Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 13, 2023 Commentaries 0 Hours ago
यूरोप में धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों का उदय: गहराता संकट और अनसुलझी चुनौतियाँ

पिछले कुछ दिनों से फ्रांस को झुलसा रही आग दरअसल वर्षों से सुलग रही थी. कुछ-कुछ वर्षों के अंतराल पर हमने फ्रांस की सड़कों पर ऐसे ही दृश्य देखे हैं, जिनमें परस्पर संघर्ष में जुटे विभिन्न पक्ष एक ही तरह के तर्क दोहराते रहे हैं, पर तात्कालिक रूप से संकट टलने के बाद बुनियादी समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने की कोशिश नदारद रही है. कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनको अच्छी तरह से समझा जाता है, लेकिन उनका समाधान नहीं किया जाता है. फ्रांसीसी राज्य और समाज के लिए चुनौतियां गंभीर हैं, पर यहां का राजनीतिक नेतृत्व कठिन विकल्पों से बचता रहा है. 

इस बार उपद्रव तब शुरू हुआ, जब पिछले हफ्ते एक फ्रांसीसी पुलिस अधिकारी ने पेरिस के उपनगर नान्टेरे में यातायात रोकने के दौरान अल्जीरियाई और मोरक्कन मूल के 17 वर्षीय किशोर नाहेल मेरजौक की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके विरोध में घातक दंगे हुए, पेरिस के कई उपनगर हिंसा की चपेट में आ गए.

इस बार उपद्रव तब शुरू हुआ, जब पिछले हफ्ते एक फ्रांसीसी पुलिस अधिकारी ने पेरिस के उपनगर नान्टेरे में यातायात रोकने के दौरान अल्जीरियाई और मोरक्कन मूल के 17 वर्षीय किशोर नाहेल मेरजौक की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके विरोध में घातक दंगे हुए, पेरिस के कई उपनगर हिंसा की चपेट में आ गए. हिंसा शहर के केंद्रों तक पहुंच गई, जहां भीड़ ने अनेक इमारतों और संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया. लुटेरों और आगजनी करने वालों ने इसका उपयोग और अधिक असंतोष पैदा करने के लिए किया. यह सबसे गंभीर सामाजिक गड़बड़ी है, जिसे फ्रांस 2005 से देखता आ रहा है. तब दो किशोरों की आकस्मिक मौत ने जातीय अल्पसंख्यकों को सड़कों पर उतार दिया था.  

इमैनुएल मैक्रॉन के लिए यह गंभीर संकट

फ्रांस में पुलिसिया व्यवस्था काफी समय से सवालों के घेरे में रही है. हालिया हत्या कोई अलग घटना नहीं है, बल्कि इस साल ट्रैफिक पुलिस द्वारा रोकने के दौरान हुई हत्या की यह तीसरी घटना थी. पिछले साल ऐसी 13 हत्याएं हुई थीं. ज्यादातर पीड़ित अश्वेत या अरब मूल के थे, जिससे यह धारणा मजबूत हुई कि फ्रांसीसी पुलिस पुख्ता तौर पर नस्लवादी है. इस पहलू को संयुक्त राष्ट्र भी पहले उजागर कर चुका है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के लिए यह गंभीर संकट है. उनका प्रशासन पिछले कुछ महीनों से विरोध-प्रदर्शनों से परेशान है. राष्ट्रपति अपने देश की वैश्विक स्थिति को ऊपर उठाने में लगे हैं, पर घरेलू समस्याएं मुश्किलें पैदा कर रही हैं. इस बीच, पेरिस अगले साल ओलंपिक खेलों का आयोजन करने वाला है. समस्या यह भी है कि मैक्रॉन को वामपंथी और दक्षिणपंथी, दोनों परेशान कर रहे हैं. वैसे, 2005 के विपरीत इस बार आपातकाल की घोषणा नहीं हुई, पर 40,000 से ज्यादा पुलिस अफसरों की तैनाती के बावजूद दंगा नियंत्रण में समय लग गया.   

फ्रांस की राजनीति बंटी हुई है. सामाजिक-आर्थिक विभाजन व इसके नतीजों से निपटने की दिशा में कोई संस्थागत बदलाव कहीं भी नहीं दिख रहा है. ऐसे में, ताजा संकट फ्रांस में समुदायों के बीच विभाजन बढ़ाएगा और अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रतिक्रिया की भी प्रबल आशंका होगी.

फिलहाल, स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन जातीय अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव के मामले भी उभर आए हैं. फ्रांस की राजनीति बंटी हुई है. सामाजिक-आर्थिक विभाजन व इसके नतीजों से निपटने की दिशा में कोई संस्थागत बदलाव कहीं भी नहीं दिख रहा है. ऐसे में, ताजा संकट फ्रांस में समुदायों के बीच विभाजन बढ़ाएगा और अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रतिक्रिया की भी प्रबल आशंका होगी. दरअसल, पूरे यूरोप में आप्रवासियों के खिलाफ भावनाएं नकारात्मक हो रही हैं और इससे धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को फायदा हो रहा है. फ्रांस में हालिया दंगों का इस्तेमाल धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने मैक्रॉन को निशाना बनाने के लिए किया है. उन्होंने कहा कि ‘कायरता व समझौतों की फ्रांसीसी भयानक कीमत चुका रहे हैं’.   

अनसुलझी चुनौतियाँ

स्वीडन में धर्मग्रंथ जलाने की हालिया घटना, ब्रिटेन में आप्रवासन से निपटने के लिए नए कानून और फ्रांस की सड़कों पर दंगे, ये सब यूरोप की व्यापक बीमारी के लक्षण हैं, जिनके गंभीर दीर्घकालिक परिणामों की आशंका पुरजोर है.

ऑस्ट्रिया से इटली, ग्रीस से स्वीडन तक, सुदूर दक्षिणपंथी पार्टियां यूरोप में आगे बढ़ रही हैं, क्योंकि पहचान के मुद्दे जटिल हो गए हैं और उन्हें पारंपरिक मूल्यों पर हमला होता दिख रहा है. मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के पास उचित जवाब नहीं है और वे ऐसी भाषा बोल रहे हैं, जिससे अधिकांश लोग जुड़ नहीं पाते. ऐसे में, आम लोगों को दक्षिणपंथ की स्पष्टता आकर्षक लग सकती है. जब आर्थिक चुनौतियां बढ़ रही हैं, तब नेतृत्व की कमी से भी दक्षिणपंथी राजनीतिक संस्थाओं को फायदा हुआ है. लोगों की अभिव्यक्ति में आप्रवासी विरोधी भावना सबसे ज्यादा दिखाई दे रही है. स्वीडन में धर्मग्रंथ जलाने की हालिया घटना, ब्रिटेन में आप्रवासन से निपटने के लिए नए कानून और फ्रांस की सड़कों पर दंगे, ये सब यूरोप की व्यापक बीमारी के लक्षण हैं, जिनके गंभीर दीर्घकालिक परिणामों की आशंका पुरजोर है.


यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित हो चुका है.

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