Authors : Samir Saran | Akhil Deo

Published on Jan 15, 2021 Updated 0 Hours ago

अब जबकि अमेरिका में नए राष्ट्रपति पद भार संभालने जा रहे हैं, तो ऐसे मौक़े पर चीन ने उन्हें जो शुभकामना संदेश भेजे हैं, उनमें तीन संदेश छुपे हुए हैं. ये संदेश न सिर्फ़ अमेरिका के लिए हैं, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी हैं कि चीन उनके साथ किन शर्तों पर कैसा संबंध रखने वाला है. 

शी जिनपिंग की ओर से प्यार भरा तोहफ़ा: अमेरिका के नए राष्ट्रपति को नए साल की शुभकामनाएं

पिक्चर कैप्शन: द क्वींस थिएटर से निकलते जो बाइडेन, 10 जनवरी 2021, वॉशिंगटन, डेलावेयर.

फोटो:चिप सोमोडेविला-गेटी

द प्लेग, मशहूर फ्रांसीसी लेखक अल्बर्ट कैमू का एक ऐसा यादगार उपन्यास है, जिसे महामारी वाले साल में शायद सबसे ज़्यादा पढ़ा गया और जिसकी लाइनों का सबसे अधिक उल्लेख किया गया. इस उपन्यास की सबसे यादगार पंक्तियों में से एक शायद ये है, जो एक तल्ख़ सच्चाई को बयान करता है: मूर्खता में ऐसा हुनर होता है कि वो अपना लोहा मनवा लेती है.

कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर में होने वाले सम्मेलनों को डिजिटल संवाद में बदलना पड़ा. इस दौरान जिस बाधा ने बार-बार परेशान किया वो ये थी कि, ‘आपको म्यूट कर दिया गया है.’ ऐसी डिजिटल परिचर्चाओं में जो सबसे ज़्यादा कही गई दूसरी बात थी, वो शायद ये थी कि, ‘हमें एक उभरते हुए चीन के साथ मिलकर काम करना होगा, जिससे कि उसे दुनिया का एक ज़िम्मेदार राष्ट्र बनाया जा सके.’ आप इस बात को हूबहू या इससे मिलते-जुलते किसी और जुमले को किसी थिंक टैंक की परिचर्चा में कह सकते थे, या फिर पश्चिमी यूरोप या अमेरिका के आधिकारिक विचार विमर्श में भी दोहरा सकते थे, और फिर इसके लिए आपको एक बुद्धिमान और तार्किक व्यक्ति होने की तारीफ़ भी सुनने को मिलती. अगर आप इसी बात को रौबदार और ख़ूबसूरत अंदाज़ में कहते, तो अमेरिका या पश्चिमी यूरोप में आपको नीतिगत मसलों का कोई बड़ा पद भी हासिल हो सकता था. पैसा बोलता है; शब्दों के बाज़ीगर, बड़ी उदारता से घिसी-पिटी बातों को दोहराकर लंबी रेस के खिलाड़ी साबित होते हैं.

चीन पहले ही प्रगति कर चुका है, और आज चीन वो सब कुछ बन चुका है, जो बहुत से लोगों की ख़्वाहिश थी कि चीन वैसा न हो, जबकि ये वही लोग थे जो चीन के उभार में अपना योगदान दे रहे थे. अब आपको इस हक़ीक़त को स्वीकार करना होगा. 

लेकिन, इस सोच में दो भयंकर ख़ामियां हैं. पहली कमी तो, ‘चीन के उभार’ के दावे से जुड़ी है. ये तो पिछली सदी की बातें हैं, जो पुरानी और अप्रासंगिक हो चुकी हैं. चीन पहले ही प्रगति कर चुका है, और आज चीन वो सब कुछ बन चुका है, जो बहुत से लोगों की ख़्वाहिश थी कि चीन वैसा न हो, जबकि ये वही लोग थे जो चीन के उभार में अपना योगदान दे रहे थे. अब आपको इस हक़ीक़त को स्वीकार करना होगा. दूसरी बड़ी कमी इस बात में छुपी पश्चिम की शक्ति के दिखावे की है. ये एक ग़लत आकलन है. पश्चिम की ताक़त का आडंबर और दावा बिल्कुल खोखला हो चुका है. अब पश्चिमी देशों में ये क्षमता नहीं है कि वो चीन को अपने हिसाब से चलने के लिए मजबूर कर सकें. बल्कि सच्चाई तो ये है कि पश्चिमी देशों को ये पता ही नहीं है कि वो चीन से व्यापार और निवेश के अलावा चाहते क्या हैं. गुज़रे ज़माने में एक जुमला मशहूर था कि, वैसे तो सब देशों के पास एक सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान में सेना के पास एक मुल्क है. किसी ने बिना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए हुए, आज की हक़ीक़त को कुछ इस तरह बयां किया है: जर्मनी में ऑटो उद्योग के पास अपनी यूनियन है, यूरोपियन यूनियन.

2020 का साल चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण था. वैश्विक नेतृत्व पर चीन के दावे का तगड़ा इम्तिहान तब हुआ, जब कोविड-19 के प्रकोप में इसकी भूमिका और शुरुआती दौर में इसके कुप्रबंधन को लेकर सवाल उठे. दुनिया के तमाम देशों ने चीन के प्रति कड़ा रुख़ अपनाया, यहां तक कि ऐसे देशों ने भी, जिनसे इसकी उम्मीद नहीं की गई थी. अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने के लिए चीन ने जिस तरह अंतरराष्ट्रीय संगठनों का दुरुपयोग किया और ग़लत जानकारी की झड़ी लगा दी, उसे लेकर भी, दुनिया भर में चीन की आलोचना हुई. इस महामारी ने दुनिया को चीन के बारे में ग़लतफ़हमियां दूर करने का मौक़ा दिया था. उम्मीद थी कि दुनिया के पुराने शक्तिशाली देश और नई उभरती हुई ताक़तें मिलकर चीन की जवाबदेही सुनिश्चित करेंगी. लेकिन, ये पूर्वानुमान ग़लत साबित हुआ कि कोविड-19 की महामारी चीन का चेर्नोबिल लम्हा’ बनेगा. चीन, दुनिया के उन गिने चुने देशों में से एक था, जिन्होंने इस महामारी से पैदा हुए स्वास्थ्य के संकट का सामना थोड़े बहुत नियंत्रण के साथ किया. इस महामारी की शुरुआत के आज एक साल बाद चीन व्यापार, तकनीक और अंतरराष्ट्रीय विकास को मोहरा बनाकर न सिर्फ़ अपने हित साध रहा है, बल्कि दुनिया पर अपने प्रभाव और ताक़त को और बढ़ा रहा है. अब जबकि अमेरिका में नए राष्ट्रपति पद भार संभालने जा रहे हैं, तो ऐसे मौक़े पर चीन ने उन्हें जो शुभकामना संदेश भेजे हैं, उनमें तीन संदेश छुपे हुए हैं. ये संदेश न सिर्फ़ अमेरिका के लिए हैं, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी हैं कि चीन उनके साथ किन शर्तों पर कैसा संबंध रखने वाला है.

चीन की अनदेखी नामुमकिन

चीन का पहला संदेश ये है कि वो इतना बड़ा और अमीर देश बन चुका है कि न तो उसकी अनदेखी की जा सकती है और न ही उसे नाख़ुश करने का जोखिम उठाया जा सकता है. चीन और यूरोपीय संघ के बीच हाल ही में निवेश का जो व्यापक समझौता (CAI) हुआ है, उसमें यही संदेश छुपा हुआ है. आख़िर और क्या वजह हो सकती है कि यूरोपीय संघ ने चीन के साथ इस समझौते को अंजाम देने में इतनी हड़बड़ी दिखाई. यूरोपीय संघ ने जो बाइडेन के पदभार संभालने की तैयारी कर रही टीम की उन अर्ज़ियों की भी अनदेखी कर दी कि वो चीन के साथ इस समझौते को फिलहाल टाल दें. यूरोपीय संघ ने वर्ष 2020 में चीन के अराजकत बर्ताव की भी अनदेखी कर दी-जब चीन ने हॉन्ग कॉन्ग और शिन्जियांग में मानव अधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन करते हुए अत्याचार किए, हिमालय की चोटियों पर असथिरता फैलाने वाले तनाव को बढ़ाया, कनाडा के प्रति अपनी आक्रामक कूटनीति को पुरज़ोर तरीक़े से आज़माया और ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक दबाव बनाने की कोशिश जैसी तमाम ऐसी हरकतें कीं. यहां तक कि यूरोपीय संघ ने अपने ख़ुद के उन आकलनों की अनदेखी कर दी, जिसमें चीन को ‘यूरोपीय मूल्यों का विरोधी’, ‘संस्थागत प्रतिद्वंदी’ और ‘सामरिक स्वायत्ता के लिए ख़तरा’ बताया गया था. जिस फुर्ती से यूरोपीय संघ ने चीन के साथ निवेश का ये समझौता किया, उससे साफ़ हो गया कि ये बातें उसके लिए जुमलेबाज़ी के सिवा कुछ नहीं. यूरोपीय संघ, चीन को लेकर ये बातें सिर्फ़ दिखाने के लिए कर रहा था. अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से पहले यूरोपीय संघ ने न सिर्फ़ चीन को एक बड़ी जीत तोहफ़े में दे दी है, बल्कि उसने चीन की उस सोच को भी मज़बूत किया है कि वो वैश्विक वैल्यू चेन की धुरी है, और इसकी मदद से उसे वो ताक़त मिलती है, जिसका ख़ुद चीन को भी अंदाज़ा नहीं है.

यूरोपीय संघ ने चीन के साथ इस समझौते को अंजाम देने में इतनी हड़बड़ी दिखाई. यूरोपीय संघ ने जो बाइडेन के पदभार संभालने की तैयारी कर रही टीम की उन अर्ज़ियों की भी अनदेखी कर दी कि वो चीन के साथ इस समझौते को फिलहाल टाल दें. 

दूसरा संदेश ये है कि चीन इतना ताक़तवर बन चुका है कि उसे दंड दे पाना अब संभव नहीं रहा. डोनाल्ड ट्रंप के शासन काल में अमेरिका ने प्रतिबंधों, निर्यात पर नियंत्रणों और दबाव वाली कूटनीतिक के ज़रिए लगातार ये कोशिश की कि वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला तक चीन की पहुंच को सीमित किया जाए. इन कोशिशों में अमेरिका को कुछ सफलता तो मिली है, लेकिन इसके चलते चीन ने बेहतर और उच्च तकनीक को स्वदेश में विकसित करने के अपने प्रयास दोगुने कर दिए. पिछले दो दशकों के दौरान चीन को इन कोशिशों में काफ़ी हद तक कामयाबी भी मिली है.

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Photo illustration: Anton Petrus — Getty

अब चीन, अमेरिका पर पलटवार करने की तैयारी कर रहा है. जनवरी की शुरुआत में चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कुछ नियम प्रकाशित किए. इनमें चीन में रजिस्टर्ड कंपनियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया गया है कि वो अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और निर्यात संबंधी नियंत्रणों का उल्लंघन करें. यही नहीं चीन ने ऐसी कंपनियों को दंडित करने की धमकी भी दी है, जो इस बात को नहीं मानेंगी. जब ये नियम लागू होंगे और ऐसा नहीं है कि लागू नहीं होंगे, तब तकनीकी और वित्तीय कंपनियों को पता चलेगा कि वो दो पाटों यानी चीन और अमेरिका के बीच की इस लड़ाई में किस तरह फंस गई हैं. चीन के वाणिज्य मंत्रालय के ये नियम जो बाइडेन के आगामी प्रशासन और सिलीकॉन वैली व वॉल स्ट्रीट में उनकी समर्थक कंपनियों के लिए सीधी चेतावनी हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने ये दांव इस उम्मीद में चला है कि अमेरिका का उद्योग जगत अपने संसाधन अमेरिकी नेताओं को इस बात के लिए राज़ी करने में लगाएगा कि वो चीन के साथ सुलह कर लें, वरना लगातार टकराव से उनके अपने ही मुनाफ़े का नुक़सान होगा.

अब चीन, अमेरिका पर पलटवार करने की तैयारी कर रहा है. जनवरी की शुरुआत में चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कुछ नियम प्रकाशित किए. इनमें चीन में रजिस्टर्ड कंपनियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया गया है कि वो अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और निर्यात संबंधी नियंत्रणों का उल्लंघन करें.

चीन की ओर से अमेरिका को दिया गया आख़िरी संदेश ये है कि चीन अब इतना विकसित हो चुका है कि वो असफल हो ही नहीं सकता. चीन द्वारा अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में निवेश कम करने का मीडिया के विद्वान ये अर्थ लगा रहे हैं कि, चीन इस प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर नए सिरे से विचार कर रहा है. मगर, उनका ये आकलन सरासर ग़लत है. BRI से संबंधित संस्थाएं और व्यवस्थाएं बड़ी तेज़ी से ऐसा माध्यम बनती जा रही हैं, जिनके ज़रिए चीन पूरी दुनिया तक अपना सामान पहुंचा रहा है. चीन, BRI में निवेश को नए सिरे से भले ही ढाल रहा हो, मगर दुनिया के तमाम कोनों तक अपनी पहुंच बढ़ाने में वो इसका इस्तेमाल आगे भी करता रहेगा. चीन के स्टेट काउंसलर वैंग यी ने दिसंबर में बेल्ट ऐंड रोड फोरम में अपने भाषण में 2021 के लिए इसकी तीन प्राथमिकताओं को स्पष्ट तौर पर बयां किया था: चीन इसे स्वास्थ्य का सिल्क रूट, डिजिटल सिल्क रूट और ग्रीन सिल्क रूट बनाएगा. ये तीनों ही मक़सद चीन की मौजूदा ताक़त के ज़रिए हासिल किए जाएंगे. ये वो तत्व हैं, जो अंतरराष्ट्रीय विकास में सहयोग पर चीन के श्वेत पत्र का भी अहम हिस्सा हैं. इस महामारी से चीन को ये मौक़ा मिला है कि वो विकासशील देशों को न सिर्फ़ उनके बुनियादी ढांचे के विकास में वित्तीय मदद दे सके, बल्कि उनके चहुंमुखी विकास में भी योगदान दे सके-ये चीन को एक ऐसा अवसर देता है जिससे वो अपने नियमों, मानकों और प्राथमिकताओं की जड़ें पूरी दुनिया में और मज़बूती से जमा सके.

अमेरिका के साथ जियो-पॉलिटिकल प्रतिद्वंदिता

चीन पर नज़र रखने वालों के लिए, दुनिया को दिए उसके ये संदेश बिल्कुल नहीं चौंकाते हैं. जैसा कि हमने अपनी किताब पैक्स सिनिका में तर्क भी दिया था कि, हालिया गतिविधियां जताती हैं कि चीन लगातार भूमंडलीकरण और अंतरराष्ट्रीय प्रशासन को अपने हिसाब से ढालने की कोशिश कर रहा है. 2021 का साल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और इसके चेयरमैन शी जिनपिंग के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है. इस वर्ष, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल पूरे हो रहे हैं. ये चीन के दो शताब्दियों के अंदर ‘चाइना ड्रीम’ के ख़्वाब को सच में बदलने की पहली सदी पूरा होने का अवसर है. यहां तक पहुंचते हुए, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ‘केंद्रीय नेता’ शी जिनपिंग ने पार्टी (CCP) पर अपनी पकड़ और मज़बूत बना ली है. वहीं, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने देश के समाज, उद्योग, सेना और नीति के हर पहलू पर अपना शिकंजा और कस लिया है. शी जिनपिंग ने पहले ही ये बात स्वीकार की थी कि, 2049 तक वैश्विक नेतृत्व हासिल करने का सफर बेहद उठा-पटक भरे परिवर्तन वाला होगा. 2049 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना के सौ साल पूरे हो जाएंगे. भले ही शी जिनपिंग ने ये बात खुलकर न कही हो, लेकिन जब वो इस सफर के उठा-पटक भरा होने की बात कह रहे थे, तो उनके दिमाग़ में शायद अमेरिका के साथ जियोपॉलिटिकल प्रतिद्वंदिता और चीन के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बढ़ती आशंका से पैदा होने वाले बाहरी ख़तरे के विचार चल रहे होंगे.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने देश के समाज, उद्योग, सेना और नीति के हर पहलू पर अपना शिकंजा और कस लिया है. शी जिनपिंग ने पहले ही ये बात स्वीकार की थी कि, 2049 तक वैश्विक नेतृत्व हासिल करने का सफर बेहद उठा-पटक भरे परिवर्तन वाला होगा.

साल 2021 शुरु होते ही चीन ने पूरी दुनिया को जो ये तीन संदेश दिए हैं, वो इस बात का संकेत हैं कि चीन किस तरह से बदलती वैश्विक परिस्थियों का आकलन कर रहा है, और उनके निपटने की कैसी तैयारी कर रहा है. लेकिन, चीन के इन संदेशों को ऐसी सच्ची भविष्यवाणी नहीं समझा जाना चाहिए, जिसमें वो बिना किसी चुनौती के, अबाध गति से आगे बढ़ता रहेगा, या फिर वो राजनीतिक तनावों और अतार्किक चुनौतियों से बचा रहेगा.

कोविड-19 की महामारी ने उस अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के अंत को और क़रीब ला दिया है, जो वैसे भी शेक्सपियर के उपन्यास के किरदार किंग लीयर की तरह अंतिम सांसें ही गिन रहा था. भले ही लोगों को ये बड़ी उम्मीद हो, लेकिन जो बाइडेन के नेतृत्व वाले अमेरिका में न तो इस प्रक्रिया को पलट पाने की ताक़त ही है, और न ही वो ऐसा करेगा. आने वाले समय में भी दुनिया जनवाद और खंडित विचारों से ही चलती रहेगी. दुनिया के अलग अलग इलाक़ों के समुदाय, बदलाव को लेकर चिंतित हैं. सूचना के प्रसार की अराजकता, तकनीकी और औद्योगिक विकास और जलवायु के संकटों से निपटने के लिए क्रांतिकारी विचारों और नए नेतृत्व की ज़रूरत है. चीन दुनिया की ऐसी पहली ताक़त है, जिसके पास इन चुनौतियों से मुक़ाबला करने का एक ठोस प्रस्ताव है, भले ही वो भयावना क्यों न हो-ये प्रस्ताव तकनीकी तानाशाही और सरकारी नियंत्रण से संचालित होने वाला है.

क्या हमारे सामने कोई और विकल्प दिख रहा है? या फिर मौजूदा ताक़तों के पतन की गाथा, चीन और दुनिया में उसके समर्थन में नारेबाज़ी करने वाले बढ़ते समर्थकों झुंड ही लिखेगा?

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