Author : Aarshi Tirkey

Published on Dec 10, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिका ने ये प्रतिबंध ऐसे ऐप, तकनीक और निवेश को रोकने के लिए लगाए हैं, जिनसे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंच सकती है.

अमेरिका  – चीन के बीच चल रहे व्यापारिक और तकनीकी जंग में खुल गया है नया मोर्चा

पिछले एक साल से कुछ ज़्यादा समय में ट्रंप प्रशासन ने कई व्यापक क़दम उठाए हैं, जिससे कि वो चीन की तकनीक, निवेश, सामान और सेवाओं को अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश करने से रोक सकें. इत्तेफ़ाक से अमेरिका ने ये व्यापक नीतिगत क़दम तब उठाए हैं, जब चीन के महत्वपूर्ण तकनीक हासिल करने, निगरानी और जासूसी करने की आशंका और ऐसी तकनीक का चीन के राजनीतिक हित साधने के लिए इस्तेमाल करने की आशंका बढ़ती जा रही है. अमेरिका ने ये प्रतिबंध ऐसे ऐप, तकनीक और निवेश को रोकने के लिए लगाए हैं, जिनसे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंच सकती है. ये उपाय चीन की बढ़ती ताक़त को रोकने वाली अमेरिका की नीति का हिस्सा हैं- क्योंकि अमेरिका चीन को अपने विदेशी दुश्मन के तौर पर देखता है- लेकिन इसके साथ ही अमेरिका ने चीन और उसकी कंपनियों पर लगाए गए इन प्रतिबंधों का इस्तेमाल दूसरे देशों को चीन से आर्थिक संबंध प्रगाढ़ करने से रोकने के लिए भी किया है.

अमेरिका ने चीन की बढ़ती शक्ति पर क़ाबू पाने के लिए कई क़ानून और नियमों जैसे कि निर्यात पर नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाएं, लाइसेंसिंग की ज़रूरत और वीज़ा पर पाबंदी जैसे क़दम उठाए हैं. इनसे दुनिया भर के कारोबारों, व्यक्तियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए नए जोख़िम पैदा हो गए हैं. 

अमेरिका ने चीन की बढ़ती शक्ति पर क़ाबू पाने के लिए कई क़ानून और नियमों जैसे कि निर्यात पर नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाएं, लाइसेंसिंग की ज़रूरत और वीज़ा पर पाबंदी जैसे क़दम उठाए हैं. इनसे दुनिया भर के कारोबारों, व्यक्तियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए नए जोख़िम पैदा हो गए हैं. अमेरिका के इन नियमों से न केवल चीन की तकनीकी कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ता है, बल्कि इससे अमेरिका और दुनिया की अन्य तकनीकी कंपनियों के हितों पर भी चोट पड़ने का ख़तरा बढ़ गया है. ट्रंप प्रशासन को चीन पर लगाए गए  प्रतिबंधों के ऐसे आयामों का भी अंदाज़ा है. इसीलिए, अमेरिकी सरकार तमाम अन्य देशों और कंपनियों से भी अपील कर रही है कि वो उसके प्रतिबंधों से तालमेल बिठाने वाली नीतियां बनाकर अपने जोख़िम कम करने की कोशिश करें. उदाहरण के लिए, कुछ क़ानून जैसे कि एक्सपोर्ट कंट्रोल रिफ़ॉर्म एक्ट (ECRA) औपचारिक तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए ये शर्त रखता है कि वो अन्य देशों की सरकारों और बहुपक्षीय संगठनों से सहयोग बढ़ाए, जिससे कि वो भी चीन पर अमेरिका की तरह ही निर्यात संबंधी प्रतिबंध लगाएं.

अमेरिका द्वारा चीन को क़ाबू करने के लिए उठाए गए कुछ बड़े क़दमों की टाइमलाइन कुछ इस तरह से है:

अगस्त 2018: एक्सपोर्ट कंट्रोल रिफॉर्म एक्ट (ECRA) से चीन को उभरती हुई या ऐसी बुनियादी तकनीकों का निर्यात प्रतिबंधित होता है जिनका सिविलियन के साथ साथ सैन्य उपयोग (यानी दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीक) भी हो सकता है.

अगस्त 2018: फॉरेन इन्वेस्टमेंट रिस्क रिव्यू मॉडर्नाइज़ेशन एक्ट (FIRRMA) राष्ट्रपति और अमेरिका की विदेशी निवेश संबंधी समिति (CFIUS) के उन अधिकारों का दायरा बढ़ाता है, जिससे कि वो किसी विदेशी निवेश या लेन-देन की समीक्षा कर सकते हैं, और राष्ट्रीय सुरक्षी संबंधी चिंताओं को देखते हुए आवश्यक क़दम उठा सकते हैं.

मई 2019: हुआवेई और इसकी सहयोगी 114 कंपनियों को अमेरिका की एनटिटी लिस्ट में शामिल कर लिया गया, जिससे कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफ़ाज़त की जा सके और इन कंपनियों को अमेरिकी तकनीक और सॉफ्टवेयर हासिल करने से रोका जा सके. जो कंपनियां हुआवेई और इसकी सहयोगी कंपनियों को अपने उत्पादों का निर्यात करना चाहती हैं, उन्हें इसके लिए लाइसेंस हासिल करना अनिवार्य कर दिया गया.

जुलाई 2020: चीन की कुछ तकनीकी कंपनियों के कर्मचारियों पर वीज़ा संबंधी पाबंदियां लगा दी गईं. ये वो लोग हैं जिनकी कंपनियां विश्व भर में मानव अधिकारों के दुरुपयोग के लिए संसाधन उपलब्ध कराते हैं.

अगस्त 2020: राष्ट्रपति द्वारा जारी कार्यकारी आदेश से टिकटॉक और वीचैट को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा घोषित कर दिया गया. अमेरिका के वाणिज्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफ़ाज़त के लिए वीचैट और टिकटॉक से लेन-देन (जिसमें कंटेंट की डेलिवरी और इंटरनेट होस्टिंग सेवाएं शामिल हैं) पर प्रतिबंध लगाने का एलान किया.

अगस्त 2020: प्रत्यक्ष विदेशी उत्पाद के नियम (FDPR) में और संशोधन करके हुआवेई के अमेरिकी तकनीक हासिल करने पर और सख़्त प्रतिबंध लगा दिए गए. अब कंपनियां अपने कारोबार को जारी रखने के लिए लाइसेंस ले सकती थीं. लेकिन, ट्रंप प्रशासन ने कहा कि कंपनियां ये मान कर चलें कि आम तौर पर उन्हें ऐसे लाइसेंस नहीं मिलेंगे.

अक्टूबर 2020: अमेरिका ने उभरती हुई तकनीकों के छह वर्गों के निर्यात(जिन पर 2019 के वासेनार व्यवस्था के महाधिवेशन में सहमति बनी थी) पर नए प्रतिबंधों का ऐलान किया. इनका असर उन कंपनियों पर पड़ेगा, जो उच्च तकनीक के क्षेत्र जैसे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, सेमी-कंडक्टर्स, बायोटेक्नोलॉजी और अन्य उच्च उत्पादों के क्षेत्र में काम कर रही हैं.

शुरू में ब्रिटेन ने हुआवेई को अपने यहां के 5G संचार नेटवर्क बिछाने की इजाज़त दे दी थी. लेकिन, बाद में ब्रिटेन ने घोषणा की कि वो वर्ष 2027 तक अपने 5G नेटवर्क से हुआवेई को निकाल बाहर करेगा. ऐसे क़दमों से हुआवेई के चिप विभाग हाईसिलिकॉन पर असर पड़ने की आशंका है 

उपरोक्त क़दमों के चलते सूचना एवं संचार तकनीक एवं सेवाओं से जुड़ी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. मिसाल के तौर पर, अमेरिका द्वारा अपने प्रत्यक्ष विदशी उत्पाद नियम (FDPR) में संशोधन का हवाला देकर ही ब्रिटेन ने हुआवेई को लेकर अपनी नीति में बदलाव किया- शुरू में ब्रिटेन ने हुआवेई को अपने यहां के 5G संचार नेटवर्क बिछाने की इजाज़त दे दी थी. लेकिन, बाद में ब्रिटेन ने घोषणा की कि वो वर्ष 2027 तक अपने 5G नेटवर्क से हुआवेई को निकाल बाहर करेगा. ऐसे क़दमों से हुआवेई के चिप विभाग हाईसिलिकॉन पर असर पड़ने की आशंका है, जबकि चीन के मेड इन चाइना प्लान 2025 के तहत इस कंपनी से अपेक्षा थी कि वो उच्च तकनीकों का विकास करेगी.

चीन का अमेरिका पर जवाबी हमला

अमेरिका द्वारा उठाए गए इन क़दमों के जवाब में चीन ने भी जवाबी कार्रवाई करने में देर नहीं की. चीन ने भी अमेरिका के साथ व्यापार, निवेश और तकनीकों के क्षेत्र में ऐसे ही प्रतिबंध लगाए हैं. चीन के ये नए क़ानून उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास संबंधी हितों के संरक्षण की नीयत से बनाए गए हैं. इन क़ानूनों को अगर समेकित दृष्टि से देखें तो इनके माध्यम से उन कंपनियों और संस्थाओं को दंडित किया जा सकता है, जो उन विदेशी निर्देशों का पालन करेंगे, जिनसे चीन के सरकारी और कारोबारी हितों को नुक़सान पहुंच सकता है. अमेरिका की ही तरह, चीन के इन क़दमों, नीतियों और क़ानूनों में परिवर्तन की टाइमलाइन कुछ इस तरह है, जिनसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों, तकनीक, व्यापार और निवेश पर असर पड़ सकता है:

अक्टूबर 2018: चीन ने इंटरनेशनल क्रिमिनल जस्टिस असिस्टेंस लॉ (the ‘ICJAL’) बनाया, जिससे चीन में रहने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं पर किसी अन्य देश में चलने वाले आपराधिक मुक़दमों में सहयोग देने पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. इससे अन्य देशों द्वारा चीन के नागरिकों और संस्थाओं के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने की क्षमता को सीमित किया जा सकेगा.

मार्च 2019: चीन ने अपने सुरक्षा क़ानूनों में नयी धारा 177 जोड़ी जिससे चीन में ‘शेयरों के कारोबार संबंधी गतिविधियों’ से जुड़ी सूचना को बिना स्टेट काउंसिल की अनुमति के किसी अन्य देश या संस्था को नहीं दिया जा सकेगा.

सितंबर 2020: चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने भरोसे के नाक़ाबिल संस्थाओं की सूची संबंधी प्रावधान जारी किए. ये लिस्ट आधारित प्रतिबंधों की व्यवस्था है, जिसके माध्यम से उन कंपनियों और व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है, जो चीन की संप्रभुता या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माने जाएं या/और चीन की संस्थाओं से विभेद करें.

अक्टूबर 2020: चीन ने एक निर्यात पर नियंत्रण संबंधी क़ानून बनाया, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, जनहित या पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कुछ ख़ास उच्च तकनीकों (जैसे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस) के निर्यात को प्रतिबंधित या सीमित किया जा सकता है. चीन के इस क़ानून के  उल्लंघन करने पर भारी आर्थिक जुर्माना लगाने और कारोबार पर प्रतिबंध लगाने के प्रावधान हैं. इस क़ानून का दायरा बहुत व्यापक है और ये उच्च तकनीक संबंधी कंपनियों, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों पर लागू होगा.

वो बहुराष्ट्रीय कंपनियां, व्यापार और व्यक्ति, जिन पर अमेरिका और चीन की तनातनी का विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है, उन्हें आगे चलकर पेचीदा कारोबारी फ़ैसले लेने को मजबूर होना पड़ सकता है. 

उपरोक्त क़ानूनों की मदद से चीन को वो क़ानूनी ढांचा मिल जाता है जिससे कि वो अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और चीनी कंपनियों जैसे हुआवेई, ZTE, बाइटडांस (टिकटॉक) और टेनसेंट (वीचैट) पर की गई कार्रवाई पर पलटवार कर सकता है. इससे अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार एवं तकनीकी युद्ध में एक नया आयाम जुड़ गया है और इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में और बाधा पड़ने की आशंका है. वो बहुराष्ट्रीय कंपनियां, व्यापार और व्यक्ति, जिन पर अमेरिका और चीन की तनातनी का विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है, उन्हें आगे चलकर पेचीदा कारोबारी फ़ैसले लेने को मजबूर होना पड़ सकता है.

भरोसे के नाकाबिल कंपनियां ‘ब्लैकलिस्टेड’

उदाहरण के लिए चीन की भरोसे के नाक़ाबिल एनटिटी लिस्ट (UEL) एक ऐसी सूची जिसमें दर्ज संस्थाओं को निशाना बनाकर प्रतिबंध और निर्यात संबंधी पाबंदियां ठीक उसी तरह लगाई जा सकती हैं, जैसे कि अमेरिका की एनटिटी लिस्ट के ज़रिए लगाई जाती हैं. अगर किसी विदेशी संस्था से चीन की ‘राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा या विकास संबंधी हितों को ख़तरे की आशंका’ है, या फिर वो ‘व्यापार और बाज़ार के लेन-देन के सामान्य सिद्धातों का उल्लंघन करते हुए चीन की कंपनियों के साथ लेन-देन को निलंबित करती और अधिकारों व हितों को नुक़सान पहुंचाती है’, तो उसे इस सूची के तहत ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. चीन की UEL के प्रावधान अधिकारियों को इस बात का व्यापक अधिकार देते हैं, जिससे कि वो तय कर सकें कि किसी संस्था ने क़ानून का उल्लंघन किया है या नहीं. अगर किसी कंपनी को क़ानून के उल्लंघन के कारण निलंबित किया जाता है, तो इसकी तफ़्तीश होगी और किसी विदेशी संस्था को अपनी बात कहने या अपने बचाव में तर्क रखने का मौक़ा दिया जाएगा.

अगर कोई विदेशी संस्था या कंपनी चीन की UEL के दायरे में रखी जाती है, तो इस पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जा सकती हैं. इनमें चीन में निवश और व्यापार करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना शामिल है. 

अगर कोई विदेशी संस्था या कंपनी चीन की UEL के दायरे में रखी जाती है, तो इस पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जा सकती हैं. इनमें चीन में निवश और व्यापार करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना शामिल है. इसके अलावा, विदेश की जो कंपनियां UEL में रखी जाएंगी, उनके साथ व्यापार करने के लिए चीन की कंपनियों को विशेष रूप से लाइसेंस की अर्ज़ी देनी पड़ेगी. ये ठीक वैसी ही व्यवस्था है, जैसी अमेरिका की एनटिटी लिस्ट के तहत है. अभी तो चीन ने UEL में आने वाली कंपनियों की सूची जारी करने की किसी टाइमलाइन का लान नहीं किया है. हालांकि, ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस बात का वर्णन विस्तार से किया गया है कि ब्रिटेन के HSBC बैंक और अमेरिका की डिलिवरी सेवाएं देने वाली कंपनी फेडेक्स को ऐलान अपनी UEL में डाल सकता है, क्योंकि इन कंपनियों पर इल्ज़ाम है कि उन्होंने अमेरिका के साथ मिलकर हुआवेई पर प्रतिबंध लगवाए.

चीन ने बार-बार ये कहा है कि उसके ये क़ानून न तो अमेरिका पर पलटवार हैं और न ही उसे निशाना बनाने के लिए बनाए गए हैं. फिर भी, ये स्पष्ट है कि चीन ने इनके माध्यम से एक क़ानूनी फ्रेमवर्क का प्रावधान कर लिया है, जिसके माध्यम से वो अन्य देशों की सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों पर पलटवार करते हुए पाबंदियां लगा सके-ख़ास तौर से अमेरिका द्वारा लगाए गए तकनीकी प्रतिबंधों और उसके द्वारा चीन की कंपनियों को दबाने के प्रयासों का चीन जवाब दे सकेगा. चीन के इन क़ानूनों का दायरा उसकी सीमाओं से परे तक है. इससे चीन उन विदेशी कंपनियों पर भी एक्शन लेग सकेगा, जो उसके यहां कारोबार करती हैं. ठीक उसी तरह जैसे कि अमेरिका ने अपने यहां कारोबार करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई की है. ऐसे उपायों से दोनों देशों के बीच टकराव और बढ़ेगा और इससे दोनों देशों के बीच वैश्विक स्तर पर दुश्मनी में इज़ाफ़ा ही होगा.

चीन के ये नए क़ानून अभी पूरी तरह से लागू नहीं किए गए हैं और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि तफ़्तीश, लाइसेंस जारी करने और कंपनियों को अपने यहां से निकाल बाहर करने की प्रक्रिया किस तरह से लागू की जाती है. इन सबसे इतर, नए प्रावधानों से अमेरिका और चीन में कारोबार कर रही कंपनियों के लिए नियामक अनिश्चितता, लेन-देन की लागत और वित्तीय जोख़िम बढ़ जाएंगे. बहुराष्ट्रीय कंपनियां-और ख़ासतौर से तकनीक के कारोबार वाली कंपनियों को ऐसे माहौल में काम करना होगा, जो बहुत अधिक राजनीतिक होगा, जहां नियम कायदे सख़्त होंगे और क़ानूनी प्रावधान टकराव वाले होंगे. जैसे जैसे अमेरिका और चीन एक दूसरे से आर्थिक और तकनीकी रूप से अलगाव को बढ़ावा दे रहे हैं, वैसे वैसे क़ानून और नियमों का इस्तेमाल अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लक्ष्य हासिल करने के लिए बढ़ रहा है. इस वजह से आम जनता और निजी भागीदारों को अनिश्चितता के नए दौर का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.


यह लेख द चाइना क्रॉनिकल्स की श्रृंखला का 104 वां लेख है।

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