आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: किस ओर मिल रही है ऊर्जा क्षेत्र को दिशा
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 की प्रस्तावना के मुताबिक़, इसका केंद्रीय थीम ‘चुस्त-दुरुस्त’ दृष्टिकोण है, जो असल नतीजों की रियल टाइम मॉनिटरिंग, फीडबैक लूप तथा लचीली प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है. यह पारंपरिक ‘वॉटरफॉल’ दृष्टिकोण से अलग है, जो विश्लेषण, योजना, और क्रियान्वयन पर निर्भर था. 2021-22 का सर्वेक्षण कहता है कि हालांकि ‘चुस्त-दुरुस्त’ दृष्टिकोण में योजना मायने रखती थी, लेकिन ‘इसे ज्यादातर परिदृश्य विश्लेषण, कमज़ोर हिस्सों की पहचान, और नीतिगत विकल्पों को समझने के लिए ही इस्तेमाल किया गया.’ ‘चुस्त-दुरुस्त’ दृष्टिकोण में रियल-टाइम डाटा का उपयोग बेहद अहम है और इस संदर्भ में, बिजली उत्पादन और इलेक्ट्रिक मोबिलटी डाटा जैसे ऊर्जा से जुड़े सूचक सर्वेक्षण में मौजूद कई रियल-टाइम सूचकों में शामिल हैं. सर्वेक्षण में ऊर्जा पर अलग से कोई खंड नहीं है, लेकिन एनर्जी ट्रांजिशन और जलवायु परिवर्तन पर एक खंड है जो स्वच्छ ऊर्जा के नये रूपों को कवर करता है, जबकि ऊर्जा के पारंपरिक रूपों पर चर्चा को उद्योग और बुनियादी ढांचे के खंड में डाल दिया गया है.
सर्वेक्षण इस बात को लेकर आशावान है कि कोयला खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोलना कोयला उत्पादन में दक्षता और प्रतिस्पर्धा लायेगा, निवेश आकर्षित करेगा, और कोयला क्षेत्र में ज़्यादा रोजग़ार सृजित करेगा.
पारंपरिक ऊर्जा स्रोत
सर्वेक्षण पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों ख़ासकर जीवाश्म ईंधनों का कोई स्पष्ट भविष्य उजागर नहीं करता. यह उन्हीं सूचनाओं और आंकड़ों को दोहराता है, जिनसे ऊर्जा उद्योग पर नज़र रखनेवाले पहले ही परिचित हैं. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 40 फ़ीसद से अधिक की हिस्सेदारी रखनेवाले आठ प्रमुख उद्योगों में से एक के रूप में, कोयला उन क्षेत्रों में है जिनके आईआईपी कोविड-पूर्व स्तर से ऊपर हैं. सर्वेक्षण यह टिप्पणी करता है कि कोयला भारत में ‘सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर’ जीवाश्म ईंधन है और 2030 तक कोयले की मांग 1.3-1.5 अरब टन के दायरे में बनी रहेगी. यह बात उसने नीति आयोग के राष्ट्रीय ऊर्जा नीति मसौदे के हवाले से कही है. 2019-20 में कोयले की मांग 97.9 करोड़ टन से ज़्यादा थी. 2011-12 और 2019-20 के बीच, कोयले की मांग 5 फ़ीसद से ज़्यादा की दर से बढ़ी. 2030 तक 1.3-1.5 अरब टन मांग के अनुमान का मतलब है कि वृद्धि दर घटकर 2.6-3.9 फ़ीसद सालाना रहेगी. हर साल 5 लाख टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) सोखने के लिए 56,000 हेक्टेयर जमीन को हरित आच्छादन के तहत लाने का, और 1496 मेगावाट से ज़्यादा अक्षय ऊर्जा क्षमता में निवेश करने का श्रेय यह सर्वेक्षण सरकारी कोयला उत्पादकों को देता है. सरकारी स्वामित्व वाली कोयला कंपनियों से उम्मीद है कि वे 2030 तक 7.5 करोड़ पेड़ लगाकर और 30,000 हेक्टेयर जमीन को हरित आच्छादन के तहत लायेंगी तथा संभवत: 5560 मेगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता में निवेश करेंगी. सर्वेक्षण इस बात को लेकर आशावान है कि कोयला खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोलना कोयला उत्पादन में दक्षता और प्रतिस्पर्धा लायेगा, निवेश आकर्षित करेगा, और कोयला क्षेत्र में ज़्यादा रोजग़ार सृजित करेगा. यह अवलोकन उस प्रबल नैरेटिव के विपरीत है, जो कोयले से दूर हटकर न्यायपूर्ण बदलाव (Just Transition) की राह बनाने के लिए कोयला उत्पादन और कोयला खनन में रोज़गार को चरणबद्ध ढंग से कम करने की बात करता है.
सर्वेक्षण जुलाई 2021 में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस सेक्टर को 100 फ़ीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोले जाने का ख़ास तौर पर ज़िक्र करता है, जिससे इस सेक्टर में विनिवेश की संभावना का संकेत मिलता है.
पेट्रोलियम के संदर्भ में, सर्वेक्षण ने ठीक ही उल्लेख किया है कि कच्चे तेल की ऊंची अंतरराष्ट्रीय क़ीमतों और पेट्रोलियम उत्पादों पर ऊंचे करों ने महंगाई को बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है. लेकिन पेट्रोलियम सेक्टर पर बाकी ज़्यादातर चर्चा को ऊंची तेल कीमतों के भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर जैसे अहम मुद्दों के बजाय ‘उज्ज्वला’ जैसी योजनाओं का ढोल पीटने के नाम क़ुर्बान कर दिया गया है. उज्ज्वला योजना ने ग़रीब परिवारों को, अधिकांशत: चुनाव वाले उत्तरी राज्यों में, मुफ़्त या रियायती तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) कनेक्शन मुहैया कराये. चूंकि ग़रीब परिवार गैर-रियायती सिलेंडर ख़रीद कर एलपीजी का इस्तेमाल करते रहने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए उज्ज्वला योजना ऊर्जा परिणामों को रूपांतरित करने के बजाय चुनावी परिणामों को प्रभावित करने के माध्यम के रूप में ही ज़्यादा प्रभावी है. एलपीजी कवरेज 99.8 फ़ीसद पहुंच जाने के बहुप्रचारित दावे को यह सर्वेक्षण दोहराता है. इस सूचना का स्रोत पीपीएसी (पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल) है, जो यह क़बूल करता है कि एलपीजी कवरेज की गणना के तरीक़े की समीक्षा की जा रही है. इस तरीक़े में 2011 की जनगणना के मुताबिक़ घरों की संख्या के आधार पर वर्तमान में घरों की संख्या का अनुमान लगाया गया है. घरों की अनुमानित संख्या को घरेलू कनेक्शन की संख्या के मुताबिक समायोजित करके मनचाहा एलपीजी कवरेज हासिल किया जा सकता है. सर्वेक्षण में दिये गये आंकड़े के अनुसार, केवल 0.2 फ़ीसद घरों (65,000 से कुछ ज़्यादा, अगर घरों की संख्या लगभग 3.3 करोड़ मानें) की एलपीजी तक पहुंच नहीं है. अगर ऐसा है, तो उज्ज्वला 2.0 के तहत अतिरिक्त एक करोड़ एलपीजी कनेक्शन जारी किये जाने का मतलब होगा कई घरों में एक से ज़्यादा कनेक्शन होना. सर्वेक्षण कहता है कि 2020 से घरेलू कनेक्शनों पर कोई सब्सिडी नहीं है, लेकिन इसके साथ भ्रामक ढंग से ब्रैकैट में लिखा गया है- ‘दिल्ली के बाजार में’. सर्वेक्षण जुलाई 2021 में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस सेक्टर को 100 फ़ीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोले जाने का ख़ास तौर पर ज़िक्र करता है, जिससे इस सेक्टर में विनिवेश की संभावना का संकेत मिलता है. प्राकृतिक गैस वाले हिस्से में, सर्वेक्षण कहता है कि नेशनल गैस ग्रिड की पहुंच बढ़ाने में हो रही निरंतर प्रगति एक समान आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति हासिल करने में मदद कर सकती है.
कोयले के स्टॉक के संकट, जिससे 2021 के आख़िर में बिजली उत्पादन में कमी आयी थी और देश के कई हिस्सों को अंधेरे का सामना करना पड़ा था, को इस सर्वेक्षण में चर्चा लायक नहीं माना गया है. कोयले जैसे पारंपरिक ईंधनों और अक्षय ऊर्जा के आधार पर बिजली क्षेत्र में क्षमता वृद्धि के ब्योरों में बहुत कम नयी जानकारी यह सर्वेक्षण पेश करता है.
अक्षय ऊर्जा स्रोत
अक्षय ऊर्जा को लेकर चर्चा में सरकार द्वारा अभी तक तय अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य और उपलब्धियां ही हावी हैं. सर्वेक्षण ख़ास तौर पर ज़िक्र करता है कि अक्षय ऊर्जा कंपनियों ने हरित बॉन्ड के ज़रिये धन जुटाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उदारीकृत बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) मानदंडों का इस्तेमाल किया है. बैंकिंग निगरानी पर बेसल समिति (बीसीबीएस) द्वारा स्थापित जलवायु-संबंधी वित्तीय जोखिमों पर टास्क फोर्स का आरबीआई सदस्य है. वह टिकाऊ वित्त संबंधी अंतरराष्ट्रीय मंच का सदस्य भी है. यह मंच 17 देशों का फोरम है, जो पर्यावरणीय, सामाजिक, और गवर्नेन्स संबंधी खुलासों (ईएसजी डिस्क्लोजर्स) और टिकाऊ वित्त की वर्गीकरण योजना पर काम कर रहा है. यह कम लागत वाले वित्त तक पहुंच आसान बनायेगा.
यूरोप में प्राकृतिक गैस की क़ीमतों में उछाल का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण ऊर्जा स्रोतों में विविधता रखने के महत्व का उल्लेख करता है और साफ़-साफ़ कहता है कि जीवाश्म ईंधन इस विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहेगा.
स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के विषय पर एक बॉक्स आइटम में, सर्वेक्षण यह टिप्पणी करता है कि जिस गति से पारंपरिक जीवाश्म-ईंधन आधारित स्रोतों से हटा जायेगा, वही यह तय करेगा कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों में किस हद तक और कितना विविध निवेश होगा. सर्वेक्षण आगाह करता है कि भारत को नेट ज़ीरो उत्सर्जन योजनाओं को लागू करने में देरी से बचना चाहिए, क्योंकि एनर्जी ट्रांजिशन के लिए आवश्यक अहम खनिजों के दाम भविष्य में अच्छे ख़ासे बढ़ सकते हैं. यूरोप में प्राकृतिक गैस की क़ीमतों में उछाल का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण ऊर्जा स्रोतों में विविधता रखने के महत्व का उल्लेख करता है और साफ़-साफ़ कहता है कि जीवाश्म ईंधन इस विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहेगा.
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 की प्रस्तावना ने ‘चुस्त-दुरुस्त’ दृष्टिकोण पर उम्मीदें बढ़ायीं, ख़ास तौर पर परिदृश्य विश्लेषण के उपयोग से. लेकिन सर्वेक्षण उम्मीदों को पूरा नहीं करता और ऊर्जा क्षेत्र को क्या दिशा लेनी चाहिए, इसे लेकर कुछ ख़ास सूत्र पेश नहीं करता.
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