हाल में सम्पन्न अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों के समान ही ब्रेक्सिट (ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाना) का परिणाम भी व्यवस्था के लिए आघात के समान था। टीकाकार, मतदान सर्वेक्षक और तो और दोनों पक्षों के प्रमुख राजनीतिज्ञ भी न सिर्फ अब तक इसके कारणों की व्याख्या करने में अक्षम रहे हैं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर इस बात पर हैरान हैं कि आखिर ब्रिटिश मतदाताओं के मन को समझने वे कैसे नाकाम रहे। अमेरिकी चुनावों की ही तरह, इसके वास्तविक रूप अख्तियार करने की उग्रता ने संभवतः ब्रिटिश जानकारों को राष्ट्र या कम से कम ब्रिटिश मतदाताओं के प्रभुत्वशाली वर्गों के असली मिज़ाज की भनक तक नहीं लगने दी।
डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन की ही तरह, दुनिया भर के टीकाकारों, जानकारों और विशेषज्ञों ने ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने के कारणों को कई तरह से समझाने की कोशिश की है। जी हां, ऐसे अनेक वीडियो हैं, जिनमें ब्रेक्सिट के आशय की समझ न होने को इसका कारण बताया गया है, इनमें सामान्य “ओह मैंने नहीं सोचा था कि मेरे वोट की इतनी अहमियत होगी” जैसी टिप्पणी से लेकर अनियंत्रित अप्रवासन (एक मामले में ‘अफ्रीका, सीरिया और इराक’) से घरेलू उद्योग की रक्षा करने जैसी बेतुकी बातों तक अथवा ‘इंग्लैंड के अगली बार यूरोज़ के लिए क्वालीफाई नहीं करने पर एक्जिट के बाद लोगों को टूर्नामेंट नहीं देखना होगा’ की चर्चा करने वाले हमारी व्यक्तिगत पसंद वाले यू ट्यूब वीडियो तक-शामिल हैं। लेकिन ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से बाहर क्यों हुआ, इस प्रश्न का वास्तविक उत्तर जानने के लिए, स्थानीय आबादी की जांच करने की आवश्यकता होगी। यहां अस्वीकरण उचित रहेगा, क्योंकि ब्रिटेन की संसद में इस शहर का केवल एक ही सांसद होने के मद्देनजर ब्रेक्जिट के पक्ष में जनता के वोट देने के कारणों की पड़ताल करने के लिए ब्राइटन शहर कोई आदर्श स्थान नहीं है और वास्तविकता यह है कि यहां की 68 प्रतिशत आबादी ने यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्ष में मत दिया था, जबकि चंद लोग ऐसे थे, जो यूरोपीय संघ से हटने के फैसले पर अडिग थे। उनके ऐसा चाहने के कारण निम्नेलिखित हैं:
ब्रेक्सिट के पक्ष में मत देने का सबसे प्रमुख कारण आर्थिक रहा। संक्षेप में कहें, तो देश के उत्तरी और भीतरी भागों (मिडलैंड्स) के निवासियों ने नौकरियां जाते और स्थिति को कभी नहीं संभलते देखा है, जबकि दक्षिण-पूर्व और विशेषकर लंदन ने तेजी से विकास किया। अमेरिका में शारीरिक श्रम करने वाले कामगारों के मतों के बल पर विजयी होने वाले डोनाल्ड ट्रम्प (जिन्होंने स्वयं अपनी जीत को ब्रेक्सिट प्लस, प्लस, प्लस का नाम दिया है) की ही तरह रस्ट बेल्ट के क्षेत्रों ने यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में बड़ी तादाद में मतदान किया। इनमें अमूमन वही क्षेत्र थे, जो विऔद्योगिकरण के कारण खोखले हो चुके हैं। आर्थिक दलील के समर्थकों ने फौरन यूरोपीय संघ से हटने संबंधी प्रचार के ब्रोशर को दोबारा याद दिलाया, जिसमें तीन मुख्य दलीलें दी गईं हैंः
पहली दलील यह है कि इसने इन क्षेत्रों में व्याप्त नौकरियों और वेतन के अभाव और प्रवासी मजदूरों के प्रवेश, जिनके पास नौकरियां थीं, के बीच एक सीधा-सादा संबंध जोड़ दिया। दूसरी दलील है कि इन्होंने मतदाताओं से कहा कि यूरोपीय संघ से हटने के बाद ब्रिटेन, ब्रसेल्स पहुंच चुका अपना सारा धन वापस ला सकेगा और इस धन को एनएचएस के अलावा अन्य चीजों पर खर्च किया जा सकेगा। आखिर में, इस बात पर जोर दिया गया कि यूरोपीय संघ की अड़चनों से मुक्त होकर, ब्रिटेन दुनिया भर के साथ कारोबार कर सकेगा। न केवल पिछले 30 बरसों से मंदी के हालात में जीवन व्यतीत कर रहे ये मतदाता ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से हटने के बाद मंदी के खतरे के प्रति अप्रभावित थे, बल्कि उन्हें उनके प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए। मुझे नौकरी क्यों नहीं मिल सकी? सर्वेक्षण। सार्वजनिक सेवाएं चरमराने के कगार पर क्यों हैं? यूरोपीय संघ के धनवान राजनीतिक दानदाता और नौकरशाह। और उनके उत्तर आज भी वही हैं।
आर्थिक विभाजन के साथ ही साथ, ब्रेक्सिट ने ब्रिटिश समाज की गहरी सांस्कृतिक दरारों को भी उजागर किया है। जो ज्यादा समृद्ध मध्य-वर्गीय मतदाता थे, उनमें वृद्ध और श्वेत लोगों की प्रबलता थी। इन मतदाताओं और इनके कम समृद्ध इनके समकक्षों के लिए ‘नियंत्रण वापस लो’ (टेक बैक कंट्रोल) सिर्फ राजनीतिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक संप्रभुता का वादा था, वह भी एक ऐसे देश में, जिसमें वे खुद को पीछे छूट गया महसूस करते थे।
डेविड कैमरन पहले ही स्वीकार कर चुके थे कि देशवासियों से यूरोपीय संघ के साथ बने रहने की विनती करने से पूर्व बहुसंस्कृतिवाद की बात सफल नहीं रही थी। यहां तक कि यूरोपीय संघ के साथ बने रहने के पक्षधर मतदाताओं के बहुमत ने भी स्वीकार किया कि अप्रवासन बहुत अधिक था। हालांकि अप्रवासन के फायदों की समझ, यूरोपीय संघ से हटने के पक्षधर मतदाताओं को और यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर मतदाताओं से अलग करती थी। यूरोपीय संघ से हटने के पक्षधर मतदाताओं के लिए अप्रवासन के ठोस फायदों के अभाव ने, विशेषकर देश में आने वाले अप्रवासियों के कारण कामगारों के अपनी नौकरियां गंवाने को लेकर हो रहा विरोध, यूरोपीय संघ से हटने के पक्ष में मतदान के लिए काफी था।
जनमत संग्रह से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण आंकड़े संभवतः वे थे, जिन्होंने दर्शाया कि जिन क्षेत्रों में यूरोपीय संघ से हटने के पक्षधरों को बड़ी जीत मिली, वे ऐसे क्षेत्र थे, जहां बहुत कम आंतरिक प्रवासन हुआ। ये वे लोग थे, जिन्होंने पोलैंड के किफायती, बेहतर बिल्डर्स और प्लम्बर्स का लाभ नहीं उठाया था, जिनका इलाज दक्षिण एशियाई डाॅक्टरों और नर्सों ने नहीं किया था और जिन्हें बहुसांस्कृतिकवाद को प्रमुख रूप से युवा, ज्यादा महानगरीय मतदाताओं को बहुत उल्लास का अहसास कराने वाले रेस्तरांओं, त्योहारों और अन्य वस्तुओं का अनुभव नहीं मिला था।
यूरोपीय संघ से हटने और यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर मतदाताओं को सीधे तौर पर बांटने वाली रेखा सांस्कृतिक जान पड़ती है। नयी राजनीतिक जंग की बिसात बिछ चुकी है और आर्थिक तौर पर परिभाषित वामपंथी/दक्षिणपंथी जातियों के सांचे के अनुरूप बैठने की बजाए, वह सामाजिक रूप से पुरातनपंथ और सामाजिक रूप से उदारवाद के बीच नया राजनीतिक विभेद दर्शाती प्रतीत होती हैं।
भविष्य की राह
जहां एक ओर आर्थिक पहलुओं ने यूरोपीय संघ से हटने की दलील में दरारें उत्पन्न करने की शुरूआत कर दी है, वहीं यूरोपीय संघ के साथ जुड़े रहने संबंधी प्रचार के नए सिरे से शुरू होने की संभावना है। एनएचएस को नकदी मिलने संबंधी वादों के गायब होते ही, घाटा बढ़ता है और साझा बाजार तक पहुंच का महत्व अत्यावश्यक हो जाता है, हां फायदों के लिए यूरोपीय संघ को धन भेजे जाने से आशा है कि मतदाताओं के नजरिए बदलाव आएगा, जिससे राजनीतिज्ञों को कम से कम ‘साॅफ्ट ब्रेक्सिट’ या आदर्श रूप से इस प्रक्रिया को पूर्णतया रोकने के बारे में चर्चा करने की अनुमति मिल सकेगी। हालांकि सांस्कृतिक कारण इस ओर संकेत करते हैं कि वापसी की संभावना नहीं है।
सरकार ने ब्रेक्सिट के बारे में हुए मतदान को उदारवाद, महानगरीय कुलीन को खारिज किए जाने के रूप में ग्रहण किया है और ऐसा करते हुए, यह लगता है कि उसने एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की आजादी को अपनी प्राथमिकता मानना समाप्त कर दिया है। यूरोपीय संघ द्वारा अपनी ‘चार स्वतंत्रताओं’ को अविभाज्य बताए जाने के मद्देनजर, ऐसी संभावना है कि बेरोक-टोक कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता समाप्त करने की सरकार की मंशा को ब्रेक्जिट समझौता स्वीकार करना ही होगा, जो साझा बाजार तक ब्रिटेन की पहुंच और वस्तुओं एवं सेवाओं की स्वतंत्र आवाजाही को सख्ती से प्रतिबंधित करता है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ से हटने/यूरोपीय संघ में बने रहने को लेकर नयी राजनीतिक मोर्चाबंदियां हो चुकी हैं, कुछ राजनीतिज्ञ यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के हटने का विरोध करते हुए अपनी संसद सदस्यता को जोखिम में डालना चाहते हैं। रिचमंड पार्क उपचुनावों में लिबरन डेमोक्रेट्स को मिली जीत के बावजूद, जो यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधरों की स्पष्ट जीत थी, यदि देश भर में ये राजनीतिक मोर्चांबंदियां फिर से हो जाएं, तो भी यूरोपीय संघ से हटने के पैरोकार बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं।
इस बात की संभावना है कि ब्रिटेन को राजनीतिक निर्बलता के दौर का सामना करना होगा, जबकि सरकार कार्यनीति का निर्माण करने में जुटी रहेगी और समस्त राजनीतिक मामलों को ब्रेक्सिट के बारे में स्थानीय नजरिया के चश्मे से देखा जाएगा। विभिन्न ब्रिटिश समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किए जाने के बावजूद, ऐसा लगता है कि यूरोपीय संघ से हटने के पक्ष में मतदान करने वालों ने और ज्यादा सवाल ही खड़े किए हैं। न्यायालयों द्वारा यूरोपीय संघ से वास्तव में हटने के बारे में संसदीय सर्वसम्मति बनाने का आदेश देने जैसी हाल की घटनाओं अथवा इस निर्णय को अनुमोदित करने वाले शीघ्र घटित होने वाले फैसले के बावजूद, ब्रिटेन में लम्बे अर्से तक मतभेद और दुविधा की स्थिति बनी रहेगी, जिसके लिए दोनों में से कोई भी पक्ष तैयार नहीं है। अंतिम निष्कर्ष चाहे कुछ भी हो, फिलहाल इस समय बेरोक-टोक आने-जाने की स्वतंत्रता की समाप्ति और तथाकथित ‘यूरोपीय संघ के अधिपतियों’ से अलग होने के फैसले का ही पलड़ा भारी है, जो यूरोपीय संघ से हटने के पक्षधरों को कुछ देर के लिए प्रोत्साहन देने का कार्य करेगा, यह जहां एक ओर सहायकों को ब्रिटेन के भीतर देश की पुरानी संस्कृति की याद दिलाएगा, वहीं दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक स्वतंत्र वैश्विक प्रतिस्पर्धी की भूमिका प्रदान करेगा। अपने पूर्व उपनिवेश -अमेरिका से मेक यूके ग्रेट अगेन का नारा उधार लेना इस समय उसके लिए बिल्कुल मुनासिब जान पड़ता है।
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