद्द करके आरओके को फिर चौंका दिया और मून ने किम जोंग उन से शिखर वार्ता अगले ही दिन चालू रखने के लिए फौरी बैठक बुलाई. इसके परिणामस्वरूप उत्तरी कोरिया से अमेरिका के सीधे बात करने में जो झोल रहा उससे हरेक सहयोगी के रूख से तालमेल बैठाने में विभ्रम की स्थिति दिखी जिससे डीपीआरके के भड़कावे के प्रति अमेरिका के संभावित प्रत्युत्तर के प्रति दोनों देशों में सार्वजनिक/स्पष्ट भरोसे में कमी आई. इससे आरओके तथा जापान के बीच तनाव बढ़ने की नौबत आ गई तथा डीपीआरके का साझा उपाय खोजने की किसी भी संभावना से वे और दूर छिटक गए. यह अस्पष्टता राजनयिक उद्देश्य से प्रेरित कतई नहीं लगती.

चीन का जहां तक संबंध है अस्थिर तस्वीर चीन की मौजूदा अनुबंध नीति से भी जुड़ गई है (उदाहरण के लिए सिंगापुर शिखर वार्ता के बाद) तथा अमेरिका के रूख के एकदम विपरीत भी है (उदाहरण के लिए उत्तरी कोरिया पर दबाव बनाने के लिए चीन पर अतिरिक्त दबाव डालने की कोशिश). चीन पर हालांकि, अनेक मुद्दों के संबंध में अमेरिकी दबाव — सबसे अधिक वाणिज्य — मुखर प्रतिस्पर्धा के पक्ष में बातचीत की रणनीति को तिलांजलि दे देने का है मगर चीन द्वारा उत्तरी कोरिया से कैसे बातचीत की जाए इस बारे में अमेरिकी रूख ख़ासा टिकाऊ रहा है अर्थात चीन से अमेरिका चाहता है कि चीन ऐसे व्यवहार करे कि अमेरिका और चीन की रणनीति भिन्न है.

निष्कर्ष

राष्ट्रपति ट्रंप के वर्तमान सरकारी कार्यकाल का मूल्यांकन उत्तरी कोरिया के संबंध में हम कैसे कर सकते हैं? ज़ाहिर है कि शिखर वार्ताओं की चमक-दमक तथा ट्वीट के बावजूद प्रदर्शनीय यथास्थिति बनी हुई है: उत्तरी कोरिया परमाणु मुक्त नहीं हुआ है, प्रतिबंध इस पर अब भी लागू हैं, अमेरिका ने उनके विरूद्ध लड़ाई नहीं की है तथा डीपीआरके के भीतर परमाणु हथियारों एवं प्रक्षेपास्त्रों के ज़खीरे में धीरे-धीरे बढ़ोतरी ही हुई है. डीपीआरके के प्रति अमेरिकी नीतियों में अपने सहयोगियों पर रणनीतिक अनिश्चितता थोपने का सिलसिला जारी है. चीन का जहां तक प्रश्न है तो अमेरिका आज भी उत्तरी कोरिया से चीन के रिश्तों का अनुमोदन नहीं करता.

चीन पर हालांकि, अनेक मुद्दों के संबंध में अमेरिकी दबाव — सबसे अधिक वाणिज्य — मुखर प्रतिस्पर्धा के पक्ष में बातचीत की रणनीति को तिलांजलि दे देने का है मगर चीन द्वारा उत्तरी कोरिया से कैसे बातचीत की जाए इस बारे में अमेरिकी रूख ख़ासा टिकाऊ रहा है

क्या जापान का प्रधानमंत्री बदलने अथवा अलग अमेरिकी राष्ट्रपति आने की संभावना इसे बदल देगी? हो सकता है, मगर हमारा आंकलन बताता है कि रणनीतिक अस्पष्टता की बुनियादी नीति में परिवर्तन संभव नहीं होगा अलबत्ता उसे हासिल करने की युक्तियां बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता.

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