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अब तक जो पॉलिसी रही है, उस पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि चीन को लेकर भारत में एक तरह का अंतर्द्वंद्व चल रहा है कि उसके साथ किस तरह के संबंध बनाए जाएं.
Image Source: NavBharat Times
पिछले दिनों खबर आई कि भारत सरकार चीनी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों जैसे स्मार्ट मीटर, पार्किंग सेंसर, ड्रोन पार्ट्स, यहां तक कि लैपटॉप और पीसी की भी सुरक्षा जांच करने पर विचार कर रही है. यह दो तरह से महत्वपूर्ण बात है. एक तो यह कि जो कुछ मध्य पूर्व में हो रहा है, जिस तरह से इस्राइल ने वॉकी-टॉकी, पेजर अटैक किए हिजबुल्लाह के खिलाफ, उससे युद्ध की तस्वीर बदल रही है और उसमें टेक्नॉलजी की भूमिका काफी बढ़ गई है. भारत का सबसे बड़ा सिक्योरिटी चैलेंज चीन है तो यह भी स्वाभाविक है कि वह चीन पर या चीन से इंपोर्ट हो रहे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की निगरानी करने की कोशिश करेगा. यह बदलती हुई तस्वीर है जियो पॉलिटिक्स की, टेक्नॉलजी की और युद्ध की, जिसे ध्यान में रखते हुए भारत ने यह कदम उठाया है.
दूसरी बात, चीन भारत के लिए बहुत बड़ा एक स्ट्रैटिजिक चैलेंज बना हुआ है. 2020 में जबसे गलवान की घटना हुई है, उसके बाद भारत ने बहुत प्रखरता के साथ चीन की आक्रामकता का जवाब दिया है. भारत ने यह कोशिश की है कि वह चीन के सामने सामरिक तौर पर खड़ा हो पाए और उस पर आर्थिक निर्भरता कम कर पाए. हालांकि आर्थिक निर्भरता अभी बहुत कम हुई नहीं है, ट्रेड अभी भी चीन के साथ काफी ज्यादा है और हमारी डिपेंडेंस जो खासकर इंटरमीडिएट गुड्स की है, जिनसे हमारे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम होते हैं, वह बहुत ज्यादा है.
भारत के सामने यह समस्या है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था को भी संभालना है. उसके लिए चीन के साथ भारत के संबंध ऐसे होने चाहिए जिससे चीन से जरूरी सामान मिलते रहें. हमारी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ती रहे, क्योंकि हमें अपना मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी ग्रो करना है और बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था को संभालना है.
भारत के सामने यह समस्या है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था को भी संभालना है. उसके लिए चीन के साथ भारत के संबंध ऐसे होने चाहिए जिससे चीन से जरूरी सामान मिलते रहें. हमारी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ती रहे, क्योंकि हमें अपना मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी ग्रो करना है और बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था को संभालना है. भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए, उस कोशिश में वह लगातार लगा है. दूसरी तरफ भारत को चीन से जो सामरिक खतरा है उससे भी निपटना है. चीन ने सामरिक मुद्दों पर, बॉर्डर के मुद्दों पर, राजनीतिक डिप्लोमेटिक मुद्दों पर जिस तरह से भारत को नजरअंदाज किया है, उसके हितों को नजरअंदाज किया है, वह सबके सामने है. भारत इसे कैसे बैलेंस कर पाता है, यह उसकी चाइना पॉलिसी के लिए बहुत इंपॉर्टेंट है.
चीन के इलेक्ट्रॉनिक गुड्स की सिक्योरिटी जांच एक तरह से मेजर पॉलिसी मूव है. यह दिखाता है कि किस तरह से भारत चीन को साध रहा है, और जो बढ़ते हुए खतरे हैं उनसे निपटने की कोशिश कर रहा है. दोनों का अगर आप मिला-जुला नतीजा देखें तो इस पॉलिसी में आपको दिखता है कि यह ना सिर्फ सामरिक मुद्दों पर या बदलती हुई तकनीक से जो सिक्योरिटी रिस्क बन रहे हैं, उनसे प्रेरित है बल्कि चीन जो भारत का सबसे बड़ा चैलेंज और बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है उसको भी टारगेट करने की कोशिश है.
अब तक जो पॉलिसी रही है, उस पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि चीन को लेकर भारत में एक तरह का अंतर्द्वंद्व चल रहा है कि उसके साथ किस तरह के संबंध बनाए जाएं. गलवान के बाद यह कोशिश की गई कि हम चीन पर जिस तरह से आर्थिक तौर पर निर्भर हैं, उसे कम करेंगे. दूसरी तरफ हम यह कोशिश करेंगे कि सामरिक तौर पर उनके सामने खड़े हो पाएं. सामरिक मोर्चे पर तो भारत काफी हद तक कामयाब कहा जा सकता है लेकिन आर्थिक तौर पर इस लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाना आसान नहीं है. खास तौर पर भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इसमें परेशानी हो रही है, क्योंकि वह चीन से इंपोर्ट पर डिपेंडेंट है. तो वह डिपेंडेंसी कैसे कम की जाए, और कैसे चीन के साथ आर्थिक संबंधों को सामरिक संबंधों के साथ एक तरह से बैलेंस में लाया जाए, यह भी भारत को देखना है.
अब तक जो पॉलिसी रही है, उस पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि चीन को लेकर भारत में एक तरह का अंतर्द्वंद्व चल रहा है कि उसके साथ किस तरह के संबंध बनाए जाएं.
इस विषय पर कुछ विचार भी बजट के समय प्रकट किए गए थे. भारत के वित्त मंत्रालय के जो इकनॉमिक अडवाइजर हैं, उन्होंने कहा था और अब आगे आने वाले समय में यह बात और आगे बढ़ेगी. हालांकि भारत ने अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा है. उन्होंने यह नहीं कहा है कि हम पुनर्विचार कर रहे हैं, लेकिन एक तरफ भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाना चाह रहा है और दूसरी तरफ चीन से डिपेंडेंस को कम करना चाह रहा है. इसे देखते हुए भारत के लिए यह भी स्वाभाविक हो जाता है कि वह चीन के साथ जो टेक्नोलॉजिकल रिलेशनशिप है, उसे कैसे साधता है?
इसमें जो इलेक्ट्रॉनिक्स इंपोर्ट हैं, उन्हें लेकर एक डर भारत में बना हुआ है. जिस तरह से चीन ने भारत को हर स्तर पर टारगेट करने की कोशिश की है, उससे यह और स्वाभाविक हो जाता है. अगर हमारी इलेक्ट्रॉनिक्स में या किसी सेक्टर में इतनी डिपेंडेंस है चीन के ऊपर और चीन डोमिनेट करता है सप्लाई चेन को तो चीन का पलड़ा भारी हो जाता है, जिसे भारत को खत्म करना होगा. मुझे लगता है उसके लिए भी यह जरूरी है कि जो टेक्नॉलजी हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर है, उसकी सिक्योरिटी को भारत किस तरह से बचा पाता है. इसे देखते हुए भारत ने कुछ प्रयोग किए हैं और प्रयोग करने की कोशिश हो रही है और सिक्योरिटी चेक्स की बात इसी का नतीजा है. अब सवाल इसमें दो उठते हैं. एक तो यह कि कितनी दूर तक यह प्रयोग जा सकता है और दूसरा यह कि कितनी दूर तक भारत इसको ले जाता है?
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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