25 फरवरी को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम के तीन साल पूरे हो गए. फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले और 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच बेहद ख़राब रिश्तों के बीच युद्धविराम बरकरार है. जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक बदलावों को स्वीकार करने में पाकिस्तान की हिचक और रिश्तों पर जमी बर्फ नहीं पिघलने के बावजूद फरवरी 2021 में दोनों देशों के सैन्य अभियान के महानिदेशकों (DGMO) के बीच सीज़फायर पर सहमति के बाद सीमा पर उल्लेखनीय शांति रही है.
मौजूदा यथास्थिति ने भारत और पाकिस्तान- दोनों को फायदा पहुंचाया है, ख़ास तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा (IB) और लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) पर रहने वाले लोगों को बहुत लाभ हुआ है. भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंध करीब-करीब नहीं होने के बीच सरहद पर शांति की किसी भी झलक का स्वागत किया जाना चाहिए. इसके बावजूद सरहद पर शांति का ये मतलब नहीं है कि पाकिस्तान ने सीमा पार भारत के ख़िलाफ़ आतंक की गतिविधियों को रोक दिया है या भविष्य में दोनों देशों की सेना के बीच तनाव बढ़ने का ख़तरा नहीं है. सीज़फायर ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष का निपटारा करने में मदद की है लेकिन इसने पिछले तीन वर्षों में समग्र शांति प्रक्रिया के समीकरण या उसकी कमी में कोई बदलाव नहीं किया है.
सीज़फायर ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष का निपटारा करने में मदद की है लेकिन इसने पिछले तीन वर्षों में समग्र शांति प्रक्रिया के समीकरण या उसकी कमी में कोई बदलाव नहीं किया है.
पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार और भारत को लेकर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर के लगातार उग्र विचारों के साथ द्विपक्षीय संबंधों में किसी सुधार की उम्मीद नहीं दिख रही है. हालांकि दोनों देश दूसरे ज़रूरी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए सीज़फायर को बरकरार रख सकते हैं.
भारत में चिंताएं
सरहद पर कई वर्षों तक हिंसा के बाद युद्धविराम के लिए सहमत होना भारत और पाकिस्तान- दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी. इसने दोनों तरफ के कई आम लोगों और सैन्य कर्मियों की जान बचाई. इसके अलावा पश्चिमी सीमा पर शांति होने से भारत चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के गतिरोध पर ज़्यादा ध्यान दे सकता है. पाकिस्तान के लिए युद्धविराम ने उसकी डंवाडोल अर्थव्यवस्था को राहत पहुंचाया और पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान को देश के भीतर राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़े संकट को हल करने की अनुमति दी. सीज़फायर से एक साल पहले 2020 में युद्धविराम के उल्लंघन (CFV) की 5,133 घटनाएं हुईं जो 2003 से सबसे ज़्यादा थी. लेकिन 2021 में ये संख्या गिरकर लगभग 670 हो गई और इनमें से भी ज़्यादातर घटनाएं दोनों देशों के DGMO के बीच फरवरी में बातचीत से पहले हुई.
इसके अलावा अगस्त 2019 और 2021 में सीमा पर सीज़फायर के बाद से कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा हालात में साफ तौर पर सुधार हुआ है. मौजूदा सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ ‘ज़ीरो टॉलरेंस की नीति’ को लागू किया है. इस नीति के तहत केंद्र और स्थानीय सुरक्षा एजेंसियां साथ मिलकर न केवल आतंकियों को बल्कि जम्मू-कश्मीर में उनके वित्तीय और ओवरग्राउंड नेटवर्क को भी निशाना बना रही हैं. इसके नतीजतन कश्मीर घाटी में स्कूल, कॉलेज और स्थानीय कारोबार अब कुछ साल पहले की तुलना में अधिक सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं.
इस क्षेत्र में बढ़ते उग्रवाद का समाधान करने के लिए भारतीय सेना ने जनवरी में आतंकवाद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन सर्वशक्ति की शुरुआत की जो कि 2003 के ऑपरेशन सर्प विनाश की तरह है.
लेकिन क्या जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा परिदृश्य में ये सुधार और सीमा पर युद्धविराम भारत में आतंकवाद की मदद और बढ़ावा देने की पाकिस्तान की दशकों पुरानी नीति में किसी बदलाव का संकेत देते हैं? इसका आसान सा जवाब है नहीं.
भले ही दोनों देशों की सेना के बीच सीमा पर टकराव में इस समय ठहराव हो लेकिन पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ अपना छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) जारी रखा है. पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट (PAFF) और द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF), जो कि पाकिस्तान से काम करने वाले संगठनों जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के नए रूप हैं, ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों और आम लोगों को निशाना बनाया है. 2022 में आतंकवाद से जुड़ी कुल 125 घटनाएं दर्ज की गई जबकि 2023 में ये संख्या 46 थी. इस बीच 2022 में जम्मू-कश्मीर में आम लोगों की टारगेटेड हत्या की 31 वारदात हुई जबकि 2023 में 14 घटनाएं हुई. मरने वाले आम लोगों में से ज़्यादातर हिंदू अल्पसंख्यक और गैर-स्थानीय थे. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि पीर पंजाल पहाड़ी के दक्षिण में स्थित राजौरी-पुंछ सेक्टर कई वर्षों की अपेक्षाकृत शांति के बाद उग्रवाद की वापसी का सामना कर रहा है. भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे के मुताबिक ये एक “चिंता का विषय” है.
इस क्षेत्र में बढ़ते उग्रवाद का समाधान करने के लिए भारतीय सेना ने जनवरी में आतंकवाद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन सर्वशक्ति की शुरुआत की जो कि 2003 के ऑपरेशन सर्प विनाश की तरह है. इसका मक़सद राजौरी-पुंछ सेक्टर में भारतीय सैन्य टुकड़ियों पर घात लगाकर हमला करने की कई वारदात में शामिल आतंकवादियों और स्थानीय ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGW) को ख़त्म करना है. ये हमले मुख्य रूप से लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के नज़दीक हुए हैं जो पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ का संकेत देते हैं. दुर्भाग्य की बात है कि आतंकवादियों की इस रणनीति की वजह से भारत को नुकसान हुआ है क्योंकि आतंकवादी भारतीय सुरक्षा बलों के जवानों पर हमला करने के बाद नज़दीक के घने जंगलों या गुफाओं में छिप सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में भारतीय सेना के 20 जवानों ने घात लगाकर किए गए इन हमलों में अपनी जान गंवाई है. चूंकि अगस्त 2019 के बाद कश्मीर ज़ोन शांत हो गया है, ऐसे में छद्म युद्ध को जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती ज़िलों तक ले जाने की जान-बूझकर कोशिश की जा रही है. इससे सीमा पर जारी युद्धविराम के ख़तरे में पड़ने का जोखिम बढ़ गया है.
ड्रोन के ख़तरे ने भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान में गंभीर चिंता पैदा कर दी है, ख़ास तौर पर 27 जून 2021 को जम्मू में भारतीय वायु सेना के तकनीकी स्टेशन में ड्रोन से दोहरे धमाके के बाद.
वैसे तो पाकिस्तान से सीमा पार आतंकी गतिविधियां दोनों देशों के बीच बॉर्डर पर गोलीबारी के पीछे एक महत्वपूर्ण फैक्टर रहा है, लेकिन अवैध ड्रोन की गतिविधियों में भारी बढ़ोतरी ने भारत के लिए सुरक्षा ख़तरे का एक नया आयाम पेश किया है. इन ड्रोन का इस्तेमाल मुख्य रूप से निगरानी और भारत की तरफ IB और LoC के अलग-अलग सेक्टर में ड्रग्स, हथियारों, पैसों और दूसरे अवैध सामानों की तस्करी के लिए किया जाता है.
ड्रोन के ख़तरे ने भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान में गंभीर चिंता पैदा कर दी है, ख़ास तौर पर 27 जून 2021 को जम्मू में भारतीय वायु सेना के तकनीकी स्टेशन में ड्रोन से दोहरे धमाके के बाद. इस धमाके के पीछे सीमा पार कनेक्शन का शक है. ख़बरों के मुताबिक भारत के सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने पश्चिमी सेक्टर में साल 2023 के दौरान 119 ड्रोन ज़ब्त किए या मार गिराए जबकि इसके अलावा 400-500 बार ड्रोन देखे गए.
वैसे तो मौजूदा समय में ड्रोन से घुसपैठ को IB या LoC पर युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाओं से जोड़ने का कोई सीधा सबूत नहीं है लेकिन इस बात की आशंका है कि ये दोनों देशों के बीच भविष्य में सीमा पर तनाव में योगदान दे सकता है.
पाकिस्तान से संकेत
ये व्यापक तौर पर जाना जाता है कि पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल (रिटायर्ड) क़मर जावेद बाजवा भारत के साथ संबंध सुधारना चाहते थे, कम-से-कम कुछ समय के लिए. पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों के मुताबिक बाजवा कश्मीर मुद्दे को कम-से-कम 20 साल के लिए “ठंडे बस्ते” में डालना चाहते थे क्योंकि “पाकिस्तान की सेना भारत के साथ युद्ध लड़ने में सक्षम नहीं थी.” लेकिन बाजवा और तत्कालीन इमरान ख़ान की सरकार के बीच कथित असहमति की वजह से इस प्रस्ताव को अमल में नहीं लाया जा सका.
फिर भी पाकिस्तान बाजवा के कार्यकाल के दौरान कम-से-कम 2003 के सीज़फायर जैसी प्रतिबद्धता फिर से जताने के लिए तैयार हो गया जो जनरल सैयद आसिम मुनीर के मौजूदा सैन्य नेतृत्व के तहत बरकरार है. लेकिन क्या 2021 का युद्धविराम समझौता पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान में भारत को लेकर हृदय परिवर्तन का संकेत देता है? शायद इसका जवाब पाकिस्तान की दोहरे अंक वाली महंगाई, डिफॉल्ट के मंडराते ख़तरे और आंतरिक राजनीतिक एवं सुरक्षा संकट में छिपा है. इसके अलावा, बाजवा जहां सार्वजनिक रूप से भारत के साथ रिश्ते सुधारने का दावा कर रहे थे वहीं मुनीर ने खुले तौर पर भारत के साथ सुलह से इनकार कर दिया है. इस बात की संभावना है कि सैन्य खुफिया महानिदेशक (DGMI) और इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) के महानिदेशक के रूप में मुनीर की पहले की भूमिकाओं ने भारत को लेकर उनके विचारों को उग्र किया हो. ध्यान देने की बात है कि फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले और उसके बाद बालाकोट सैन्य संकट के दौरान वो ISI के महानिदेशक थे.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख के रूप में ये मुनीर का दूसरा साल चल रहा है. कथित रूप से धांधली वाले चुनाव के बाद पाकिस्तान में एक नई (सेलेक्टेड) सरकार के सत्ता संभालने के साथ मुनीर पाकिस्तान में घरेलू और विदेश नीति- दोनों ही मामलों को प्रभावित करने वाली मज़बूत स्थिति में हैं. इनमें भारत से जुड़ी नीति भी शामिल है. पाकिस्तान की बेहद ख़राब आर्थिक स्थिति और अफ़ग़ानिस्तान एवं ईरान के साथ उसके पश्चिमी मोर्चे पर तनाव को देखते हुए क्या मुनीर भारत के साथ मौजूदा यथास्थिति को तोड़ने का ख़तरा उठाएंगे और पाकिस्तान को और अधिक अस्थिर करेंगे?
इस समय कोई भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है. हालांकि स्पेशल इन्वेस्टमेंट फैसिटिलेशन काउंसिल (SIFC), जो उनका पसंदीदा प्रोजेक्ट है, जैसी पहल के ज़रिए पाकिस्तान की जूझती अर्थव्यवस्था में जान फूंकने को लेकर उनके ध्यान पर विचार करें तो वो एक निश्चित सीमा के आगे भारत के साथ तनाव बढ़ाने से परहेज करेंगे. आख़िरकार कोई भी विदेशी निवेशक एक अस्थिर पाकिस्तान में निवेश करने के लिए उत्सुक नहीं होगा.
पाकिस्तान की बेहद ख़राब आर्थिक स्थिति और अफ़ग़ानिस्तान एवं ईरान के साथ उसके पश्चिमी मोर्चे पर तनाव को देखते हुए क्या मुनीर भारत के साथ मौजूदा यथास्थिति को तोड़ने का ख़तरा उठाएंगे और पाकिस्तान को और अधिक अस्थिर करेंगे?
निष्कर्ष ये है कि भारत को पता है कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान पुरानी और नई रणनीति का इस्तेमाल करके भारत के ख़िलाफ़ अपना छद्म युद्ध जारी रखेगा. फिर भी भारत अपनी सुरक्षा से समझौता किए बिना जहां तक संभव हो युद्धविराम का पक्ष लेता है. इसके अलावा भारत के लिए ये विवेकपूर्ण होगा कि पश्चिमी मोर्चा स्थिर हो ताकि चीन को रोकने के लिए LAC पर पर्याप्त सीमा और सैन्य बुनियादी ढांचा विकसित किया जा सके. दो सक्रिय सीमा मोर्चों का निपटारा करना भारतीय सशस्त्र बलों पर अधिक दबाव डाल सकता है. दूसरी तरफ उभरते डिफॉल्ट संकट और आंतरिक सुरक्षा मुद्दों का सामना करते हुए पाकिस्तान तीन सक्रिय मोर्चों- पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और ईरान और पूर्व में भारत- को संभालने का जोखिम नहीं उठा सकता है.
सरल शर्मा दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में डॉक्टोरल कैंडिडेट हैं.
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