भारत के पूर्वोत्तर का क्षेत्रफल भारत के कुल भौगोलिक भू-भाग का 9 प्रतिशत है. ये इलाक़ा देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तीन प्रतिशत का योगदान देता है. अपने समृद्ध प्राकृतिक आधार और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के चलते पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापार और निवेश के मामले में देश का “पावरहाउस” बनने की अपार संभावना मौजूद है. आर्थिक अवसर मुहैया कराने के मामले में पूर्वोत्तर की स्थिति अद्वितीय है. इस इलाक़े की 98 प्रतिशत सीमा भारत की अंतरराष्ट्रीय सरहद बनाती है. इस क्षेत्र से चीन, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार की सीमा लगती है. सामरिक रूप से भी यहां का भूगोल बेहद अहम है. इस वजह से पूर्वोत्तर का इलाक़ा न सिर्फ़ आसियान के सदस्य देशों बल्कि दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसियों जैसे बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ भारत के बढ़ते आर्थिक संबंधों की भौगोलिक बुनियाद के रूप में काम करता है.
पूर्वोतर भारत को विकास की दौड़ में पीछे रखने वाली एक प्रमुख बाधा है यहां का अपर्याप्त बुनियादी ढांचा. दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के बाज़ारों से भौगोलिक निकटता को ध्यान में रखा जाए तो पूर्वोत्तर में निवेश की संभावनाएं काफ़ी बढ़ जाती हैं.
बहरहाल, पूर्वोतर भारत को विकास की दौड़ में पीछे रखने वाली एक प्रमुख बाधा है यहां का अपर्याप्त बुनियादी ढांचा. दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के बाज़ारों से भौगोलिक निकटता को ध्यान में रखा जाए तो पूर्वोत्तर में निवेश की संभावनाएं काफ़ी बढ़ जाती हैं. देखा जाए तो पूर्वोतर भारत में आंतरिक संपर्क को मज़बूत करने की दिशा में कई चुनौतियां हमारे सामने आती हैं. इन चुनौतियों में पूर्वोतर भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच और ज़्यादा आर्थिक जुड़ाव से होने वाले फ़ायदों को लेकर आम लोगों के बीच जागरूकता का अभाव भी शामिल है. इनका फ़ायदा उठाने के लिए पूर्वोत्तर भारत में ‘भीतर तक पहुंचने वाले’ बुनियादी ढांचे की दशा में सुधार लाना होगा. इससे न सिर्फ़ इस इलाक़े को अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि विकास के मामले में आ गए अंतर को पाटने में भी फ़ायदा होगा. लिहाजा सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 9 को बढ़ावा देने में बुनियादी ढांचे के विकास की भूमिका काफ़ी अहम है.
संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रों ने 2015 में सतत विकास के लिए एजेंडा 2030 को स्वीकार किया था. इसके तहत वर्तमान और भविष्य में शांति और समूची धरती और यहां निवास करने वाले आम लोगों की समृद्धि के लिए एक साझा खाका सामने रखा गया था. इसके केंद्र में सतत विकास के 17 लक्ष्य (एसडीजी) हैं. ये सभी देशों- चाहे वो विकसित हों या विकासशील- द्वारा वैश्विक स्तर पर सहभागिता की तात्कालिक और अत्यावश्यक ज़रूरतों पर बल देते हैं. इन 17 एसडीजी में से एसडीजी-9 का मक़सद मज़बूत बुनियादी ढांचा खड़ा करना, समावेशी और सतत औद्योगिकरण को बढ़ावा देना और नई-नई खोजों को प्रोत्साहित करना है.
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा
चूंकि, भारत का पूर्वोतर क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है लिहाजा यहां आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचा खड़ा करना समावेशी विकास की दिशा में सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है. अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचा जिसे कनेक्टिविटी की भी संज्ञा दी गई है, पूर्वोत्तर को आर्थिक रूप से पड़ोसी देशों से और अधिक जोड़ने का काम कर सकता है. भारत की एक्ट ईस्ट नीति इस इलाके में व्यापारिक संभावनाओं को और खोलने का मौका देती है.
मज़बूत बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए पूर्वोत्तर भारत में सीमावर्ती इलाक़ों का विकास और सीमा पार व्यापार की सुविधाएं मुहैया कराना ज़रूरी है. इस मक़सद से सरहद को एक बाधा की तरह न देखकर एक जोड़ने वाले सूत्र के रूप में और अर्थव्यवस्था को खड़ा करने वाली संपदा के तौर पर देखा जाता है. हाल के वर्षों में बांग्लादेश और म्यांमार के साथ भारत के व्यापार में तेज़ उछाल देखने को मिला है. परोक्ष रूप से इसका ये मतलब निकलता है कि इस इलाक़े में व्यापार की अपार संभावनाएं मौजूद है. हालांकि, दूसरी रुकावटों के साथ-साथ आपूर्ति-पक्ष की मुश्किलों ने इन दो पड़ोसियों के साथ भारत के सीमा-पार दोतरफ़ा व्यापार को आगे बढ़ने से रोक रखा है. बांग्लादेश और म्यांमार के साथ पूर्वोत्तर भारत के व्यापार और आर्थिक संपर्कों के मौजूदा स्तर को आगे बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा और संस्थागत समर्थन की आवश्यकता होगी. इनके ज़रिए यहां की प्रगति सुगम होगी और इस इलाक़े का आर्थिक अलगाव दूर होगा. त्रिपक्षीय हाई-वे से भारत के कई दूसरे राज्यों के मुक़ाबले पूर्वोत्तर के राज्यों को ज़्यादा लाभ मिलने की संभावना है. यहां के संदर्भ में यथास्थिति बदलने का मतलब यही है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र को भौतिक और संस्थागत बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश करना होगा. बदले में ये सीमा के अंदर और बाहर उत्पादन को और ऊंचे स्तर पर ले जाने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसके साथ ही औद्योगिकरण से नई खोजों को बढ़ावा मिलेगा और पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक संबंधों को ज़रूरी प्रोत्साहन मिल सकेगा.
अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचा जिसे कनेक्टिविटी की भी संज्ञा दी गई है, पूर्वोत्तर को आर्थिक रूप से पड़ोसी देशों से और अधिक जोड़ने का काम कर सकता है. भारत की एक्ट ईस्ट नीति इस इलाके में व्यापारिक संभावनाओं को और खोलने का मौका देती है.
पूर्वोत्तर भारत अक्सर प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बनता रहता है. ऐसे में हमें ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो यहां की जलवायु, भू-क्षेत्र और इलाक़े की ज़रूरतों के हिसाब से निर्माण गतिविधियों को और तेज़ करने में मददगार साबित हो सकें. पूर्वोत्तर भारत में करीब 50 प्रतिशत भू-क्षेत्र जंगलों से घिरा है. यहां विकास की ज़रूरतों से सामंजस्य बिठाने के लिए कानूनों में उसी हिसाब से बदलाव करने होंगे. इसे साथ ही हमें पूरे पूर्वोत्तर भारत में ज़मीन से जुड़े दस्तावेज़ों को डिजिटाइज़ करना होगा.
पूर्वोत्तर भारत में निजी निवेश का निम्न स्तर भी एक प्रमुख चुनौती है जिससे पार पाना आवश्यक है. निजी निवेश के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराने से दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ इस इलाके के जुड़ाव का रास्ता खुल सकेगा.
पूर्वोत्तर भारत के राज्यों को रेल, सड़क, अंतरराज्यीय जल परिवहन (आईडब्ल्यूटी) और हवाई परियोजनाओं को तेज़ रफ़्तार से पूरा करना होगा. इसके साथ ही सरहदी बुनियादी ढांचे में सुधार लाते हुए पर्याप्त भंडारण सुविधाएं, जांच केंद्र आदि विकसित करने होंगे. इसके समानांतर हमें बांग्लादेश और म्यांमार के साथ व्यापारिक प्रक्रियाओं में तालमेल लाने की दिशा में मिलकर काम करना होगा. विशेष वस्तुओं के व्यापार के लिए तेज़ रफ़्तार वाला गलियारा बनाना होगा. काग़ज़-रहित व्यापार और एकल खिड़की मंज़ूरी की पारस्परिकता पर भी ध्यान देना पड़ेगा.
व्यापार संचालन और परिवहन पर हो ध्यान
भारतीय संसद ने टीआईआर कन्वेंशन (Transports Internationaux Routiers) को अपनी मंज़ूरी दे दी है जबकि बांग्लादेश और म्यांमार द्वारा अभी इसपर दस्तख़त किया जाना बाक़ी है. टीआईआर पर हस्ताक्षर हो जाने से इस इलाक़े में व्यापार और परिवहन के सुचारू संचालन में मदद मिलेगी. पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) एक पूर्वोत्तर ट्रेड पोर्टल स्थापित करने के बारे में सोच सकती है. एडीबी सरीखे विकास बैंकों और उच्च आय वाले देशों (जैसे जापान) की और अधिक भागीदारी से निश्चित तौर पर पूर्वोत्तर भारत के विकास होगा. इतना ही नहीं, आवागमन और संपर्क की सुविधाओं का मार्ग भी प्रशस्त होगा.
पूर्वोत्तर के राज्य अपने स्तर पर भी सीमा पार बुनियादी ढांचे से जुड़े संपर्क स्थापित करने के लिए परियोजनाएं शुरू कर सकते हैं. मिसाल के तौर पर पूर्वोत्तर के राज्य अपने औद्योगिक विकास निगमों के ज़रिए म्यांमार, थाईलैंड और जापान की ऐसी ही संस्थाओं के साथ समझौता पत्रों पर दस्तख़त कर सकते हैं. इनके ज़रिए वो दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में हथकरघा केंद्र खोलकर अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगा सकते हैं. इतना ही नहीं वो बाग़वानी, फूलों की पैकेजिंग और इससे जुड़े तमाम सहायक उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए के लिए साझा उपक्रम स्थापित कर सकते हैं. इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत के राज्य दक्षिण पूर्व एशिया के देशों और जापान के साथ शैक्षणिक आदान-प्रदान के कार्यक्रम भी चला सकते हैं और वहां अपना सांस्कृतिक नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं.
पूर्वोत्तर भारत अक्सर प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बनता रहता है. ऐसे में हमें ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो यहां की जलवायु, भू-क्षेत्र और इलाक़े की ज़रूरतों के हिसाब से निर्माण गतिविधियों को और तेज़ करने में मददगार साबित हो सकें.
पूर्वोत्तर भारत में और पुख्त़ा बुनियादी ढांचा संपर्क स्थापित होने से सीमा पार, ख़ासतौर से दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों और बांग्लादेश के साथ उत्पाद श्रृंखला का एक मज़बूत जाल तैयार किया जा सकता है. रेल, जलमार्ग और सड़कों के मामले में आंतरिक तौर पर अपर्याप्त जुड़ाव से इस इलाक़े के आर्थिक एकीकरण की बाधाएं जस की तस बनी रहेंगी. बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़े कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने के लिए संस्थाओं का निर्माण आवश्यक है. इसमें कोई शक़ नहीं कि मौजूदा संस्थागत ढांचे में सुधार हो रहे हैं लेकिन भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच संपर्क और आवागमन को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं की मदद के लिए इन संस्थाओं को और मज़बूत किया जाना ज़रूरी है. निष्कर्ष के तौर पर हम यही कह सकते हैं कि पूर्वोत्तर भारत में बुनियादी ढांचे का विकास एसडीजी 9 को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उत्प्रेरक का काम कर सकता है.
अंतिम रूप से नीतिगत स्तर पर इन बातों पर ख़ास ज़ोर दिया जाना चाहिए:
- बुनियादी ढांचे के संपर्क को और मज़बूत करना
- व्यापार, निवेश और पर्यटन को प्रोत्साहन
- मानव संसाधन का विकास
- पर्यावरण संरक्षण और पूर्वोत्तर में साझा प्राकृतिक संसाधनों के सतत और टिकाऊ तौर पर इस्तेमाल को बढ़ावा देना
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