Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 के बाद की दुनिया में बातचीत के अच्छे कौशल और मिल कर काम करने वाले रवैये के साथ भारत जैसी बीच की शक्ति आगे बढ़ेगी.

राइज़िंग इंडिया 2021: ब्रिक्स के सदस्य देश ब्राज़ील से एक सुझाव
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ये लेख भारत की आजादी के 75 साल: आकांक्षाएं, महत्वाकांक्षाएं और दृष्टिकोण श्रृंखला का हिस्सा है.


भारतीय सभ्यता और संस्कृति शायद एशिया में अकेली है- और पूरे विश्व में भी शायद- जो इतनी ही प्राचीन और शक्तिशाली चीन की परंपरा की बराबरी कर सकती है. कई सामाजिक-आर्थिक पहलुओं में अपने विशाल आकार के साथ भारत विश्व के भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिए आवश्यक है. इतना ही महत्वपूर्ण एक विविध और बहुलतावादी, कार्यशील लोकतंत्र की इसकी पहचान है- ये वो विशेषताएं हैं जो भारत को बड़े बदलाव लाने वाले देशों में सबसे आगे रखती हैं.

एक बढ़ता हुआ भारत जिस दृश्यता का अनुभव कर रहा है- इसकी एक आंशिक वजह है पिछले लगभग 40 वर्षों में कम-से-कम पांच प्रतिशत की सालाना विकास दर- वो देश की मानवीय पूंजी के सामने नई घरेलू मांगों और कठिन चुनौतियों को लाता है. बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, सामाजिक सूचकों को सुधारने और असमानता को दूर करने के लिए, विशेष तौर पर भारत की तेज़ी से बढ़ती युवा आबादी में, बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. अगर भारत अपने ऐतिहासिक रूप से सहिष्णु और बहुल स्वभाव को बनाए रखते हुए आर्थिक संपन्नता हासिल करने में सफल रहता है तो पूरे विश्व- विशेष तौर पर विकासशील देश- के सामने मानने के लिए एक प्रेरक आदर्श होगा.

अगर भारत अपने ऐतिहासिक रूप से सहिष्णु और बहुल स्वभाव को बनाए रखते हुए आर्थिक संपन्नता हासिल करने में सफल रहता है तो पूरे विश्व- विशेष तौर पर विकासशील देश- के सामने मानने के लिए एक प्रेरक आदर्श होगा.

भारत के लिए कई अवसर आगे खड़े हैं. डिजिटल अर्थव्यवस्था को पूरी तरह स्वीकार करने, उत्पादन और यहां तक कि सेवा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाने के लिए भारत अनुकूल देश है. शासन व्यवस्था को लेकर तेज़ी से टुकड़ों में बंटते विश्व में विवादों को लेकर भारत का समझौतावादी रवैया और सामरिक तौर पर स्वायत्त नीतियां महत्वपूर्ण हैं. भारत एक कुशल और विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय संकट मोचक, जो हर महाद्वीप में भरोसेमंद है, बनने की कोशिश कर सकता है.

ग्रामीण भारत से जुड़ी समस्यायें

उदाहरण के लिए, इस तरह का व्यापक रवैया विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण है जहां प्रमुख शक्तियों के द्वारा अपनाए गए अड़ियल रुख़ ने इस संस्था को गंभीर गतिरोध में डाल दिया है. अपने जानकार राजनयिकों के साथ जेनेवा में भारत का शानदार ट्रैक रिकॉर्ड- एक और ब्रिक्स सदस्य ब्राज़ील की तरह- एक समाधान की तलाश में मददगार साबित होगा लेकिन सिद्धांतत: उसे चीन का भी समर्थन मिलना चाहिए. भारत के शामिल हुए बिना डब्ल्यूटीओ के पुनर्गठन के लिए किसी भी वैश्विक गठबंधन या प्रमुख साझा उद्देश्य वाले समूहों में असफलता मिल सकती है. यही बात पिछले दिनों विवाद का विषय बने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी लागू होती है.

इसके साथ-साथ भारत को अपनी स्वास्थ्य और व्यापार नीतियों पर पुनर्विचार अवश्य करना चाहिए. भारत की ग्रामीण आबादी की कमज़ोर संरचना, जिसका कृषि क्षेत्र और विशेष औद्योगिक कार्य प्रणाली के साथ जटिल संबंध है, पहले से ही स्वास्थ्य और व्यापार के क्षेत्र में प्रयासों को मुश्किल काम बनाती है. भौगोलिक असंतुलन और विपरीत एवं प्रतिस्पर्धी चीन का विशाल निर्यात इस समस्या को और भी बिगाड़ता है.

एक महान देश बनने के लिए भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों की वजह से खड़ी चुनौतियों का स्थायी समाधान भी अवश्य तलाशना चाहिए. 

जापान और दक्षिण कोरिया के साथ दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के व्यापार नेटवर्क में भारत की तल्लीनता नीतियों में परिवर्तन की मांग करता है जो क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल होने से भारत के इनकार में दिख सकता है जिसमें आसियान के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं. भारत की मंशा को जहां समझा जा सकता है वहीं उसे अपने संरक्षणवादी विचारों से छुटकारा पाकर एक ज़्यादा समझदारी भरी व्यापार रणनीति अपनानी चाहिए. ये नीति कुछ छोटे पड़ोसी देशों की तरफ़ “ग़ैर-परस्पर व्यापार उदारीकरण नीति” या अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा आर्थिक तनाव से लाभ उठाने से आगे जाती है. एक महान देश बनने के लिए भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों की वजह से खड़ी चुनौतियों का स्थायी समाधान भी अवश्य तलाशना चाहिए. “पड़ोस के देशों के साथ विश्वास में कमी” भारत जैसे विशाल देश के लिए एक कमज़ोरी है और ये ख़त्म होना चाहिए. इसके लिए ज़्यादा कूटनीतिक कौशल और मज़बूत राजनीतिक इच्छा के साथ बहुत ज़्यादा धैर्य की आवश्यकता है.

बॉलीवुड और प्रसन्नता

अगर भारत अपने सामर्थ्य के मुताबिक़ काम करता है और उसे क्षमता के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिलती है तो अफ्रीका और यूरेशिया में वो समझदारी के साथ जिस तरह आगे बढ़ा है, उसी तरह आइबेरियन अमेरिका (अमेरिका महाद्वीप के वो देश जहां स्पैनिश और पुर्तगाली भाषा ज़्यादा बोली जाती है) में उसको अमेरिका और यूरोप के साझेदारों की तरह सामान्य देखभाल मिलने लगेगी. आइबेरियन अमेरिका सामरिक तौर पर बेमतलब लग सकता है क्योंकि ये भारत के असर वाले क्षेत्र के बाहर स्थित है लेकिन इस क्षेत्र के लोग परंपरागत अटलांटिक की नियम बनाने वाली धुरी और चीन के विकल्प के अलावा मज़बूत विदेशी साझेदारों के लिए उत्सुक रहते हैं.

कोविड-19 के बाद के विश्व में उपयुक्त बीच की शक्तियां बातचीत के अच्छे कौशल और मिल कर काम करने वाले रवैये के साथ आगे बढ़ेंगी. इस परिदृश्य में भारत जितनी अनगिनत भूमिका निभाने में सक्षम होगा, वो नहीं दिखने वाले ख़तरे को बढ़ाएगा. भारत अपनी मानवीय पूंजी की संख्या और क्षमता को ख़तरनाक हद तक फैलाएगा और इसके साथ-साथ मौजूदा घरेलू कमियों को उजागर करेगा.

कोविड-19 के बाद के विश्व में उपयुक्त बीच की शक्तियां बातचीत के अच्छे कौशल और मिल कर काम करने वाले रवैये के साथ आगे बढ़ेंगी. इस परिदृश्य में भारत जितनी अनगिनत भूमिका निभाने में सक्षम होगा, वो नहीं दिखने वाले ख़तरे को बढ़ाएगा. 

अंत में, कोई भी बड़ी शक्ति बिना प्रसन्नता के नहीं रह सकती है: जो उसके पास है उसकी प्रसन्नता, विश्व को लेकर उसके विचार में विश्वास करने की प्रसन्नता. 50 के दशक के मध्य से लेकर 60 के दशक के मध्य तक फलते-फूलते अमेरिका के बारे में सोचिए जब रंग, गीत और नाच के साथ तैयार हॉलीवुड के गाने संगठित महाशक्ति का गुणगान करते थे. अपनी अलग-अलग तरह की समस्याओं के बावजूद भारत रंग-बिरंगे त्योहारों और आनंदमय उत्सवों की भूमि है. अगर बॉलीवुड मिथ्या की एक फैक्ट्री है तो ये एक राष्ट्र की मज़बूती और रचनात्मकता को भी दिखाता है जो डर या उदासी के बिना नेतृत्व कर सकता है, हमेशा धरातल पर हल्के और सरल जीवन के निष्कपट पक्ष के कई गुना प्रसन्न लेकिन शायद बेहद आकर्षक और रचनात्मक पक्ष के बारे में जागरुक होता है.

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