Issue BriefsPublished on Jun 20, 2023
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स्मार्ट कृषि की ओर: एग्रीकल्चर बॉयोटेक्नोलॉजी में G20 सहयोग को प्राथमिकता

सार

आर्थिक विकास और समावेशी विकास में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका होती है और यह सेक्टर खाद्य और पोषण सुरक्षा का अभिन्न अंग होता है. लेकिन मौज़ूदा समय में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है  जिनमें जलवायु परिवर्तन, घटते प्राकृतिक संसाधन, सूखा, अत्यधिक तापमान और जैविक स्ट्रेस शामिल हैं. महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करते हुए सक्रिय बॉयो-टेक्नोलॉजिकल हस्तक्षेप के ज़रिए इन चुनौतियों का समाधान करने की ज़रूरत है. कृषि से संबंधित वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने के लिए G20 का एग्रीकल्चर वर्किंग ग्रुप नीति स्तर पर समन्वय कर सकता है. फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार और कीटों और रोग पैदा करने वालों के प्रति उनकी प्रतिरोधक क्षमता में सुधार के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग में G20 देशों के भीतर इस क्षेत्र में व्यापक सुधार करने की क्षमता निहित है. इसके अलावा एफिशियेंट नाइट्रोजन अपटेक और ‘प्रकाश संश्लेषक दक्षता में वृद्धि’ जैसे बदलाव जनित परियोजनाओं के ज़रिए भविष्य में उच्च पैदावार विकसित की जा सकती है. ख़ास कर वैसे इलाक़ों में जहां सूखा अधिक लगातार और तीव्र होता है. इन क्षेत्रों में नॉलेज शेयरिंग, तकनीक़ी सहयोग और तकनीक़ी इनोवेशन के साथ-साथ वैज्ञानिक समुदाय और शिक्षा जगत में क्षमता निर्माण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. डिजिटलाइजेशन द्वारा समर्थित ये उन्नत कृषि-प्रौद्योगिकियां जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन में सुधार लाने और खाद्य पोषण सुरक्षा, स्वास्थ्य और सतत् विकास लक्ष्य ‘2’ को साकार करने की दिशा में सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिए बायोफोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने के लिए मौलिक विकल्प के रूप में पहचानी जा सकती है. यह पॉलिसी ब्रीफ़ इन मुद्दों पर चर्चा करती है और वैज्ञानिक और नीतिगत सिफ़ारिशें प्रदान करती है. 

  1. चुनौतियां

भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि और संबंधित क्षेत्रों का विशेष रूप से भोजन, पोषण सुरक्षा, आजीविका और अर्थव्यवस्था के संदर्भ में काफी महत्व है.  इन क्षेत्रों में सतत विकास ना केवल देश के दीर्घकालिक और समावेशी आर्थिक विकास बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण के लिए भी महत्वपूर्ण है. विश्व स्तर पर सतत और समावेशी कृषि विकास लक्ष्यों को हासिल करने और साल 2050 तक करीब 9.7 बिलियन आबादी को खिलाने के लिए महत्वपूर्ण है.   इसमें कोई शक नहीं है कि दुनिया भर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के प्रयासों के माध्यम से कृषि क्षेत्र में काफी विकास हुआ है. खाद्यान्न, अनाज, दलहन और तिलहन में निरंतर वृद्धि ने बढ़ती आबादी की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया है.

पिछले दो दशकों में जेनेटिक्स, बॉयोटेक्नोलॉजी और जेनेटिक इंजीनियरिंग में प्रगति अनाज फसलों (जैसे  चावल, कपास, गेहूं, मक्का, गन्ना और दालों) की उत्पादकता बढ़ाने में ‘गेम चेंजर’ साबित हुई है, जिससे समस्या का समाधान हो रहा है. काफी हद तक खाद्य सुरक्षा का मुद्दा इससे हल हुआ है.  इसके बाद से सतत उठाये गए कदम से उच्च पोषण मूल्य के साथ उन्नत खाद्य फसलों का उत्पादन करने के लिए पोषण सुरक्षा और ‘बायोफोर्टिफिकेशन’ पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जैसे भारत में अनुसंधान संस्थानों और सरकार ने पोषण संबंधी बायोफोर्टिफिकेशन की अत्यधिक आवश्यकता की पहचान करते हुए, कुपोषण की चुनौती को दूर करने के लिए मुख्य फसलों को लेकर कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. उन्नत बीटा-कैरोटीन सामग्री के लिए गोल्डन राइस हार्बरिंग जीन और विटामिन ‘ए’ के प्रीकर्सर ने सब सहारन अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देशों के बच्चों में विटामिन ‘ए’ की कमी से निपटने में मदद की है.   ब्रीडिंग, कृषि विज्ञान और ट्रांसजेनिक दृष्टिकोण से उत्पन्न बायोफोर्टिफाइड फसलें दुनिया भर में विशिष्ट आबादी के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त ख़ुराक प्रदान कर रही हैं.   पिछले कुछ वर्षों में अनाज, तिलहन, दालों, सब्जियों और फलों की बायोफोर्टिफाइड किस्मों के विकास में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.

हालांकि, वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे कि जलवायु परिवर्तन, घटते जल संसाधन और कीटों और रोगजनकों के कारण फसल का नुकसान, जिससे खाद्य उत्पादन, कृषि विकास और किसानों के कल्याण को नुकसान होता दिख रहा है. भारत अकेले फसल खाने वाले कीटों के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान (~30 प्रतिशत) का सामना करता है, जिसमें कीड़े, रॉडेंट्स, नेमाटोड, फंगल पैथोजेंस, बैक्टीरिया और वायरस शामिल हैं.   तुलनात्मक रूप से भारत में अभी भी प्रमुख तिलहन की फसलों, अर्थात् मूंगफली, सोयाबीन और सरसों की सबसे कम उपज है, जिससे खाद्य तेल की भारी कमी हो जाती है. कीट और पैथोजेंस, प्रमुख फसलों की उपज में बाधा उत्पन्न करते हैं.

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि कीटों और रोगजनकों के कारण वैश्विक फसल उत्पादन में 40 प्रतिशत तक वार्षिक नुकसान होता है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लगभग 220 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर है.  सूखा, जलभराव, अत्यधिक तापमान, लवणता और खनिज विषाक्तता जैसे अजैविक स्ट्रेस का फसलों की वृद्धि, गुणवत्ता और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ये नुकसान जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोख़िमों के साथ लगातार बढ़ रहे हैं. तापमान और पानी की उपलब्धता में परिवर्तन पौधों को बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं. जलवायु परिवर्तन कृषि और फॉरेस्ट्री इकोसिस्टम में कीटों के जोख़िम को बढ़ाएगा, विशेष रूप से आर्कटिक साथ ही टेंपरेट और सब-टॉपिकल क्षेत्रों में इसका दुष्प्रभाव देखा जा सकता है, ये वो इलाके हैं जहां सरदी और गर्मी के मौसम में तापमान में ज़्यादा फर्क नहीं पाया जाता है.   इस प्रकार जलवायु चुनौती, जैव विविधता हानि और पर्यावरणीय क्षरण की परस्पर जुड़ी चुनौतियां वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ रही हैं और इंटर गर्वनमेंट पैनलों को मज़बूत करके इस समस्या से निपटने की ज़रूरत है.

खाद्य और पोषण सुरक्षा और सतत विकास सहित कृषि क्षेत्र की चुनौतियां G20 विचार-विमर्श का हिस्सा रही हैं. साल 2022 में इंडोनेशिया में जी20 देशों के कृषि प्रतिनिधियों की बैठक ने कृषि क्षेत्र में वैश्विक और क्षेत्रीय रुझानों के आधार पर वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए चार सूत्री एज़ेंडे की पहचान की थी. इनमें खाद्य और पोषण सुरक्षा, फसल उत्पादकता  और वैश्विक मूल्य श्रृंखला और रोज़गार में गैप शामिल हैं.   G20 सदस्य देशों के साथ-साथ दुनिया भर के अन्य देशों और समुदायों को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और इसलिए जी20 सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तत्काल और स्थायी कार्रवाई की ज़रूरत बनती है. 

  1. G20 की भूमिका 

जी20, जिसमें विकसित और उभरती हुई दोनों तरह की अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं. इकोनॉमिक रेजिलियेंस या आर्थिक लचीलापन, वैश्विक आर्थिक विकास और समावेशी व सतत् विकास के मार्ग को आकार देने में मदद कर सकता है. एसडीजी पर तेज़ी से प्रगति भारत की जी20 अध्यक्षता की एक प्रमुख प्राथमिकता है जो रिसर्च एंड इनोवेशन इनिशिएटिव गैदरिंग (आरआईआईजी) के तहत वैज्ञानिक सहयोग पर छह बैठकें आयोजित करने के लिए तैयार है.   आरआईआईजी का उद्देश्य विचारों को साझा करने, साझेदारी बनाने और तकनीक़ी प्रगति और चुनौतियों के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मंच के तौर पर दुनिया के सामने आना है. एसडीजी-2 का लक्ष्य साल 2030 तक कृषि उत्पादकता और किसानों की आय को दोगुना करके, स्थायी खाद्य उत्पादन प्रणालियों को सुनिश्चित करना और जलवायु परिवर्तन, मौसम की चरम स्थितियों के लिए अनुकूल क्षमता को मज़बूत करने वाली लचीली कृषि व्यवस्था को लागू करके 2030 तक एक भूख-मुक्त दुनिया बनाना है. इसके साथ ही इसका लक्ष्य सूखा, जैविक स्ट्रेस के साथ ही भूमि और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाना भी है.

साल 2009 में पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन के दौरान पहली बार जलवायु परिवर्तन के बीच कृषि और खाद्य सुरक्षा G20 एज़ेंडे में शामिल किया गया था. नतीज़तन, वैश्विक कृषि और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम (जीएएफएसपी) 2010 में स्थापित किया गया था ताकि निम्न आय वाले देशों में लचीले और टिकाऊ कृषि और खाद्य प्रणालियों को विकसित किया जा सके.   एग्रीकल्चर वर्किंग ग्रुप (एडब्ल्यूजी), 2011 में जी20 की छठी बैठक के दौरान फ्रांस में कान शिखर सम्मेलन में अपनी स्थापना के बाद से, कृषि और खाद्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक कदमों पर ध्यान केंद्रित करता रहा है.

2014 में G20 देशों ने खाद्य सुरक्षा और पोषण (एफएसएन) ढांचे को अपनाया, बुनियादी ढांचे के निवेश को बढ़ावा देने, विकासशील देशों में कृषि बाज़ार की विफलता को रोकने और अनुसंधान के साथ-साथ विकास और इनोवेशन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्यों को प्राथमिकता देते हुए, विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा किया. नवंबर 2022 में जी20 डिक्लेरेशन ने भी कृषि विकास और विकास के लिए वैज्ञानिक सहयोग पर बल दिया था और खाद्य और पोषण सुरक्षा के समर्थन में वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पहल का स्वागत किया.   शिखर सम्मेलन के फोकस एज़ेंडे में उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच संवाद को मज़बूत करने के लिए एक कार्य योजना विकसित करना, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं में निवेश बढ़ाना और लचीली और टिकाऊ कृषि के साथ-साथ ऊर्जा प्रणालियों को सुनिश्चित करना शामिल है.   जी20 सदस्यों ने खाद्य सुरक्षा और पोषण आवश्यकताओं का समर्थन करने के लिए संबंधित देशों में वैकल्पिक अनाज और पारंपरिक फसलों को अपनाने पर सहमति बनाई है. उदाहरण के लिए भारत की पहल पर 2023 में दुनिया भर में बाजरा के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है.  बाजरा उपभोक्ताओं के लिए बेहतर है, क्योंकि इससे वो अधिकांश आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं, साथ ही साथ किसानों और जलवायु के लिए भी यह अच्छे होते हैं क्योंकि बाजरा सूखे और अन्य कठोर मौसम के लिए बेहद रेज़िलियेंट होते है.

भारत की अध्यक्षता में मार्च 2023 में चंडीगढ़ में सदस्य राष्ट्रों के जी20 शिखर सम्मेलन में चार फोकस क्षेत्रों पर सहमति बनी: खाद्य सुरक्षा और पोषण, जलवायु-स्मार्ट कृषि, समावेशी कृषि मूल्य श्रृंखला और कृषि परिवर्तन के लिए डिजिटलीकरण.

G20 एग्री-बायोटेक सहयोग को बढ़ाना: प्रमुख क्षेत्र

ऐसे कई उभरते हुए क्षेत्र हैं जिनमें जी20 देश सहयोग कर सकते हैं और अपने ज्ञान और तकनीक़ी दक्षता को साझा कर सकते हैं और संयुक्त रूप से तकनीक़ी और साइंटिफिक इनोवेशन और समाधानों की दिशा में काम कर सकते हैं.

सबसे पहले, जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग दो महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे जलवायु परिस्थितियों में बदलाव के साथ फसल उत्पादकता और फसल रेज़िलियेंस के लिए नए आयाम तलाश किए जा सकें. उदाहरण के लिए कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक बीटी कपास, विटामिन ए-समृद्ध गोल्डन राइस और प्रो-विटामिन ‘ए’- समृद्ध ट्रांसजेनिक केले की खेती ने फसल उत्पादों की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण वृद्धि की है और विकसित और निम्न आय वाले देशों में समान रूप से छोटे भूमिधारकों की स्थिरता को बढ़ावा दिया है.   जैसे दूसरी पीढ़ी की उन्नत जीन संपादन प्रौद्योगिकियां, जो स्थानीय रूप से सटीक म्यूटाजेनिसिस (उत्परिवर्तन) को बढ़ावा देती हैं, इनका इस्तेमाल उपज सुधार के साथ-साथ जैविक और अजैविक तनाव प्रबंधन के लिए मॉडल संयंत्र जीनोम के साथ-साथ फसल प्रजातियों को एडिट करने के लिए किया जा रहा है.   उच्च थ्रूपुट जीनोमिक्स और कार्यात्मक डेटा की उपलब्धता, जीन एडिटिंग की उन्नत तकनीक़ों के उद्भव, शोधकर्ताओं को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम बना रहे हैं. इन तकनीक़ी विकासों ने नए तरीक़ों को संभव बनाया है, जिसमें रोग प्रतिरोध, सुपरचार्ज्ड प्रकाश संश्लेषण, छोटे और मज़बूत डंठल, विस्तारित जड़ें और उच्च सॉल्ट कंसंट्रेशन के लिए बेहतर सहनशीलता शामिल हैं.   ऐसी फसल की किस्में कृषि को जलवायु के प्रति रेज़िलियेंट बना सकती हैं और साथ ही बदलती जलवायु परिस्थितियों में स्थिरता सुनिश्चित कर सकती हैं.

दूसरा, वैश्विक खाद्य प्रणालियों की उत्पादकता बढ़ाने और हवा, मिट्टी और ताज़े पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए ‘नाइट्रोजन उपयोग दक्षता’ (एनयूई) बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीक़ों की आवश्यकता है. कृषि में बेहतर नाइट्रोजन प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए जैव प्रौद्योगिकी और जैविक विज्ञान अनुसंधान परिषद (बीबीएसआरसी, यूके), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी, भारत) और प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (एनईआरसी, यूके) द्वारा संयुक्त रूप से तीन प्रमुख विकल्पों की पहचान की गई है : ए) फलीदार फसलों में नाइट्रोजन-स्थिरीकरण को बढ़ाना और ग़ैर-फलीदार फसल प्रणालियों में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता का दोहन करना;  बी) संयंत्र स्तर पर एनयूई में सुधार; और  सी) कृषि संबंधी तरीक़ों के माध्यम से एनयूई में सुधार करना.   छोटी जोत वाली कृषि प्रणालियों में नाइट्रोजन प्रबंधन कई एसडीजी के मूल में निहित है – भुखमरी को समाप्त करने से लेकर जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन पैदा करने तक.   नीतिगत सुधारों और निवेशों के साथ बेहतर नाइट्रोजन प्रबंधन सटीक कृषि में अहम भूमिका निभा सकता है. फसल सुरक्षा और सोयाबीन और चना जैसी फसलों की बेहतर पैदावार विकासशील देशों में कुपोषित आबादी की प्रोटीन आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ ग़ैर-सदस्य देशों को लाभ पहुंचाने में सहायक साबित हो सकती है. इसलिए यह संयुक्त केंद्र स्थापित करने में मदद करेगा जो जी20 देशों के प्रमुख फलीदार और एनयूई अनुसंधान समुदायों को जोड़ सकते हैं.

तीसरा, बढ़ी हुई प्रकाश संश्लेषक दक्षता (आरआईपीई) को साकार करना फोकस का एक अन्य प्रमुख क्षेत्र है. आरआईपीई का उद्देश्य पौधों की प्रकाश संश्लेषण में सुधार के लिए सूर्य की शक्ति का उपयोग करना है, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि होती है.   और इस परियोजना में उपलब्धियां शामिल हैं : ए) कम पानी का उपयोग करते हुए प्रकाश संश्लेषण और विकास में सुधार के लिए शैवाल प्रोटीन का उपयोग करने वाले पौधों का आनुवंशिक बदलाव;   और बी) फसल बायोमास को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए श्वसन प्रोटीन आरयूबीआईएससीओ (RuBisCO) को लक्षित करके अल्ट्रा फोटो सिंथेसिस हासिल करना.   ये नई प्रगति अधिक उपज देने वाली फसलों की ओर इशारा करती हैं जो उच्च तापमान और सूखे के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि के प्रति सहिष्णु होते हैं.   साथ ही फसल में जल-जमाव के लिए अनुकूल स्थिति बनाने के लिए अनुसंधान और प्रायोगिक विकास (आर एंड डी) आधारित समाधानों की ज़रूरत है. सक्रिय जैव-प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मज़बूत नीतिगत समर्थन और समन्वय की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान को और बढ़ावा देने के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

चौथा, कृषि मूल्य श्रृंखलाओं के विकास पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. मूल्य श्रृंखला के विघटन का छोटे किसानों की आय पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है. स्थानीय खाद्य प्रणालियों को बढ़ते शहरी बाज़ारों से जोड़ने वाले तरीक़ों पर काम करने की आवश्यकता है. G20 राष्ट्र उत्पादन-केंद्रित दृष्टिकोण से मूल्य-श्रृंखला की ओर बढ़ रहे हैं, जो अधिक समावेशी, लचीले और टिकाऊ होना चाहिए. देशों के अंदर और विभिन्न देशों के बीच कृषि मूल्य श्रृंखलाओं के विकास को बढ़ावा देने के लिए शासन, बुनियादी ढांचे और नीतियों की मज़बूत प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है. एसडीजी प्राप्त करने के लिए जी20 देशों के भीतर कृषि क्षेत्र का डिजिटलीकरण एक अतिरिक्त फोकस क्षेत्र के रूप में उभरा है.

‘एग्री-स्टैक’ के प्रारूप में डिजिटल हस्तक्षेप, जो मौज़ूदा डिजिटल भूमि अभिलेखों, खेतों के भू-स्थानिक मानचित्रों, कृषि-वार फसल डेटा और मिट्टी की रूपरेखा को जोड़ सकता है, ‘स्मार्ट और सुव्यवस्थित कृषि’ को साकार करने की दिशा में मानव संसाधनों का पूरक हो सकता है. इस तरह के डिजिटल कार्यक्रम और प्रयास किसानों को बीज, उर्वरक, रसद सुविधाओं, पौधों के स्वास्थ्य और मौसम की सलाह, सिंचाई सुविधाओं, बाज़ार तक पहुंच की जानकारी और कृषि उपकरणों के बारे में उपलब्ध जानकारी को सुव्यवस्थित करने और इसे सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाने में मदद कर सकते हैं. एक केंद्रीकृत किसान डेटाबेस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग को सक्षम करेगा, जो अंततः खेतों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है. बीजों से संबंधित सिफ़ारिशें, फसलों के लिए मिट्टी की रूपरेखा की उपयुक्तता और सर्वोत्तम कृषि तरीक़ों का प्रसार फसल की उपज को अधिकतम करेगा, किसानों की आय में वृद्धि करेगा और कृषि तथा इससे  संबंधित क्षेत्रों की समग्र दक्षता में सुधार करेगा.

G20 कृषि मंत्रियों की बैठक में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका सबसे आगे रही है. जी20 कृषि बाज़ार सूचना प्रणाली (एएमआईएस) की शुरूआत खाद्य क़ीमतों में उतार-चढ़ाव को दूर करने के लिए उठाया गया एक ठोस कदम था. द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से इन जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता का दोहन करने के लिए जी20 नीतिगत ढांचे के माध्यम से एक अच्छी तरह से परिभाषित और एक्शन योग्य रोडमैप तैयार करने में मदद कर सकता है.

G20 के लिए सिफ़ारिशें
  • जी20 को विभिन्न देशों को रचनात्मक संवाद में संलग्न होने और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए उनके प्रयासों का समन्वय करने के लिए एक मंच प्रदान करके वैश्विक सहयोग की सुविधा प्रदान करनी चाहिए. वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 80 प्रतिशत से अधिक के लिए अकाउंटिंग, G20 देशों का नीतिगत संवाद पर महत्वपूर्ण प्रभाव है. विकसित देशों ने उन्नत तकनीक़ों, अनुसंधान एवं विकास निवेश, ग्रामीण बुनियादी ढांचे और मज़बूत नीतियों के माध्यम से कृषि को सफलतापूर्वक बदल दिया है, चुनौतियों को दूर करने के साथ-साथ स्मार्ट कृषि की ओर बढ़ने और एसडीजी-2 के लक्ष्य हासिल करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला है.
  • G20 को विकासशील और कम आय वाले देशों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीक़ी सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए. भारत की विदेश नीति ने अफ्रीकी संघ (एयू), दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे महाद्वीपीय और क्षेत्रीय निकायों के भागीदारों के साथ कृषि में सहयोग पर ज़ोर दिया है. अनुसंधान सहयोग के लिए एक मज़बूत प्रणाली स्थापित करने में साइंस डिप्लोमेसी (विज्ञान कूटनीति) को सक्रिय करने के लिए जी20 स्तर पर बड़े कूटनीतिक प्रयासों की भी आवश्यकता है.
  • कृषि जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान सहयोग को गहरा करने के लिए जी20 को अपने सदस्यों के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग के माध्यम से एक व्यावहारिक मॉडल स्थापित करना चाहिए, जो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एआईएसआरएफ़ और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहयोग जैसे महत्वपूर्ण कदमों पर आधारित हो. इन व्यस्तताओं ने दोनों देशों में किसानों, अर्थव्यवस्थाओं और पर्यावरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है. इसी तरह के सफल उदाहरण यूरोपीय देशों से भी शामिल किए जा सकते हैं. G20 को सदस्यों के बीच नियमित रूप से विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान करने के लिए एक विशिष्ट संस्थागत सेटअप या पहल की स्थापना करनी चाहिए.
  • जी20 को आर एंड डी फंडिंग के माध्यम से मानव संसाधन स्तर पर समस्या-समाधान और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए पहुंच और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के खुले बंटवारे को बढ़ावा देना चाहिए. कृषि जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए एक संयुक्त कोष बनाया जाना चाहिए. एनयूई और आरआईपीई जैसे ट्रांसलेशनल रिसर्च प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देने के लिए, G20 को क्वॉड (संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया) जैसे मिनीलेटरल फॉर्मेट से हालिया पहल के समान फेलोशिप और स्टूडेंड्स एक्सचेंज प्रोग्राम शुरू करना चाहिए.
  • G20 देशों के बीच संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए राज्य और निजी विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों की अनुसंधान क्षमता और बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए. निजी विश्वविद्यालय अपनी भूमिका और आउटरीच का विस्तार कर रहे हैं, जो जी20 अनुसंधान नेटवर्क को और विस्तार करेंगे और सामुदायिक स्तर पर आउटरीच का इससे विस्तार हो पाएगा. उन्हें मुख्य धारा की साइंस डिप्लोमेसी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में लाने से अनुसंधान और इनोवेशन के समग्र विकास में योगदान मिलेगा.
  • सफल अनुसंधान कार्यक्रमों के कई उदाहरणों के साथ जी20 सदस्यों के पास वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और शैक्षणिक नेटवर्क को आगे बढ़ाने की परंपरा है. जी20 को भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और युवा शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को इस नेटवर्क के भीतर कृषि-जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
  • उपेक्षित समुदायों पर ध्यान देने के साथ किफ़ायती समाधानों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया जाना बेहद आवश्यक है. अनुसंधान संस्थानों से वास्तविक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी में हो रहे बदलावों की जानकारी जुटानी चाहिए और व्यवस्थित रूप से योजना बनाई जानी चाहिए. तेज़ी से आपस में जुड़ती दुनिया में यह भी प्रासंगिक होगा कि जी20 की वैश्विक भूमिका को बॉयोटेक्नोलॉजी रिसर्च में बढ़ाया जाए, क्योंकि G20 अनुसंधान समुदाय में उन देशों को वैज्ञानिक समाधान प्रदान करने की क्षमता है जो G20 के सदस्य नहीं हैं.

Endnotes

[1] Manasi Mishra, “Advancing Indo-Australia Agricultural Biotechnology Cooperation,” Asian Biotechnology and Development Review 24, no. 2 (2022): 3-26.

[2] World Bank, “Agriculture and Food, Overview,” March 31, 2023.

[3] India Brand Equity Foundation, “Importance of India’s Agriculture Economy,” accessed December 2022.

[4] D. K. Yadava et al., P. R. Choudhury, Firoz Hossain, and Dinesh Kumar, “Biofortified Varieties: Sustainable Way to Alleviate Malnutrition,” Indian Council of Agricultural Research, 2017.

[5] UNICEF, “Vitamin A Deficiency,” October 2021.

[6] M. Garg et al., “Biofortified Crops Generated by Breeding, Agronomy, and Transgenic Approaches are Improving Lives of Millions of People Around the World,”, Frontiers in Nutrition 5 (2018).

[7] D. K. Yadava et al., “Biofortified Varieties: Sustainable Way to Alleviate Malnutrition”

[8] Rajendran T. P., “Emerging Trends in Agricultural Biotechnology: An Indian Perspective,” Asian Biotechnology and Development Review 18, no. 3 (2016):25-39.

[9]  FAO, “Climate Change Fans Spread of Pests and Threatens Plants and Crops, New FAO Study,” June 2, 2021.

[10] A. Gull, A. A. Lone, and N. U. Wani, “Biotic and Abiotic Stresses in Plants,” In Abiotic and Biotic Stress in Plants, edited by A. de Oliveira (London: IntechOpen, 2019).

[11] C. A. Deutsch et al., “Increase in Crop Losses to Insect Pests in a Warming Climate,” Science 361 (2019): 916-919.

[12] A. G. Velasquez, C. D. M. Castroverde, and S. Y. He, “Plant – Pathogen Warfare Under Changing Climate Conditions,” Curr. Biol. 28 (2018): 619-634.

[13] FAO, “Climate Change Fans Spread of Pests and Threatens Plants and Crops, New FAO Study”

[14] Agriculture Working Group, Department of Agriculture & Farmers Welfare, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India.

[15] Hindustan Times, “Sustainable Agriculture, Food Security Focus Areas at G20 Deputies Meeting,” Apr 01, 2023.

[16] Parveen Kumar, “Agriculture in the G20: The Common Agenda,” Rising Kashmir, February 26, 2023.

[17] Vishwa Mohan, “India to Hold Six Meetings on Scientific Cooperation Under its G20 Presidency this Year,” Times of India, January 29, 2023.

[18] “Sustainable Development Goals – Goal 2: Zero Hunger, United Nations”.

[19]  Biswajit Dhar, “Prioritising Agriculture and Energy at G20,” Heinrich-Böll-Stiftung, March 6, 2023.

[20] G20 Bali Leaders’ Declaration, Bali, Indonesia, 15-16 November, 2022.

[21] G20 Bali Leaders’ Declaration

[22] International Year of Millets 2023, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India.

[23] K. Narwal et al., “Millets: The Nutri-Cereals,” Just Agriculture multidisciplinary e-Newsletter 3, no. 3 (2022). e-ISSN: 2582-8223.

[24] Manasi Mishra, “Advancing Indo-Australia Agricultural Biotechnology Cooperation,” Asian Biotechnology and Development Review 24, no. 2 (2022): 3-26.

[25] A. Ricroch, P. Clairand, and W. Harwood, “Use of CRISPR Systems in Plant Genome Editing: Toward New Opportunities in Agriculture,” Emerg. Top. Life Sci. 1 (2017): 169–182. doi: 10.1042/etls20170085.

[26] “How We’ll Reengineer Crops for a Changing Climate,” RIPE, February 10, 2020.

[27] A. Móring et al., “Nitrogen Challenges and Opportunities for Agricultural and Environmental Science in India,” Front. Sustain. Food Syst. 5 (2021): 505347. doi: 10.3389/fsufs.2021.505347.

[28] A Móring et al., “Nitrogen Challenges and Opportunities for Agricultural and Environmental Science in India”

[29] D. R. Kanter, A. R. Bell, and S. S. McDermid, “Precision Agriculture for Smallholder Nitrogen Management,” Cell Press 1 (2019): 281-284.

[30] RIPE, “Realizing Increased Photosynthetic Efficiency for Sustainable Increases in Crop Yield”.

[31] P. E. López-Calcagno et al., “Stimulating Photosynthetic Processes Increases Productivity and Water-Use Efficiency in the Field,” Nat. Plants 6 (2020): 1054–1063.

[32] P. F. South et al., “Synthetic Glycolate Metabolism Pathways Stimulate Crop Growth and Productivity in the Field,” Science 363 (2019): 6422, DOI: 10.1126/science.aat 9077.

[33] RIPE, “Gene Manipulation Using Algae Could Grow More Crops with Less Water“.

[34] D. Martignago et al., “Drought Resistance by Engineering Plant Tissue-Specific Responses,” Front. Plant Sci., 2020.

[35] Parveen Kumar, “Agriculture in the G20: The Common Agenda,” February 26, 2023.

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