Published on Jul 17, 2020 Commentaries 0 Hours ago

इसे कामयाब कहानी के तौर पर पेश किया जा रहा था लेकिन मई के मध्य में महामारी के अंत की घोषणा का बड़ी वजह सार्वजनिक वित्त है न कि सार्वजनिक स्वास्थ्य.

कोविड 19 महामारी के बाद स्लोवानिया की वास्तविकता

मई के मध्य में जब ये ख़बर आई कि स्लोवेनिया यूरोप का पहला ‘कोविड-19 मुक्त’ देश घोषित किया जाएगा तो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया कुछ हद तक उन्माद से घिर गया.

एक छोटे से यूरोपियन यूनियन के देश के आख़िरकार कोविड-19 मुक्त होने और उसकी अर्थव्यवस्था के खुलने की ख़बर पूरी दुनिया में जंगल के आग की तरह फैल गई.

प्रधानमंत्री जैनेज़ जानसा की सरकार ने कोविड-19 के बाद देश को फिर से खोलने को लेकर स्लोवेनिया को मॉडल देश की तरह पेश करने की कोशिश की. लेकिन असलियत बेशक थोड़ा ज़्यादा जटिल है.

स्लोवेनिया महामारी पर काबू पाने में सफल रहा लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में ख़रीद घोटाला, सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों के बार-बार अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने में नाकामी, सरकारी अधिकारियों के अपनी सीमा से बाहर निकलने पर प्रदर्शन और (कथित) तानाशाही प्रवृत्ति, और संभावित अस्थिर राजनीतिक गठबंधन है.

यानी जहां अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों तक इसे कामयाब कहानी के तौर पर पेश किया जा रहा था लेकिन मई के मध्य में महामारी के अंत की घोषणा का बड़ी वजह सार्वजनिक वित्त है न कि सार्वजनिक स्वास्थ्य.

आसान भाषा में कहें तो स्लोवेनिया की सरकार महामारी के दौर की सब्सिडी अपने नागरिकों और कारोबार तक एक और महीने के लिए नहीं पहुंचाना चाहती थी. अगर वो ऐसा करती तो पहले से खर्च 3 अरब डॉलर में 1.5 अरब डॉलर और जुड़ जाते. इससे बचने के लिए सरकार उस डेडलाइन को पूरा करने के लिए जल्दबाज़ी में जुट गई जो महामारी के ख़िलाफ़ शुरुआत में सामाजिक और आर्थिक पैकेज के समय तय की गई थी.

14 मई को रात 11.45 बजे क़ानून को प्रकाशित करके सरकार 15 मिनट पहले डेडलाइन को मात देने में सफल रही. हालांकि, क़ानून शुरुआत में 31 मई को लागू होने वाला था. इसकी वजह से काफ़ी बदइंतज़ामी रही क्योंकि लोगों को ये पता नहीं था कि क़ानून का मतलब क्या है और ये कब से लागू होगा.

जल्दबाज़ी के नतीजे और ग़लत तरीक़े से क़ानून पास करने की वजह से अराजकता फैली. इसके कारण महामारी के बाद के चरणों में सरकार के निपटने के तरीक़ों को लेकर लोगों का अविश्वास और बढ़ा.

अलग-अलग विभागों के अधिकारियों के विरोधाभासी बयानों के वजह से नागरिक अक्सर उलझन में पड़े. अलग-अलग सरकारी एजेंसियों के प्रमुखों को बदलने, ख़ासतौर पर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ (स्लोवेनिया में प्रमुख सरकारी संस्थान) के प्रमुख को बदलने से ऐसी धारणा बनी कि ये सरकार विशेषज्ञों की अच्छी सलाह से ज़्यादा वफ़ादारी को तरजीह देती है.

ये उस वक़्त बिल्कुल साफ़ हो गया जब एक व्हिसल ब्लोअर ने आगे आकर मेडिकल वेंटिलेटर और पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (PPE) की सरकारी ख़रीद में कथित भ्रष्टाचार का पर्दाफ़ाश कर दिया.

इस ख़रीद प्रक्रिया में शामिल कई लोगों ने व्हिसल ब्लोअर के बयान का समर्थन किया. घटिया उपकरण होने या प्रमाणित नहीं होने के बावजूद कुछ ख़ास कंपनियों से समझौते के लिए दबाव डाला गया.

इस मामले में आपराधिक छानबीन चल रही है लेकिन इस मुद्दे ने तुरंत बड़े घोटाले का रूप ले लिया और पब्लिक ओपिनियन पोल के मुताबिक़ इसका राजनीतिक नतीजा बड़ा है. घोटाले के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हो गया और लोग अपनी बालकनी और आंगन से विरोध करने लगे.

सेना को निगरानी करने का अधिकार देने की बार-बार कोशिशों का विरोध हुआ. बेहद सख़्त लॉकडाउन के क़दम के बारे में कभी लोगों को नहीं बताया गया. यहां तक कि महामारी विशेषज्ञों ने भी इन क़दमों का विरोध किया.

PPE घोटाला उजागर होने के बाद लॉकडाउन के क़दमों में कमी पाई गई और कोरोना काल में साइकिल प्रदर्शन के रूप में एक अनूठा विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.

यानी जहां अपेक्षाकृत सख्त लॉकडाउन क़दम के तहत किसी भी तरह लोगों के जमा होने पर पाबंदी थी वहीं लोगों को मनोरंजन के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए बाइकिंग की इजाज़त दी गई.

नतीजतन अप्रैल के आख़िर में एक बाइक प्रदर्शन का आयोजन किया गया जिसमें हज़ारों लोग शामिल हुए और जुबलजाना समेत कई शहरों में साइकिल चलाते हुए नज़र आए. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने घंटी बजाई, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए लोगों का ध्यान खींचने के लिए भोंपू बजाए जिसकी वजह से प्रदर्शन में शामिल लोगों के मुक़ाबले ज़्यादा भीड़ का आभास हुआ.

शुरुआत में प्रदर्शनकारियों ने व्हिसल ब्लोअर की रक्षा, भ्रष्टाचार के आरोप की जांच और दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग की.

लेकिन कुछ ही दिनों बाद एक अलग मामले में क़ानून पारित करते हुए बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में प्रशासनिक और अदालती कार्यवाही में पर्यावरण से जुड़े NGO की भूमिका को काफ़ी सीमित कर दिया गया.

इसके बाद जो हंगामा शुरू हुआ उसकी वजह से हर शुक्रवार शाम को प्रदर्शन होने लगे और जल्द ही इसने सरकार विरोधी आंदोलन का रूप ले लिया. ये आंदोलन उस वक़्त और उग्र हो गया जब सरकार ने सरकारी रेडियो और टेलीविज़न ब्रॉडकास्टर RTV स्लोवेनिया पर नियंत्रण की कोशिश की, क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (PPE घोटाले की जांच करने वाली एजेंसी) के प्रमुख को पद से हटा दिया और यहां तक कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के प्रमुख को महामारी के ख़िलाफ़ सरकार की कोशिशों को  ज़्यादा प्राथमिकता नहीं देने पर हटा दिया.

ये प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण ढंग से हो रहे थे. हालांकि, पुलिस नियमित तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के उल्लंघन के आरोप में प्रदर्शनकारियों पर जुर्माना लगा रही थी क्योंकि आधिकारिक तौर पर महामारी ख़त्म होने के बाद भी नियम लागू थे.

प्रदर्शनकारियों की मांग सामान्य हैं और इसमें कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है. बल्कि ये महामारी के बाद की रणनीति को लेकर पीएम जानसा की सरकार के ख़िलाफ़ लोगों के असंतोष और किस तरह सरकार ने आपातकाल के इस्तेमाल के ज़रिए सिविल सोसाइटी को परेशान करने की कोशिश की, उसका प्रतीक है

वहीं प्रदर्शन को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया नाराज़गी भरी थी. SDS (पीएम जानसा की अगुवाई वाले गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी) की पहल पर शुरू इस जवाबी प्रतिक्रिया के तहत समाज में उनके विशेषाधिकार वाले दर्जे के ज़रिए बार-बार प्रदर्शनकारियों को बिगड़ैल बाग़ी बताने की कोशिश की गई.

सत्ताधारी पार्टी के क़रीबी लोग और कुछ सरकारी अधिकारी प्रदर्शन को गैर-क़ानूनी बताने की कोशिश में लगातार लगे हुए हैं. इसके जवाब में प्रदर्शनकारियों ने भी अपनी भाषा सख़्त कर दी है और अब सरकार के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं.

चाहे जैसा भी लगे लेकिन प्रदर्शनकारियों की मांग सामान्य हैं और इसमें कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है. बल्कि ये महामारी के बाद की रणनीति को लेकर पीएम जानसा की सरकार के ख़िलाफ़ लोगों के असंतोष और किस तरह सरकार ने आपातकाल के इस्तेमाल के ज़रिए सिविल सोसाइटी को परेशान करने की कोशिश की, उसका प्रतीक है.

इससे भी बढ़कर ये है कि प्रदर्शनकारियों ने विपक्षी पार्टियों के साथ ख़ुद को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं की. कुछ विपक्षी नेताओं की तरफ़ से प्रदर्शन में शामिल होकर अपनी पार्टी का एजेंडा बढ़ाने की कोशिशों का आम तौर पर मज़ाक उड़ाया गया.

सिर्फ़ ये नहीं है कि प्रदर्शनकारियों और विपक्षी पार्टियों में बहुत ज़्यादा प्यार नहीं है बल्कि ख़ुद विपक्षी पार्टियों में भी आपसी एकता नहीं है.

कुछ महीने पहले तक ज़्यादातर विपक्षी दल LMS के प्रमुख मार्जन सारेक के नेतृत्व में अल्पमत सरकार चला रहे थे. लेकिन ये सरकार ज़्यादा दिन नहीं चल पाई और जैनेज़ जानसा सत्ता में आए. उधर अल्पमत की गठबंधन सरकार में शामिल रहे दलों में अभी भी इतनी तकरार है कि वो मिल-जुलकर अपने राजनीतिक क़दम का फ़ैसला नहीं कर सकते. ऐसे में अगर किसी तरह प्रदर्शनकारी जानसा सरकार को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर भी देते हैं तब भी विपक्षी दलों के एक बार फिर गठबंधन करने की उम्मीद काफ़ी कम है.

पूरी ईमानदारी से कहें तो हाल के हफ़्तों में विपक्ष की ताक़त में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है क्योंकि SMC के दो सांसद विपक्ष में शामिल हो गए हैं. इसकी वजह से जानसा सरकार के पास संसद में बहुमत से सिर्फ़ एक ज़्यादा वोट है. लेकिन जब तक संसद में एक वैकल्पिक बहुमत स्थापित नहीं होता है, तब तक पीएम जानसा सरकार चला सकते हैं. भले ही उन्हें अपने पूर्ववर्ती की तरह अल्पमत सरकार चलानी पड़े.

लेकिन एक वोट का बहुमत और प्रदर्शन के रूप में लगातार बाहरी दबाव से अस्थिरता का माहौल बनता है जो कुछ निश्चित हालात में नियंत्रण से बाहर हो सकता है और जिसकी वजह से समय से पहले चुनाव हो सकते हैं.

महामारी के बाद की वास्तविकता अब सामने आ रही है और कई लोगों और कारोबार के लिए निकट भविष्य निराशाजनक लग रहा है. बेरोज़गारी बढ़ रही है और 2020 में अर्थव्यवस्था में कम-से-कम 8% की गिरावट आएगी. अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने में कितना वक़्त लगेगा ये ज़्यादातर स्लोवेनिया के प्राथमिक निर्यात बाज़ार के हालात और संक्रमण के संभावित दूसरे दौर पर निर्भर करता है

ऐसा ही एक मौक़ा PPE घोटाले में भूमिका को लेकर आर्थिक मंत्री और SMC नेता द्रावको पोसीवेल्सेक के ख़िलाफ़ आने वाला अविश्वास प्रस्ताव है. इस दौरान हंगामेदार चर्चा होने की उम्मीद है और हल्का बहुमत होने की वजह से ग़लती की गुंजाईश काफ़ी कम है. ख़ासतौर पर पोसीवेल्सेक के लिए जिनके पास करिश्मे का अभाव है और सांसदों को जुटाने की जिनकी क्षमता बेहद कम है. सही हालात में ये अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष को सरकार गिराने का मौक़ा देता है. हालांकि, पोसीवेल्सेक के अविश्वास प्रस्ताव जीतने की उम्मीद ज़्यादा है लेकिन विपक्षी दल इसी तरह का क़दम आंतरिक मामलों के मंत्री होज्स के ख़िलाफ़ उठाने की योजना पहले से बना रहे हैं. विडम्बना है कि लगातार परेशान करने की ये रणनीति जानसा की पार्टी SDS ने विपक्ष में रहते हुए अपनाई थी.

महामारी के शुरुआती झटके ने बाद में इसे काबू करने की राष्ट्रीय कोशिशों को जन्म दिया, महामारी के बाद की वास्तविकता अब सामने आ रही है और कई लोगों और कारोबार के लिए निकट भविष्य निराशाजनक लग रहा है. बेरोज़गारी बढ़ रही है और 2020 में अर्थव्यवस्था में कम-से-कम 8% की गिरावट आएगी. अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने में कितना वक़्त लगेगा ये ज़्यादातर स्लोवेनिया के प्राथमिक निर्यात बाज़ार के हालात और संक्रमण के संभावित दूसरे दौर पर निर्भर करता है. उस हालात की योजना बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को जहां तक मुमकिन हो सके खुला रखना चाहिए जो कि मार्च में शुरुआती जवाब से बिल्कुल अलग है.

अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने के साथ स्लोवेनिया राजनीतिक बंटवारे के फिर से खुलने का अनुभव कर रहा है. हालांकि, कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के बड़े लक्ष्य की वजह से ये फिलहाल छिपा हुआ है. जैनेज़ जानसा की सरकार ने कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर जो थोड़ी-बहुत राजनीतिक पूंजी कमाई है वो सार्वजनिक स्वास्थ्य और दूसरे मामलों में विवादित क़दमों की वजह से दोगुनी तेज़ी से ख़त्म हो रही है.

अगर पतझड़ के मौसम में किसी वक़्त वाकई कोरोना वायरस संक्रमण का दूसरा दौर आता है तो सरकार और देश के लोगों के ज़्यादातर हिस्से के बीच इस भरोसे का टूटना मौजूदा वक़्त से ज़्यादा बड़ा दायित्व साबित हो सकता है.

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