Issue BriefsPublished on May 19, 2023
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उबंटू हेल्थ इम्पैक्ट फंड : अफ्रीका में प्रतिस्पर्द्धी फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा

अगर चिकित्सा तकनीक़ को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित किया गया तो वैश्विक स्वास्थ्य में काफी सुधार होने की संभावना है. दो राय नहीं कि बेहतर वैश्विक स्वास्थ्य के लिए कई स्तर पर बाधाएं हैं. जिनमें कम आय वाले और दूरदराज़ के क्षेत्रों में दवाईयों की पहुंच को आसान बनाने में कई बाधाएं आती हैं, जिसमें उच्च क़ीमतें,  डायगनोस्टिक क्षमताओं की भारी कमी और जनसंख्या स्तर पर बीमारियों से लड़ने के लिए समन्वित प्रयासों की कमी शामिल है. वर्ल्ड वाइड डेवलपमेंट सपोर्ट के मुख्य स्रोत और सबसे अधिक प्रासंगिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) और मैन्युफैक्चरिंग के लिए जी20 देश इन समस्याओं को समग्रता से संबोधित करने के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं. आगे बढ़ने का एक तरीक़ा यह हो सकता है कि एक अधिक इफेक्टिव इन्सेन्टिव (प्रभावी प्रोत्साहन) तैयार करने की ज़रूरत है जो फार्मास्यूटिकल्स के विकास,निर्माण और वितरण के लिए उनके साथ होने वाले फायदे को आगे बढ़ा सके. इस दृष्टिकोण को उबंटु हेल्थ इंपैक्ट फंड (यूएचआईएफ) पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से लॉन्च और जांच की जा सकती है,  जो अफ्रीका पर केंद्रित है. जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी सबसे गंभीर समस्या है. "उबंटू" एक अफ्रीकी शब्द है जिसका अर्थ है "दूसरों के लिए मानवता" और यह दर्शाता है कि हम सभी एक वैश्विक समुदाय में कैसे रहते हैं जिसमें एक दूसरे पर परस्पर निर्भरता ना केवल अपरिहार्य है बल्कि यह बेहतर भी है.

1.चुनौती

मानवता ने पिछले 60 वर्षों में भारी प्रगति की है.  प्रति व्यक्ति वैश्विक आय में तीन गुना बढ़ोतरी, बाल मृत्यु दर में ज़बर्दस्त कमी,  21 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक की कमी  और औसत जीवन प्रत्याशा में आश्चर्यजनक वृद्धि जो 47 से बढ़कर 71 वर्ष तक पहुंच चुकी है. [i]  हालांकि  यह अभूतपूर्व उपलब्धि विश्व स्तर पर असमान रूप से साझा की जा रही है: क्योंकि राष्ट्रीय औसत वार्षिक आय 660 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 117,000 अमेरिकी डॉलर हो चुकी है, राष्ट्रीय शिशु मृत्यु दर 12.7 से घटकर 0.21 प्रतिशत हो गई है और राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 52 साल से बढ़कर 84 वर्ष तक हो चुकी है. [ii]  यही वज़ह है कि इन चौंका देने वाली असमानताओं ने हाल के एज़ेंडा 2030 जैसे विकास लक्ष्यों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है, जिसका आदर्श वाक्य है - किसी को पीछे नहीं छोड़ना है. [iii]

दवाईयों की सुविधा तैयार करना मानवीय इतिहास में सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य और लंबे समय तक ज़िदगी जीने के लक्ष्य में ज़बर्दस्त फायदा पहुंचा है. इसके साथ ही कम बीमार होने के दिनों और अस्पताल सुविधाओं ने लागत में भारी कटौती को संभव बनाया है. [iv] फिर भी  फार्मास्युटिकल लगातार असमानता का एक प्रमुख क्षेत्र बना हुआ है, जो अमीर लोगों को अपने नब्बे के दशक में स्वस्थ जीवन जीने में सक्षम करता है. भले ही अरबों ग़रीब लोगों के पास उनके लिए आवश्यक उपचार की कोई सुविधा ना हो. असल में ऐसी असमानता के चार मुख्य फैक्टर हैं जो निम्न हैं:

  • मुख्य रूप से ग़रीबों को प्रभावित करने वाली बीमारियों के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट में बेहद कम निवेश किया जाता है, जिससे उपलब्ध उपचारों में भारी कमी रहती है; [v]
  • मौज़ूदा दवाईयों को स्टॉक किए जाने और ग़रीब इलाक़ों में इसे बेचने की संभावना बेहद कम है; [vi]
  • ग़रीबों के पास अपनी ज़रूरत की दवाएं ख़रीदने के लिए पैसे भी कम होते हैं; [vii] और
  • ग़रीब देशों में दवाईयों की क़ीमत अक्सर अधिक होती है क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स की कमी के कारण उन्हें उच्च लागत पर आयात करना पड़ता है. [viii]

और यही कारण है कि इन गंभीर असमानताओं को कम करने के लिए हम जी20 की प्रतिबद्धता का समर्थन करते हैं.

असमान दवा प्रावधानों तक पहुंच आर्थिक असमानता का ही एक नतीज़ा है. संपन्न लोग अक्सर अच्छे स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण निदान और चिकित्सा उपचार का ख़र्च उठा लेते हैं. इसलिए समृद्ध आबादी की ज़रूरतों के लिए असरदार उत्पादों को विकसित करने और उसकी आपूर्ति करने के लिए फार्मास्युटिकल फर्मों के पास पर्याप्त प्रोत्साहन बना रहता है. क्योंकि ऐसी कंपनियां ग़रीब मरीज़ों से ज़्यादा पैसे नहीं कमा सकती है. लिहाज़ा वे ग़रीबों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी उत्पादों के विकास और आपूर्ति पर बहुत कम पैसे ख़र्च करती हैं. नतीज़तन  ग़रीबों को बीमारी का अधिक बोझ झेलना पड़ता है  जो बदले में उनकी ग़रीबी को और बढ़ाता है और वैश्विक असमानता इससे और ज़्यादा बढ़ती है.

कोई यह सोच सकता है कि भले ही वे अमीरों की सेवा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हों, कम से कम संक्रामक रोगों के संबंध में, फार्मास्युटिकल फर्मों के पास ग़रीबों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मज़बूत कारण होने चाहिए. जैसा कि हाल के अनुभवों से पता चलता है कि एक महामारी की रोकथाम के लिए वैश्विक स्तर पर एक इफेक्टिव रेस्पॉन्स (प्रतिक्रिया) रणनीति की आवश्यकता होती है, जो कभी सफल नहीं हो सकती है अगर इसमें ग़रीब आबादी को शामिल नहीं किया जाता है और इस प्रकार उन्हें बीमारी को बढ़ाने का खुला आमंत्रण दिया जाता है. यहां तक कि कई बार इससे ड्रग रेसिस्टेंट महामारी के नए वेरिएंट बनाने में मदद पहुंचती है.

जैसा कि यह विचार काफी गंभीर है लेकिन इसे फार्मास्युटिकल फर्मों के मौज़ूदा प्रोत्साहनों में परिलक्षित होते नहीं देखा जाता है. ये फर्म व्यक्तिगत स्तर पर संपन्न लोगों की सेवा करके, उनकी बीमारियों का निदान और उपचार करके या व्यक्तिगत रूप से बीमारी के ख़िलाफ़ उनका टीकाकरण डेवलप कर ख़ुद की आय को बढ़ा लेते हैं. लेकिन वे जनसंख्या स्तर पर संपन्न लोगों को इलाज़ की सुविधा देकर और यह भरोसा दिलाकर कि ये लोग महामारी से शुरुआती स्तर पर पूरी तरह सुरक्षित हैं, कुछ नहीं कमा पाते हैं. क्या फार्मास्युटिकल फर्म को टारगेट बीमारी के समूल नाश और ख़ात्मे के लिए सफल रणनीति लागू करनी चाहिए, जिसमें इस बात का ध्यान रखा जाए कि इंसानों की एक बड़ी आबादी को घातक बीमारियों के नुक़सान के दायरे से बाहर रखा जा सके और बीमारी के इलाज़ से भविष्य के मुनाफ़े के अवसर कम हो जाएं और ऐसी सफलता के लिए उन्हें दंडित किया जाए.

इस प्रकार हमें फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिए बेहतर प्रोत्साहन देने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है ताकि कंपनियां ग़रीबों के स्वास्थ्य की भी निरंतर चिंता और सुरक्षा कर सके और जनसंख्या स्तर पर संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए रोकथाम और उनके समूल उन्मूलन का रास्ता साफ हो सके. इसका मक़सद मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रयासों के प्रभाव के साथ दवा कंपनी की कमाई का बेहतर अलाइनमेंट (संरेखण) है.

इस चुनौती पर चिंतन करते हुए  हमारा ध्यान अफ्रीका की ओर जाता है, जो अपनी क्षमता के अनुसार फार्मास्युटिकल क्षेत्र के सबसे शानदार प्रदर्शन को सामने लाता है. अफ्रीका ऐसा महाद्वीप है जहां ग़रीबी सबसे ज़्यादा है. यहां संक्रामक रोगों का बोझ भी सबसे ज़्यादा है जिसे फार्मास्युटिकल कंपनियां नज़रअंदाज़ करती हैं और जनसंख्या स्तर पर रणनीतिक रूप से इसका मुक़ाबला करने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाती है. नतीज़तन  वैश्विक आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावज़ूद, अफ्रीका वैश्विक बीमारी के बोझ का 25 प्रतिशत, एचआईवी पॉजिटिव बच्चों का 91 प्रतिशत  और वैश्विक मलेरिया के मामलों का 95 प्रतिशत और वैश्विक मलेरिया से होने वाली मौत का 96 प्रतिशत भार वहन करता है. [ix]

80 प्रतिशत से अधिक आयात अनुपात के साथ  अफ्रीका दवा आपूर्ति के आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. [x]  यह निर्भरता उप-सहारा अफ्रीकी देशों में सबसे ज़्यादा गंभीर है जो कोरोना महामारी के दौरान स्पष्ट हो गई थी,  जब अफ्रीकी देशों के लोगों को तत्काल आवश्यक कोरोना के टीके प्राप्त करने वाली सूची में सबसे अंतिम पायदान पर रखा गया था. जिसका नतीज़ा यह हुआ कि सप्लाई चेन गंभीर रूप से बाधित हुई, जिसके कारण कई आवश्यक दवाओं की भारी कमी हो गई, जैसा कि केन्या और रवांडा में इस बात का ज़िक्र दस्तावेज़ों में भी है. [xi]

स्थानीय उत्पादन के अभाव की वज़ह से क़ीमतें ऊंची होती हैं. कई बिचौलियों के साथ लंबी दवा आपूर्ति श्रृंखला यह सुनिश्चित करती है कि अफ्रीका में जिन क़ीमतों पर दवाएं बेची जाती हैं वे दुनिया में सबसे अधिक हैं. [xii] यह देखते हुए कि अफ्रीका में सबसे ज़्यादा ग़रीब लोग रहते हैं, ऐसी उच्च क़ीमतें महत्वपूर्ण दवाओं तक लोगों की पहुंच को बाधित करती हैं, जो बदले में बीमारी और समय से पहले मृत्यु दर के बोझ को कई गुना बढ़ाती हैं.

महंगा होना भी नकली दवाओं के कारोबार का प्रमुख कारण है, जिसकी अनुमानित क़ीमत 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर सालाना है, जिसमें अफ्रीकी हिस्सेदारी 42 प्रतिशत की है. [xiii]  फर्जी या 'नकली' दवाएं पुरानी और संक्रामक बीमारियों के उपचार से समझौता करती हैं, जिससे रोग की प्रगति, दवा प्रतिरोध और यहां तक कि लोगों की मौत भी हो जाती है. [xiv]

अफ्रीका में कई तरह के रोगों के ज्यादा बोझ ने सभी आयामों में इसके विकास को धीमा कर दिया है, अफ्रीका के साथ कॉम्पैक्ट जैसी पहलों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. यह प्रतिकूलता इस तथ्य से बढ़ जाती है कि स्थानीय उत्पादन की कमी के कारण, अफ्रीका दवा बाज़ार में हिस्सा ही नहीं ले पाता है, जो एक तेज़ी से बढ़ता हुआ और महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र है और सकल विश्व उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से अधिक की है. [xv]  ऐसे में डॉयगनॉस्टिक क्षमताओं के साथ-साथ दवाइयां बनाने और उत्पादों के सक्षम वितरण को मज़बूत करना महाद्वीप के समग्र विकास के लिए एक बड़ा वरदान साबित हो सकता है.

इन समस्याओं की पहचान के बाद से ही अफ्रीका में फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयासों को आगे बढ़ाया गया है. अफ्रीकी संघ के राष्ट्राध्यक्षों ने 2005 में एक योजना प्रस्तावित की, जिसके कारण फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लान फॉर अफ्रीका मार्ग प्रशस्त हो पाया. [xvi]  अफ्रीकी संघ आयोग और संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन द्वारा 2012 में सौ से अधिक पृष्ठों की एक और अधिक विस्तृत रणनीति तैयार की गई थी. [xvii]  इस दस्तावेज़ ने अफ्रीका में प्रोडक्शन के क्षेत्र में आने वाली कई बाधाओं की पहचान की, जिनमें शामिल हैं:

  • वित्त तक पहुंच
  • बेहतर मैन्युफैक्चरिंग पद्धतियों के कार्यान्वयन की लागत
  • छोटे स्थानीय बाज़ार
  • उपयुक्त प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी
  • कमज़ोर फार्मास्युटिकल रेग्युलेशन और
  • अविकसित सहायक उद्योग

2021 में अफ्रीकी मेडिसिन एजेंसी (एएमए) की स्थापना के साथ इनमें से कई समस्याओं को दूर करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था, जिसके पास सामान्य स्टैंडर्ड (मानकों) और रेग्युलेशन (विनियमों) को लागू करने का अधिकार है, क्लिनिकल ट्रायल एप्लीकेशन का समन्वय कर सकता है, चिकित्सा उत्पादों और दवा निर्माण संयंत्रों का मूल्यांकन कर सकता है और बिक्री के लिए अधिकृत उत्पादों के बारे में जानकारी आगे साझा कर सकता है. [xviii]  हालांकि एएमए का संचालन अभी भी जारी है. [xix]

2022 में  अफ्रीकी विकास बैंक ने अफ्रीका में सबसे अधिक प्रचलित बीमारियों पर ध्यान देने के साथ, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग के लिए फंडिंग और तकनीक़ी सहायता प्रदान करने के लिए अफ्रीकी फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी फाउंडेशन के निर्माण को मंज़ूरी दी थी. इस कार्यक्रम के लिए संसाधनों के आवंटन को सही बताते हुए  बैंक के अध्यक्ष, डॉ. अकिनवुमी अडेसीना ने कहा कि "अफ्रीका अब अपने 1.3 अरब नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा को दूसरों की भलाई के लिए आउटसोर्स नहीं कर सकता है." [xx]

वास्तव में  अफ्रीका में फार्मास्युटिकल निर्माण को आगे बढ़ाने का लगातार प्रयास किया गया है  और इसके साथ कई घटक एक साथ आ रहे हैं. हालांकि ऐसी मैन्युफैक्चरिंग कैपिसिटी के निर्माण में मदद के लिए वित्तीय मदद की भी ज़रूरत है, जिससे एएमए और अफ्रीकी फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी फाउंडेशन को आगे बढ़ाने के प्रयास अधिक उपयोगी साबित हो सकें.

2.जी20 की भूमिका

बड़े पैमाने पर जिसे टाला जा सकता था वह वैश्विक स्वास्थ्य घाटा शेरपा ट्रैक के हेल्थ वर्किंग ग्रुप के दायरे में सबसे स्पष्ट रूप से आते हैं  लेकिन इसके डेवलपमेंट वर्किंग ग्रुप की आकांक्षाओं को भी ये शामिल करते हैं. सामाजिक रूप से लाभकारी हेल्थ इनोवेशन के विकास और असरदार तैनाती को प्रोत्साहित करने और फंडिंग करने का एक नया तरीक़ा यह हो सकता है जो फाइनेंस ट्रैक के ज्वाइंट फाइनेंस और हेल्थ टास्क फोर्स के लिए भी फायदेमंद हो.

इस नए दृष्टिकोण को आजमाने के लिए अफ्रीका पर ध्यान केंद्रित करना महाद्वीप में औद्योगीकरण के साथ-साथ अफ्रीका के लिए फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लान, अफ्रीकी फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी फाउंडेशन और एएमए जैसी अफ्रीकी पहलों के लिए लंबे समय से चले आ रहे जी20 समर्थन के अनुरूप है. सितंबर 2016 में हांग्जो,  चीन में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की घोषणा ने अफ्रीका और कम से कम विकसित देशों में सहायक औद्योगीकरण पर जी20 पहल की शुरुआत की. [xxi]2017 में,  जी20 के समर्थन से अफ्रीका के साथ कॉम्पैक्ट की शुरुआत की गई थी. [xxii]  जी20 अफ्रीका सलाहकार समूह की ताज़ा रिपोर्ट का निष्कर्ष है:

जबकि अफ्रीकी कॉम्पैक्ट सदस्यों द्वारा किए गए आर्थिक सुधार निवेश को आकर्षित करने और तरक्की को बढ़ावा देने के लिए बेहद अहम हैं, इसलिए यहां हम स्पष्ट रूप से अपने जी20 भागीदारों से उनके संबंधों को मज़बूत करने की अपील कर सकते हैं. इसमें कॉम्पैक्ट देशों के लिए निवेश प्रोत्साहन शामिल होना चाहिए, मतलब सार्वजनिक-निजी संवाद को बढ़ाकर  और पर्याप्त संसाधन वाले मल्टी डोनर ट्रस्ट फंड सहित ज्वाइंट फंडिंग को बढ़ावा देना, जो कॉम्पैक्ट देशों में सुधार कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान कर सकता है. [xxiii]

औद्योगिक विकास का समर्थन करने के लिए पर्याप्त टोटल बायलैट्रल एड फ्लो (कुल द्विपक्षीय सहायता प्रवाह) हैं. नीचे दिए गए चार्ट 2015 में सभी देशों (सिर्फ अफ्रीका ही नहीं) में उद्योग को कुल सहायता दिखाता है.

स्रोत: OECD. Stat; data in millions of 2015 US$.

जी20 के इन प्रयासों और प्रतिबद्धताओं की भावना में ही हम उबंटू हेल्थ इंपैक्ट फंड की बात कर रहे हैं. अफ्रीकी देशों ने दवा उद्योग के महत्व की बात की है और उद्योग का समर्थन करने के लिए आवश्यक संस्थागत संरचनाओं का निर्माण करने पर ज़ोर दे रहे हैं. कोरोना महामारी दुनिया भर में दवा उत्पादन के निष्पक्ष, बेहतर-संतुलित वितरण की आवश्यकता को दिखाती है. अफ्रीका के फार्मास्युटिकल उद्योग के विकास के लिए जी20 द्वारा औद्योगीकरण समर्थन को आगे बढ़ाने के लिए ये सब मज़बूत कारण हैं.

इसे ऐसे तरीक़े से कैसे किया जा सकता है जो लोगों के स्वास्थ्य में सुधार की अनिवार्यता के साथ उद्योग प्रोत्साहनों को बेहतर ढ़ंग से सम्मिलित करने की आवश्यकता के प्रति उत्तरदायी हो?

3.जी20 के सामने सिफ़ारिशें

स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव के साथ फार्मास्यूटिकल्स के विकास और वितरण के लिए प्रोत्साहन को बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर वैश्विक बीमारी को कम किया जा सकता है. यह इस उद्देश्य के लिए है कि हमने एक स्वास्थ्य प्रभाव कोष की स्थापना का प्रस्ताव दिया है जो फार्मास्युटिकल इनोवेटर्स को उनके इनोवेशन  के ज़रिए हासिल किए गए स्वास्थ्य लाभ के अनुपात में प्रोत्साहन को बढ़ावा देने के लिए अपने कुछ विशेषाधिकारों का आदान-प्रदान करने का विकल्प दे पाएगा. [xxiv]  जी20 अफ्रीका में एक पायलट प्रोजेक्ट का समर्थन कर इस दृष्टिकोण का परीक्षण करने में मदद कर सकता है, जो स्वास्थ्य प्रभाव मूल्यांकन की व्यवहार्यता, प्रदर्शन के लिए भुगतान करने वाली फार्मास्युटिकल फर्मों की इच्छा और प्रभाव निधि दृष्टिकोण की कॉस्ट इफेक्टिवनेश (लागत-प्रभावशीलता) को प्रदर्शित करेगा.

प्रस्तावित उबंटू हेल्थ इम्पैक्ट फंड (यूएचआईएफ) पूर्व-चयनित फार्मास्युटिकल फर्मों को पुरस्कृत करेगा जो अफ्रीका में ख़ास दवा के मैन्युफैक्चरिंग की शुरुआत के लिए तैयार हैं और इसे इस उत्पाद के लिए विश्व स्तर पर सबसे कम वाणिज्यिक मूल्य पर या उससे कम पर स्व-चयनित अफ्रीकी क्षेत्र में बेचना चाहिए. यूएचआईएफ  तीन साल की अवधि में अपने लक्षित क्षेत्रों में अपने संबंधित उत्पादों के माध्यम से उत्पन्न स्वास्थ्य लाभ के अनुसार भाग लेने वाली फर्मों के बीच प्रोत्साहन राशि के एक निश्चित पूल को विभाजित करके ऐसा कर सकता है. यहां, स्वास्थ्य लाभों में एक्सटरनैलिटीज (बाह्यताएं) शामिल होंगी जैसे कि उन लोगों को थर्ड पार्टी (तीसरा-पक्ष) हेल्थ बेनिफिट्स (स्वास्थ्य लाभ) का लाभ देना जिनके संक्रमण का जोख़िम कम हो गया है.

यूएचआईएफ का इनोवेटिव फाइनेसिंग मैकेनिज्म (वित्तपोषण तंत्र) एक जीवंत और प्रतिस्पर्द्धी दवा निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देगा जो पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करके अफ्रीका की आबादी की ज़रूरतों को पूरा कर पाएगा और जो रोगियों और अन्य भुगतानकर्ताओं द्वारा आसानी से वहन की जा सकने वाली क़ीमतों पर सक्षम रूप से पूरे देश में वितरित की जा सकेगी. यह फार्मास्युटिकल निर्माण, अफ्रीका में महत्वपूर्ण दवाओं तक पहुंच और विशेष रूप से उपेक्षित आबादी के बीच प्राथमिक स्वास्थ्य स्तर पर ऐसी दवाओं की रणनीतिक तैनाती को बढ़ावा देगा. यह अफ्रीका में आर्थिक और अवसंरचनात्मक निवेश को भी प्रोत्साहित करेगा जो केवल स्वास्थ्य क्षेत्र पर ही नहीं बल्कि समग्र रूप से अफ्रीका के विकास पर केंद्रित होगा.

इस तरह की एक इम्पैक्ट फोकस्ड (प्रभाव-केंद्रित) प्रोत्साहन व्यवस्था भाग लेने वाली दवा फर्मों को ना केवल अपने उत्पाद बेचने के लिए बल्कि उचित निदान और निर्देशों के माध्यम से इसे प्रभावी बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी, जिसके बिना दवाईयां स्वास्थ्य के लिए बेकार या हानिकारक भी हो सकती हैं. ऐसी फर्में जनसंख्या स्तर पर टारगेट बीमारी से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए आवश्यक डेटा प्राप्त करने के लिए भी निवेश करना चाहेंगी. उभरते हुए स्वास्थ्य ख़तरों की पहचान करने के लिए तेज़ी से डायगनोस्टिक टेस्ट महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जैसे कि संक्रामक रोग का प्रकोप  और समान लक्षणों वाले रोगों के बीच अंतर करने में सक्षम होने के लिए ज़रूरी होता है और जिनके लिए अलग-अलग उपचार के नियमों को अपनाने की ज़रूरत होती है. बीमारी के लिए तेज़ी से और सटीक रिस्पॉन्स बदले में  एक दवा के स्वास्थ्य लाभ को बढ़ाती हैं और इस तरह इन दवाओं को बनाने वाली फर्म की कमाई कई गुना बढ़ जाती है. यूएचआईएफ इस प्रकार अफ्रीका में रोगियों के लिए सस्ती क़ीमतों पर बिक्री के लिए महत्वपूर्ण दवाईयों के उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा, जिन्हें कम क़ीमत पर अफ्रीका में बीमारियों के बोझ को कम करने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाने की ज़रूरत है.

  • पायलट प्रोजेक्ट में भाग लेने के योग्य होने के लिए एक फार्मास्युटिकल फर्म या ऐसी फर्मों के संघ को:
  • अफ्रीका में एक ऐसी दवा का उत्पादन करना जो महाद्वीप में कभी नहीं तैयार किया गया है,
  • और इस दवा की आपूर्ति को अफ्रीका के एक निर्दिष्ट क्षेत्र (या पूरे अफ्रीका) में एक उचित मूल्य पर बेचें और
  • टारगेटेड एरिया के भीतर विचाराधीन उत्पाद की आपूर्ति करके प्राप्त स्वास्थ्य लाभ के पारदर्शी और विश्वसनीय मूल्यांकन में यूएचआईएफ के साथ सहयोग करे.

एक विशेषज्ञ समिति उनकी प्रत्याशित कॉस्ट इफेक्टिवनेश (लागत-प्रभावशीलता) (निवेश के सापेक्ष स्वास्थ्य लाभ),  इनोवेटिव पोटेंशियल (नवीन क्षमता), विश्वसनीय और सस्ती स्वास्थ्य प्रभाव मूल्यांकन के लिए उपयुक्तता, ग़रीब जनसंख्या वाले क्षेत्रों के लिए प्रत्याशित लाभ और अफ्रीकन ओनरशिप और नियंत्रण की डिग्री के आधार पर सर्वश्रेष्ठ चार से पांच प्रस्तावों का चयन करेगी. जबकि फाइनल रिवार्ड अलोकेशन (आवंटन) की गणना तीन साल की कार्यान्वयन अवधि के अंत में की जाएगी, समिति के पास संसाधन-ग़रीब आबादी को अग्रिम भुगतान के साथ समर्थन करने का विकल्प होगा जिसे बाद में उनके अंतिम रिवार्ड से घटा दिया जाएगा.

यूएचआईएफ का समर्थन करके  जी20 औद्योगीकरण और अन्य संबंधित पहलों के साथ अफ्रीका और दूसरे निम्न-और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में दवा निर्माण के महत्व को उजागर करने के लिए अपनी संयोजन शक्ति का लाभ उठा सकता है. वैश्विक मुद्दों पर प्रकाश डालना जी20 का तुलनात्मक लाभ है. और तो और जी 20 देशों और संगठनों पर इसका स्नोबॉल इफेक्ट हो सकता है,  जिन्हें कार्रवाई के लिए प्रेरित किया जा सकता है.

उबंटू का विचार भारत की जी20 अध्यक्षता पद के विषय "वसुधैव कुटुम्बकम" - "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" में भी व्यक्त किया गया है. [xxv]  इस भावना में  उबंटू हेल्थ इंपैक्ट फंड पायलट प्रोजेक्ट को सबसे ग़रीब लोगों के लिए दवाओं तक आसान पहुंच को प्रेरित करते हुए सहयोग की भावना पर डिज़ाइन किया गया है. इसके कार्यान्वयन से अफ्रीकियों के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होंगे; फार्मास्युटिकल इनोवेशन, मैन्युफैक्चरिंग और डिलीवरी में अफ्रीकी क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा; और अफ्रीका में स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने और आख़िरकार ग्लोबल हेल्थ इम्पैक्ट फंड की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण सबक मिल पाएगा.


Endnotes

[i]  “GDP Per Capita (Constant 2015 US$),” World Bank Open Data, accessed May 1, 2023.; Max Roser, Hannah Ritchie, and Bernadeta Dadonaite, “Child and Infant Mortality,” Our World in Data, May 10, 2013; Max Roser, Esteban Ortiz-Ospina, and Hannah Ritchie, “Life Expectancy,” Our World in Data, May 23, 2013.

[ii]  Lucas Chancel and Thomas Piketty, “Global Income Inequality, 1820-2020: The Persistence and Mutation of Extreme Inequality,” Journal of the European Economic Association 19, no. 6 (October 2021): 3025–3062.

[iii]  “Transforming Our World: The 2030 Agenda for Sustainable Development,” United Nations, 2015.

[iv]  Peter Hogg, “Top 10 Most Important Drugs in History,” Proclinical, January 18, 2022.

[v]  Eliana Barrenho, Marisa Miraldo, and Peter C. Smith, “Does Global Drug Innovation Correspond to Burden of Disease? The Neglected Diseases in Developed and Developing Countries,” Health Economics 28, no. 1 (12 November 2018): 123–143.; Javad Moradpour and Aidan Hollis, “Patient Income and Health Innovation,” Health Economics Letter 29, no. 12 (September 2020): 1795–1803.

[vi]  Tefo Phaege, “Dying from Lack of Medicines,” Africa Renewal, United Nations, 2016.

[vii]  Swathi Iyengar, Kiu Tay-Teo, Sabine Vogler, Peter Beyer, Stefan Wiktor, Kees de Joncheere, and Suzanne Hill, “Prices, Costs, and Affordability of New Medicines for Hepatitis C in 30 Countries: An Economic Analysis,” PLOS Medicine, May 31, 2016.; Melissa Barber, Dzintars Gotham, Giten Khwairakpam and Andrew Hill, “Price of a Hepatitis C Cure: Cost of Production and Current Prices for Direct-Acting Antivirals in 50 Countries,” Journal of Virus Eradication 6, no. 3 (September 2020): 100001.

[viii]  Michael Conway et al., “Should Sub-Saharan Africa Make Its Own Drugs?,” McKinsey, January 10, 2019.

[ix]  Theo Vos et al., “Global Burden of 369 Diseases and Injuries in 204 Countries and Territories, 1990–2019: A Systematic Analysis for the Global Burden of Disease Study 2019,” The Lancet 396, no. 10258 (October 2020): 1204–1222.

[x]  Janet Byaruhanga, “How Africa Can Manufacture to Meet Its Own Pharmaceutical Needs | Africa Renewal,” Africa Renewal, United Nations, September 4, 2020.

[xi]  Alison Buckholtz, “Inside Africa’s Push to Make Its Own Medicines,” International Finance Corporation, World Bank, June 2021.; Edwine Barasa et al., “Assessing the Indirect Health Effects of the COVID-19 Pandemic in Kenya,” Center For Global Development, March 2021.; Theogene Uwizeyimana et al., “Drug Supply Situation in Rwanda during COVID-19: Issues, Efforts and Challenges,” Journal of Pharmaceutical Policy and Practice 14, no. 1 (January 2021).

[xii]  Michel Sidibé, Abdoul Dieng, and Kent Buse, “Advance the African Medicines Agency to Benefit Health and Economic Development,” British Medical Journal (BMJ) (February 2023): 386.

[xiii]  Kalliroi S. Ziavrou, Stephen Noguera, and Vassiliki A. Boumba, “Trends in Counterfeit Drugs and Pharmaceuticals Before and During COVID-19 Pandemic,” Forensic Science International 338 (July 2022): 111382.

[xiv]  Gillian J. Buckley, and Lawrence O. Gostin, “Countering the Problem of Falsified and Substandard Drugs,” National Academies Press, May 20, 2013.

[xv]  “Global Medicine Spending and Usage Trends: Outlook to 2025,” IQVIA, April 28, 2021.

[xvi]  “Decision on the Interim Report on HIV/AIDS, Tuberculosis, Malaria and Polio,” Assembly of the African Union Fourth Ordinary Session 30–31 January, 2005, Abuja, Nigeria.

[xvii]  “UNIDO | United Nations Industrial Development Organization,” African Union & UNIDO, 2012.

[xviii]  “African Medicines Agency (AMA),” AUDA-NEPAD, accessed 1 May 2023.

[xix]  Sara Jerving, “Next up for the African Medicines Agency: Appoint a Director General,” Devex, January 26, 2023.

[xx]  “African Development Bank’s Board Approves Landmark Institution: Establishment of African Pharmaceutical Technology Foundation to Transform Africa’s Pharmaceutical Industry,” African Development Bank Group, June 27, 2022.

[xxi]  “G20 Initiative on Supporting Industrialization in Africa and Least Developed Countries,” G20 Research Group, October 2016.

[xxii]About the Compact with Africa,” G20 Compact with Africa, 2022.

[xxiii]G20 Compact with Africa: Chairs’ Conclusions Africa Advisory Group Video Conference,” G20 Compact with Africa, April 15, 2021.

[xxiv]Health Impact Fund,” Incentives for Global Health, accessed 1 May 2023.; Thomas Pogge, “Just Rules for Innovative Pharmaceuticals,” Philosophies 7, no. 4 (July 2022): 79.

[xxv]Logo and Theme,” G20 India 2023, accessed 1 May 2023.

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