Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 13, 2022 Commentaries 0 Hours ago

यह वह दौर है जब तमाम जिम्मेदार वैश्विक संगठन अपनी जिम्मेदारियों से मुकरते दिख रहे हैं. उनका पराभव हो रहा है. नेतृत्व निर्वात की स्थिति है. यह भारत के लिए स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित होने का सुनहरा अवसर है.

जी-20 अध्यक्षता का कांटों भरा ताज

इस महीने के आरंभ में भारत ने विधिवत जी-20 की अध्यक्षता संभाल ली है. भारत के लिए यह गर्व की अनुभूति कराने वाला है कि उसे एक महत्वपूर्ण वैश्विक संगठन की अध्यक्षता मिली है. यूं तो जी-20 की अध्यक्षता बारी-बारी से सदस्य देशों को मिलती है, लेकिन जिस दौर में भारत को यह कमान मिली है, उसकी बड़ी अहमियत है. पूरी दुनिया कोविड महामारी से उबरी भी नहीं थी कि रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध ने तमाम समीकरण बिगाड़ दिए. इससे बिगड़ी आपूर्ति शृंखला ने कई देशों को दिवालिया बनाने के कगार पर पहुंचा दिया. विकसित देशों में भी महंगाई ने रिकॉर्ड तोड़ दिया. पूरी दुनिया में आर्थिक सुस्ती का माहौल बन गया. 

जी-20 विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है तो इसका दारोमदार उस पर ही है कि वह इन मौजूदा संकटों का समाधान निकालने की दिशा में सक्रिय हो, मगर इससे जुड़े कुछ अंशभागियों के बीच टकराव से यह आसान नहीं लगता.

एक ओर पश्चिमी देशों और रूस के बीच संघर्ष विराम के कोई आसार नहीं दिख रहे तो दूसरी ओर चीन और अमेरिका के बीच तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा. ऐसी तनातनी का सबसे बड़ा खामियाजा गरीब और विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है. संप्रति समग्र वैश्विक परिदृश्य चुनौतियों से दो-चार है. चूंकि जी-20 विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है तो इसका दारोमदार उस पर ही है कि वह इन मौजूदा संकटों का समाधान निकालने की दिशा में सक्रिय हो, मगर इससे जुड़े कुछ अंशभागियों के बीच टकराव से यह आसान नहीं लगता. इसलिए समझा जा सकता है कि जी-20 अध्यक्ष का ताज भारत के लिए कितना कांटों भरा साबित होने वाला है. अपनी अध्यक्षता को सफल बनाने के लिए भारत को कड़ी मशक्कत करनी होगी. हालिया रुझान यही दर्शाता भी है कि भारत ने इस दिशा में सक्रिय होकर संतुलन साधने की कवायद शुरू कर दी है. 

इसका पहला संकेत तो तब देखने को मिला जब ऐसी खबरें आईं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस साल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ शिखर वार्ता के लिए रूस नहीं जाएंगे. दोनों देशों के बीच दिसंबर में वार्षिक शिखर वार्ता होती है, जिसमें राष्ट्राध्यक्ष बारी-बारी से एक दूसरे के देश जाते हैं. इस बार मोदी के रूस जाने की बारी थी, जिसके आसार अब नहीं दिखते. विदेश मंत्रालय ने इसके पीछे कोई आधिकारिक वजह तो नहीं बताई है, लेकिन कूटनीतिक हलकों में व्यापक रूप से यही माना जा रहा है कि रूस को लेकर वैश्विक आक्रोश के चलते भारत यह कदम उठाने जा रहा है.

विदेश नीति की सराहना

 

खासतौर से रूस ने जिस प्रकार बार-बार परमाणु हेकड़ी दिखाई है, उससे उसके प्रति धारणा खराब हुई है. ऐसी स्थिति में भारत नहीं चाहता कि रूसी राष्ट्रपति के साथ उसकी गलबहियों से वैश्विक स्तर पर किसी तरह का नकारात्मक संदेश जाए. हाल में इंडोनेशिया में हुए जी-20 सम्मेलन में भी रूस के प्रति वैश्विक भावनाएं मुखरता से अभिव्यक्त हुई थीं. इसलिए भारत नहीं चाहेगा कि उसकी अध्यक्षता के दौरान व्यापक संबंधों पर द्विपक्षीय पहलू से कोई ग्रहण लगे. इसके लिए भारतीय विदेश नीति की सराहना भी करनी होगी कि वह रूस को नाराज किए बिना ही अपने हितों को साधने में सफल हो रही है. 

हाल में इंडोनेशिया में हुए जी-20 सम्मेलन में भी रूस के प्रति वैश्विक भावनाएं मुखरता से अभिव्यक्त हुई थीं. इसलिए भारत नहीं चाहेगा कि उसकी अध्यक्षता के दौरान व्यापक संबंधों पर द्विपक्षीय पहलू से कोई ग्रहण लगे.

यह वह दौर है जब तमाम जिम्मेदार वैश्विक संगठन अपनी जिम्मेदारियों से मुकरते दिख रहे हैं. उनका पराभव हो रहा है. नेतृत्व निर्वात की स्थिति है. विशेष रूप से ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की सुनवाई के लिए कोई तैयार नहीं. यह भारत के लिए स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित होने का सुनहरा अवसर है. भारत इस मौके को भुनाने के लिए तत्पर भी दिखता है. इसके संकेत जी-20 की अध्यक्षता संभालने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों से भी मिले, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि ग्लोबल साउथ वाले हिस्से में हमारे साथ चलने वाले देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती हैं, के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा.’ 

वास्तव में, इस समय शक्तिशाली देशों के बीच चल रहे संघर्ष से जो खाद्य और ईंधन संकट उत्पन्न हुआ है, उसकी सबसे ज्यादा मार इन्हीं देशों पर पड़ रही है. यही कारण है कि भारत ने इन समस्याओं से निपटने के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है. भारत बार-बार तनाव घटाने को लेकर सचेत कर रहा है. इसके पीछे यही मंशा है कि वैश्विक स्तर पर शांति एवं स्थायित्व कायम हो. मौजूदा अस्थिरता दूर हो सके. पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रधानमंत्री भारतीय संस्कृति में समाहित सूत्रों को साझा कर रहे हैं. भारत की ओर से विकसित देशों को आईना दिखाते हुए व्यापक वैश्विक सुधारों के लिए दबाव भी बनाया जा रहा है. इन सुधारों से सबसे अधिक लाभान्वित विकासशील देश ही होंगे.

एक नया आयाम देगा भारत 

स्पष्ट है कि इस चुनौतीपूर्ण परिवेश में भारत अपने प्रयासों से स्वयं को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने की दिशा में सक्रिय होकर यही संदेश देना चाहता है कि वह अंतरराष्ट्रीय शांति एवं स्थायित्व को सुनिश्चित करने में सेतु की भूमिका निभाने के लिए तैयार है. यह जी-20 की अध्यक्षता को सफलता दिलाने के लिए आवश्यक भी है. पूरा विश्व इस समय भारत को बड़ी उम्मीद से देख भी रहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से लेकर जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबाक तक तमाम नेता कह चुके हैं कि भारत जी-20 की अध्यक्षता को एक नया आयाम देगा. ऐसे में भारत के लिए आवश्यक हो चला है कि इस समय वह अपनी विदेश नीति में द्विपक्षीय भाव से अधिक बहुपक्षीय भावनाओं को वरीयता दे. तभी वह विभिन्न अंशभागियों के बीच किसी सहमति का निर्माण कर अपनी अध्यक्षता को सफलता दिला सकेगा. बदलते वैश्विक ढांचे में इससे भारत का कद और बढ़ेगा. 

मूल रूप से आर्थिक हितों से जुड़ा संगठन होने के नाते जी-20 में भरपूर संभावनाएं हैं कि उसके माध्यम से भू-राजनीतिक तनाव और टकरावों को दूर किया जा सके. यह इसलिए आवश्यक हो गया है, क्योंकि फिलहाल संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं अपने इस मूल दायित्व की पूर्ति में विफल दिख रही हैं. यही उम्मीद है कि भारत विश्व के समक्ष कायम मुश्किलों को एक अवसर के रूप में ढालकर अपने नेतृत्व से वैश्विक छाप छोड़ने में सफल होगा, जैसा कि उसने कोविड महामारी में भी किया था.


यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.