अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से विपक्षी डेमोक्रेट कमला हैरिस पर नस्लीय टिप्पणी करने लगे हैं, उससे चुनाव के गहरे संकेत मिल रहे हैं. निस्संदेह, ट्रंप ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं, जो ऐसी टीका-टिप्पणियों से परहेज नहीं करते. बराक ओबामा हो या निक्की हेली, उन्होंने कई नेताओं पर लांछन लगाए हैं. मगर अभी उनके निशाने पर कमला हैरिस क्यों हैं, जबकि उन्हें अभी डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपना आधिकारिक प्रत्याशी भी नहीं घोषित किया है?
राष्ट्रपति जो बाइडन की चुनाव से हटने की घोषणा के बाद कमला हैरिस अचानक सुर्खियों में आ गईं. अब तक उनकी पहचान बाइडन की छाया के रूप में थी. उन्होंने भी अपनी कोई महत्वाकांक्षा जाहिर नहीं की थी. मगर उनका महिला होना और वह भी उनके अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के होने से डेमोक्रेटिक के आधार वोटबैंक में एक नया उत्साह आ गया है.
स्थिति क्या है
दरअसल, राष्ट्रपति जो बाइडन की चुनाव से हटने की घोषणा के बाद कमला हैरिस अचानक सुर्खियों में आ गईं. अब तक उनकी पहचान बाइडन की छाया के रूप में थी. उन्होंने भी अपनी कोई महत्वाकांक्षा जाहिर नहीं की थी. मगर उनका महिला होना और वह भी उनके अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के होने से डेमोक्रेटिक के आधार वोटबैंक में एक नया उत्साह आ गया है. बाइडन सहित कईअन्य नेताओं ने उनका खुलकर समर्थन किया है, जिससे जॉर्जिया जैसे राज्यों में भी, जहां बाइडन पर ट्रंप भारी पड़ते दिख रहे थे, डेमोक्रेटिक पार्टी मुकाबले में आ गई है. स्थिति यह है कि लोकप्रियता के मामले में कमला हैरिस ने ट्रंप और बाइडन के बीच बढ़ते अंतर को पाट दिया है और कई राज्यों में तो वह ट्रंप से आगे निकल गई हैं. यह अंतर अभी ज्यादा नहीं है, मगर अंदरखाने उनके पक्ष में एक लहर जरूर चलने लगी है. इसका असर नॉर्थ कैरोलिना, एरिजोना, नेवाडा जैसे तमाम स्विंग स्टेट्स (जहां के मतदाताओं का रुख स्पष्ट नहीं है कि वे किस पार्टी का समर्थन करेंगे) में भी दिखने लगा है और डेमोक्रेटिक पार्टी उठ खड़ी हुई है. जबकि, इन्हीं स्विंग स्टेट्स में मामूली अंतर की जीत से जो बाइडन व्हाइट हाउस पहुंचे थे. डोनाल्ड ट्रंप इस सच से वाकिफ हैं. बाइडन को वह उम्र या सेहत के मुद्दे पर घेरने में सफल हो रहे थे, पर कमला हैरिस के खिलाफ यह रणनीति अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारने जैसी होगी. पहले यही कहा जा रहा था कि दो श्वेत बुर्जुग आमने-सामने हैं, पर अब यह लड़ाई बुजुर्ग बनाम नौजवान की बनती दिख रही है. लिहाजा, हैरिस पर ट्रंप कई तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां करने लगे हैं. हालांकि, सच यह भी है कि बतौर उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस बहुत ज्यादा अपनी छाप छोड़ने में सफल नहीं रही हैं. उन्हें बाइडन प्रशासन में जो नीतिगत जिम्मेदारियां दी गई थीं, वे बहुत अहम नहीं थीं. इतना ही नहीं, वह भारतवंशी के बजाय अफ्रीकी-अमेरिकी कहलाना ज्यादा पसंद करती हैं, जिसे कुछ लोग उनकी सियासी मजबूरी भी कहते हैं, क्योंकि इसका उन्हें पहले के चुनावों में फायदा मिला है. मगर राष्ट्रपति पद की दावेदारी के करीब यूं अचानक पहुंच जाने से लोगों की उनसे अपेक्षाएं बढ़ गई हैं, इसलिए ट्रंप हैरिस के पक्ष में बनती इस हवा को हर कीमत पर बिगाड़ देना चाहते हैं. ऐसा करके वह अपने श्वेत वोटरों में किसी तरह की सेंध की आशंका को भी खत्म करना चाहते हैं.
यह जंग क्या रुख लेगी, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, पर अभी वहां श्वेत बनाम अश्वेत की जंग भारी पड़ती दिख रही है.
श्वेत बनाम अश्वेत
साफ है, अमेरिका में जिस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में व्यक्तिगत टीका-टिप्पणियां बढ़ गई हैं, वे नवंबर में मत डालने तक जारी रह सकती हैं. अलबत्ता, इसमें और तेजी आ सकती है, खासतौर से तब, जब यह मुकाबला अधिकृत रूप से डोनाल्ड ट्रंप बनाम कमला हैरिस हो जाएगा. तब दोनों पक्ष अपने-अपने वोटबैंक को मजबूत करने के साथ-साथ एक-दूसरे के आधार-वर्ग में सेंध लगाने का प्रयास तेज करेंगे. यह जंग क्या रुख लेगी, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, पर अभी वहां श्वेत बनाम अश्वेत की जंग भारी पड़ती दिख रही है. एक बात और. डोनाल्ड ट्रंप शायद ही कमला हैरिस के साथ किसी मंच पर आमने-सामने होना चाहेंगे. इसकी वजह यह है कि पिछली बहस में उन्होंने ट्रंप की बीमारी और उनकी उम्र पर निशाना साधा था, जिसका उन्हें फायदा भी मिला. कमला हैरिस के साथ मंच साझा करने पर उनके ये तीर उन्हीं पर भारी पड़ सकते हैं. फिर, कमला पूर्व में अभियोग पक्ष की वकील रह चुकी हैं, इसलिए वह ट्रंप को अपने सवालों में ऐसे घेर सकती हैं कि वह बैकफुट पर आ जाएं. ऐसे में, प्रतिकूल टीका-टिप्पणी करके चुनावी हवा को गरम रखने की नीति ही ट्रंप को फिलहाल रास आ रही है.
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