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ऐसी भी खबरें आई है जिनमें रूस के अपने कैदियों को युद्ध में झोंकने का दावा किया गया
पिछले हफ्ते यूक्रेन ने अपनी आजादी की 31वीं वर्षगांठ मनाई और वहां रूस के स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन को छह महीने भी पूरे हुए. यूक्रेन में एक तरफ आजादी का जश्न मनाया गया, तो दूसरी तरफ युद्ध का असर आम जन-जीवन पर भी पड़ा, जब रूस ने चैपलेन रेलवे स्टेशन को टारगेट किया. उस स्ट्राइक में 25 लोग मारे गए. रूस का कहना था कि वहां से यूक्रेन ट्रेन से सैनिक और हथियार लेकर जा रहा था. फिर जपोरिजिया को लेकर भी यूरोप की चिंताएं बढीं, जहां उसका सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट है. वहां दोनों ही पक्ष बमबारी कर रहे थे, जिससे न्यूक्लियर डिजास्टर का खतरा बना हुआ था.
यूक्रेन में एक तरफ आजादी का जश्न मनाया गया, तो दूसरी तरफ युद्ध का असर आम जन-जीवन पर भी पड़ा, जब रूस ने चैपलेन रेलवे स्टेशन को टारगेट किया. उस स्ट्राइक में 25 लोग मारे गए.
यह सब देखकर लगता है कि यूक्रेन में युद्ध खत्म होने के आसार नहीं है. दोनों ही पक्ष कोई निर्णयात्मक कदम उठाने में असफल रहे है-
दोनों तरफ ही हथियारों की सप्लाई कम होती जा रही है. पश्चिमी देश भी अपनी जरुरत के ही मद्देनजर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं कि यह युद्ध कितना लंबा खींचेगा?
तो इस समय तस्वीर यह उभर रही है कि दोनों तरफ ही हथियारों की सप्लाई कम होती जा रही है. पश्चिमी देश भी अपनी जरुरत के ही मद्देनजर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं कि यह युद्ध कितना लंबा खींचेगा?
भारत नहीं चाहता कि रूस पूरी तरह चीन के खेमे में चला जाये. लेकिन उसे रोकने के लिहाज से भारत की क्षमता बहुत कम है. चीन-अमेरिका में शीत युद्ध की जो स्थिति आ रही है, उसमें भारत किस तरह से आगे बढेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है.
शुरू में रूस कहता था कि यह बहुत छोटा युद्ध होगा. यूक्रेन के पुशबैक की वजह से रूस अपनी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर पाया है. सवाल है की कब तक यह सपोर्ट यूक्रेन को मिलता रहेगा, क्योंकि यूरोप की भी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है, मुद्रास्फीति बढ़ रही है. तेल और अनाज की कीमत बहुत ज्यादा हो गयी है. लोग भी थक गए है कि कब तक इसे सपोर्ट करेंगे. यूरोप ने ऐसे कई कदम उठाये है, जो युद्ध न होने की स्थिति में कभी नहीं उठाये जाते.
अब सवाल है कि आगे क्या होगा ? आने वाले समय में इस युद्ध का सबसे बड़ा परिणाम यह देखा जा रहा है कि रूस और चीन एक-दुसरे के और करीब आ रहे हैं. रूस एक तरह से चीन का जूनियर पार्टनर बनता जा रहा है. जैसे जैसे चीन और अमेरिका में शीत युद्ध बढ़ेगा, चीन के डिपेंडेंट पार्टनर के रूप में रूस का रोल भी बढ़ेगा. लेकिन इसकी असली समस्या हिन्द-प्रशांत में देखी जा रही है, जो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु होगा. इसे लेकर भारत की स्वाभाविक चिंताए हैं. रूस भारत के महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार है. इसलिए भारत ने अपने रिस्पांस में रूस को टारगेट नहीं किया है. भारत ने कहा है कि समस्या का समाधान डिप्लोमैटिक तरीके से खोजा जाना चाहिए. भारत नहीं चाहता कि रूस पूरी तरह चीन के खेमे में चला जाये. लेकिन उसे रोकने के लिहाज से भारत की क्षमता बहुत कम है. चीन-अमेरिका में शीत युद्ध की जो स्थिति आ रही है, उसमें भारत किस तरह से आगे बढेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है. पहले भारत सोचता था कि रूस के साथ वह चीन को बैलेंस कर सकता है. लेकिन चीन पर रूस की निर्भरता भारत के लिए समस्या पैदा करेगी, क्योंकि तब उसे अपने संबंधों को मैनेज करने में काफी दिक्कत पेश आएगी.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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