Author : Harsh V. Pant

Published on Aug 30, 2022 Commentaries 0 Hours ago

ऐसी भी खबरें आई है जिनमें रूस के अपने कैदियों को युद्ध में झोंकने का दावा किया गया

आखिर कितना लंबा खिंचेगा यूक्रेन युद्ध

पिछले हफ्ते यूक्रेन ने अपनी आजादी की 31वीं वर्षगांठ मनाई और वहां रूस के स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन को छह महीने भी पूरे हुए. यूक्रेन में एक तरफ आजादी का जश्न मनाया गया, तो दूसरी तरफ युद्ध का असर आम जन-जीवन पर भी पड़ा, जब रूस ने चैपलेन रेलवे स्टेशन को टारगेट किया. उस स्ट्राइक में 25 लोग मारे गए. रूस का कहना था कि वहां से यूक्रेन ट्रेन से सैनिक और हथियार लेकर जा रहा था. फिर जपोरिजिया को लेकर भी यूरोप की चिंताएं बढीं, जहां उसका सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट है. वहां दोनों ही पक्ष बमबारी कर रहे थे, जिससे न्यूक्लियर डिजास्टर का खतरा बना हुआ था. 

यूक्रेन में एक तरफ आजादी का जश्न मनाया गया, तो दूसरी तरफ युद्ध का असर आम जन-जीवन पर भी पड़ा, जब रूस ने चैपलेन रेलवे स्टेशन को टारगेट किया. उस स्ट्राइक में 25 लोग मारे गए.

यह सब देखकर लगता है कि यूक्रेन में युद्ध खत्म होने के आसार नहीं है. दोनों ही पक्ष कोई निर्णयात्मक कदम उठाने में असफल रहे है-

  • रूस की जो सेना यूक्रेन के सामने बहुत बड़ी मिलिट्री के तौर पर कड़ी थी, छह महीने बाद भी वह अपना लक्ष्य पूरा कर पाने में नाकाम रही है.
  • युद्ध से पहले कहा जा रहा था कि यूक्रेन पर कब्जा रूस के लिए बहुत आसान होगा. रूस की सेना काबिल है, बेहतर प्रशिक्षित है, अच्छे हथियार है. लेकिन यह सब देखने को नहीं मिला. रूस की मिलिट्री परफॉर्मेंस काफी बुरी रही.
  • अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए शुरूआती दौर में रूस किव्स की तरफ मुड़ा था. मगर वहां से उसको पीछे हटना पड़ा. अब उसका फोकस साउथ और ईस्ट में बना हुआ है.
  • रुसी सैनिक आदेशों का पालन नहीं कर रहे. वे शहरों को लुट रहे है, अपना फ्रस्ट्रेशन निहत्थे लोगों पर निकाल रहे है.
  • दूसरी और यूक्रेन ने शुरूआती आघात से खुद को कंट्रोल करके फिर अपने को ग्लोबलाइज किया. उसे पश्चिमी देशों की ओर से जो भी मदद मिल रही है, उसके जरिये उसने रूस पर जवाबी हमला जारी रखा है.
  •  मगर यूक्रेन में बड़ी संख्या में लोगों की जान गयी है. मैनपावर का नुकसान यूक्रेन बहुत समय तक बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. उसके हथियार भी घटते जा रहे हैं.

दोनों तरफ ही हथियारों की सप्लाई कम होती जा रही है. पश्चिमी देश भी अपनी जरुरत के ही मद्देनजर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं कि यह युद्ध कितना लंबा खींचेगा?

तो इस समय तस्वीर यह उभर रही है कि दोनों तरफ ही हथियारों की सप्लाई कम होती जा रही है. पश्चिमी देश भी अपनी जरुरत के ही मद्देनजर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं कि यह युद्ध कितना लंबा खींचेगा?

  •  युद्ध की अनिश्चितता देखते हुए रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले दिनों कानून पास करवाया और सेना में 1 लाख 37 हजार नई भर्तियां की. अब रूस में कॉम्बैट पर्सनल की संख्या 20.4 लाख हो गयी है.
  • पुतिन को अहसास है कि मैनपावर लॉस की भरपाई मुश्किल है. इसीलिए अभी तक रूस ने अपनी सेना को पूरी तरह से मोबिलाइज नहीं किया है, अधिकतर मशीनों का ही इस्तेमाल किया गया है.
  • रूस की जेलों में भी बहुत से कैदी थे. ऐसी खबरें भी आई है कि उन्होनें उन कैदियों को आगे ले जाकर लड़ाई में झौंका है.
  • पुतिन रूस में इस युद्ध को लेकर पॉलिटिकल सपोर्ट बनाना चाहते हैं. इसलिए जो उन्होंने कानून पास है, उसमे पहली बार यह मान रहे है की युद्ध उस तरह से नहीं बढ़ रहा है, जैसा उन्होंने सोचा था. इसलिए रूसियो को अभी और भार उठाना होगा.
  • फिलहाल उनकी रणनीति फिर से एकजुट होकर अगले वसंत तक फिर से एक बड़ा हमला करने की है. अभी तो सर्दियां आ रही हैं तो उसे देखते हुए वे ज्यादा कुछ नहीं करना चाहेंगे.
  • दूसरी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की हैं, जो अभी तक यह कह रहे हैं कि उनको पूरी जीत हासिल करनी है. नुकसान तो उनको भी बड़ी मात्रा में हो रहा है, लेकिन उनकी एप्रोच इस समय पश्चिमी देशों के सपोर्ट पर टिकी हुई है.
भारत नहीं चाहता कि रूस पूरी तरह चीन के खेमे में चला जाये. लेकिन उसे रोकने के लिहाज से भारत की क्षमता बहुत कम है. चीन-अमेरिका में शीत युद्ध की जो स्थिति आ रही है, उसमें भारत किस तरह से आगे बढेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है.

शुरू में रूस कहता था कि यह बहुत छोटा युद्ध होगा. यूक्रेन के पुशबैक की वजह से रूस अपनी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर पाया है. सवाल है की कब तक यह सपोर्ट यूक्रेन को मिलता रहेगा, क्योंकि यूरोप की भी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है, मुद्रास्फीति बढ़ रही है. तेल और अनाज की कीमत बहुत ज्यादा हो गयी है. लोग भी थक गए है कि कब तक इसे सपोर्ट करेंगे. यूरोप ने ऐसे कई कदम उठाये है, जो युद्ध न होने की स्थिति में कभी नहीं उठाये जाते.

भविष्य के सवाल 

अब सवाल है कि आगे क्या होगा ? आने वाले समय में इस युद्ध का सबसे बड़ा परिणाम यह देखा जा रहा है कि रूस और चीन एक-दुसरे के और करीब आ रहे हैं. रूस एक तरह से चीन का जूनियर पार्टनर बनता जा रहा है. जैसे जैसे चीन और अमेरिका में शीत युद्ध बढ़ेगा, चीन के डिपेंडेंट पार्टनर के रूप में रूस का रोल भी बढ़ेगा. लेकिन इसकी असली समस्या हिन्द-प्रशांत में देखी जा रही है, जो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु होगा. इसे लेकर भारत की स्वाभाविक चिंताए हैं. रूस भारत के महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार है. इसलिए भारत ने अपने रिस्पांस में रूस को टारगेट नहीं किया है. भारत ने कहा है कि समस्या का समाधान डिप्लोमैटिक तरीके से खोजा जाना चाहिए. भारत नहीं चाहता कि रूस पूरी तरह चीन के खेमे में चला जाये. लेकिन उसे रोकने के लिहाज से भारत की क्षमता बहुत कम है. चीन-अमेरिका में शीत युद्ध की जो स्थिति आ रही है, उसमें भारत किस तरह से आगे बढेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है. पहले भारत सोचता था कि रूस के साथ वह चीन को बैलेंस कर सकता है. लेकिन चीन पर रूस की निर्भरता भारत के लिए समस्या पैदा करेगी, क्योंकि तब उसे अपने संबंधों को मैनेज करने में काफी दिक्कत पेश आएगी.

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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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