आखिरकार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन के लिए सहायता पैकेज प्रस्ताव को अमेरिकी संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद उस पर हस्ताक्षर कर दिए. हालांकि, इसमें काफी देर हुई, यह पता होने के बावजूद कि जंग के मोर्चे पर यूक्रेन की हालत लगातार बद से बदतर होती जा रही है. बहरहाल, 61 बिलियन डॉलर का यह सहायता पैकेज काफी मायने रखता है, जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम्स, मध्य से लंबी दूरी की मिसाइलें और गोला-बारूद के साथ-साथ 9 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता भी शामिल है.
दलगत भेदभाव से ऊपर
इस प्रस्ताव को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने 112 के मुकाबले 311 वोटों से मंजूरी दी. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मौके की नजाकत समझते हुए दलगत भेदभाव से ऊपर उठकर की गई इस वोटिंग की तारीफ की. लेकिन रिपब्लिकन खेमे की ओर से हुए इस प्रस्ताव के विरोध को अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि बिल के समर्थन में जितने रिपब्लिकन वोट पड़े (101) उससे कहीं ज्यादा (112) विरोध में पड़े.
मजबूत अमेरिकी समर्थन के बगैर यूक्रेन तेजी से अलग-थलग पड़ता दिखा, जिससे उत्साहित रूस हमला तेज करता गया और यूक्रेन की स्थिति और कमजोर होती गई.
हाउस स्पीकर और रिपब्लिकन नेता माइक जॉनसन ने बिल को पास कराने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन अब उनका स्पीकर पद ही खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है क्योंकि पार्टी के कई सदस्यों ने उन्हें बाहर करने की मांग उठा दी है. जॉनसन ने दलील दी कि यूक्रेन को समय पर मदद नहीं दी गई तो रूस, ईरान और चीन के रूप में उभरती सर्वसत्तावाद की नई धुरी को मजबूती मिलेगी. लेकिन ऐसा करते हुए, उन्होंने जाने-अनजाने मौजूदा रिपब्लिकन पार्टी की उस धारणा को चुनौती दे दी कि यूक्रेन अमेरिकी हितों के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिकी मतदाताओं में ऊब और थकान पैदा हो रही है. वहां इस मसले पर एक तीव्र वैचारिक विभाजन उभर रहा है. हाल के जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि रिपब्लिकन मतदाता यूक्रेन को अब और सहायता भेजने के बिल्कुल खिलाफ हैं, जबकि डेमोक्रेट और निर्दलीय इसके पक्ष में हैं. पूर्व राष्ट्रपति और संभावित रिपब्लिकन प्रत्याशी डॉनल्ड ट्रंप भी यूक्रेन को सहायता जारी रखने के विरोधी रहे हैं. हालांकि हाल में उन्होंने संकेत दिया था कि वह यूक्रेन को लोन देने पर विचार कर सकते हैं. जॉनसन ने प्रस्ताव का समर्थन करने का जो मन बनाया, उसके पीछे ट्रंप की ओर से मिले इस संकेत की भी भूमिका हो सकती है.
पिछले कई महीनों से यह स्पष्ट था कि पश्चिमी हथियारों पर बुरी तरह निर्भर यूक्रेन को तत्काल सहायता की जरूरत है. वह उस रूसी सेना का सामना कर रहा है जो हाल के हफ्तों में लगातार बढ़त हासिल करती रही है. यूक्रेनी सेना लगातार आगाह कर रही थी कि रूसी हमलों की तीव्रता बढ़ते चले जाने से पूर्वी मोर्चे पर उसकी स्थिति खराब होती जा रही है. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की बार-बार अमेरिकी सहायता की अनिवार्यता को रेखांकित कर रहे थे. उनका कहना था कि जरूरी हथियार तत्काल उपलब्ध हो जाएं तो अग्रिम मोर्चों पर स्थिति पलट सकती है. दिक्कत यह भी थी कि अन्य पश्चिमी देश यूक्रेन को मदद उपलब्ध करवाने में अमेरिकी असमर्थता से पैदा हुए शून्य को भरने की स्थिति में नहीं थे.
रूस को मिल गया मौका
जंग के मैदान में यूक्रेन का जो बुरा हाल दिख रहा है उसके पीछे रूस के आधुनिक और उन्नत हथियारों, व्यापक संसाधनों और इनसे उपजी बेहतर सैन्य क्षमता की ही भूमिका नहीं है. निरंतर मदद के अभाव में आधुनिक उन्नत हथियारों और आधुनिक साजो-सामान तक सीमित पहुंच भी उसकी एक बड़ी वजह है. मजबूत अमेरिकी समर्थन के बगैर यूक्रेन तेजी से अलग-थलग पड़ता दिखा, जिससे उत्साहित रूस हमला तेज करता गया और यूक्रेन की स्थिति और कमजोर होती गई.
नुकसान अमेरिका का भी है. इस स्थिति के चलते पूरी दुनिया में उसकी साख कमजोर हो रही थी. अमेरिका के मजबूत समर्थन के अभाव में नैटो की विश्वसनीयता और एकजुटता पर सवाल उठने लगे थे. ध्यान रहे, पश्चिम के साथ करीबी रिश्ता कायम करने की यूक्रेन की इच्छा नैटो और रूस के बीच विवाद का मुद्दा रही है. ऐसे में अमेरिकी मदद में कमी पूर्वी यूरोप में रूसी आक्रामकता को रोकने की नैटो की क्षमता को प्रभावित कर सकती है.
पश्चिम के साथ करीबी रिश्ता कायम करने की यूक्रेन की इच्छा नैटो और रूस के बीच विवाद का मुद्दा रही है. ऐसे में अमेरिकी मदद में कमी पूर्वी यूरोप में रूसी आक्रामकता को रोकने की नैटो की क्षमता को प्रभावित कर सकती है.
मध्य और पूर्वी यूरोपीय देश यूक्रेन के सबसे मुखर समर्थक रहे हैं. यूक्रेन को लेकर अमेरिकी प्रतिबद्धता में कमी अमेरिका और उसके इन यूरोपीय सहयोगियों के बीच संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है, जो पूर्वी यूरोप में रूसी आक्रामकता को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा समझते हैं और यूक्रेन को लगातार अपना समर्थन दिए हुए हैं.
बदल रहे समीकरण
ध्यान रहे, अमेरिका में घरेलू राजनीति के समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और रिपब्लिकन पार्टी का अंतरराष्ट्रीयवादी तबका अलग-थलग पड़ता जा रहा है. डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में आगे बढ़ाई गई ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ वाली विदेश नीति जोर पकड़ रही है, जो ‘अमेरिका फर्स्ट’ नजरिए को प्राथमिकता देती है. अमेरिकी कांग्रेस द्वारा यूक्रेन के लिए मंजूर किया गया नया सहायता पैकेज निकट भविष्य के लिए भले पर्याप्त हो, वाइट हाउस में नए राष्ट्रपति के आने या आगामी चुनावों में कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिलने की स्थिति में आगे और सहायता मिलना मुश्किल हो जाएगा. यूक्रेन ही नहीं अन्य पश्चिमी देशों को भी उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए.
यह लेख नवभारत टाइम्स में छप चुका है.
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