Published on Mar 12, 2021 Updated 0 Hours ago

नए दशक में टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की पहचान एल्गोरिदम या नई खोज नहीं होगी, यह इन्हें लेकर हमारी चॉइस से तय होगी

बेहतर 21वीं सदी की परिकल्पना मनुष्य और तकनीक़ के बीच विश्वास और भरोसे के संबंध से ही मुमकिन होगा

अगले दशक का सबसे बड़ा ट्रेंड कोई टेक्नोलॉजी नहीं बल्कि डिजिटल ट्रस्ट होगा. आजकल नई टेक्नोलॉजी को कहीं तेजी से अपनाया जा रहा है. यह सिलसिला आने वाले कई वर्षों तक जारी रहेगा और शायद हम लोग ताउम्र यह ट्रेंड देखते रहें. यह ऐसी होनी है, जिसे टाला नहीं जा सकता. इस मामले में अगर कोई सवाल है तो वह यह कि- क्या इन टेक्नोलॉजी को पूरी जवाबदेही के साथ अपनाया जाएगा? क्या हमारे लीडरों और ऐसी खोज करने वालों में इस नई तकनीक वाली दुनिया की सुरक्षा, बराबरी और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दूरदृष्टि और साहस होगा?

नए दशक में तकनीक का झुकाव डिजिटल ट्रस्ट की ओर होना चाहिए यानी तकनीक पर लोगों का ऐतबार होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे सामने कहीं ज़्यादा अंधकारमय भविष्य होगा. इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले वक्त में अधिक ताकतवर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग टूल्स वजूद में आएंगे. बेहतर रोबोटिक्स की वजह से कामकाज में उनकी भूमिका बढ़ेगी. वे इंसानों की जगह लेंगे और कई मामलों में इंसान जो काम कर रहे हैं, इनकी मदद से उनमें बेहतरी आएगी. इसके अलावा, बायोलॉजी, केमेस्ट्री और फिजिक्स की क्षमताओं का भी हम और बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे. इससे एक के बाद एक बदलाव होंगे और हमारे सामने एक ऐसी दुनिया आएगी, जो साइंस फिक्शन जैसी लगेगी, न कि हमारे अतीत की तरह.

नए दशक में तकनीक का झुकाव डिजिटल ट्रस्ट की ओर होना चाहिए यानी तकनीक पर लोगों का ऐतबार होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे सामने कहीं ज़्यादा अंधकारमय भविष्य होगा. 

ये सारे बदलाव मिलकर एक परिघटना की शक्ल अख़्तियार करेंगे, जिसे कभी-कभी ‘चौथी औद्योगिक क्रांति,’ कहा जाता है. इससे समाज और इकॉनमी में उथलपुथल मचेगी. इसका असर बिजनेस से लेकर सामाजिक मेलजोल, हमारी साइकोलॉजी से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक पर पड़ेगा. इनके असर से कोई नहीं बच पाएगा. यहां तक कि लोकतंत्र भी शायद नई टेक्नोलॉजी से अस्थिर हो जाए. अब जबकि हम एक नए दशक में प्रवेश कर चुके हैं, हमें यह चिंता सता रही है कि ये सारी खोज फायदे से अधिक शायद हमारा नुकसान कर रही हैं. इससे गैर-बराबरी बढ़ रही है. संघर्ष हो रहे हैं और बहुत कम लोगों के हाथों में सत्ता सिमट रही है. हाल में जो भी हुआ है, अगर उसका इशारा समझें तो आने वाले ट्रेंड मुश्किल भरे वक्त की ओर इशारा कर रहे हैं. इसलिए जब तक हम टेक्नोलॉजी की प्राथमिकता तय नहीं करते, इसका इस्तेमाल बेहतर दुनिया बनाने की ख़ातिर नहीं करते, हम मुश्किल में रहेंगे.

टेक्नोलॉजी की प्राथमिकता तय करके हम इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं. इसके लिए सभी इनोवेशन करने वालों, सरकारों, बिजनेस और यहां तक कि व्यक्तिगत स्तर पर डिजिटल ट्रस्ट के कॉन्सेप्ट को स्वीकार करना होगा. यानी सबसे पहले तो नई टेक्नोलॉजी से सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. डिजिटल टेक्नोलॉजी के जो खतरे हैं, उन्हें अब

बाहरी मानना बंद करना होगा. इनसे एंड-यूजर्स और नागरिकों को बचाना होगा क्योंकि दूसरों की गलतियों से खुद को बचाने में यही वर्ग सबसे ज्यादा असमर्थ है. और जिन टेक्नोलॉजी को अपनाने के बाद हमारे लिए खतरे बढ़ जाएं, उन्हें तो छोड़ना ही ठीक होगा.

अगर हमें इनोवेशन जारी रखना है तो नई तकनीक तैयार करते वक्त ही उसे सुरक्षित बनाना होगा. यह बात उसकी बुनियाद में ही होनी चाहिए. इसके लिए हमें तकनीक के नैतिक और जवाबदेह इस्तेमाल के प्रति प्रतिबद्धता जतानी होगी. 

बिना सुरक्षा के हम टिकाऊ तकनीकी प्रगति सुनिश्चित नहीं कर सकते क्योंकि इसके खतरों से डरे लोग नई तकनीक से तौबा कर लेंगे और उनका ऐसा करना ठीक होगा. इसलिए हमें ऐसे इनोवेशन की जरूरत होगी, जो व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ कंपनियों और हमारे सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों की भी सुरक्षा सुनिश्चित करे. ऐसे में सायबर मजबूती के लिए नई प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी. लीडरशिप के नए विज़न और सहयोग के लिए नई प्रक्रिया की दरकार भी होगी. और यह भी जान लीजिए कि साइबर सिक्योरिटी भी इन चुनौतियों का आधा-अधूरा जवाब है.

तकनीक और मानव संसाधान के बीच तालमेल

अगर हमें इनोवेशन जारी रखना है तो नई तकनीक तैयार करते वक्त ही उसे सुरक्षित बनाना होगा. यह बात उसकी बुनियाद में ही होनी चाहिए. इसके लिए हमें तकनीक के नैतिक और जवाबदेह इस्तेमाल के प्रति प्रतिबद्धता जतानी होगी. जो नियम, आदर्श और समझौते हमारे सोशल कॉन्ट्रैक्ट और स्ट्रक्चर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें नई तकनीक से भी जोड़ना होगा. उदाहरण के लिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल इस तरह से किया जा सकता है कि गरीबों, एथनिक या नस्लीय आधार पर भेदभाव ना हो. इसलिए सिर्फ बाहरी खतरों से बचाव ही हमारी एकमात्र चिंता नहीं होगी.

जहां ऑटोमेशन के कारण वर्कर्स की नौकरी चली जाए , वहां सामाजिक सुरक्षा के बग़ैर पॉज़िटिव इनोवेशन नहीं हो सकता, भले ही वह ऑटोमेशन कितना ही सुरक्षित या असरदार क्यों न हो. जिस डेटा हार्वेस्टिंग से व्यक्तिगत निजता खत्म हो रही हो , भले ही उसका इस्तेमाल नई दवा बनाने के लिए हो रहा हो या किसी सोशल मीडिया कंपनी का मुनाफा बढ़ाने के लिए, लोग उसके खिलाफ खड़े हो सकते हैं. अगर टेक्नोलॉजी इंसान की भलाई के लिए है (मुझे तो लगता है कि इसका मकसद यही है) तो इसे इंसानी आदर्शों के मुताबिक ढालना होगा. इसका प्रयोग इस तरह से करना होगा कि यह इंसानों के जीवनस्तर में सुधार लाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो टेक्नोलॉजी पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकेगा.

जहां ऑटोमेशन के कारण वर्कर्स की नौकरी चली जाए , वहां सामाजिक सुरक्षा के बग़ैर पॉज़िटिव इनोवेशन नहीं हो सकता, भले ही वह ऑटोमेशन कितना ही सुरक्षित या असरदार क्यों न हो

महामारी और वैश्विक आर्थिक संकट के बीच, नफ़रत फैलानी वाली तकनीक के उभार के बीच, एक ऐसे साल में जब हम डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर अप्रत्याशित हमले का सामना कर रहे हैं, एक ऐसे दौर में जब संपत्ति की जमाख़ोरी शिख़र पर पहुंच गई है, हम एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गए हैं. यहां से हम जो फैसले करेंगे, उनसे यह तय होगा कि नया दशक कैसा रहता है. हम चाहें तो जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं, उसी राह पर बने रह सकते हैं. इस उम्मीद के साथ कि कोई चमत्कारी तकनीक आएगी, जो इस नैरेटिव को अपने आप बदल देगी और इस तरह से टेक्नोलॉजी से खतरों का जो कुचक्र चल पड़ा है, वह रुक जाएगा. या हम इनोवेशन का इस्तेमाल अधिक से अधिक लोगों की जिंदगी में सुधार लाने के लिए कर सकते हैं. हमें नई तकनीक का अधिक ज़िम्मेदारी के साथ प्रयोग करना होगा. शिक्षा और तकनीकी टूल्स की पहुंच अधिक से अधिक लोगों तक करनी होगी. हमें भविष्य की टेक्नोलॉजी के साथ डिजिटल ट्रस्ट को भी जोड़ना होगा. यानी नए दशक में हमारी पहचान इससे तय होगी कि हम कौन सा रास्ता चुनते हैं. हमारी चॉइस क्या रहती है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.