Author : Sukrit Kumar

Published on Sep 05, 2018 Updated 0 Hours ago

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं।

वाजपेयी-युग की विदेश नीति

नेहरु से लेकर मोदी तक, हर प्रधान मंत्रियों के दौर को देख चुके और स्वयं तीन बार प्रधानमंत्री पद पर रह चुके भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी का 17 अगस्त को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। लाखों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया।

वाजपई जी ने शीत युद्धोत्तर काल में अमेरिका, इज़राइल और पूर्वी एशिया से अपने संबंधों को और बेहतर किया जिससे भारतीय हितों के दायरों में और भी इज़ाफा हुआ। यह उनकी दूरदर्शिता और सफल कूटनीतिज्ञता को दर्शाता है।

अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में मई 1998 में परमाणु बमों का सफल परीक्षण करने के बाद से भारत परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सूची में शामिल हो गया। यह देश के लिए एक अविस्मरणीय समय था जिसके बाद विश्व पटल पर एक नये और ऐतिहासिक भारत का उदय हुआ।

वाजपई जी ने शीत युद्धोत्तर काल में अमेरिका, इज़राइल और पूर्वी एशिया से अपने संबंधों को और बेहतर किया जिससे भारतीय हितों के दायरों में और भी इज़ाफा हुआ। यह उनकी दूरदर्शिता और सफल कूटनीतिज्ञता को दर्शाता है।

हालांकि उस समय के भारतीय नीति-निर्धारकों को इस बात का आभास हो गया था कि परमाणु अस्त्र और प्रक्षेपास्त्रों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को विश्वसनीय भयादोहन क्षमता (क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस) को विकसित करना चाहिए।

यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि चीन के सहयोग से परमाणु हथियार बना रहे पाकिस्तान ने गौरी (Ghauri) मिसाइल का सफलतापूर्वक प्रयोग कर लिया था। पाकिस्तान के सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन, गौरी मिसाइल के विकास को ‘दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का प्रयास’ बता रहे थे। गौरी के अलावा पाक ‘गज़नवी मिसाइल’ पर भी काम कर रहा था। वहीं चीन-पाकिस्तान की सांठ-गांठ के अलावा अमेरिका और जापान समेत कई पश्चिमी देश भारत पर कंप्रेहैंसिव न्यूक्लियर-टेस्ट-बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) पर साइन करने के लिए दबाव डाल रहे थे।

परमाणु शक्ति संपन्न देशों के संभावित नाराज़गी से विचलित हुए बिना वाजपेयी जी ने अग्नि श्रृंखला के और परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए मजबूत कदम उठाए। उन्होंने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि वह अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते नीतियों को नहीं बदलेंगे। उन्होंने कहा कि खतरा आने से पहले ही उसकी तैयारी होनी चाहिए।

हालांकि उस समय के भारतीय नीति-निर्धारकों को इस बात का आभास हो गया था कि परमाणु अस्त्र और प्रक्षेपास्त्रों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को विश्वसनीय भयादोहन क्षमता (क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस) को विकसित करना चाहिए।

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं। वह हमेशा भारत के पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंधों की वकालत किया करते थे लेकिन सुरक्षा की कीमत पर नहीं। कुछ इसी सोच के साथ वर्ष 1999 में न्यूयॉर्क में अटल जी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच एक मीटिंग के बाद दिल्ली-लाहौर के बीच बस सेवा शुरू की गई। कहा जाता है कि बस सेवा का सुझाव वाजपेयी जी का ही था जिससे दोनों देशों के लोग सीमा-पार स्थित अपने रिश्तेदारों से मिलने जुलने के लिए आ जा सकते हैं। अर्थात भारत-पाकिस्तान मित्रता का आधारभूत प्रयास किया और खुद उस बस में बैठकर दिल्ली से लाहौर गये लेकिन पाकिस्तान को हमेशा की तरह यह बात रास नहीं आया। इधर अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती की इबारत लिख रहे थे तो उधर पाकिस्तान ने कारगिल जंग की पूरी तैयारी कर ली थी। लाइन ऑफ कंट्रोल के पास कारगिल सेक्टर में आतंकियों के भेष में पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चौकियों पर कब्ज़ा कर चुके थे लेकिन जैसे ही भारत को पता चला तो हमारे जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान को एक बार फिर मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल में विजय पताका लहरा दी। एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व का लोहा दुनिया ने माना।

वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान भारत और चीन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें व्यापार और आपसी रिश्ते बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है। इसके अलावा इसमें तिब्बत को चीन का हिस्सा माना गया और दूसरी ओर चीन ने परोक्ष रूप से सिक्किम को भारत का अंग मान लिया।

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं। वह हमेशा भारत के पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंधों की वकालत किया करते थे लेकिन सुरक्षा की कीमत पर नहीं।

वाजपेई जी के शासनकाल के दौरान अमेरिकी सोच में हुए बदलाव को क्लिंटन की यात्रा में साफ तौर से देखा जा सकता है। दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान भारत-अमेरिकी संबंध: 21 वीं शताब्दी की एक परिकल्पना पर हस्ताक्षर किए एवं विगत की शंकाओं को दूर करने तथा विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के बीच अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ और गुणात्मक रूप से नए संबंध बनाने के लिए द्विपक्षीय संबंधों में एक नई उपयोगी दिशा देने के लिए रूपरेखा पर सहमत हुए। इस दौरान दोनों नेताओं ने एक विजन स्टेटमेंट पर भी हस्ताक्षर किए। राष्ट्रपति क्लिंटन की भारत यात्रा से भारत-अमेरिका के बीच वैश्विक सामरिक सहयोग के नए युग का सूत्रपात हुआ।

अमेरिका और इजराइल जैसे नये सहयोगी जुटाने और पुराने दोस्त रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी की नींव रखने वाली अटल सरकार की ही सोच थी। उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों के साझे प्रयासों की दिशा में नैसर्गिक गठजोड़ की प्रकृति को पहचाना था।

वाजपेयी जी ने अपने नेतृत्व कुशलता से सिर्फ विदेशी नीतियों में ही नहीं बल्कि घरेलू नीतियों में भी कई सारे सुधार किए। वाजपेयी जी ने सौ साल से ज्यादा लंबित पड़े रहे कावेरी जल विवाद को सुलझाने का अभूतपूर्व प्रयास किया। इसके अलावा उनके द्वारा शुरू किए गए स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, दूरसंचार क्रांति, पीएसयू का निजीकरण और सर्व शिक्षा अभियान की सराहना आज भी होती है।

अमेरिका और इजराइल जैसे नये सहयोगी जुटाने और पुराने दोस्त रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी की नींव रखने वाली अटल सरकार की ही सोच थी। उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों के साझे प्रयासों की दिशा में नैसर्गिक गठजोड़ की प्रकृति को पहचाना था।

अपनी उत्कृष्ट बुद्धि कौशल के जरिए भारतीय नीतियों के सुधार के संबंध में नरसिंहाराव की गढ़ी बुनियाद पर भव्य इमारत तैयार किया और वे खुश किस्मत भी थे क्योंकि डॉ. मनमोहन सिंह ने उनकी विदेश नीति के अहम पहलुओं को आगे जारी रखा।

बुनियादी रुप से अटल बिहारी वाजपेई विदेश नीति के शिल्पकार थे जो चीन, पाकिस्तान एवं अन्य राष्ट्रों के साथ संबंधों को सुधारने के लिए बेहद सजग, सचेत एवं गंभीर रहा करते थे। ये इनके व्यावहारिक सूझ-बूझ और रणनीतिक दृष्टिकोण का ही नतीजा था कि अन्य राष्ट्रों को भारत के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर होना पड़ता था। वाजपेई जी को भारतीय विदेश नीति में सिद्धांत, संयम और संकल्प का पालन करने वाले एक समावेशी व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाएगा।


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।

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