Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

ये पूरी क़वायद भारत को सही मायनों में डिजिटल फ़ाइनेंस से संपन्न देश बना देगी. बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि इन बदलावों से कोई डिजिटल खाई नहीं  बनेगी.

केंद्रीय बजट 2022: डिजिटल, डिजिटल फ़ाइनेंस और फ़ाइनेंस के भविष्य पर ज़ोर
केंद्रीय बजट 2022: डिजिटल, डिजिटल फ़ाइनेंस और फ़ाइनेंस के भविष्य पर ज़ोर

ये लेख बजट 2022: नंबर्स एंड बियॉन्ड सीरीज़ का हिस्सा है.


वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत सरकार के बजट में वित्त और वित्तीय क्षेत्र में डिजिटलाइज़ेशन पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है. इसके साथ ही नीतिगत दायरों में क्रांति की आहट भी सुनाई देती है. भविष्य में एक मज़बूत अर्थव्यवस्था के निर्माण और समावेशी विकास के लिए “डिजिटल इंडिया” को स्तंभ बताया गया है. वित्त और डिजिटल फ़ाइनेंस के दायरे में बजट की कुछ प्रमुख झलकियां नीचे दी गई हैं:

सीबीडीसी- डिजिटल रुपया

बजट प्रस्तावों में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 में डिजिटल रुपया जारी किए जाने का ज़िक्र किया गया है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की शुरुआत से डिजिटल अर्थव्यवस्था को काफ़ी बढ़ावा मिलेगा. डिजिटल करेंसी से नक़दी प्रबंधन व्यवस्था को ज़्यादा कार्यकुशल और सस्ता बनाया जा सकेगा. लिहाज़ा ब्लॉकचेन और दूसरी तकनीकों के इस्तेमाल से डिजिटल रुपये की शुरुआत का प्रस्ताव किया जाता है. वित्त वर्ष 2022-23 से रिज़र्व बैंक इन्हें जारी करेगा.

ब्लॉकचेन के तहत लेनदेन के रिकॉर्ड को किसी भी परिस्थिति में बदला नहीं जा सकता. इसमें लेजर (ledger) पारदर्शी और प्रामाणिक होता है. सीबीडीसी सरकार द्वारा जारी मुद्रा (fiat currency) का डिजिटल स्वरूप है. ब्लॉकचेन के सहारे चल रहे वॉलेट्स के ज़रिए इनसे लेनदेन किया जा सकता है. केंद्रीय बैंक इसका नियमन करता है. ये यूज़र को घरेलू और विदेशी लेनदेन करने की सहूलियत देता है. इसके लिए किसी थर्ड पार्टी या बैंक की ज़रूरत नहीं होती. डिजिटल रुपये के कई इस्तेमाल हो सकते हैं. मसलन सब्सिडी के रूप में पहले से तय रकम के वितरण और वित्तीय संस्थानों द्वारा तेज़ गति से कर्ज़ बांटने और पेमेंट्स के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है. बढ़ते इस्तेमाल और कार्यकारी तौर पर प्रयोग में लाए जाने जैसी सुविधाओं के चलते डिजिटल रुपया तत्काल विदेशों से रकम मंगवाने या भेजने से जुड़ी क़वायद पर सकारात्मक असर डाल सकता है.

बढ़ते इस्तेमाल और कार्यकारी तौर पर प्रयोग में लाए जाने जैसी सुविधाओं के चलते डिजिटल रुपया तत्काल विदेशों से रकम मंगवाने या भेजने से जुड़ी क़वायद पर सकारात्मक असर डाल सकता है. 

परिसंपत्तियों के तौर पर क्रिप्टो?

बहरहाल, सरकार ने ये घोषणा भी की है कि डिजिटल परिसंपत्तियों के ट्रांसफ़र से हासिल आमदनियों पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स लगाया जाएगा. इस फ़ैसले का क्रिप्टोकरेंसी और ग़ैर-प्रतिस्थापित टोकनों (Non-Fungible Tokens, NFTs) के कारोबार से हासिल मुनाफ़ों पर असर पड़ेगा. वित्त मंत्री के मुताबिक “ऐसी आमदनियों की गणना के दौरान अधिग्रहण की लागत के अलावा बाक़ी किसी भी तरह के ख़र्चे या भत्ते को लेकर कोई छूट नहीं दी जाएगी. इसके साथ ही वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों के ट्रांसफ़र से हुए नुक़सानों को दूसरी तरह की किसी भी आमदनी के संदर्भ में प्रयोग में नहीं लाया जा सकेगा.” लेनदेन से जुड़ा ब्योरा जुटाने के लिए सरकार ने भुगतान पर टीडीएस के भी उपाय किए गए हैं. वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों के ट्रांसफ़र के संदर्भ में इन सेवाओं पर 1 प्रतिशत की दर से टीडीएस का प्रावधान किया गया है. उपहार के तौर पर दिए जाने वाले वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए भी प्राप्तकर्ता को टैक्स चुकाना होगा.

ये क़दम एक ऐसे वक़्त पर उठाया गया है जब सरकार क्रिप्टोकरेंसियों पर विधेयक लाने की तैयारी कर रही है. इसके तहत “कुछ अपवादों” के साथ “भारत में सभी निजी क्रिप्टोकरेंसियों” पर पाबंदी लगाने की योजना है. जनवरी 2021 से इस विधेयक पर काम चल रहा है. रिज़र्व बैंक, क्रिप्टो एक्सचेंजेस, बैंक और निवेशकों जैसे तमाम स्टेकहोल्डर्स दिल थामे इस विधेयक का इंतज़ार कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों से कई समूहों में इसको लेकर तमाम तरह के मतभेदों दौर भी जारी है. इस विधेयक के पारित होने तक क्रिप्टो की वैधानिकता अधर में लटकी हुई है. सरकार द्वारा गठित एक अंतर-क्षेत्रीय समिति ने 2017 में क्रिप्टोकरेंसियों के कारोबार और दख़ल पर पाबंदी लगाने की सिफ़ारिश की थी. अप्रैल 2018 में RBI ने एक सर्कुलर जारी कर बैंकों को निर्देश दिया था कि वो क्रिप्टोकरेंसियों में सौदा कर रहे ऐसे उपभोक्ताओं तक बैंकिंग सुविधाओं की पहुंच रोक दें. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2020 में सुनाए अपने फ़ैसले में RBI के सर्कुलर को पलट दिया था. अदालत का कहना था कि क्रिप्टोकरेंसियों की ख़रीद-बिक्री पर क़ानून के हिसाब से किसी तरह की पाबंदियों के अभाव में RBI इन करेंसियों के कारोबार पर एक अनुपात से ज़्यादा पाबंदियां नहीं लगा सकता.

कोर-बैंकिंग सिस्टम पर डाकघर

भारत के सभी डेढ़ लाख डाकघरों को वित्त वर्ष 2022-23 में कोर बैंकिंग सिस्टम के साथ जोड़ा जाना है. इससे वित्तीय समावेशन में मदद मिलेगी और डाकघर खातों तक नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम के ज़रिए पहुंच बनाना मुमकिन हो सकेगा. इसके साथ ही डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच रकम का ऑनलाइन ट्रांसफ़र भी सुलभ हो जाएगा. ग़ौरतलब है कि इस प्रस्ताव की वैचारिक जड़ें अगस्त 2014 में वित्तीय समावेशन से जुड़े राष्ट्रीय मिशन (NMFI) से मिलती हैं. इसके तहत बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हर परिवार तक व्यापक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने का लक्ष्य है. ये पूरी क़वायद “बैंकिंग सुविधाओं से वंचित लोगों को बैंकिंग के दायरे में लाने, असुरक्षित लोगों को सुरक्षित बनाने, बिना फ़ंड वालों को फ़ंड देने और अपेक्षाकृत कम सुविधाओं या सुविधाओं से वंचित इलाक़ों तक सेवाएं पहुंचाने” के दिशानिर्देशक सिद्धांत पर आधारित है.

शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों द्वारा 75 ज़िलों में ‘डिजिटल बैंकिंग इकाइयां’ 

आज़ादी के 75 साल के मौक़े पर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा देश के 75 ज़िलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों का गठन किया जाएगा. इससे वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही बैंकों द्वारा उन भौगोलिक इलाक़ों में नए उपभोक्ताओं तक देनदारियों की पहुंच में सुधार भी मुमकिन हो सकेगा. 2017 में फ़िनटेक और डिजिटल बैंकिंग पर कार्यदल की रिपोर्ट में RBI ने बताया था कि उपभोक्ताओं के दैनिक जीवन में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तेज़ गति से बढ़ रहा है. इंटरनेट और मोबाइल के प्रसार में तरक़्क़ी और सस्ते डेटा प्लान इस तरह के बदलावों को साकार कर रहे हैं. ज़ाहिर है कि बैंकिंग उपभोक्ता वाणिज्यिक कार्यों को ऑफ़लाइन की बजाए ऑनलाइन तरीक़े से पूरा कर रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया था कि, ”खुदरा वित्तीय सेवाओं का स्वरूप पूरी तरह से उपभोक्ताओं द्वारा तय होता है. लिहाज़ा उपभोक्ताओं के तौर-तरीक़ों के उभार के साथ-साथ वित्तीय सेवाओं का स्वरूप भी बदलता है. नवाचार अब कोई विलासिता न रहकर आवश्यकता बन गई है. इतना ही नहीं तेज़ तर्रार स्टार्ट अप्स के उभार से उपभोक्ताओं तक वित्तीय सेवाओं की डिलिवरी में मंद गति से लेकिन निरंतर बदलाव आ रहे हैं. इन बदलावों से पारंपरिक बैंकों पर भी ऐसे ही तौर-तरीक़े अपनाने और अपने ढर्रे बदलने का दबाव बन रहा है. लिहाज़ा बदलते वक़्त के साथ ताल से ताल मिलाते हुए ख़ुदरा वित्तीय सेवाओं के दायरे में बैंकों के लिए नए-नए तरीक़े अपनाना बेहद अहम हो गया है. अगर उन्होंने अपने ढर्रे नहीं बदले तो मौजूदा ग्राहकों के लिए उनकी प्रासंगिकता घट जाने का बड़ा जोख़िम बना रहेगा.”

लिहाज़ा बदलते वक़्त के साथ ताल से ताल मिलाते हुए ख़ुदरा वित्तीय सेवाओं के दायरे में बैंकों के लिए नए-नए तरीक़े अपनाना बेहद अहम हो गया है. अगर उन्होंने अपने ढर्रे नहीं बदले तो मौजूदा ग्राहकों के लिए उनकी प्रासंगिकता घट जाने का बड़ा जोख़िम बना रहेगा.”  

यहां बड़ा सवाल ये है कि क्या ये पूरी क़वायद नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित परिचर्चा पत्र में प्रस्तावित डिजिटल बैंकिंग के विचार की पहली कड़ी साबित हो सकती है. अक्सर बताया जाता रहा है कि इस विचार को लेकर RBI की ओर से काफ़ी कम दिलचस्पी दिखाई जाती रही है. वित्त मंत्री द्वारा डिजिटल बैंकिंग इकाइयों का विचार सामने रखे जाने के बाद इसे अमली जामा पहनाने के तौर-तरीक़ों पर फ़िनटेक्स की बारीक़ नज़र रहेगी. दरअसल आगे चलकर इन्हीं कंपनियों के डिजिटल बैंक का रूप ले लेने की संभावना रहेगी.

स्टार्टअप्स के लिए टैक्स हॉलीडे का विस्तार

31 मार्च 2022 से पहले तैयार हो जाने वाले योग्य स्टार्टअप्स को गठन के 10 वर्षों में लगातार तीन सालों तक कर प्रोत्साहन मुहैया कराया गया था. अब इस योग्यता को विस्तार देकर 31 मार्च 2023 तक गठित होने वाले योग्य स्टार्ट अप्स को भी इस प्रोत्साहन के दायरे में ला दिया गया है. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में स्टार्टअप के बारे में ज़िक्र करते हुए कहा है कि “ये भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के वाहक बनकर उभरे हैं. पिछले कुछ वर्षों में देश में कामयाब स्टार्टअप्स की तादाद में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है.

गिफ़्ट (GIFT) सिटी: भारत का पहला और इकलौता वित्तीय सेवा केंद्र

एकीकृत वित्तीय सेवा नियामक के तौर पर Gift-IFSC के पास अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) के साथ बिल्कुल ही अलग वित्तीय क्षेत्राधिकार है. IFSCA को 14 अलग-अलग केंद्रीय क़ानूनों के तहत सशक्त बनाया गया है. गिफ़्ट सिटी में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र का गठन किया जाएगा. इसका मकसद विवादों के तेज़ रफ़्तार और सस्ते समाधान मुहैया कराना होगा. इसे सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर या लंडन कॉमर्शियल आर्बिट्रेशन सेंटर की तर्ज पर खड़ा किया जाएगा.

सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSME) तक साख की बेहतर पहुंच बनाने के लिए पारस्परिक जुड़ाव

उद्यम, ई-श्रम, NCS और असीम (Aseem) जैसे MSME पोर्टलों के इस्तेमाल के दायरे को बढ़ाने के लिए उन्हें आपस में जोड़ा जाएगा. ये तमाम पोर्टल लाइव डेटाबेस के साथ काम करेंगे. ये कर्ज़ मुहैया कराने जैसी सुविधाओं समेत तमाम तरह की G-C, B-C और बिज़नेस टू बिज़नेस सेवाएं उपलब्ध करवाएंगे. साख सुविधाओं में सुधार से MSME सेक्टर की कार्यकारी पूंजी की ज़रूरतें पूरी हो सकेंगी. ग़ौरतलब है कि एक लंबे अर्से से ये सेक्टर पूंजी से जुड़ी दिक़्क़तों का सामना करता आ रहा है.

ग्रीन बॉन्ड्स

सरकार एक सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड लाएगी. इससे जुटाई गई रकम सार्वजनिक क्षेत्र की उन परियोजना में लगाई जाएगी जिनसे कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम में मदद मिलेगी. ग्रीन बॉन्ड्स या जलवायु बॉन्ड्स कर्ज़ जुटाने के औज़ार हैं. तमाम दूसरे फ़ायदों के साथ-साथ पर्यावरण और जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने वाली परियोजनाओं के संचालन के लिए रकम जुटाने के मकसद से इनका प्रयोग किया जाता है. जनवरी से दिसंबर 2021 के बीच भारत 6 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा के ग्रीन बॉन्ड जारी कर चुका है. ग्रीन बॉन्ड की निगरानी करने वाली यूनाइटेड किंगडम की एजेंसी क्लाइमेट बॉन्ड्स इनिशिएटिव ने ये जानकारी दी है.

ग्रीन बॉन्ड्स की लोकप्रियता बेहद तेज़ी से बढ़ती जा रही है. क्लाइमेट बॉन्ड्स मार्केट इंटेलिजेंस के अनुमान के मुताबिक 2021 में ग्रीन बॉन्ड के बाज़ार का आकार 517 अरब अमेरिकी डॉलर था. ये अब तक का उच्चतम स्तर है. 

ग्रीन बॉन्ड्स की लोकप्रियता बेहद तेज़ी से बढ़ती जा रही है. क्लाइमेट बॉन्ड्स मार्केट इंटेलिजेंस के अनुमान के मुताबिक 2021 में ग्रीन बॉन्ड के बाज़ार का आकार 517 अरब अमेरिकी डॉलर था. ये अब तक का उच्चतम स्तर है. 2021 में ग्रीन बॉन्ड जारी करने वाले देशों में भारत काफ़ी नीचे (17वें पायदान) था. अमेरिका, जर्मनी, चीन, फ़्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों का इस क्षेत्र में दबदबा है. S&P के मुताबिक भारत में कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्र के और अधिक सक्रियता के साथ जलवायु-आधारित कर्ज़ बाज़ार में उतरने के आसार हैं. भारत दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. 2070 तक नेट-ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को तक़रीबन 10 खरब अमेरिकी डॉलर की दरकार है. इन ग्रीन बॉन्डों के विस्तृत ब्योरे की घोषणा बाद में की जाएगी. हालांकि घरेलू ख़ुदरा निवेशकों की बचत का फ़ायदा उठाने के लिए उन्हें ग्रीन बॉन्डों में निवेश की मंज़ूरी देना फ़ंड जुटाने की क़वायद में एक अहम स्रोत साबित हो सकता है.

निष्कर्ष

पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के कई उपाय किए गए हैं. भारत को डिजिटल फ़ाइनेंस का अगुवा देश बनाने की दिशा में ऊंची छलांग लगाने का एक व्यापक संदर्भ सामने आ सकता है. इस कड़ी में इकोसिस्टम के समूह के तौर पर ‘ओपन नेटवर्क फ़ॉर डिजिटल कॉमर्स’ (ONDC- सभी ख़ुदरा कारोबारियों के इस्तेमाल में आने वाला ओपन सोर्स ई-कॉमर्स प्लैटफ़ॉर्म), ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क (OCEN), ब्लॉकचेन आधारित वित्तीय व्यवस्था, डिजिटल रुपया, यूपीआई, मज़बूत JAM त्रिशक्ति और हरित बदलाव की ओर उठाए गए क़दम शामिल हैं. ये पूरी क़वायद भारत को सही मायनों में डिजिटल फ़ाइनेंस से संपन्न देश बना देगी. बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि इन बदलावों से कोई डिजिटल खाई नहीं  बनेगी. राज्यसत्ता द्वारा मुहैया कराई जा रही नागरिक सुविधाओं का लाभ उठाने में किसी के भी पीछे छूटने की आशंका नहीं रहनी चाहिए.

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.