कोविड-19 महामारी ने पेशेवर और व्यक्तिगत संपर्क एवं पारस्परिक विचार-विमर्श के लिए वर्चुअल स्पेस अर्थात आभासी माध्यम के इस्तेमाल में उल्लेखनीय रूप से बढ़ोतरी की है. ज़ाहिर है कि वर्चुअल माध्यमों ने भौतिक संचार (physical communication) में आने वाली दिक़्क़तों को काफ़ी हद तक दूर कर दिया है. लेकिन मेटावर्स (metaverse) ने पारंपरिक ऑनलाइन संपर्क से अलग हटकर अपने विभिन्न एप्लीकेशन्स के माध्यम से पूरी दुनिया के सामने अभूतपूर्व अवसर पेश किए हैं. आकर्षक आभासी माहौल ने न केवल हमारी सोच, हमारी कल्पना शक्ति को नया आयाम दिया है, बल्कि हमें निर्बाध रूप से ऑनलाइन जुड़ने और सहयोग करने के नए-नए तरीक़ों पर विचार करने के लिए भी प्रेरित किया है. मेटावर्स के उपयोग के माध्यम से हम तमाम जटिलताओं के साथ तैयार की गई डिजिटल दुनिया में कार्यशील या कामकाज से संबंधित आभासी समुदायों (virtual communities) का निर्माण कर सकते हैं.
मेटावर्स शहरी गवर्नेंस एवं नियोजन (planning) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार कर सकता है, ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ के तेज़ी से विकसित होते शहरों में तो यह बेहद कारगर सिद्ध हो सकता है..
मेटावर्स के लगातार बढ़ते मार्केट में रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं को क्रांतिकारी तौर पर बदलने की क्षमता है. मेटावर्स में कामकाज करने और सीखने से लेकर फुरसत के पलों को व्यतीत करने, यात्रा, हेल्थकेयर एवं विचार-विमर्श तक हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में बदलाव की क्षमता है. मेटावर्स शहरी गवर्नेंस एवं नियोजन (planning) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार कर सकता है, ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ के तेज़ी से विकसित होते शहरों में तो यह बेहद कारगर सिद्ध हो सकता है. मेटावर्स का उपयोग न सिर्फ़ नवाचार में तेज़ी ला सकता है, बल्कि शहरों के विकास के लिए किस प्रकार से योजनाएं बनाई जाएं और उनका प्रबंधन किया जाए, इसमें भी क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है. मेटावर्स के बेहतर और समझदारीपूर्ण उपयोग से शहरों के नगरिक-केंद्रित (people-centric) विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है. अब सवाल यह उठता है कि मेटावर्स शहरों के गवर्नेंस में जुटी संस्थाओं, जैसे की नगर पालिकाओं या नगर निगमों को किस प्रकार से सशक्त कर सकता है और उनकी क्या मदद कर सकता है? इसके साथ ही यह सवाल है कि मेटावर्स टिकाऊ और समावेशी शहरों के विकास के लिए नवाचार एवं निवेश को कैसे प्रोत्साहित कर सकता है? साथ ही यह भी सवाल है कि लोगों की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और अनुभवों को प्राथमिकता में रखते हुए मेटावर्स किस प्रकार से शहरी नियोजन को पुनर्निर्धारित कर सकता है?
डिजिटल ट्विन्स की विस्तृत समझ
शहरी रहन-सहन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी करने के लिए देखा जाए तो शहरों ने नवीनता के साथ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है. हालांकि, अलग-अलग तमाम प्रौद्योगिकियों एवं डिवाइसों के निर्बाध और आसान गठजोड़ के ज़रिए मेटावर्स बेहद कारगर सिद्ध हो रहा है. मेटावर्स ने अपने तकनीक़ी कौशल के बल पर वर्चुअल रियलिटी (VR), ऑगमेंटेड रियलिटी (augmented reality) (AR) और मिक्स्ड रियलिटी (MR) को एकीकृत करने का काम किया है, जो आभासी दुनिया (virtual world) को वास्तविक दुनिया से जोड़ता है. प्रभावशाली ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (GPUs) और स्थानिक कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियों (spatial computing technologies) के विस्तार से एकदम वास्तविक दिखने वाले 3डी ग्राफिक्स को बनाना संभव हो पाता है, जिससे उपयोगकर्ता ग्राफिक्स के साथ गहराई से जुड़ पाते हैं. अगर निरंतर विकसित हो रहे इन वर्चुअल नेटवर्क्स का प्रभावी तरीक़े से लाभ उठाया गया, तो निश्चित तौर पर इसमें भविष्य के अनुभवों को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है.
अर्बन गवर्नेंस को प्रभावशाली एवं कार्यकुशल बनाने के लिए मौज़ूदा दौर में वर्चुअल सिमुलेशन (virtual simulation) यानी सीखने के अनुभव को आकर्षक बनाने के लिए 3डी ऑब्जेक्ट्स और माहौल का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद है. ज़ाहिर है कि ऐसे में वर्चुअल सिमुलेशन के जरिए वास्तविक और भौतिक दुनिया की नकल करने वाले डेटा प्वाइंट्स के संग्रह के एल्गोरिदम मॉडल के रूप में एक डिजिटल ट्विन या मिरर, आर्थात भौतिक वस्तु का एक आभासी मॉडल विकसित करने की ज़रूरत है. शहर के बारे में वास्तविक और विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए वर्चुअल प्रतिकृतियों (virtual replicas) के रूप में डिजिटल ट्विंस टेक्नोलॉजी का उपयोग टेस्टिंग, सिमुलेशन और रियल-टाइम मॉनिटरिंग के लिए किया जा सकता है. इसके ज़रिए शहर की हर छोटी से छोटी गतिविधि की जानकारी हासिल की जा सकती है, जैसे कि शहर के तापमान के उतार-चढ़ाव जैसे सूक्ष्म विवरण एवं व्यस्त मार्गों पर वाहनों की आवाजाही के बारे में भी रियल टाइम जानकारी हासिल की जा सकती है. डिजिटल ट्विन्स नई और पुरानी दोनों तरह की बिल्डिंग में कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं, ज़ाहिर है कि इससे प्रोजेक्ट एवं बिल्डिंग की लागत में भी 35 प्रतिशत तक की बचत हो सकती है.
शहर के बारे में वास्तविक और विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए वर्चुअल प्रतिकृतियों (virtual replicas) के रूप में डिजिटल ट्विंस टेक्नोलॉजी का उपयोग टेस्टिंग, सिमुलेशन और रियल-टाइम मॉनिटरिंग के लिए किया जा सकता है.
शहरी नियोजन एवं इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट के मामले में भी डिजिटल ट्विन्स तकनीक़ बेहद कारगर साबित हो सकती है. देखा जाए तो डिजिटल ट्विन्स का उपयोग न केवल एसेट परफॉर्मेंस में सुधार करने और लागत को कम करने में मददगार हो सकता है, बल्कि आपदा की स्थिति में राहत-बचाव कार्य का प्रबंधन करने और सुरक्षा व्यवस्था को सुधारने में भी सहायक साबित हो सकता है. डिजिटल ट्विन्स तकनीक़ के केंद्र में डिजिटल प्रोजेक्ट डिलीवरी (DPD) है, जो कि हितधारकों के बीच बिना रुकावट के आंकड़ों को साझा करने की सुविधा उपलब्ध कराती है. DPD के ज़रिए शहरों में चलने वाली परियोजनाओं को ज़ल्द पूरा किया जा सकता है, साथ ही प्रोजेक्ट की लागत बढ़ने से भी रोका जा सकता है. इसके साथ ही DPD के ज़रिए परियोजना की गुणवत्ता एवं सेफ्टी में सुधार किया जा सकता है, साथ ही यह परिसंपत्ति जीवनचक्र (asset lifecycle) में उपयोग किए जाने वाले एसेट डेटा का डिजिटल रिकॉर्ड बनाने में सहायक हो सकती है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2021 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन (Incheon) शहर ने प्रभावित क्षेत्रों में डेंगू की पहचान करने एवं उस पर काबू पाने के उद्देश्य से कोरियाई प्रायद्वीप में मच्छरों की आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच करने के लिए ArcGIS का इस्तेमाल किया था.
अगुवाई करने वाले फ्रेमवर्क्स
हाल के दिनों में देखा जाए तो तमाम शहरों ने प्रभावशाली तरीक़े से मेटावर्स तकनीक़ का उपयोग शुरू किया है. शहरों द्वारा विभिन्न चुनौतियों के बारे में पता लगाने, अपनी सेवाओं में बढ़ोतरी करने के लिए मेटावर्स को दूरदर्शी प्लेटफॉर्म के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2021 में सियोल मेट्रोपॉलिटन गवर्नमेंट ने वर्चुअल-रियलिटी हेडसेट के माध्यम से सिटी हॉल के 3D चित्रण को सक्षम बनाने के लिए पांच साल की योजना में 3.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था. इसने वर्चुअल मेयर ऑफिस समेत सियोल के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ नागरिकों की सीधी बातचीत की सुविधा उपलब्ध कराई. शहर के निवासियों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों की इस सीधी बातचीत की सुविधा ने न केवल नौकरशाही को अपनी ज़िम्मेदारी से बचने, यानी अधिक जवाबदेह बनाने का काम किया, बल्कि सार्वजनिक सेवाओं की पहुंच के बारे में प्रशासन को सीधा और त्वरित फीडबैक भी उपलब्ध कराया.
नागरिकों के साथ लाइव संपर्क का एक और उदाहरण अमेरिका का न्यू रोशेल शहर में देखने को मिलता है, जहां पुनर्विकास से जुड़े प्रोजेक्ट्स की योजना बनाने के लिए विशेष प्रकार के टूल्स का उपयोग किया गया है. इसके अंतर्गत शहर के निवासी एक समर्पित प्लेटफॉर्म की सहायता से, 'डिजिटल ह्यूमन ट्विन्स' के रूप में आभासी रूप से बनाए गए वातावरण में शहर के भीतर होने वाले प्रस्तावित बदलावों को अधिक वास्तविकता के साथ महसूस कर सकते हैं.
इसके अतिरिक्त, न्यूजीलैंड में वेलिंगटन शहर का डिजिटल ट्विन क्लाइमेट चेंज के प्रति नागरिकों को सचेत करने का काम करता है. यह डिजिटल ट्विन नागरिकों के सामने शहर के भविष्य के लिए ऐसे परिदृश्यों को प्रस्तुत करता है, जो जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करते हैं, इसके साथ ही यह नागरिकों को दैनिक दिनचर्या में किए जाने वाले कार्यों में ऐसे विकल्पों को चुनने में मदद करता है, जिनसे पर्यावरण को कम से कम नुक़सान हो. इसके अलावा, दुबई मेटावर्स का लक्ष्य नए सरकारी वर्क मॉडल्स (governmental work models) बनाने के लिए Web3.0 प्रौद्योगिकियों का सहयोग करने हेतु नवाचार को प्रोत्साहन देना एवं निवेश को आकर्षित करना है.
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मेटावर्स में छोटी कंपनियों और स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए, यहां तक कि वर्चुअल शॉपिंग माल को बढ़ावा देने के लिए शहर के डिजिटल कॉमर्स एवं वर्चुअल कार्यालयों का विस्तार किया है. दूसरी तरफ, चीन के शंघाई शहर ने डिजिटल ट्विन अनुकरणों के माध्यम से भूकंप, आग के पूर्वानुमान और क़ानून का उल्लंघन करने वालों का पुलिस द्वारा पीछा करने के लिए लचीलापन और ख़तरे के प्रति त्वरित कार्रवाई को शामिल किया है. इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया का ब्रिस्बेन शहर और सिंगापुर मेटावर्स का उपयोग कर टिकाऊ एवं लचीले शहरी नियोजन की दिशा में काम कर रहे हैं.
अर्बन मेटावर्स टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत फिलहाल शुरुआती दौर में है, लेकिन उल्लेखनीय प्रगति के साथ आगे बढ़ रहा है. इसरी इंडिया (Esri India) और जेनेसिस इंटरनेशनल (Genesys International) का गठजोड़ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एवं मशीन लर्निंग (ML) के ज़रिए भारतीय शहरों को डिजिटल ट्विन तकनीक़ों को कार्यान्वित करने में मदद कर रहा है. भारत के अमरावती और मुंबई जैसे शहरों ने पहले ही डिजिटल ट्विन टेक्नोलॉजी पर काम शुरू कर दिया है, जबकि 2024 के अंत तक 20 और शहर डिजिटल ट्विन पर काम शुरू करने की तैयारी में हैं. मैपिंग प्रौद्योगिकियों को इस्तेमाल करके एवं 3D चित्रों का निर्माण करके, डिजिटल ट्विन्स का उपयोग तमाम शहरी सेवाओं में किया जाएगा. इनमें टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को बढ़ावा देना, कम ख़र्च वाले EV चार्जिंग स्टेशनों तक पहुंच प्रदान करना एवं ई-कॉमर्स सेक्टर में वस्तुओं की डिलीवरी में तेज़ी लाना जैसी सेवाएं शामिल हैं.
भारत के अमरावती और मुंबई जैसे शहरों ने पहले ही डिजिटल ट्विन टेक्नोलॉजी पर काम शुरू कर दिया है, जबकि 2024 के अंत तक 20 और शहर डिजिटल ट्विन पर काम शुरू करने की तैयारी में हैं.
ऐसा नहीं है कि मेटावर्स में चुनौतियां नहीं है. इस तकनीक़ के अंतर्गत व्यापक मात्रा में उपलब्ध वर्चुअल डेटा के विश्लेषण और उसकी छानबीन की प्रक्रिया की वजह से सभी के लिए उपलब्ध होने वाले एप्लीकेशन्स को समायोजित करना, ख़ास तौर पर ऐसे शहरों में, जहां की आबादी बहुत सघन है, काफ़ी धीमा और जटिल हो सकता है. इतना ही नहीं, नगर निकायों के लिए मेटावर्स से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर, नेटवर्किंग क्षमताओं एवं डिजिटल गोपनीयता का प्रभावशाली तरीक़े से रखरखाव करना भी काफ़ी महंगा एवं दुष्कर कार्य हो सकता है. इसके अतिरिक्त, ऐसे शहर को अभी विकासशील स्टेज में हैं, उन पर मेटावर्स के रोज़मर्रा के अनुभवों को एक साथ लाने के लिए समुदायों को सिखाने एवं जागरूक करने का बोझ अलग से होगा. विशेष रूप से ऐसे शहरों में तो यह बेहद परेशानी का सबब बना जाएगा, जहां सभी तक डिजिटल सुविधाएं नहीं पहुंची हैं.
जन सामान्य के हित वाला शहरी भविष्य
निश्चित तौर पर मेटावर्स टेक्नोलॉजी के उपयोग को लेकर कई तरह की चिंताएं हैं, बावज़ूद इसके मेटावर्स में तकनीक़ के ज़रिए शहरी जीवन की गुणवत्ता को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता है. मेटावर्स टेक्नोलॉजी का उपयोग अलग समझदारी के साथ किया जाए तो शहरी नियोजन की योजना से लेकर शहर की प्रशासनिक व्यवस्था पर न सिर्फ़ दोबारा से विचार किया जा सकता है, बल्कि इस प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरणों में नागरिकों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जा सकती है.
• जनभागीदारी में बढ़ोतरी: स्थानीय निकाय मेटावर्स प्लेटफार्म्स में निवेश करके जनभागीदारी को प्रोत्साहित कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि मेटावर्स तकनीक़ शहरी नियोजन में नागरिकों को सशक्त बनाती हैं और नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है. ऐसा करने के लिए सबसे पहले सभी की इंटरनेट सेवाओं एवं गैजेट्स तक आसान पहुंच बनानी होगी. इसके लिए नगर निकायों को व्यवसायों को मेटावर्स का नए-नए तरीक़े से उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. मेटावर्स देखा जाए तो रियल टाइम फीडबैक प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, मेटावर्स पर आधारित भागीदारी के लिए पारदर्शी एवं समावेशी गाइडलाइन्स और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा. ऐसा करना शहरी परिदृश्य को आकार देने में अलग-अलग दृष्टिकोण को सुनिश्चित कर सकता है.
• व्यावहारिक अर्बन गवर्नेंस और क्षमता निर्माण: नगर निकायों को न केवल नए-नए वित्तीय मॉडलों के विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए, बल्कि मेटावर्स डेटा और एप्लीकेशन्स के विकास और प्रबंधन हेतु साझेदारी बनाने की कोशिश करना चाहिए. इसके लिए नगर निकायों को अपने कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि करने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्राथमिकता देना होगा. ऐसा करने से कर्मचारियों को लगातार विकसित हो रही मेटावर्स टेक्नोलॉजी के साथ कुशलतापूर्वक सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, सरकारों को आंकड़ों का प्रबंधन करने एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए Web3.0 प्रौद्योगिकी के एकीकरण को भी बढ़ावा देना चाहिए. इसके लिए सरकारों को ऐसे नियम और मानक सुनिश्चित करने होंगे, जो गोपनीयता, सभी तक पहुंच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर केंद्रित हों. इस तरह की पहलों के साथ-साथ डिजिटल साक्षरता और शैक्षिक कार्यक्रमों को भी बढ़ावा देना चाहिए, ताकि कंटेंट का प्रबंधन करने, बुरी आदतों पर काबू पाने और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा में मदद मिल सके.
• सतत अनुकरण एवं आवश्यकता-आधारित शहरी नियोजन: नगर निकायों को शहरी नियोजन के लिए मेटावर्स-आधारित अनुकरण के साधनों को कार्यान्वित करने पर विचार करना चाहिए. ऐसा करने से वास्तविकता में कोई बदलाव करने से पहले नागरिकों की प्रतिक्रिया मिल सकेगी और इससे उनके सुझावों को भी अमल में लाया जा सकेगा. इसके अलावा, शहरी निकाय विभिन्न परिस्थितियों के लिहाज़ से शहर को तैयार करने हेतु आपदा प्रबंधन और टिकाऊ योजना बनाने हेतु एक मेटावर्स इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने की दिशा में भी काम कर सकते हैं.
• नैतिक राय-विचार एवं ज़िम्मेदार उपयोग: स्थानीय नगर निकायों को फेक न्यूज़ और भड़काऊ व मनगढ़ंत कंटेंट की समस्या से निपटने के लिए कंटेंट मॉडरेशन रूल्स (content moderation rules) यानी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर उपयोगकर्ता द्वारा शेयर की जाने वाली सामग्री की समीक्षा और निगरानी के लिए नियम बनाने होंगे. नगर निकायों को नैतिक निगरानी के लिए AI टूल्स के विकास का भी सहयोग करना चाहिए. लोगों की मेंटल हेल्थ और हितों पर मेटावर्स के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए टेक कंपनियों के साथ सहयोग करना भी ज़रूरी है, ताकि उसके मुताबिक़ नीतिगत सुधार किए जा सकें.
• आर्थिक अवसर और नवाचार: शहरी योजनाकारों को मेटावर्स पर आधारित ऐसी पहलों के विकास को बढ़ावा देना चाहिए, जो इकोनॉमिक ग्रोथ को प्रोत्साहित करती हों, जैसे कि वर्चुअल डाउनटाउन क्षेत्र या डिजिटल मार्केटप्लेस, जो व्यापार के लिए नए मौक़े उपलब्ध कराते हैं. इसके साथ ही स्थानीय नगर निकायों, शैक्षणिक संस्थानों एवं व्यवसायों के बीच गठजोड़ को प्रोत्साहित करना, मेटावर्स पर आधारित शैक्षिक और ट्रेनिंग कार्यक्रमों को तैयार करने में अहम साबित होगा. इन कार्यक्रमों के ज़रिए नागरिकों को प्रशिक्षित किया जा सकेगा, जो न सिर्फ़ उन्हें व्यापक भागीदारी के लिए जागरूक करेगा, बल्कि भविष्य के जॉब मार्केट के मुताबिक़ भी उन्हें तैयार करेगा.
कुल मिलाकर मेटावर्स टेक्नोलॉजी को अपनाना बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकता है, ख़ास तौर पर इसके माध्यम से डेटा के आधार पर संचालित होने वाले स्मार्ट सिटी न केवल नए शहरी नियोजन मॉडल्स के निर्माण के लिए, बल्कि शहरी रहन-सहन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए आमूल-चूल परिवर्तन लाने वाली संभावनाओं के द्वार खोल सकते हैं. इतना ही नहीं, हमारे नगर निकाय मेटावर्स के माध्यम से जन भागीदारी, सशक्त प्रशासन, ज़िम्मेदारी पूर्ण उपयोग और नए-नए अवसरों को प्रोत्साहन देकर अधिक समावेशी, टिकाऊ और समृद्ध शहरी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.
अनुषा केसरकर गवनकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड ग्रोथ में सीनियर फेलो हैं.
समृद्धि दीवान ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में इंटर्न थीं.
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