Author : Mudit Kapoor

Issue BriefsPublished on Jul 31, 2023
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सोशल मीडिया और राजनीतिक नेता: नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के ट्विटर संवाद का खोजपूर्ण विश्लेषण!

  • Mudit Kapoor
सोशल मीडिया और राजनीतिक नेता: नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के ट्विटर संवाद का खोजपूर्ण विश्लेषण!

राजनेताओं ने हमेशा से मतदाताओं से संवाद करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल किया है. जो चीज़ सोशल मीडिया को विशिष्ट बनाती है, वह है उसका पैमाना, उसकी गति और वह न्यूनतम लागत जिस का लाभ उठाते हुए नेता सोशल मीडिया के ज़रिए इस काम को कर सकते हैं. यह पेपर राजनीतिक नेताओं और माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के बीच के संबंध का विश्लेषण करता है. यह दो समकालीन भारतीय राजनीतिक नेताओं- नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी द्वारा ट्विटर के उपयोग का एक व्यापक और व्यवस्थित विश्लेषण करता है. यह उन रुझानों का लेखाजोखा पेश करता है कि ये नेता कितनी बार ट्विटर का उपयोग करते हैं और उनके पाठक किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं; एक ट्वीट की भावना और उसके विस्तार के बीच के संबंधों की पड़ताल करता है; और साल 2020 के अंत में ट्विटर की वैश्विक नीति में बदलाव के प्रभाव का अध्ययन करता है जिसने पाठकों के लिए ट्वीट के साथ जुड़ने से पहले उनके लिए अड़चनें पैदा कीं. विश्लेषण के इस ढांचे का उपयोग राजनीतिक दलों और अन्य अधिकारियों के लिए आसानी से किया जा सकता है जो आम लोगों तक पहुंचने के लिए इस मंच का उपयोग करते हैं.


एट्रीब्यूशन: शमिका रवि और मुदित कपूर, सोशल मीडिया एंड पॉलिटिकल लीडर्स: एन एक्सप्लोरेटरी एनालिसिस,” ओआरएफ़ सामयिक पेपर नंबर 350, मार्च 2022, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.


1. प्रस्तावना

मौजूदा दौर की डिजिटल क्रांति के बीच, ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दुनिया के कई हिस्सों में राजनीतिक विमर्श की प्रकृति को स्थायी रूप से बदल रहे हैं. यह लोकतंत्र में विशेष रूप से सच है, जहां भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी जाती है, हालांकि अलग-अलग अनुपात में. दुनिया भर में, राजनीतिक नेता, बड़े निकायों की तरह, बड़ी आबादी तक पहुंचने के लिए नियमित रूप से इन माध्यमों का उपयोग करते हैं. अतीत में राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हितों की सेवा के लिए पारंपरिक मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे समाचार पत्र, रेडियो और टेलीविज़न का उपयोग किया है. सोशल मीडिया चैनल उस मायने में पैमाने, गति और न्यूनतम लागत के कारण अद्वितीय हैं, और इनके ज़रिए राजनीतिक नेता सीधे – यानी अपने कार्यालय से स्वतंत्र – लोगों तक अपने संदेश का प्रसार करने की पहुंच रखते हैं.

माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट के रूप में ट्विटर इस घटनाक्रम में मुख्य भूमिका रखता है. इसका घोषित उद्देश्य सुरक्षित और मुक्त अभिव्यक्ति के लिए “त्वरित, मुफ़्त और एक मज़ेदार” मंच प्रदान करना है.[1] हालांकि, रोनाल्ड डीबर्ट जैसे राजनीतिक विचारकों का मानना है कि अगर इन माध्यमों को अनियंत्रित रखा गया, तो अंततः समाज “डिजिटल अनफ्रीडम” के युग में पहुंच सकता है.[2] डिबर्ट ने राजनीतिक सत्ता और सोशल मीडिया के “तीन मुश्किल सच” रेखांकित किए हैं. सबसे पहले, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म निजी उद्यम हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य शेयरधारकों के मूल्य और लाभप्रदता को लगातार बढ़ाना है. उनका व्यवसाय मॉडल व्यक्तिगत डेटा की निरंतर और चतुर निगरानी द्वारा विज्ञापनों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है. दूसरा, भले ही निजी तौर पर व्यक्तियों ने “अनजाने में” सोशल मीडिया के लिए अपनी “सहमति” दी हो,  इन माध्यमों को “एडिक्शन मशीनों” के रूप में तैयार किया गया है और यही कारण है कि वह इस कीमत पर व्यक्ति की भावनाओं के साथ छेड़छाड़ कर कई तरह के हेरफेर करते हैं. यह हेरफेर आमतौर पर अनुनय-विनय के रूप में सामने आते हैं. तीसरा, तकनीकी तानेबाने के रूप में वो एल्गोरिदम जिन्हें लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बनाया गया है उनका इस्तेमाल सत्तावादी और अराजकतावादी प्रवृत्तियों के तहत “भ्रम फैलाने, अज्ञानता बनाए रखने, पूर्वाग्रह पैदा करने, और अराजकता के बीज बोकर, हेरफेर और ताकत के दुरुपयोग” के अलावा आम लोगों को लुभाने के लिए भी किया जा सकता है.”

नरेंद्र मोदी के ट्विटर पर 75 मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं, जबकि राहुल गांधी के दो करोड़ से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं. यह विश्लेषण इस मायने में अग्रणी है कि यह दोनों नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट्स का भावनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है.

हाल ही के एक प्रयोगसिद्ध शोध (empirical research) जिसे ट्विटर द्वारा दिए गए डेटा के ज़रिए पूरा किया गया है, ने इनमें से कुछ चिंताओं को मान्य किया है. यह शोध मानव प्रकृति के कुछ अंधेरे पक्षों पर भी पर प्रकाश डालता है. वोसोगई और उनके सह-लेखकों[3] ने इस बात को सामने रखा है कि झूठी खबरें जो आमतौर पर सच्चाई से अधिक नवीन हों, बहुत हद तक ध्यान आकर्षित करने के लिए ही, सूचना की सभी श्रेणियों में सच की तुलना में “काफ़ी अधिक तेज़ी से, दूर-दराज़, गहराई और अधिक व्यापक रूप से फैलती हैं”. यह प्रभाव राजनीतिक समाचारों के लिए अधिक रूप से स्पष्ट रहा. उदाहरण के लिए, झूठ की तुलना में सच को 1,500 लोगों तक पहुंचने में छह गुना अधिक समय लगता है. दिलचस्प बात यह है कि वे दिखाते हैं कि रोबोट की तुलना में मनुष्यों द्वारा झूठ फैलाने की संभावना अधिक थी.

इसके मद्देनज़र मौजूदा दौर में राजनीतिक नेताओं और सोशल मीडिया माध्यमों के बीच संबंधों को समझना अनिवार्य हो जाता है. यह पेपर दो समकालीन भारतीय राजनीतिक नेताओं द्वारा ट्विटर के उपयोग का एक व्यापक और व्यवस्थित विश्लेषण प्रदान करता है: नरेंद्र मोदी (NM), भारत के प्रधान मंत्री-दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र; और राहुल गांधी (RG), देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वास्तविक नेता. नरेंद्र मोदी के ट्विटर पर 75 मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं, जबकि राहुल गांधी के दो करोड़ से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं. यह विश्लेषण इस मायने में अग्रणी है कि यह दोनों नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट्स का भावनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है. यह विश्लेषण यह समझने का भी प्रयास करता है कि क्या अलग-अलग भावनाओं (सकारात्मक, नकारात्मक और/या तटस्थ) वाले ट्वीट्स को रीट्वीट किए जाने और उन्हें लाइक किए जाने की तादाद को (‘लाइक’ की गिनती) के संदर्भ में अलग-अलग तरीके से फैलाया जाता है.

इस पेपर के तीन प्राथमिक उद्देश्य हैं. सबसे पहले, यह व्यापक और व्यवस्थित रुझानों की रूपरेखा तैयार करेगा (ए) दो राजनीतिक नेता ट्विटर का उपयोग बड़े दर्शकों के साथ संवाद करने के लिए कितनी बार करते हैं, और (बी) उनके ट्वीट्स द्वारा कितने रीट्वीट, लाइक और उद्धरण (retweets, likes, and quotes) पैदा होते हैं. दूसरा, यह दोनों राजनीतिक नेताओं के ट्वीट का भावनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है. यह विश्लेषण VADER (वादेर) (वैलेंस अवेयर डिक्शनरी फॉर सेंटीमेंट रीज़निंग, का उपयोग करता है, जो सोशल मीडिया टेक्स्ट की भावनाओं के विश्लेषण के लिए एक पारम्परिक नियम-आधारित मॉडल है.[4] प्रत्येक ट्वीट के भाव स्कोर की गणना यह निर्धारित करने के लिए की गई थी कि क्या यह सकारात्मक, नकारात्मक या तटस्थ भावना को दर्शाता है.

ये अध्ययन भले ही इन दो विशिष्ट राजनीतिक नेताओं पर केंद्रित है लेकिन इस विश्लेषण को राजनीतिक दलों और अन्य सरकारी अधिकारियों के लिए उपयोगी विश्लेषण के रूप में दोहराया जा सकता है खासतौर पर जो राजनीतिक और सामाजिक पहुंच के लिए इस मंच का उपयोग करते हैं.

इसके बाद लेखक एक ट्वीट की भावना और रीट्वीट के लाइक्स की संख्या के आधार पर उसके विस्तार के बीच संबंध निर्धारित करने के लिए प्रतिगमन विश्लेषण का उपयोग करते हैं. विशेष रूप से, विश्लेषण इस बात की पड़ताल करता है कि क्या नकारात्मक भावनाओं वाले ट्वीट्स के बढ़ने की संभावना अधिक (या कम) है. तीसरा उद्देश्य 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में है, जिसके मद्देनज़र ट्विटर ने ट्वीट्स को आगे बढ़ाने से पहले अधिक सावधानीपूर्ण विचारों को प्रोत्साहित करने के लिए रीट्वीट और लाइक[5] पर अपनी वैश्विक नीति में बदलाव किया था. लोगों द्वारा रीट्वीट करने से पहले ट्विटर ने कुछ शर्तें जोड़ीं, और व्यक्ति के प्रोफाइल पर सुझाए जाने वाले उन लोगों की सिफारिशों “लाइक्ड बाई” या “फॉलोड बाई” को हटा दिया यानी उन लोगों से जुड़ने का सुझाव जिनका आप अनुसरण नहीं करते. यह पेपर दो राजनीतिक नेताओं के एक ट्वीट से पैदा रीट्वीट और लाइक्स की संख्या पर इन नीतिगत परिवर्तनों के प्रभाव का अध्ययन करता है. इसके अलावा, यह उनकी भावना के आधार पर ट्वीट्स के फैलाव पर नीतियों में हुए इस बदलाव से आए अंतर और उसके प्रभाव की पड़ताल करता है. ये अध्ययन भले ही इन दो विशिष्ट राजनीतिक नेताओं पर केंद्रित है लेकिन इस विश्लेषण को राजनीतिक दलों और अन्य सरकारी अधिकारियों के लिए उपयोगी विश्लेषण के रूप में दोहराया जा सकता है खासतौर पर जो राजनीतिक और सामाजिक पहुंच के लिए इस मंच का उपयोग करते हैं.

2. आंकड़ों का विवरण

इस विश्लेषण के लिए दोनों नेताओं के ट्वीट्स का टाइमलाइन संबंधी डेटा, सोशल नेटवर्किंग सेवाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली स्नेस्क्रैप (snscrape) तकनीक़ के ज़रिए किया गया है. जो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के लिए एक पायथन-आधारित स्क्रैपर है जिसका काम विश्लेषण या आंकड़े जमा करने के लिए पुराने ट्वीट्स की खोज और उन्हें एकत्रित करना है,[6] डेटा में वह तारीख़ और समय होता है जब ट्वीट बनाया गया था, ट्वीट का टेक्स्ट, ट्वीट की भाषा, ट्वीट एक रीट्वीट था या नहीं, ट्वीट की संख्या, लाइक और उद्धरण जो एक ट्वीट पैदा करता है, यह सभी चीज़ें शीमिल होती हैं. इसमें अनुयायियों की संख्या पर डेटा भी शामिल है. प्रत्येक ट्वीट में एक विशिष्ट पहचान संख्या होती है जिसे स्टेटस आईडी कहा जाता है. यह पेपर 1 जनवरी 2019 और 31 दिसंबर 2021 के बीच पोस्ट किए गए ट्वीट्स तक ही सीमित है. इसमें केवल इन नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट्स शामिल हैं, और इसमें रीट्वीट (या दूसरों द्वारा पैदा ट्वीट्स) शामिल नहीं हैं. इस अवधि के दौरान, दोनों नेताओं द्वारा 11,312 ट्वीट पोस्ट किए गए- आरजी द्वारा 1,835 ट्वीट (सभी विश्लेषण किए गए ट्वीट्स का 16 प्रतिशत), और नरेंद्र मोदी द्वारा 9,477 (84 प्रतिशत) ट्वीट किए गए. अध्ययन ने चार परिणामों पर विचार किया: (i) कुल जुड़ाव, या रीट्वीट, लाइक और उद्धरणों का योग; (ii) रीट्वीट; (iii) लाइक और (iv) उद्धरण.

3. मनोभावों का विश्लेषण

इसमें कोई शक नहीं है कि राजनीति में शब्दों की अहम भूमिका होती है. कई सालों के अनुभव वाले राजनीतिक नेता अपनी राय व्यक्त करने, सुधारों का प्रस्ताव रखने या अपने साथियों का विशेष रूप से वह जो उनके समकक्ष हों, विरोध करने के लिए अपने शब्दों को सावधानीपूर्वक चुनने में अधिक कुशल हो जाते हैं. यही वजह है कि वह राजनीतिक वैज्ञानिकों के लिए अकादमिक रुचि का विषय रहते हैं.[7] राजनीतिक पाठ के विश्लेषण करने का एक संभावित तरीका भाषाई पूछताछ और शब्द गणना (Linguistic Inquiry and Word Count, LINW)[8] और  जनरल इन्क्वायरर,[9] या शैंग, वांग व लुई द्वारा विकसित प्रणाली है जिसके तहत[10]  संदर्भ से स्वतंत्र, शब्द के शब्दार्थ अभिविन्यास पर ज़ोर दिया जाता है. अन्य शब्दावली दृष्टिकोण (lexiconic approaches) जैसे अंग्रेज़ी शब्दों के लिए प्रभावी मानदंड, एएनईडब्ल्यू (Affective Norms for English Words, ANEW)[11] और सेंटिकनेट (SenticNet)[12] है जहां शब्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और भावनाओं की संबंधित तीव्रता को आंका जाता है.

अधिकांश भावनात्मक विश्लेषण (sentiment analysis) अंग्रेज़ी भाषा में किया जाता है. भारत के संदर्भ में, यह एक चुनौती है क्योंकि दोनों नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए कई ट्वीट- 28 प्रतिशत नरेंद्र मोदी के और 49 प्रतिशत राहुल गांधी के- अंग्रेज़ी में नहीं थे

हालांकि, ये दृष्टिकोण ट्विटर जैसे माइक्रोब्लॉगिंग माध्यम के संदर्भ में भावनाओं की व्याख्यात्मक विशेषता के लिए उपयुक्त नहीं हैं, जहां राय को कम से कम शब्दों में व्यक्त किया जाता है. आधुनिक डिजिटल युग में, राजनीतिक नेता बहुत सीमित शब्दों में खुद को अक्सर व्यक्त करने के लिए ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइटों का उपयोग करते हैं. इसलिए, यह पेपर VADER (वादेर) (वादेर) प्रणाली पर आधारित ट्वीट्स का भावनात्मक विश्लेषण करता है. VADER (वादेर) भी उपयोगी है क्योंकि यह व्याकरणिक और वाक्य-रचनात्मक सम्मेलनों पर विचार करता है जो आमतौर पर भावना की तीव्रता को व्यक्त करने के लिए उपयोग किए जाते हैं. इसके अलावा, VADER (वादेर) का उपयोग करने वाले शोध से पता चलता है कि यह ट्वीट्स की भावनाओं को ‘सकारात्मक’, ‘नकारात्मक’ और ‘तटस्थ’ वर्गों में वर्गीकृत करने में व्यक्तिगत रूप से किए जाने वाले मूल्यांकन से बेहतर प्रदर्शन करता है. इसके अलावा, इसे लागू करना आसान है, यह त्वरित तकनीक है और कम्प्यूटेशनल रूप से किफ़ायती है” जिसके इस्तेमाल के दौरान सटीक विश्लेषण को लेकर आश्वस्त रहा जा सकता है. ” VADER (वादेर) के बारे में अधिक जानकारी के लिए, ह्यूटू और गिल्बर्ट का पेपर देखें.[13]

 

अधिकांश भावनात्मक विश्लेषण (sentiment analysis) अंग्रेज़ी भाषा में किया जाता है. भारत के संदर्भ में, यह एक चुनौती है क्योंकि दोनों नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए कई ट्वीट- 28 प्रतिशत नरेंद्र मोदी के और 49 प्रतिशत राहुल गांधी के- अंग्रेज़ी में नहीं थे. कुल मिलाकर, विश्लेषण में अंग्रेज़ी भाषा में 7,778 ट्वीट्स का उपयोग किया गया, जिसे राहुल गांधी द्वारा किए गए 933 ट्वीट्स और नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए 6,845 में विभाजित किया गया.

4. सांख्यिकीय विश्लेषण और नतीजे

ट्वीट्स के साथ लोगों के कुल जुड़ाव, रीट्वीट्स, उनके उद्धरण और लाइक्स के लिए सांख्यिकीय विश्लेषण नकारात्मक द्विपद प्रतिगमन (negative binomial regression) पर आधारित था, यह देखते हुए कि आश्रित वेरिएबल एक गैर-ऋणात्मक गणना थी.[14] लेखकों ने विश्लेषण के लिए STATA 16 (स्टैटा-16) का इस्तेमाल किया[15] औसत मूल्यों की गणना STATA-16 (स्टैटा-16) में मार्जिन कमांड का उपयोग करके की गई थी, और मानक त्रुटियों का अनुमान डेल्टा पद्धति का उपयोग करके लगाया गया था.

31 दिसंबर 2021 तक, राहुल गांधी के 20 मिलियन फॉलोअर की तुलना में नरेंद्र मोदी के ट्विटर पर 75 मिलियन से अधिक अनुयायी थे. 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2021 तक, नरेंद्र मोदी ने 9,477 ट्वीट पोस्ट किए, जबकि राहुल गांधी ने 1,835 ट्वीट पोस्ट किए. औसतन, नरेंद्र मोदी ने प्रतिदिन 8.6 ट्वीट पोस्ट किए (95% कॉन्फिडेंस इंटरवल [CI]: 8.3 से 9.0), जबकि राहुल गांधी ने 1.7 ट्वीट्स (95% CI: 1.6 से 1.8) पोस्ट किए. कॉन्फिडेंस इंटरवल यानी विश्वास अंतराल  इस ट्वीट्स से हुए जुड़ाव यानी एंगेजमेंट (रीट्वीट, लाइक और कोट्स का योग) के संदर्भ में, राहुल गांधी के एक ट्वीट ने औसतन 57,618 जुड़ाव (95% CI: 55,694 से 59,543) पैदा किए, जबकि नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने औसतन 33,801 एंगेजमेंट (95% C। : 33,305 से 34,298) पैदा की.

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच का अंतर सांख्यिकीय रूप से P -value <0.001 के आंकड़े पर महत्वपूर्ण था. इसी तरह, रीट्वीट की औसत संख्या को देखते हुए, लेखकों ने पाया कि राहुल गांधी के एक ट्वीट में 10,034 रीट्वीट (95% CI: 9,722 से 10,345) थे, जबकि नरेंद्र मोदी के लिए, यह 4,554 रीट्वीट (95% CI: 4,492 से 4,616) था. इस बीच, लाइक के संदर्भ में, राहुल गांधी के एक ट्वीट ने औसतन 43,455 लाइक्स (95% CI: 41,984 से 44,927) पैदा किए, जबकि नरेंद्र मोदी के लिए, यह 28,095 लाइक्स (95% CI: 27,677 से 28,514) रहा. रीट्वीट और लाइक के मामले में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का अंतर सांख्यिकीय रूप से P-value <0.001 पर महत्वपूर्ण था. ट्वीट्स की भावनाओं के संदर्भ में, VADER (वादेर) कंपाउंड स्कोर - जो -1 (सबसे नकारात्मक भावना) से लेकर +1 (सबसे सकारात्मक भावना) तक है - यह दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट्स की औसत भावना 0.54 (95% CI: 0.53 से 0.55), जबकि राहुल गांधी के लिए यह 0.09 (95% CI: 0.07 से 0.12) था. अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण था, जहां P का मान <0.001 था. चित्र 1: नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी द्वारा अंग्रेज़ी में किए गए ट्वीट्स के सेंटीमेंट स्कोर का वितरण

सेंटीमेंट स्कोर: नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी

तालिका 1, और आंकड़े 2-ए और 2-बी दोनों नेताओं, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के प्रतिदिन ट्वीट्स की औसत संख्या और औसत सेंटीमेंट स्कोर का विवरण पेश करती है.

तालिका-1 का सारांश

नोट: * सेंटीमेंट स्कोर VADER (वादेर) (वैलेंस अवेयर डिक्शनरी फॉर सेंटीमेंट रीजनिंग) पर आधारित है. यह स्कोर –1 से +1 तक होता है, जहां नकारात्मक स्कोर नकारात्मक भावनाओं को दर्शाता है और एक सकारात्मक स्कोर एक सकारात्मक भावना को दर्शाता है. 95% विश्वास अंतराल (confidence intervals) कोष्ठकों में हैं.

चित्र 2-ए: नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी द्वारा दैनिक ट्वीट की औसत संख्या (मार्च 2019 – नवंबर 2021)

चित्र 2-बी: नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के ट्वीट्स का औसत सेंटीमेंट स्कोर (मार्च 2019 – नवंबर 2021)

ट्विटर नीति में बदलाव का प्रभाव: नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी

इस अध्ययन से जुड़े परिणामों का अगला हिस्सा दोनों नेताओं के लिए कुल जुड़ाव या रीट्वीट, लाइक और कोट्स को ले कर अक्टूबर 2020 में ट्विटर द्वारा लागू की गई नई नीतियों के प्रभाव पर आधारित था. विश्लेषण में पाया गया कि नीति में बदलाव का रीट्वीट, लाइक और कोट्स के ज़रिए कुल एंगेजमेंट यानी जुड़ाव के लिए ट्वीट्स के विस्तार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. हालांकि, यह प्रभाव दोनों नेताओं के लिए एक समान नहीं था. राहुल गांधी के लिए, औसतन कुल जुड़ाव 65,123 (95% CI: 53,721 से 76,524) से घटकर 44,880 (95% CI: 37,104 से 52,656) हो गया, जो लगभग -31% (95% CI: -51% से – 3.0%) था. हालांकि, नरेंद्र मोदी के लिए, औसतन कुल जुड़ाव में गिरावट 36,354 (95% CI: 33,872 से 38,836) से 31,533 (95% CI: 28,702 से 34,364) रही जो लगभग -13% की गिरावट (95% CI: – 25% से 1.3%) थी. जो पारंपरिक रूप से 95% के विश्वास अंतराल (कॉन्फिडेंस इंटरवल) के साथ सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन था.

तालिका 2: ट्विटर नीति में बदलाव का नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के ट्वीट्स के कुल जुड़ाव, रीट्वीट, लाइक और कोट्स पर प्रभाव

चित्र 3-ए: ट्विटर की नीति में बदलाव से पहले और उसके बाद ट्वीट्स के कुल जुड़ाव, रीट्वीट, लाइक, और कोट्स का लेखाजोखा

चित्र 3-बी: ट्विटर की नीति में बदलाव से पहले और उसके बाद ट्वीट्स के कुल जुड़ाव, रीट्वीट, लाइक, और कोट्स का लेखाजोखा

ट्विटर की नीति में बदलाव के बाद ट्वीट्स का प्रसार

ट्वीट्स के सेंटीमेंट स्कोर से जुड़ा अगला नतीजा है VADER (वादेर) का कंपाउंड स्कोर है, जिसमें दोनों नेताओं के लिए हुए रीट्वीट, लाइक और उद्धरणों के ज़रिए ट्वीट का प्रसार शामिल है. नरेंद्र मोदी के लिए, नीति में बदलाव से पहले, नकारात्मक भावना से जुड़ा ट्वीट (-0.7 का वेडर कंपाउंड स्कोर) औसतन 6,010 रीट्वीट (95% CI: 5,352 से 6,668) पैदा करता था, जबकि सकारात्मक भावना वाला एक ट्वीट (0.7 का VADER (वादेर) कंपाउंड स्कोर) 4,981 रीट्वीट (95% सीआई: 4,584 से 5,378) पैदा करता था. वहीं राहुल गांधी के लिए, नीति में बदलाव से पहले, नकारात्मक भावना के साथ एक ट्वीट (-0.7 का वेडर कंपाउंड स्कोर) औसतन 11,829 रीट्वीट (95% CI: 9,232 से 14,427) पैदा हुए, जबकि सकारात्मक भावना वाले एक ट्वीट ने (VADER (वादेर) कंपाउंड स्कोर ऑफ़ -0.7) 9,492 रीट्वीट पैदा किए (95% सीआई: 7,418 से 11,566).

ट्विटर की नीति में बदलाव के कारण, राहुल गांधी के लिए, नकारात्मक भावना वाले ट्वीट के लिए औसत रीट्वीट की संख्या में गिरावट आई थी. इसके उलट, सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स में गिरावट आई, लेकिन पारंपरिक 95% विश्वास अंतराल पर यह सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन था.

विश्लेषण में यह भी पाया गया कि ट्विटर की नीति में बदलाव के कारण, राहुल गांधी के लिए, नकारात्मक भावना वाले ट्वीट के लिए औसत रीट्वीट की संख्या में गिरावट आई थी. इसके उलट, सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स में गिरावट आई, लेकिन पारंपरिक 95% विश्वास अंतराल पर यह सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन था. हालांकि, नकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स के लिए गिरावट सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स की तुलना में अधिक थी: -42% (95% CI: -64% से -6%) बनाम -31% (95% CI: -57% से 12%). जबकि नरेंद्र मोदी के लिए, नकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स के लिए रीट्वीट में गिरावट सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स की तुलना में बहुत कम थी; -3% (95% सीआई: -23% से 21%) बनाम -24% (95% सीआई: -36% से -9%).

तालिका 3: VADER स्कोर के अनुसार नीति में बदलाव से पहले और उसके बाद ट्वीट के साथ कुल जुड़ाव, रीट्वीट, लाइक और उद्धरण सहित प्रतिशत अंतर

नरेंद्र मोदी

राहुल गांधी

6. विमर्श और नतीजे

राजनीतिक नेता अपनी राय व्यक्त करने, नीतियां प्रस्तावित करने और विरोधी विचारों को व्यक्त करने के लिए बेहद सावधानीपूर्ण तरीके से शब्दों का चुनाव करते हैं. इन शब्दों का विश्लेषण करने में राजनीतिक वैज्ञानिकों की हमेशा से रुचि रही है. मौजूदा डिजिटल युग में, राजनीतिक नेता पारंपरिक माध्यमों जैसे कि रेडियो, टेलीविजन या समाचार पत्रों से ट्विटर और फेसबुक जैसे नए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित हो रहे हैं, जो अक्सर जनता तक सीधी पहुंच प्रदान कर सकते हैं. पारंपरिक मीडिया के उलट – जहां अंतर्निहित रूप से स्पष्ट आचार संहिता के साथ-साथ अभिव्यक्ति को लेकर स्वतंत्रता व नियंत्रण का संतुलन रहता है वहीं डिजिटल युग में सोशल मीडिया से जुड़े माध्यमों में इस तरह का कोई संतुलन मौजूद नहीं है.कुल मिलाकर हम यह मान सकते हैं कि हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जहां हर चीज़ की अनुमति है.

चुने गए अधिकारी मौजूदा दौर के इस बदलाव और बहाव से परिचित हैं और तेज़ी से इन नए माध्यमों और उनसे जुड़ी संस्कृतियों को अपना रहे हैं. हालांकि, इन माध्यमों, जिन्हें अक्सर माइक्रो-ब्लॉगिंग साइटों के रूप में संदर्भित किया जाता है, को उन जटिल और विरोधाभासी मुद्दों पर सार्थक चर्चा के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है, जो लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं. इसके बजाय, ये माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट आम तौर पर उन मामलों  पर बातचीत के लिए बेहतर विकल्प के रूप में उभरे हैं जो उन उपयोगकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करते हैं जो मुख्य रूप से मनोरंजन के लिए इन माध्यमों का रुख करते हैं.[16]

यदि किसी राजनेता का उद्देश्य ध्यान आकर्षित करना है, तो इन परिणामों से संकेत मिलता है कि नकारात्मक भावना वाले ट्वीट सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स की तुलना में अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं. दूसरी महत्वपूर्ण खोज यह है कि ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म, निजी उद्यम होने के नाते, अपनी नीतियों को बदलने के लिए स्वतंत्र हैं और इस बात के लिए भी कि वह किस तरह संदेशों का प्रचार करते हैं.

इसलिए इन डिजिटल माध्यमों पर राजनेताओं के व्यवहार का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण हो जाता है. इस पेपर ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट, ट्विटर पर दो भारतीय राजनेताओं का व्यवस्थित और व्यापक विश्लेषण करके इसका प्रयास किया है. यह नेता हैं – नरेंद्र मोदी, जो भारत के प्रधान मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं और राहुल गांधी, जो संसद सदस्य और प्रमुख विपक्षी दल व भारत के सबसे पुराना राजनीतिक दल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वास्तविक नेता हैं. इस पेपर ने भावनात्मक विश्लेषण करने के लिए VADER (वादेर) (वैलेंस अवेयर डिक्शनरी फॉर सेंटीमेंट रीज़निंग) का इस्तेमाल किया,[17] और पाया कि सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स की तुलना में नकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स के अधिक रीट्वीट होने की संभावना है. यदि किसी राजनेता का उद्देश्य ध्यान आकर्षित करना है, तो इन परिणामों से संकेत मिलता है कि नकारात्मक भावना वाले ट्वीट सकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स की तुलना में अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं. दूसरी महत्वपूर्ण खोज यह है कि ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म, निजी उद्यम होने के नाते, अपनी नीतियों को बदलने के लिए स्वतंत्र हैं और इस बात के लिए भी कि वह किस तरह संदेशों का प्रचार करते हैं. उदाहरण के लिए, जैसा कि इस विश्लेषण में पाया गया है कि ट्विटर द्वारा ट्वीट्स के प्रसार से पहले इससे जुड़ी नीतियों में बदलाव का रीट्वीट की संख्या पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा. कई मामलों में इसके चलते रीट्वीट में अधिकाधिक गिरावट दर्ज की गई. नकारात्मक भावना वाले ट्वीट्स के लिए यह प्रभाव और भी अधिक था.

हालांकि, इसके साथ ही यह अध्ययन और इसके नतीजे स्वतंत्र समाजों के लिए एक महत्वपूर्ण सावल उठाते हैं कि: राजनीतिक अभिव्यक्तियों के प्रसार को कौन नियंत्रित करे – क्या इसे निजी उद्यमों के तौर-तरीकों पर छोड़ दिया जाना चाहिए जो सार्वजनिक निरीक्षण से पूरी तरह दूर हैं यहा फिर उन्हें रेगुलेशन यानी विनियमन के दायरे में लाया जाना चाहिए, जहां एक स्पष्ट आचार संहिता स्थापित की गई है? जैसे-जैसे सोशल मीडिया सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, ये मुद्दे इन माध्यमों और राजनीतिक प्रवचन के आसपास की बहस का केंद्र बनते जाएंगे.


डॉ शमिका रवि ओआरएफ़ में वाइस प्रेसिडेंट हैं. मुदित कपूर भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.


Endnotes

[1] About Twitter | Our company purpose, principles, leadership“.

[2]Ronald Diebert, “The Road to Digital Unfreedom: Three Painful Truths About Social Media,” J. Democr 30, no. 1 (2019): 25–39.

[3] S. Vosoughi, D. Roy and S. Aral, “The spread of true and false news online,” Science 359, no. 6380 (2018): 1146–151.

[4] C.J. Hutto, E. Gilbert, “VADER: A Parsimonious Rule-based Model for Sentiment Analysis of Social Media Text,” Proceedings of the Eighth International AAAI Conference on Weblogs and Social Media 10, no. 1 (2014).

[5] Additional steps we’re taking ahead of the 2020 US Election”.

[6] JustAnotherArchivist, snscrape, 2022.

[7]  J. Wilkerson and A. Casas, “Large-Scale Computerized Text Analysis in Political Science: Opportunities and Challenges,” Annu. Rev. Polit. Sci. 20, no. 1 (2017): 529–44.

[8] Linguistic Inquiry and Word Count.

[9] Inquirer Home Page.

[10]  L. Zhang, S. Wang and B. Liu, “Deep learning for sentiment analysis: A survey,” Wiley Interdiscip. Rev. Data Min. Knowl. Discov. 8, no. 4 (2018).

[11] Center for the Study of Emotion and Attention.

[12] Sentic.Net.

[13] C.J. Hutto and E. Gilbert, “VADER: A Parsimonious Rule-based Model for Sentiment Analysis of Social Media Text.”

[14] A. Cameron and P. Trivedi, ”Microeconometrics Using Stata,” undefined, 2009.

[15] Stata | StataCorp LLC.

[16] R. Dolan, J. Conduit, J. Fahy, and S. Goodman, “Social media engagement behaviour: A uses and gratifications perspective,” Journal of Strategic Marketing 24, no. 3 (2015): 261–77.

[17] C.J. Hutto, E. Gilbert, “VADER: A Parsimonious Rule-based Model for Sentiment Analysis of Social Media Text.”

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