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भारत में महिलाओं पर लू और पानी की कमी के असर को देखते हुए महिलाओं एवं लड़कियों के कल्याण और सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने वाली व्यापक रणनीति की तत्काल आवश्यकता है.
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, विशेष रूप से हीट-वेव (लू) और पानी की कमी, भारत में महिलाओं को अत्यधिक मुश्किल में डाल रहा है. मौजूदा समय में देश में पानी के भंडार का स्तर उसकी कुल क्षमता के केवल 35 प्रतिशत तक रह गया है. लू के साथ इसमें और कमी आ रही है जो लोगों, ख़ास तौर पर महिलाओं, के जीवन में मुश्किलें पैदा करेगा. हालिया अध्ययन उजागर करते हैं कि पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाएं चरम तापमान को लेकर अधिक असुरक्षित हैं. इससे स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर और शिक्षा की उपलब्धता के मामले में मौजूदा लैंगिक असमानता में और बढ़ोतरी होती है.
भारत में लैंगिक गतिशीलता, सामाजिक नियमों और जलवायु परिवर्तन के बीच जटिल आपसी संबंध लू को लेकर महिलाओं की असुरक्षा में बढ़ोतरी करते हैं. ऐसी स्थिति के दौरान महिलाओं की पारंपरिक भूमिका अक्सर उनकी शारीरिक परेशानियों में बढ़ोतरी करती है क्योंकि झुलसती गर्मी के बीच उन्हें पानी लाने या खेत में काम करने की ज़िम्मेदारी मिलती है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार (UNHR) की 'पानी के अधिकार' की रिपोर्ट खुलासा करती है कि महिलाओं को रोज़ाना चार घंटे तक का समय पानी से जुड़े कामों में बिताना पड़ता है. इससे उनकी सेहत से जुड़े ख़तरे बढ़ते हैं, विशेष रूप से पानी से होने वाली बीमारियों की वजह से. इसके अलावा सांस्कृतिक मानदंड अक्सर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं को नज़रअंदाज़ करते हैं जिससे गर्मी से जुड़ी बीमारियों को लेकर उनकी असुरक्षा में बढ़ोतरी होती है. साथ ही घरेलू और सामुदायिक जल के प्रबंधन में निर्णय लेने की सीमित ताकत गर्मी और पानी से जुड़ी कमी से निपटने में आवश्यक संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच में रुकावट डालती है.
झुलसती गर्मी से गर्भवती और बुजुर्ग महिलाएं अधिक ख़तरे का सामना करती हैं. इससे निर्धारित समय से पहले महिला बच्चे को जन्म दे सकती हैं, उनकी सेहत ख़राब हो सकती है और मृत स्थिति में पैदा बच्चों की दर में बढ़ोतरी हो सकती है.
झुलसती गर्मी से गर्भवती और बुजुर्ग महिलाएं अधिक ख़तरे का सामना करती हैं. इससे निर्धारित समय से पहले महिला बच्चे को जन्म दे सकती हैं, उनकी सेहत ख़राब हो सकती है और मृत स्थिति में पैदा बच्चों की दर में बढ़ोतरी हो सकती है. एशियाई विकास बैंक (ADB) का अध्ययन संकेत देता है कि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से समय से पहले जन्म में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है जो लू के दौरान बढ़कर 16 प्रतिशत तक पहुंच जाती है. वहीं 1 डिग्री सेल्सियस तापमान में बढ़ोतरी से मृत स्थिति में पैदा बच्चों में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है.
लू और सूखे से महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर पर गंभीर असर पड़ता है, ख़ास तौर पर खेती और अनौपचारिक क्षेत्रों में. जलवायु से जुड़े ख़तरों के मामले में कृषि सबसे असुरक्षित क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आया है. हाल के अध्ययनों ने लू और खेती की उपज के बीच नकारात्मक संबंध को उजागर किया है. इससे जलवायु की स्थितियों में उतार-चढ़ाव को लेकर खेती की संवेदनशीलता रेखांकित होती है. नीति आयोग के अनुसार भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करती हैं. लू और पानी की कमी के संयुक्त प्रभाव से खेती में उनके काम करने की क्षमता ख़तरे में पड़ गई है, विशेष रूप से सिंचाई जैसे कामों में. कृषि उपज में कमी और जैव विविधता के नुकसान ने अपनी आजीविका के लिए खेती या प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर महिलाओं को और परेशानी में डाल दिया है.
भारत में लगभग 54 प्रतिशत महिलाएं घरों के अंदर रहती हैं. इससे संकेत मिलता है कि वो अत्यधिक गर्मी से बच जाती हैं. लेकिन घरों के अंदर रहने से अपर्याप्त वेंटिलेशन और ठंडा रखने की व्यवस्था में कमी के कारण उनकी असुरक्षा में बढ़ोतरी हो सकती है. इसके अलावा अध्ययनों से पता चलता है कि घरों के अंदर तापमान में बढ़ोतरी भी महिलाओं के काम-काज की क्षमता को कम कर सकती है. इसकी वजह से भारत में घरों से काम करने वाले कामगारों की आमदनी में 30 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है. महिलाएं पहले ही पुरुषों की तुलना में औसतन 20 प्रतिशत कम कमाती हैं और लू की वजह से ये अंतर और बढ़ जाता है.
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीति और योजना बनाने में लैंगिक रूप से संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. सामुदायिक जल प्रबंधन और गर्मी से राहत के लिए संसाधनों की उपलब्धता से जुड़े फैसलों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. विशेष स्वास्थ्य सेवाएं हर हाल में ऐसे मौसम के दौरान महिलाओं की ख़ास ज़रूरतों को पूरा करें. गर्मी से निपटने के लिए प्रभावी कार्य योजना (हीट एक्शन प्लान) और स्थानीय जल प्रबंधन की रणनीतियां राज्य, शहर और गांव के स्तर पर अनिवार्य हैं. लेकिन भारत में मौजूदा हीट एक्शन प्लान (HAP) अक्सर स्थानीय संदर्भों को नज़रअंदाज़ करती हैं और असुरक्षित लोगों की तरफ पर्याप्त रूप से ध्यान देने में नाकाम रहती हैं.
गर्मी से निपटने के लिए प्रभावी कार्य योजना (हीट एक्शन प्लान) और स्थानीय जल प्रबंधन की रणनीतियां राज्य, शहर और गांव के स्तर पर अनिवार्य हैं. लेकिन भारत में मौजूदा हीट एक्शन प्लान (HAP) अक्सर स्थानीय संदर्भों को नज़रअंदाज़ करती हैं
भारत में महिलाओं पर लू और पानी की कमी का प्रभाव को देखते हुए महिलाओं एवं लड़कियों के कल्याण और सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने वाली व्यापक रणनीति की तत्काल आवश्यकता है. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो जलवायु सामर्थ्य से जुड़ी योजना और उसके कार्यान्वयन के सभी पहलुओं में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को जोड़े.
हीटवेव और पानी के संकट का महिलाओं और लड़कियों पर अत्यधिक असर को कम करने के लिए कई रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं:
जलवायु को लेकर उठाए गए कदम में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से सभी के लिए अधिक मज़बूत और स्थायी समुदायों का निर्माण किया जा सकता है.
निष्कर्ष के तौर पर कहें तो महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के असर का समाधान करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो जलवायु सामर्थ्य से जुड़ी योजना और उनके कार्यान्वयन के सभी पहलुओं में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को जोड़े. जलवायु को लेकर उठाए गए कदम में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से सभी के लिए अधिक मज़बूत और स्थायी समुदायों का निर्माण किया जा सकता है.
अदिति मदान इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में फेलो हैं.
अर्जुन दुबे इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में रिसर्च एसोसिएट हैं.
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Dr. Aditi Madan is Fellow and an ICSSR post-doctoral fellow at Institute for Human Development (IHD) with a PhD in Disaster Management from Asian Institute ...
Read More +Arjun Dubey is a Research Associate at the Institute for Human Development. He did his post-graduation in Development Studies from Ambedkar University, Delhi. His areas ...
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