Published on Jan 09, 2023 Updated 0 Hours ago

चीन ये समझ गया है कि हथियारों के व्यापार से वह अपनी विदेश नीति और अर्थव्यवस्था से जुड़े कई उद्देश्यों को साध सकता है.

China: हथियारों के कारोबार को अपना ‘हथियार’ बनाता हुआ चीनी रक्षा उद्योग!

चीनी रक्षा उद्योग ने हालिया दिनों में काफ़ी तेज़ी से प्रगति की है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIRPI) द्वारा वर्ष 2021 के लिए संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि चीनी रक्षा कंपनियां एशिया-ओशिनिया क्षेत्र में रक्षा व्यापार में सबसे आगे थीं. हालांकि दुनिया के प्रमुख हथियार निर्माताओं में संयुक्त राज्य अमेरिका का रक्षा उद्योग शीर्ष पर है, लेकिन चीन ने एशिया-ओशिनिया क्षेत्र में अपनी पैठ इतनी मजबूत कर ली है कि वह इस क्षेत्र में 80 प्रतिशत से भी ज्यादा रक्षा बिक्री के लिए जिम्मेदार है. वे कौन सी वजहें हैं जिनसे चीनी जनवादी गणराज्य (PRC) का रक्षा उद्योग हथियारों की बिक्री और उसकी गतिशीलता से लाभ उठा रहा है? वैश्विक पटल पर चीन का रक्षा उद्योग तेज़ी से उभरा है क्योंकि उसने 1949 में एक साम्यवादी राज्य बनने के बाद व्यवस्थित ढंग से लगातार निवेश किया है.

चीन में रक्षा क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र के गठजोड़ की मजबूती का सबसे बड़ा कारण (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) और उसके वरिष्ठ नेताओं का चीनी रक्षा उद्योग के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता और समर्थन है. 

चीन में रक्षा क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र के गठजोड़ की मजबूती का सबसे बड़ा कारण  (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) और उसके वरिष्ठ नेताओं का चीनी रक्षा उद्योग के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता और समर्थन है. वास्तव में, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लेकर जहाज निर्माण और कृत्रिम रसायनों तक, चीन के प्रमुख रक्षा उद्योग PLA के साथ अनुबंध के कारण अस्तित्व में आए हैं. 1950 से लेकर 1969 के दौरान चीनी सेना ने संस्थागत, संगठनात्मक और वैचारिक स्तर पर देश की अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ जमा ली, जब बाहरी ख़तरे का माहौल अपने सबसे खतरनाक चरण में था. नीति, विचार, संगठन और प्रक्रिया के स्तर पर PLA की पैठ 1978 से शुरू हुए सुधार युग में भी जारी रही. इसके बावजूद की चीन समय-समय पर विदेशों से रक्षा आयात के अलावा हथियारों का सह-उत्पादन करता है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति पीआरसी की नवाचार आधारित संगठनात्मक रणनीति के अनुसार वह आत्मनिर्भरता के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. रक्षा उद्योग ने अलग-अलग संस्थानों का ऐसा सफ़लतापूर्वक गठजोड़ किया है, जिसने संसाधनों के ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह (अधोमुखी) के स्टालिनवादी दृष्टिकोण के साथ एक प्रोत्साहन संरचना को जोड़ दिया है, जो सिलिकॉन वैली की उद्यमिता शैली से प्रभावित है, जिसे जोख़िम लेने, व्यक्तिगत प्रोत्साहन, पहल और तकनीकी विशेषज्ञों के आपसी सहयोग-नेटवर्क जैसी विशेषताओं के लिए जाना जाता है. शी जिनपिंग के नेतृत्व में व्यापक सुधारों के कारण चीन के रक्षा उद्योग को झटका लगने के बावजूद उसे कोई भारी नुकसान नहीं हुआ है. परिणामस्वरूप, चीन के रक्षा उद्योग ने काफ़ी तरक्की की है और एसआईपीआरआई (सिपरी) की हालिया रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है, क्योंकि उसके अनुसार 2021 में हथियार-बिक्री में बढ़ोत्तरी हुई है. चार्ट-1 पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि चीनी रक्षा उद्योग कोरोना महामारी और आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने के बावजूद तरक्की कर है, जबकि इसने अन्य देशों के रक्षा उद्योगों पर बुरी तरह प्रभावित किया है.

चाइना नॉर्थ इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनओआरआईएनसीओ) के बिक्री के आंकड़ों में 2020 की तुलना में 2021 में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई, वहीं दूसरे नंबर की कंपनी एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ़ चाइना (एवीआईसी) ने 2020 से 2021 के बीच बिक्री दर में 9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की. 

2020 की तुलना में 2021 में 4.2 प्रतिशत का लाभ कमाने वाली तीसरी बड़ी कंपनी चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉरपोरेशन (सीएएससी) थी. चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (सीएएसआईसी) ने 2020 से 2021 तक बिक्री में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. केवल चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी ग्रुप कॉरपोरेशन (सीईटीसी) ही ऐसी कंपनी रही, जिसकी कुल बिक्री सीएएससी और सीएएसआईसी की तुलना में कहीं ज्यादा थी, लेकिन उसने 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की. लेकिन तब इन तकनीकी क्षेत्रों में आपूर्ति-श्रृंखला महामारी के चलते दुनिया भर में सबसे बुरी तरह प्रभावित थी.

चार्ट- 1 (INSERT CHART ONE HERE)

स्रोत: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट रिपोर्ट, 2022 पर आधारित

पीआरसी के रक्षा उद्योग द्वारा तेज़ी से प्रगति के बावजूद, ऐसे तीन प्रमुख क्षेत्र हैं जहां चीन अभी भी चुनौतियों का सामना कर रहा है: अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, पनडुब्बी की आवाज़ शांत करने की तकनीक और प्रणोदन के क्षेत्र में जहाज-निर्माण प्रौद्योगिकी, जिसमें प्रिसिजन इंजीनियरिंग शामिल है. हालांकि, चीन पारंपरिक पनडुब्बियों के विकास के लिए एयर-इंडिपेंडेट प्रोपल्शन (एआईपी) सिस्टम से आगे बढ़ते हुए लिथियम-आयरन बैटरियों को अपना रहा है. आने वाले समय में, रूस की मदद से पनडुब्बी की आवाज़ शांत करने की तकनीक बीजिंग की अमेरिका जैसी आधुनिक नौसैन्य शक्तियों के साथ अपने अंतराल को पाटने में मदद करेगी. चीन ने अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और क्वॉन्टम प्रौद्योगिकी में भी काफी निवेश किया है. वास्तव में, चीन द्वारा स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और कई उभरती प्रौद्योगिकियों में की गई प्रगति ने अमेरिका की एआई, साइबर क्षमताओं, मानव रहित सिस्टम और मशीन लर्निंग जैसे विशिष्ट प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर तकनीकी श्रेष्ठता बनाए रखने की "थर्ड ऑफसेट" रणनीति को बढ़ावा दिया है.

  

महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों को लेकर चीन के समक्ष चुनौतियां

अमेरिकी कांग्रेस द्वारा हाल ही में पारित किया गया क्रिएटिंग हेल्पफुल इंडस्ट्रीज टू प्रोडक्शन सेमीकंडक्टर्स एंड साइंस कानून (चिप्स एक्ट) चीनी प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए अमेरिकी सेमी-कंडक्टर उद्योग को सब्सिडी देने और सहायता के लिए 53 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रावधान करता है. यह अमेरिका में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देने के लिए इस कानून की लाभार्थी अमेरिकी कंपनियों को चीन के सेमी-कंडक्टर उद्योग में निवेश के लिए प्रतिबंधित करता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेमी-कंडक्टर मिसाइल जैसे प्रमुख हथियारों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और ऑटोमोटिव पुर्जों के लिए आवश्यक घटक है. इतना ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी से चीन की तनातनी की वजह भी यही है. वास्तव में, सेमी-कंडक्टर और पनडुब्बी प्रणोदन प्रणाली अत्याधुनिक प्रद्योगिकियां हैं. हालांकि, चीन के रक्षा उद्योग की सफ़लता से सीख ली जा सकती है. चीन ने कम लागत और तेज़ी से क्षमताएं ग्रहण करने वाले अवशोषण आधारित एक "पर्याप्त रूप से अच्छे विकास मॉडल" को अपनाकर बहुत बड़े स्तर पर स्वदेशीकरण को संभव कर दिखाया है, जिसके चलते वह न सिर्फ़ चीनी सशस्त्र सेवाओं को अपने रक्षा उत्पाद उपलब्ध करा रहा है, बल्कि वह एक प्रतिस्पर्धी रक्षा निर्यातक बन गया है. लेकिन बीजिंग के लिए अवशोषण-आधारित विकास मॉडल से आगे बढ़ते हुए नवाचार-आधारित विकास मॉडल को अपनाना एक गंभीर चुनौती है, जो अत्याधुनिक हथियारों के विकास के लिए आवश्यक है. दूसरे विकास मॉडल को अपनाने से चीनी रक्षा उद्योग को उन्नत नवाचार की लागत को कम रखने की अपनी क्षमता का पता चलेगा, जो चीनी सशस्त्र सेवाओं की अधिग्रहण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ज़रूरी हैं. 2016-2020 के बीच, चीन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अल्जीरिया को सबसे ज्यादा रक्षा उत्पाद बेचे, जिन्होंने क्रमशः 38 प्रतिशत, 17 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत रक्षा उत्पादों और तकनीकों का आयात किया. उपरोक्त देशों के अलावा, 2011 में, चीन ने सऊदी अरब, मिस्र और उज़्बेकिस्तान को लड़ाकू या सशस्त्र मानव-रहित हवाई वाहन (यूएवी) निर्यात करना शुरू कर दिया. उस समय तक केवल अमरीका, इज़राइल और ब्रिटेन सशस्त्र यूएवी का इस्तेमाल कर रहे थे, और अमेरिका से सशस्त्र यूएवी आयात करने वाला एकमात्र देश फ्रांस था. यह इस बात का भी संकेत है कि चीन ने हथियारों के एक प्रमुख आयातक से अब एक प्रमुख रक्षा निर्यातक बनने तक कितनी लंबी दूरी तय की है. 

2011 में, चीन ने सऊदी अरब, मिस्र और उज़्बेकिस्तान को लड़ाकू या सशस्त्र मानव-रहित हवाई वाहन (यूएवी) निर्यात करना शुरू कर दिया. उस समय तक केवल अमरीका, इज़राइल और ब्रिटेन सशस्त्र यूएवी का इस्तेमाल कर रहे थे, और अमेरिका से सशस्त्र यूएवी आयात करने वाला एकमात्र देश फ्रांस था. 

चीन की रक्षा नीति: विकासशील देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ गठजोड़

ऐसा लगता है कि चीन ये समझ गया है कि हथियारों के व्यापार से वह अपनी विदेश नीति और अर्थव्यवस्था से जुड़े कई उद्देश्यों को साध सकता है. अफ्रीका के ही उदाहरण को ले लेते हैं, जो हाइड्रोकार्बन और खनिजों से समृद्ध है, जिसने चीन की अर्थव्यवस्था का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा है. गौरतलब है कि अमेरिका के बाद चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यह देखते हुए कि शी जिनपिंग के 'बेल्ट एंड रोड' कार्यक्रम का उद्देश्य बंदरगाहों, रेलवे लाइनों, बिजली स्टेशनों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के नेटवर्क के माध्यम से बीजिंग को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ना है, इस लिहाज़ से भी यह महाद्वीप चीन के लिए महत्त्वपूर्ण है. यहां, चीन अफ्रीका के एक-दलीय शासन व्यवस्था वाले राज्यों से खुद को जोड़ना चाहता है, और पश्चिम के प्रति शत्रुता उसे उनके समकक्ष ला खड़ा करती है.

 

शी जिनपिंग ने नवंबर 2021 में चीन-अफ्रीका सहयोग मंच से दिए गए अपने संबोधन में पश्चिम की ओर इशारा करते हुए, "घरेलू मामलों में हस्तक्षेप, नस्लीय भेदभाव और एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध करने ... और अपने साझा हितों और आकांक्षाओं को संयुक्त कार्य योजनाओं में बदलने" की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसने कई मौकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए अफ्रीकी सरकारों की आलोचना की है. 'चीन-अफ्रीका एक्शन प्लान' जैसी पहलों के माध्यम से सिविल सेवा के लिए प्रशिक्षण और उन्नयन कार्यक्रमों के नाम पर चीन ने रक्षा कर्मियों की भर्ती बढ़ा दी है. 2018 में, चीन ने चीन-अफ्रीका रक्षा फोरम में 50 अफ्रीकी देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की मेजबानी की, जिसका उद्देश्य रक्षा अधिकारियों के बीच अपने प्रभाव का विस्तार करना था. हालांकि, यह एक औपचारिक वार्ता थी, लेकिन चीन के अफ्रीका के वरिष्ठ सेना अधिकारियों के साथ क़रीबी संबंध ने उसे भू-राजनीतिक रूप से काफ़ी आगे कर दिया है, और (राजनीतिक रूप से) अस्थिर अफ्रीकी देशों में नेतृत्व परिवर्तन होने पर वह किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है. उदाहरण के लिए, ज़िम्बाब्वे के सशस्त्र बलों के प्रमुख, जनरल कॉन्स्टेंटिनो चिवेंगा 2017 में राबर्ट मुगाबे (जो अफ्रीका के लंबे समय तक सत्तासीन नेताओं में से एक थे) को अपदस्थ किए जाने से तीन दिन पहले चीन में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर रहे थे, जिससे बीजिंग को लेकर तमाम अटकलें लगाई जाने लगीं कि वह तख्तापलट के बारे में पहले से जानता था या नहीं.

चीन विकासशील देशों में विशेष रूप से वरिष्ठ सेना अधिकारियों के साथ संबंध जोड़ने में माहिर है. कई विकासशील देशों में सेनाएं सबसे मजबूत संस्थाएं हैं, और नाममात्र की शक्ति रखने वाले असैनिक नेताओं को उनके समर्थन की आवश्यकता होती है. परिणामस्वरूप, चीनी उद्योग के पास रक्षा निर्यात बाजार आसानी से उपलब्ध हैं.

निष्कर्ष

किसी भी उद्योग को राजस्व लाने के लिए एक बाजार और अपने उत्पाद में सुधार एक परीक्षण स्थल की आवश्यकता होती है. 

जैसे-जैसे चीन का हथियार उद्योग आगे बढ़ेगा, अफ्रीका के साथ उसका संबंधों का गणित दिलचस्प होता जाएगा. दोनों के पास एक दूसरे को देने के लिए बहुत कुछ है. प्राकृतिक संसाधनों की कमी से जूझ रहा चीन अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए अफ्रीका की ओर देख रहा है, वहीं अफ्रीकी देश खनन आधारित अर्थव्यवस्थाएं हैं, लेकिन उनके नागरिकों सार्वजनिक सुविधाओं से वंचित हैं और वे अपने शासन की मजबूती के लिए कठोरता के उपकरण हासिल करना चाहेंगे.

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Authors

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...

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Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...

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