Author : Harsh V. Pant

Originally Published हिन्दुस्तान Published on Feb 19, 2024 Commentaries 0 Hours ago

दुनिया के कई हिस्से इन दिनों लड़खड़ाते दिख रहे हैं, लेकिन एक लिहाज से यह पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की रणनीतिक विफलता का भी संकेत है.

दुश्मनी और जंग का जारी रहना किसकी नाकामी

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने हाल ही में अपने शीर्ष कमांडर जनरल वलेरी जालुजनी को पद से हटाते हुए उनकी जगह अनुभवी जनरल अलेक्जेंडर सिरस्क को सेना की कमान सौंप दी है. यह बदलाव इसलिए अहम है, क्योंकि कीव पर अब रूसी सेना का दबाव स्पष्ट महसूस किया जाने लगा है. हालांकि, बखमुत में हार की एक वजह सिरस्की को माना जाता है, लेकिन अपनी सैन्य क्षमता के कारण उन्हें व्यापक सम्मान भी हासिल है. अपनी इस योग्यता की झलक उन्होंने फरवरी, 2022 में दिखाई थी, जब रूस ने पूरी क्षमता के साथ यूक्रेन पर धावा बोल दिया था. इतना ही नहीं, जवाबी हमला करके खार्किव को रूसी कब्जे से छुड़ाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है.  


नाटो में शामिल को लेकर मतभेद

बहरहाल, यूक्रेन कितनी भी कोशिश कर रहा हो, लेकिन नाटो में उसे शामिल करने को लेकर अब भी मतभेद है. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि अमेरिका ने उसे वायदे के मुताबिक सैन्य मदद देने से इनकार कर दिया है. अमेरिका के निचले सदन ने कीव को दिए जाने वाले 110 अरब डॉलर के सहायता पैकेज को रोकने का फैसला किया है, जिससे यूक्रेन के सामने एक गंभीर संकट पैदा हो गया है. कीव अब सीमित मात्रा में ही गोला-बारूद इस्तेमाल कर पा रहा है, जिससे विशेषकर पूर्वी यूक्रेन में उसकी रणनीति कमजोर पड़ने लगी है. चूंकि जंग के मैदान में यूक्रेन का प्रदर्शन पूरी तरह से अमेरिकी सहायता पर निर्भर है, लिहाजा उसके लिए संभावनाएं जटिल होती दिख रही हैं. डोनबास और क्रीमिया पर फिर से कब्जा करना तो दूर की बात है, कीव पर अपने कुछ और इलाके गंवाने का खतरा मंडराने लगा है. उसके लिए एकमात्र आशा की किरण यूरोपीय संघ की 50 अरब डॉलर की मदद है, जो हंगरी के नेता विक्टर ओरबान द्वारा यूक्रेन को अतिरिक्त मदद करने संबंधी अपने वीटो से पीछे हटने के कारण संभव हो सका है. हालांकि, यह धनराशि मुख्यत: यूक्रेन की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने, सरकार चलाने, बुनियादी ढांचों को सुचारू रखने के लिए है. इससे उसे कोई सैन्य मदद शायद ही मिल सकेगी. वैसे भी, यूक्रेन की सेना साल 2022 के आखिरी महीनों के बाद से किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र पर अपना अधिकार नहीं जमा सकी है.   

 यूक्रेन कितनी भी कोशिश कर रहा हो, लेकिन नाटो में उसे शामिल करने को लेकर अब भी मतभेद है.

उधर, इजरायल-गाजा संघर्ष में इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपनी सेना को रफा से नागरिकों को निकालने और हमास के शेष लड़ाकों के विरुद्ध एक विस्तृत कार्य-योजना बनाने को कहा है. उल्लेखनीय है कि पिछले साल 7 अक्तूबर को जब हमास ने इजरायल पर हमला किया था, तब उसमें 1,139 इजरायली मारे गए थे, लेकिन इजरायल की जवाबी प्रतिक्रिया में अब तक करीब 28 हजार फलस्तीनियों की मौत हो चुकी है और 67 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन लगातार कह रहे हैं कि इस युद्ध को लंबे समय तक थामने के लिए उनकी सरकार सक्रिय है. माना यह भी जा रहा है कि बाइडन सरकार इजरायल के खिलाफ अधिक सख्त कदम उठा सकती है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने कई तरह की घरेलू चुनौतियां भी हैं, विशेषकर आगामी राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए. फिर भी, जमीन पर अमेरिकी दबाव का खास असर नहीं दिखा है.   

 दुनिया के कई हिस्से इन दिनों लड़खड़ाते दिख रहे हैं, लेकिन एक लिहाज से यह पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की रणनीतिक विफलता का भी संकेत है. ऐसे में, बस कामना ही की जा सकती है कि यह तस्वीर जल्द बदल पाए.

संयुक्त राष्ट्र पर सवाल

 

यहां संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं पर भी सवाल उठने लगे हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने पिछले दिनों बयान दिया है कि गाजा की कुल 23 लाख आबादी में से आधी अब रफा में फंसी हुई है और उसके पास यहां से कहीं और जाने का कोई रास्ता नहीं बचा है, इसलिए इस युद्ध का अब अंत होना चाहिए. मगर ऐसा लगता है कि उनकी पूर्व की अपीलों की तरह इसे भी अनसुना किया जा रहा है. वैसे भी, पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सलाहकार की भूमिका में ही अधिक दिखा है. इसीलिए शायद आलोचक अब इसके अप्रासंगिक होने का दावा करने लगे हैं.   

 

बहरहाल, दुनिया के कई हिस्से इन दिनों लड़खड़ाते दिख रहे हैं, लेकिन एक लिहाज से यह पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की रणनीतिक विफलता का भी संकेत है. ऐसे में, बस कामना ही की जा सकती है कि यह तस्वीर जल्द बदल पाए.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.