Author : Kabir Taneja

Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago

पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय तनावों को कम करने के लिए सारी उम्मीदें अब्राहम समझौतों से लगाने के बजाय, क्षेत्रीय भूमिधारकों (ऐक्टर्स) को संवाद के नये रास्ते भी स्थापित करने चाहिए.

अब्राहम समझौते: पश्चिम एशिया के लिए एक ख़ास भू-राजनीतिक औज़ार
अब्राहम समझौते: पश्चिम एशिया के लिए एक ख़ास भू-राजनीतिक औज़ार

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी युद्ध वैश्विक व्यवस्था के भीतर मौजूद कई गहरी दरारों को सामने ले आया है. अमेरिका द्वारा अपने सहयोगियों और साझेदारों को मास्को के ख़िलाफ़ एकजुट करने की कोशिशों के मिलेजुले नतीजे रहे. यूरोप तो बाध्य हुआ, लेकिन एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व अनिच्छुक दिखे. इसमें खाड़ी के अमेरिकी सहयोगी जैसे सऊदी अरब, यूएई व अन्य शामिल थे. इन देशों ने वाशिंगटन डीसी और मॉस्को के बीच कोई पक्ष चुनने के बजाय अपने क्षेत्रीय और रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दी.  

ईरान और इज़राइल के बीच जारी एक अनकहे, अघोषित युद्ध में रेफरी की भूमिका अदा करने के लिए यूएई आज एक बिल्कुल उपयुक्त जगह पर खड़ा है. इस तरह के विचारों की बुनियाद यह है कि अब्राहम समझौतों ने अरब-इसराइली मसलों को कमोबेश ख़त्म कर दिया है और अब सारी ऊर्जा तेहरान की ओर केंद्रित की जा सकती है और की जानी चाहिए.

इस संकट की व्यापक होती छतरी के तले, अभी लगभग ठहरी हुई ईरान न्यूक्लियर डील (जिसे आज ज़्यादातर जेसीपीओए 2.0 के रूप में जाना जाता है) को पुनर्जीवित करने जैसे दूसरे महत्वपूर्ण भूराजनीतिक उपक्रम पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) के क्षेत्रीय तनावों के मूल में हैं. अब्राहम समझौतों (Abraham Accords) ने यूएई की अगुवाई वाले अरब देशों के एक समूह और इज़राइल के बीच संबंधों को सामान्य किया. इसे इस लिहाज़ से एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखा गया कि अरब दुनिया और इज़राइल अपने दीर्घकालिक मतभेदों को दरकिनार करने और उस बेरोक ख़तरे पर ध्यान केंद्रित करने को तैयार हैं जो भविष्य में ईरान की ओर से पेश आने वाला है. कुछ लोगों का तर्क है कि ईरान और इज़राइल के बीच जारी एक अनकहे, अघोषित युद्ध में रेफरी की भूमिका अदा करने के लिए यूएई आज एक बिल्कुल उपयुक्त जगह पर खड़ा है. इस तरह के विचारों की बुनियाद यह है कि अब्राहम समझौतों ने अरब-इसराइली मसलों को कमोबेश ख़त्म कर दिया है और अब सारी ऊर्जा तेहरान की ओर केंद्रित की जा सकती है और की जानी चाहिए. 

वार्ताओं का दौर

इसमें कोई संदेह नहीं कि इन समझौतों ने थोड़े ही समय में कुछ अच्छी सफलताएं देखी हैं, लेकिन इसी एक क़रार के बूते व्यापार एवं तकनीक से लेकर क्षेत्रीय हथियार नियंत्रण तक, तमाम दीर्घकालिक क्षेत्रीय पेचीदगियों को झटपट हल कर लेने का भरोसा करना बहुत ज़्यादा उम्मीद पालना होगा. उदाहरण के लिए, एक दीर्घकालिक उम्मीद यह भी है कि सऊदी अरब भी इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बना लेगा और अब्राहम समझौतों में शामिल होगा, जो इसे सीरिया और यमन जैसी रंगभूमियों में ईरानी आक्रामकता के ख़िलाफ़ एक ब्लॉक के बतौर ठोस स्वरूप प्रदान करेगा. नवंबर 2020 में, पूर्व इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान से निर्माणाधीन सऊदी मेगाप्रोजेक्ट-सिटी नियोम (Neom) में कथित तौर पर मुलाक़ात की. रियाद ने इनकार किया, लेकिन यह क्षेत्र का सबसे बुरे तरीक़े से छिपा कर रखा गया राज़ है कि दोनों देशों ने बंद दरवाज़ों के पीछे सलाह-मशविरा किया है.

हालांकि, सऊदियों ने ईरान से सीधे बात करने की एक अलग राह भी शुरू की है. इराक़, एक देश जो रियाद और तेहरान के बीच एक अहम पड़ाव है, दोनों पक्षों के बीच वार्ताएं आयोजित करता रहा है. वार्ताओं में दूतावास दोबारा खोलने जैसे उत्तम लक्ष्य भी शामिल हैं. एक प्रमुख शिया धार्मिक नेता को मृत्युदंड के उपरांत प्रदर्शनकारियों द्वारा सऊदी मिशन पर धावा बोलने के बाद सऊदियों ने जनवरी 2016 में ईरान में अपना दूतावास बंद कर दिया था. जनवरी में ईरानी अधिकारियों के इस्लामी सहयोग संगठन के मुख्यालय में राजनयिक पदों को संभालने के लिए जेद्दा पहुंचने के साथ, वार्ता की कुछ हद तक सफलता नज़र आयी है. पिछले महीने, इराक़ के प्रधानमंत्री मुस्तफ़ा अल-कदीमी ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि दोनों देशों के बीच बात बनने के क़रीब है.

एक प्रमुख शिया धार्मिक नेता को मृत्युदंड के उपरांत प्रदर्शनकारियों द्वारा सऊदी मिशन पर धावा बोलने के बाद सऊदियों ने जनवरी 2016 में ईरान में अपना दूतावास बंद कर दिया था. जनवरी में ईरानी अधिकारियों के इस्लामी सहयोग संगठन के मुख्यालय में राजनयिक पदों को संभालने के लिए जेद्दा पहुंचने के साथ, वार्ता की कुछ हद तक सफलता नज़र आयी है.

दो क्षेत्रीय ध्रुवों के बीच ऐसी किसी पुनर्मैत्री का जो समय है, वह क़तई अशुभ संकेत नहीं है. आज खाड़ी में, ज़रूरत पड़ने पर उनकी और उनके हितों की रक्षा के लिए सैन्य हस्तक्षेप करने की अमेरिका की क्षमता और इच्छाशक्ति को लेकर काफ़ी चिंता है. यमन में हूती लड़ाकों, जिन्हें ईरान द्वारा समर्थित माना जाता है, द्वारा तेल संयंत्रों जैसी सऊदी आर्थिक संपत्तियों पर लगातार हमलों, और हाल ही में, अबू धाबी के ख़िलाफ हूती ड्रोन हमलों को अमेरिका की ओर से काफ़ी कमज़ोर प्रतिक्रिया मिली. इसने सऊदियों और अमेरिका के बीच जारी अनबन को और बढ़ाया. अंततोगत्वा यूएई और खाड़ी के दूसरे हिस्सों में एफ-22 विमानों और दूसरी सैन्य संपत्तियों की तैनाती की गयी, लेकिन इसने अमीरात और सऊदियों को कुछ ख़ास आश्वस्त नहीं किया. इसमें एक रद्दा और चढ़ाते हुए, एक प्रमुख अमीराती बुद्धिजीवी अब्दुलखालिक़ अब्दुल्ला ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की यूएई यात्रा के दौरान ट्वीट किया कि ईरान की क्षेत्रीय कार्रवाइयों के जवाब में अब इस्लामाबाद की मदद से एक ‘खाड़ी परमाणु हथियार’ विकसित करने का वक़्त आ गया है.

क्षेत्रीय टकराव और विभाजन का डर

क्षेत्र के एक राष्ट्र क़तर ने इसका कुछ लाभ उठाया, जिसने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के साथ एक डील तक पहुंचने में अमेरिका की मदद की, जो फ़लस्तीन संबंधी मुद्दों पर मदद के लिए इज़राइल तक पहुंच रहा है तथा नाभिकीय समझौते को धराशायी होने से बचाने के लिए अब पश्चिम और ईरान की मदद की कोशिश कर रहा है. दोहा के इन प्रयासों की प्रशंसा में, अमेरिका ने इस साल मार्च में क़तर को, अबू धाबी और रियाद की व्यवहारवादी राजनीति के बरक्स भूमिका लेने के लिए, आधिकारिक रूप से एक ‘बड़ा गैर-नेटो सहयोगी’ क़रार दिया.

अमेरिकी दृष्टिकोण से बात करें, तो उपरोक्त सभी मुद्दों (और अन्य को भी) को क्षेत्रीय समस्याओं के क्षेत्रीय समाधान ढूंढ़ने के लिए अब्राहम समझौतों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना चाहिए. हालांकि, वर्षों से ठीक यही मांग रही है, लेकिन खाड़ी देश उसी गति से जूझ रहे हैं जिस गति से मध्य पूर्व के लिए अमेरिकी इच्छाशक्ति ख़त्म हो रही है. अब्राहम समझौतों का यह स्वत: अर्थ नहीं है कि लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय मुद्दे अब हल हो गये हैं. वास्तव में, समझौतों को अक्सर राज्य से राज्य के संबंधों की सफलता के रूप में देखा जाता है, और यह आवश्यक नहीं कि इसे लोगों से लोगों के संबंधों के आधार पर देखा जाए. यह जोख़िम की परतों को बढ़ाता है कि क्षेत्रीय टकराव और विभाजन भविष्य में किस तरह सामने आयेंगे. केवल एक अंतर यह आयेगा कि क्षेत्रीय भूमिकाधारक व राज्य नतीजों तथा जो भी घटित होगा उसके लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार होंगे.

अब्राहम समझौतों का यह स्वत: अर्थ नहीं है कि लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय मुद्दे अब हल हो गये हैं. वास्तव में, समझौतों को अक्सर राज्य से राज्य के संबंधों की सफलता के रूप में देखा जाता है, और यह आवश्यक नहीं कि इसे लोगों से लोगों के संबंधों के आधार पर देखा जाए. 

मध्य पूर्व में अमेरिकी मौजूदगी बनी रहेगी, लेकिन इसके साथ शर्तों का बोझ भी रहेगा, जो क्षेत्रीय शक्तियों को दीर्घकालिक रणनीतिक और गतिज मुद्राओं (kinetic postures) का विविधीकरण करने के लिए बाध्य करेगा. और अब्राहम समझौते भले ही ऐसी भूराजनीतिक टूलकिट का सबसे ख़ास औज़ार हैं, लेकिन वक़्त से पहले ही इसके अधिदेश (मैंडेट) पर बोझ लाद देने के नतीजे उससे विपरीत हो सकते हैं जिसकी उम्मीद इस समझौते से लंबी अवधि में हासिल होने की है.

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.