राष्ट्रीय बजट 2022-23 : इसमें शहरी स्थानीय निकायों के लिए क्या है?
1 फरवरी, 2022 को भारत की वित्त मंत्री ने संसद में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 39.45 लाख करोड़ रुपये का राष्ट्रीय बजट पेश किया. इस बजट का एक मुख्य आकर्षण पूंजीगत ख़र्च को 35 फ़ीसदी बढ़ाने और इसे मुख्यतः, ‘सात इंजनों‘ के ज़रिये, देश भर में बहुआयामी बुनियादी ढांचा सृजन की दिशा में ले जाने का प्रस्ताव था. यह लेख ख़ास तौर पर शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) और शहरों के लिहाज़ से बजट में किये गये प्रावधानों पर ग़ौर करता है, और एक समीक्षात्मक विश्लेषण करने की कोशिश करता है कि इनका शहरों के भविष्य के विकास पर क्या असर हो सकता है.
यह लेख ख़ास तौर पर शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) और शहरों के लिहाज़ से बजट में किये गये प्रावधानों पर ग़ौर करता है, और एक समीक्षात्मक विश्लेषण करने की कोशिश करता है कि इनका शहरों के भविष्य के विकास पर क्या असर हो सकता है.
इस संदर्भ में, पिछले राष्ट्रीय बजट (2021-22) को याद करना उचित होगा, जिसमें शहरी बुनियादी ढांचे के लिए ठीकठाक आवंटन था. इसमें जल जीवन मिशन (शहरी), दस लाख से ज़्यादा आबादी वाले शहरों में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए धन, मेट्रो रेल नेटवर्क के विस्तार और सिटी बस सेवा में वृद्धि के ज़रिये शहरी सार्वजनिक परिवहन, बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, शहरी स्वच्छता को बेहतर करने के लिए मल गाद (फीकल स्लज) प्रबंधन का प्रावधान, और पीएम आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना के ज़रिये शहरी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का विस्तार शामिल था. यहां एक स्पष्ट स्वीकृति थी कि बढ़ते शहरीकरण की पृष्ठभूमि में, भारत सरकार को दखल देना चाहिए और शहरी स्थानीय निकायों की सहायता करनी चाहिए, लेकिन एक पुराने लेख ने आगाह किया था कि वित्तीय रूप से कमजोर निकाय सृजित परिसंपत्तियों को टिकाऊ ढंग से बनाये रख पाने में शायद सक्षम न हों.
शहरी नियोजन में बदलाव की दरकार
इस साल का राष्ट्रीय बजट (2022-23) केवल शहरी विकास से संबंधित गतिविधियों के लिए नये वित्तीय प्रावधान करने में कम उत्साही है, और पिछले बजट के मुक़ाबले 3 फ़ीसद की छोटी बढ़ोतरी का ही प्रस्ताव करता है. वित्त मंत्री ने इस बार शहरों के संदर्भ में अपना ध्यान शहरी नियोजन (अर्बन प्लानिंग) की ओर मोड़ा है, और जिस ढंग से अभी शहरी नियोजन से पेश आया जाता है उसमें वह पूरी तरह बदलाव चाहती हैं. वित्त मंत्री के बजट भाषण के पैराग्राफ संख्या 68 से 73 सीधे-सीधे शहरी नियोजन से संबंधित है. वित्त मंत्री देश में बढ़ते शहरीकरण का ज़िक्र करती हैं और विश्वास जताती हैं कि भारत की आज़ादी के 100 साल पूरे होने तक, भारत की आधी आबादी शहरी होगी. इसलिए, राष्ट्रीय कुशलक्षेम तथा देश की आर्थिक संभावनाओं और आजीविका के ज़्यादा बड़े अवसर हासिल करने के लिए शहरी विकास लगातार बेहद अहम होता जायेगा.
इस उद्देश्य के लिए, वह प्रस्ताव करती हैं कि, एक तरफ़, महानगरों और उनके मुफ़स्सिल इलाक़ों को संवारा जाए, ताकि वे आर्थिक वृद्धि के मौजूदा केंद्र बन सकें. दूसरी तरफ़, टियर 2 और 3 शहरों की मदद की जाए, ताकि वे भी भविष्य में इसी तरह की भूमिका में आ सकें. इस तरह की भूमिका में शहरों को लाने के लिए, उन्हें लगता है कि शहरों की कल्पना नये सिरे से करनी होगी, जो सभी के लिए अवसरों के साथ टिकाऊ और समावेशी जीवनयापन का केंद्र बन सकें. यह होने के लिए, शहरी नियोजन जैसे चल रहा है वैसे नहीं चलने दिया जा सकता. स्वाभाविक रूप से, इसके लिए नियोजन के मौजूदा तौर-तरीक़ों से पूरी तरह हटने की ज़रूरत होगी. इसलिए, वह शहरी सेक्टर की नीतियों, क्षमता निर्माण, नियोजन, क्रियान्वयन, और गवर्नेंस पर सुझाव देने के लिए जाने-माने शहरी नियोजकों, शहरी अर्थशास्त्रियों, और संस्थानों की एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने का प्रस्ताव करती हैं.
शहरी नियोजन एवं डिजाइन में भारत के अनुरूप ज्ञान विकसित करने के लिए और इन क्षेत्रों में प्रमाणित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए, विभिन्न अंचलों में मौजूद पांच अकादमिक संस्थान सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (उत्कृष्टता केंद्र) के रूप में निर्धारित किये जायेंगे.
वित्त मंत्री शहरी क्षमता निर्माण के लिए राज्यों की मदद का प्रस्ताव भी करती हैं. वह बिल्डिंग बायलॉज के आधुनिकीकरण के साथ-साथ टाउन प्लानिंग योजनाओं (टीपीएस) और ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट (टीओडी) का क्रियान्वयन भी चाहती हैं. टीओडी लोगों को उनके कामकाज की जगह के क़रीब रहने की अनुमति देगा. भारत सरकार सार्वजनिक परिवहन परियोजनाओं के लिए वित्तीय समर्थन मुहैया कराना चाहती है और यह भी इरादा रखती है कि राज्यों द्वारा टीओडी और टीपीएस का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक्शन प्लान तैयार करने और उन्हें लागू करने के वास्ते अमृत (AMRUT) योजना का फ़ायदा उठाया जाए.
इसके अलावा, शहरी नियोजन एवं डिजाइन में भारत के अनुरूप ज्ञान विकसित करने के लिए और इन क्षेत्रों में प्रमाणित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए, विभिन्न अंचलों में मौजूद पांच अकादमिक संस्थान सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (उत्कृष्टता केंद्र) के रूप में निर्धारित किये जायेंगे. वित्त मंत्री सिफ़ारिश करती हैं कि इन केंद्रों में से प्रत्येक को 250 करोड़ रुपये का इनडाउमेंट फंड (अक्षय निधि) दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, पाठ्यक्रम व गुणवत्ता में सुधार तथा दूसरे संस्थानों में भी शहरी नियोजन पाठ्यक्रमों तक पहुंच के लिए अगुवाई करने का काम अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) को सौंपा जायेगा.
बजट भाषण के आगे के पैराग्राफ स्वच्छ और टिकाऊ गतिशीलता (मोबिलिटी), शहरी सार्वजनिक परिवहन को ज़्यादा प्रोत्साहन, स्वच्छ तकनीक और गवर्नेंस समाधानों, और शून्य जीवाश्म-ईंधन नीति के साथ स्पेशल मोबिलिटी ज़ोन से संबंधित हैं. उन्होंने एक ‘बैटरी अदला-बदली’ नीति का भी ज़िक्र किया है, जो बड़े पैमाने पर चार्जिंग स्टेशन बनाने के लिए शहरों में जगह के अभाव के मसले से निपटेगी.
शहरी विकास के लिहाज़ से, और भी कई चीज़ें (जिनका नाम ऊपर लिया गया है) हैं, जिनके बारे में बजट में बोला गया है, लेकिन निश्चित रूप से वह शहरी नियोजन ही है, जो शहरों को ठीक करने की वित्त मंत्री की कोशिश के केंद्र में है. ऐसा लगता है कि उन्होंने नीति आयोग की रिपोर्ट ‘Reforms in Urban Planning Capacity in India’ का संज्ञान लिया है. यह रिपोर्ट देश में शहरी नियोजकों की किल्लत और क्षमता में कमियों को लेकर आलोचनात्मक थी. रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में 7,933 शहरी स्थानीय निकायों में 63 फ़ीसद के पास उनकी बसाहट के लिए मास्टर प्लान नहीं था, बसाहट के सामने विकास की भावी चुनौतियों के साथ आगे कैसे बढ़ना है उसका कोई रोड मैप भी नहीं था.
तथ्य यह है कि, उद्धृत संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, शहरी नियोजन अब भी सख़्ती के साथ राज्यों के नियंत्रण में है. किसी ने ऐसे क्रांतिकारी सुधारों के ज़रिये स्थिति में बदलाव की ख़्वाहिश नहीं दिखायी है
शहरी नियोजन पर वित्त मंत्री के ज़ोर का स्वागत हुआ है. शहरी नियोजन में काफ़ी कुछ गड़बड़ है, और इस बात पर व्यापक सहमति है कि आज़ाद भारत में शहरी नियोजन की रणनीतियां देश की सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतों और तकनीकी नवाचारों (इनोवेशन) के समरूप आगे नहीं बढ़ी हैं. वित्त मंत्री शहरों की नये सिरे से कल्पना में राज्यों के साथ काम करने का प्रस्ताव तो करती हैं, लेकिन जिस केंद्रीय कारक की अनदेखी की गयी लगती है, वह है- राज्यों की ख़ुद की बाधक भूमिका. इसकी स्वीकृति संविधान के 74वें संशोधन में उसके ‘उद्देश्यों और कारणों के बयान’ में भी है. इसमें कहा गया, ‘कई राज्यों में, स्थानीय निकाय विभिन्न कारणों से कमज़ोर और अप्रभावी हो गये हैं. इन कारणों में नियमित चुनाव कराने में विफलता, लंबे चलनेवाले अधिक्रमण (सुपरसेशन), और शक्तियों व कामकाज के अपर्याप्त हस्तांतरण शामिल हैं. नतीजतन, शहरी स्थानीय निकाय स्व-शासन की जीवंत लोकतंत्र इकाई के रूप में प्रभावी ढंग से काम कर पाने में सक्षम नहीं हैं.’ इसलिए, भारतीय संविधान में 12वीं अनुसूची को शामिल कर, उसके ज़रिये संविधान में शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के कामकाज के दायरे को परिभाषित करने की कोशिश की गयी. इस अनुसूची में 18 काम शामिल किये गये, जिनमें शहरी नियोजन अव्वल था. बिल्कुल स्पष्ट रूप से, संविधान का संकल्प यह लगता है कि शहरी नियोजन यूएलबी को काम होना चाहिए और यूएलबी को ‘नियोजन प्राधिकरण’ होना चाहिए. यह स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से आये 74वें संशोधन की पूरी क़वायद के अनुरूप था.
समस्याएं कहां
तथ्य यह है कि, उद्धृत संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, शहरी नियोजन अब भी सख़्ती के साथ राज्यों के नियंत्रण में है. किसी ने ऐसे क्रांतिकारी सुधारों के ज़रिये स्थिति में बदलाव की ख़्वाहिश नहीं दिखायी है, जो यूलएबी पर उनकी पकड़ को संभवत: ढीली कर सकते थे. चूंकि संविधान के तहत स्थानीय सरकार राज्य का विषय है, भारत सरकार राज्यों के अनुसरण के लिए शहरी नियोजन के एक मॉडल की सिर्फ़ सिफ़ारिश कर सकती है, जो उसके द्वारा नियुक्त जाने वाली विशेषज्ञ कमेटी के विचार-विमर्श से तैयार होगा. हालांकि, अभी तक, शहरी सुधारों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा की गयी ढेरों सिफ़ारिशों – जिनमें मॉडल नगर निकाय कानून, मॉडल किराया नियंत्रण कानून, मॉडल नगर राज विधेयक इत्यादि शामिल हैं – को राज्यों ने अपनी सुविधा के हिसाब से अनदेखा किया है.
शहरी नियोजन के लिए सिफ़ारिशों की भी यही संभवत: नियति होनी है, जब तक कि भारत सरकार सरकार उन्हें वित्त की भारी ख़ुराकों के साथ प्रोत्साहित करने को तैयार नहीं होती है, जो नियोजन अनुमोदन (plan endorsement) को लागू करने पर हासिल होंगी, और अगर राज्य शहरी नियोजन सुधार की राह पर चलने को तैयार नहीं होते हैं, तो धन से वंचित रहेंगे. बदक़िस्मती से, केंद्र सरकार न तो इस तरह का धन ख़र्च करने को तैयार है और न ही वित्तीय रूप से जर्जर और कामकाजी रूप से शक्तिहीन शहरी स्थानीय निकायों को सहारा देने के लिए उत्सुक है. शहरी पहेली की कठोर सच्चाइयां एक बार फिर शहरी सुधार के गुब्बारे को पिचका सकती हैं.
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