Issue BriefsPublished on Jun 14, 2023
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संकट के दौरान बहुपक्षीय समूहों के बीच समन्वय के माध्यम से कर्ज़ में कमी लाना

वर्तमान में चल रहे वैश्विक जलवायु संकट ने देशों के बीच असमानताओं को गहरा कर दिया है, जिसकी वज़ह से दुनिया कम असमानता के SDG 10 को प्राप्त करने से दूर जा रही है. उच्च आय वाले, वैश्विक उत्तर देशों के ग्रीन हाउस  गैसों के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाएं विकराल होती जा रही हैं. इसकी वज़ह से कम आय वाले वैश्विक दक्षिण देशों को ऋण संकट का सामना करना पड़ रहा है. वैश्विक दक्षिण के देशों को जलवायु संकट के कारण उत्पन्न अपने दुर्लभ संसाधनों और ऋण अदायगी संकट के साथ प्रणालीगत असमानताओं से जूझना पड़ रहा है. G20 बहुपक्षीय समूहों के बीच समन्वय की एक व्यवस्थित श्रृंखला के रूप में सामूहिक कार्रवाई कर सकता है. ताकि संकट के समय ऋण संकट की वज़ह से होने वाली असमानताओं की समग्र समझ के लिए ज्ञान-साझाकरण को बढ़ाया जा सके.

Attribution:

एट्रीब्यूशन : तान्या केसवानी, ‘‘रिड्यूसिंग  डेट ड्यूरिंग क्राइसिस थ्रू को-ऑर्डिनेशन बिटवीन मल्टीलेटरल  ग्रुपिंग ,’’ T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.

टास्क फोर्स 7: टूवर्ड् रिफॉर्म् मल्टीलेटरलिज्म : ट्रान्सफॉर्मिंग ग्लोबल इन्स्टीट्यूशन्स एंड फ्रेमवर्कस्


1. चुनौती

समकालीन इतिहास में वर्ष 2022 में दुनिया ने जलवायु-संबंधी ऐसी 10 सबसे बड़ी आपदाएं देखी जो उसे काफ़ी महंगी साबित हुई. इनमें से प्रत्येक के परिणामस्वरूप 3 बिलियन US$ से अधिक का आर्थिक नुक़सान हुआ.[1] जब कोई देश पहले से ही कर्ज़ में डूबा हुआ है और उस पर उसे जलवायु संकट का सामना करना पड़ता है तो यह स्थिति उस देश के दुर्लभ संसाधनों पर और भी अधिक दबाव डालने वाली बन जाती है. उदाहरण के लिए, जून से अक्टूबर 2022 के बीच लगातार बाढ़ झेलने की वज़ह से पाकिस्तान को जो 5.6 बिलियन US$ का नुक़सान हुआ, वह उस वर्ष पाकिस्तान के GDP का 2.2 प्रतिशत था.[2] आपदाओं के वित्तीय नतीजों को भुगतने के अलावा, इन देशों को कर्ज़ अदायगी के बारे में भी चिंता पड़ती है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, “28 फरवरी, 2023 तक और हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर, नौ देश ऋण संकट में हैं, 27 देश उच्च जोख़िम में हैं और 26 देश मध्यम जोख़िम में हैं.”[3] ये सभी देश ग्लोबल साउथ में हैं.

ये देश “जलवायु संकट के प्रभाव को दूर करने की तुलना में ऋण अदायगी पर पांच गुना अधिक ख़र्च कर रहे हैं.”[4] विश्व बैंक के शोध से यह भी पता चलता है कि “निम्न आय वाले 69 देशों द्वारा इस वर्ष (2022) में सार्वजनिक ऋण पर किया गया भुगतान कुल 62 बिलियन $ से अधिक होगा. यह 2021 की तुलना में 35% की वृद्धि है” और “ये देश अपने निर्यात राजस्व का दसवां हिस्सा सार्वजनिक विदेशी ऋण की अदायगी पर ख़र्च कर रहे है. 2000 के बाद से ऋण अदायगी पर होने वाले ख़र्च का ऐसा अनुपात नहीं देखा गया है.”[5] इसका श्रेय किसी भी संकट की परवाह किए बगैर उच्च आय वाले देशों की ओर से ऋण अदायगी को लेकर की जा रही मांग को दिया जा सकता है.[6] यही उच्च आय वाले देश जलवायु वित्त भी अनुदान के बजाय ऋण के रूप में प्रदान करते हैं, जो संबंधित देश के ऋण को और भी बढ़ा देता है.[7] वर्तमान  में इस तरह के ऋण संकट को हल करने की दिशा में सामूहिक कार्रवाई की मौजूदा कमी, वैश्विक समुदाय को देशों के भीतर और देशों के बीच कम असमानता के SDG 10 के लक्ष्य को प्राप्त करने से दूर ले जा रही है.

इसके लिए सहयोग और जुड़ाव अनिवार्य हो गया है. एक ओर जहां दुनिया अधिक परस्पर जुड़ी हुई है, वहीं विभिन्न संस्थाएं एकाकी अंदाज में काम करना जारी रखे हुए हैं. इसी वज़ह से बहुपक्षीय समूहों के बीच नीतिगत समन्वय में अंतर के कारण एक ज्ञान रिक्तता पैदा हुई है. इस रिक्तता ने उच्च आय वाले देशों को संकट के दौरान निम्न आय वाले देशों को ऋण संकट में लाने में उनकी भूमिका की सीमा से अनजान बनाए रखा है. फिर उनकी भूमिका चाहे अत्यधिक ग्रीन हाउस  गैसों के उत्सर्जन के रूप में हो, जो जलवायु संकट का कारण बना है,[8] या फिर संकट के दौरान कर्ज़ चुकाने की मांग अथवा उपनिवेशवाद के नकारात्मक प्रभावों के कारण उपजी व्यवस्थित आर्थिक असमानताओं की विरासत हो.[9] ये सभी संकट केवल जलवायु संकट के दौरान और बढ़े हैं.

ऋण संकट का सामना करने वाले वैश्विक दक्षिण के देशों की समस्या को वैश्विक समस्या माना जाना चाहिए, क्योंकि उनके सामने मौजूद संकट के कारण दुनिया भर के देशों को डोमिनो इफेक्ट यानी व्यापक प्रभाव का सामना करना पड़ेगा. UN के आंकड़ों के अनुसार, ऋण संकट के बड़े पैमाने पर आर्थिक नतीजों ने लोगों को अपने देशों से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 2021 के मध्य में रिकॉर्ड 24.5 मिलियन शरणार्थियों का उच्च स्तर देखा गया है.[10]

चित्र  बहुपक्षीय समूहों द्वारा उल्लिखित असमानताओं को प्रस्तुत करता है जो सभी संकट के दौरान कम आय वाले देशों में ऋण संकट की ओर इशारा करते हैं.

 

चित्र 1: संकट के दौरान ऋण

स्रोत: निम्नलिखित से मिली जानकारी के आधार पर लेखक का चित्रण: IMF,[11] विश्व बैंक,[12] UNEP,[13] WHO,[14] UNFCCC,[15] UNCTAD,[16] OHCHR[17]

विभिन्न बहुपक्षीय समूहों ने नीतिगत शोध किए हैं जो इस बात को रेखांकित करते है कि कैसे जलवायु संकट ने प्रणालीगत असमानताओं को बढ़ाया है. इसके बावजूद ये बहुपक्षीय समूह अपनी नीतियों का समन्वय करने और इन असमानताओं को ऋण संकट से जोड़ने में विफ़ल साबित हो रहे हैं. इस विफ़लता की वज़ह से निम्न परिणाम होते है:

  1. ऋण अदायगी और ऋण के रूप में जलवायु वित्तपोषण: उच्च आय वाले देश जब जलवायु संकट के दौरान ऋण अदायगी की मांग करते हुए कम आय वाले देशों को जलवायु वित्तपोषण अनुदान के बजाय ऋण के रूप में देने की पेशकश करते हैं, तो इसे ऋण संकट के प्रति सामूहिक ज़िम्मेदारी में कमी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. डायग्राम में उल्लिखित प्रत्येक बहुपक्षीय समूह – UNEP, WHO, UNFCCC, UNCTAD and OHCHR – ने अपने फोकस क्षेत्र के अनुसार जलवायु परिवर्तन के साथ असमानताओं के बिगड़ने की व्याख्या की है. इसमें ऋण संकट के प्रति उच्च आय वाले देशों की निम्न आय वाले देशों की सहायता करने के लिए नीति समन्वय की कमी और उच्च आय वाले देशों के समग्र समावेशन और उनकी भागीदारी को प्रस्तुत करने में ये बहुपक्षीय समूह विफ़ल साबित हुए है.
  2. दीर्घावधि के बजाय अल्पकालिक नीति समाधान: ऋण संकट को एकाकी स्वरूप में देखने या इसे बंद कोठरी का विषय मान लेने से इसमें योगदान करने वाले परस्पर जुड़े कारकों की सीमा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. इस दृष्टिकोण को अपनाए जाने के कारण ही इस समस्या का हल निकालने के लिए अल्पकालिक समाधान ख़ोजा गया, जो प्रभावी रहा है. इसी वज़ह से उदाहरण के लिए G20 की डेट सर्विस सस्पेंशन इनिशिएटिव (DSSI),[18] और COP27 के लॉस एंड डैमेज फंड (LDF) के चलते कुछ महत्वपूर्ण सहयोगात्मक प्रगति देखी गई है,[19] लेकिन ये नीतियां UNEP और UNFCCC द्वारा उल्लिखित असमानताओं के केवल एक हिस्से को संबोधित करती हैं. यदि कोई ऐसा तंत्र होता जो अन्य बहुपक्षीय समूहों से निष्कर्षों को साझा करता, तो यह एक बड़ी तस्वीर पेश करता. और इस तस्वीर में निम्न-आय वाले देशों में ऋण संकट के लिए असमान सामाजिक-आर्थिक निर्माण के OHCHR के विश्लेषण की रूपरेखा, WHO के जलवायु संकट के कारण उपजने वाले आर्थिक प्रभावों का स्वास्थ्य पर होने वाले असर का विश्लेषण, अस्थिर ऋण अदायगी पर UNCTAD का शोध, और उपरोक्त सभी में शामिल खिलाड़ियों की जानकारी दिखाई देती. इन दीर्घकालिक असमानताओं पर एक अधिक समग्र तस्वीर और परिप्रेक्ष्य ऋण संकट को कम करने की दिशा में दीर्घकालिक नीति निर्माण में सहायक साबित हो सकता है.
  3. अनुमान से नीचे गिरता जलवायु वित्तपोषण: संकट के दौरान कम आय वाले देशों को दिया जाने वाला मौजूदा जलवायु वित्त पोषण , जलवायु परिवर्तन को कम करने और संकट के दौरान ऋण संकट के लिए आवश्यक राशि से कम हो जाता है.[20] जलवायु वित्त पर COP का न्यू कलेक्टिव क्वॉलिफाइड गोल ऑन क्लायमेट फाइनांस (NCQG) अन्य बहुपक्षीय समूहों द्वारा प्रलेखित असमानताओं पर विचार करने में विफ़लता के कारण ऋण संकट को कम करने के लिए आवश्यक राशि की गलत गणना करने का जोख़िम उठाता है.

2. G20 की भूमिका

भारत की प्रेसीडेंसी के तहत G20 की थीम, ‘वन अर्थ. वन फैमिली. वन फ्यूचर’ सामयिक और दूरंदेशी है, जो ऋण और जलवायु संकट के बीच महत्वपूर्ण कड़ी को मानना जारी रखने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, क्योंकि ये निर्णय निर्माताओं द्वारा बात अभी तक पर्याप्त कार्रवाई में परिलक्षित  नहीं हुई है.[21] बहुपक्षीय समूहों के बीच समन्वय के माध्यम से संकट के दौरान ऋण को कम करने पर चर्चा करने के लिए G20 सही मंच है.

G20 की ज़िम्मेदारी

  1. IMF और विश्व बैंक ने वर्तमान संप्रभु ऋण संरचना में बदलाव लाने के लिए G20 पर भरोसा किया है.[22] इन दोनों ही संस्थाओं ने यह स्वीकारा है कि मौजूदा प्रणाली देशों के बीच असमानताओं को बढ़ाती है. G20 ने 2020 में DSSI और कॉमन फ्रेमवर्क के साथ इस दिशा में कदम बढ़ाया है, और G20 ही इस क्षेत्र में बदलाव लाने में एकमात्र सक्षम मंच है.
  2. G20 “दुनिया की आबादी का दो-तिहाई, वैश्विक GDP का 85% और वैश्विक व्यापार का 75% से अधिक” का प्रतिनिधित्व करने वाला मंच है.[23] इस मंच में शामिल अर्थव्यवस्थाएं “75% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन” में भी योगदान करती हैं.[24] इसके अलावा, G20 लेनदारों के साथ-साथ पूर्व उपनिवेशवादियों से बना है,  जिन्होंने निम्न-आय वाले देशों में ऋण को बढ़ाने में योगदान दिया है.

G20 की विविधता

1.       G20 ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ दोनों से आने वाली विविध अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है, और इसी वज़ह से उसे दोनों के बीच बढ़ती आर्थिक खाई को पाटकर उन्हें ‘वन फैमिली’ बनाते हुए SDG 10 प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए.

2.      G20 को उन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से भी समर्थन प्राप्त है जिन्हें वह प्रासंगिक G20 बैठकों में आमंत्रित करता है और जो नीति निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा हैं.[25] विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने वर्तमान में समान रूप से ऋण संरचना को मज़बूत करने की इच्छा जताई है. इस वज़ह से  G20 को जलवायु संकट के दौरान दूरंदेशी एजेंडे पर चर्चा करने के लिए निर्णय निर्माताओं के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अपने ढांचे का उपयोग करते हुए बातचीत करनी चाहिए. ऐसा होने पर ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को ‘वन फ्यूचर’ की दिशा में मज़बूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास की ओर ले जाना G20 के लिए संभव होगा. यह G20 के लिए ऐसा करने का एक बेहतरीन मौका है.

3.       G20 अध्यक्षता का रोटेशन विचारों की विविधता और समान प्रतिनिधित्व संभव बनाता है. पहली बार, G20 का नेतृत्व तीन उभरती अर्थव्यवस्थाओं- इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील की तिकड़ी द्वारा साझा किया गया है- जो अक्सर उपेक्षित वैश्विक दक्षिण के देशों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले ऋण जैसे मामलों पर चर्चा करने के लिए एक अच्छा अवसर है.

3. G20 के लिए सिफ़ारिशें

यह आलेख बताता है कि संकट के स्थिति में ऋण संकट को हल करने की दिशा में दीर्घकालिक समाधान स्थापित करने के लिए बहुपक्षीय समूहों के बीच नीतिगत समन्वय महत्वपूर्ण है. इस दृष्टिकोण का उद्देश्य इसमें योगदान देने वाली आर्थिक असमानताओं की एक समग्र तस्वीर प्रदान करके ऋण संकट के प्रति सामूहिक ज़िम्मेदारी स्थापित करना है.

नीतिगत अनुशंसा: समन्वय पहल द्वारा ऋण समाधान (DRCI)

यह आलेख प्रस्ताव करता है कि G20 को बहुपक्षीय समूहों के बीच सूचना साझा करने के लिए एक खुला मंच स्थापित करना चाहिए, जिसे डेट रिसॉल्यूशन  बाय को-ऑर्डिनेशन इनिशिएटिव यानी समन्वय पहल द्वारा ऋण समाधान (DRCI) कहा जाता है. इसका उद्देश्य बहुपक्षीय समूहों के लिए उन आर्थिक असमानताओं के गहन विश्लेषण को साझा करने का होना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हुई है  या उसके कारण बढ़ी हैं. यह ऋण संकट के लिए अग्रणी कारकों की परस्पर संबद्धता और परिमाण की अधिक केंद्रित समझ प्रदान करेगा. इस पहल में बहुपक्षीय समूहों के प्रतिनिधि शामिल होंगे जो किसी जलवायु आपदा के दौरान प्रभावित देश में ऋण के कई पहलुओं से जुड़े ज्ञान को साझा करेंगे. इसके साथ ही मामले-दर-मामले में ऋण रद्द करने या ऋण पुनर्गठन और सामूहिक रूप से अनुदान-आधारित जलवायु वित्त प्रदान करने के लिए ज़िम्मेदार खिलाड़ियों पर भी निर्णय लेंगे.

इसे कम आय वाले वैश्विक दक्षिण देश में जलवायु संबंधी आपदा के दौरान लागू किया जाएगा. ये दो प्रवर्तन तंत्र हैं, जिन्हें DRCI को गतिमान करना चाहिए:

  1. विवाद समाधान समझौता: जलवायु संबंधी आपदा के दौरान मामले के आधार पर, बहुपक्षीय समूहों के साथ आवश्यक हितधारक ऋण रद्द करने या ऋण पुनर्गठन पर निर्णय लेते हैं. इसी प्रकार अनुदान-आधारित जलवायु वित्त की संचित लागत, जिसे ज़िम्मेदार अभिनेताओं के साथ साझा किया जाना चाहिए पर भी निर्णय लेते हैं.  इसमें कुछ हद तक समझौते में लचीलापन शामिल होगा.
  2. पारदर्शिता: ऋणग्रस्त देशों को जलवायु संकट के दौरान एक देश द्वारा ऋण रद्द करने की अनमुति और ऋण पुनर्गठन होने के मामले में दो देशों द्वारा ऋण रद्द करने की अनुमति दी जा सकती है. लेनदार से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वह एक ही देश को पांच वर्षों में एक से अधिक बार ऋण रद्दीकरण सुविधा उपलब्ध करवाए. इसी प्रकार ऐसे देश को पांच वर्षों में दो बार से अधिक ऋण पुनर्गठन सुविधा नहीं दी जाएगी. एक बार जब सभी हितधारक किसी निर्णय पर सहमत हो जाते हैं, तो समझौते को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.

इन क्षेत्रों में अनुसंधान, डेटा और नीतियों में योगदान देने वाले बहुपक्षीय समूहों को रेखांकित करते हुए सहयोग के लिए निम्नलिखित दिशा-निर्देश सुझाए गए हैं. और यह भी सुझाया गया है कि यह जानकारी कैसे सामूहिक ज़िम्मेदारी के माध्यम से संकट के दौरान ऋण संकट को हल करने की दिशा में समाहित की जा सकती है.

  1. जलवायु संकट के दौरान असमानता में योगदान देने वाले सामाजिकआर्थिक कारकों पर ध्यान देना
IMF World Bank UNCTAD
फरवरी 2023 में, IMF के प्रबंध निदेशक ने कहा कि, संकट से विकट हो रही “विकासशील और निम्न-आय वाले देशों में बढ़ती ऋण संबंधी अतिसंवेदनशीलता को देखते हुए,’’ IMF “ऋण संरचना को मज़बूत करने और ऋण समाधान की गति और प्रभावशीलता में सुधार करने के प्रयासों का समर्थन करता है.” जुलाई 2020 में, प्रभावी ऋण समाधान की दिशा में उठाए जा रहे कदमों पर बोलते हुए, विश्व बैंक ग्रुप प्रेसिडेंट ने कहा कि “अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सिस्टम में मौजूद इस असंतुलन को पहचानना चाहिए,” जो लेनदारों के अधिकारों को देनदार देशों से आगे रखने की अनुमति देता है. UNCTAD ने जलवायु संबंधी आपदाओं के दौरान संभावित ऋण संकट से बचने के लिए बहुपक्षीय समर्थन और प्रभावी संप्रभु ऋण पुनर्गठन की ज़रूरत पर बल दिया है. UNCTAD के शोध से पता चलता है कि जलवायु संबंधी आपदाओं ने ” SDG की प्रगति को ख़तरे में डाल दिया है, क्योंकि बाहरी ऋण का बढ़ता बोझ इस ऋण की सर्विसिंग लागत में बदल जाता है.”
 

UNCTAD ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ऋण राहत के लिए असाधारण उपायों की समाप्ति को ऋण संकट के कारण के रूप में चिह्नित किया है.

 

हितधारक: यह डेटा उपनिवेशवाद की नकारात्मक सामाजिक-आर्थिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट करता है कि कैसे पूर्व उपनिवेशों की वर्तमान ख़राब सामाजिक-आर्थिक स्थिति में यह योगदान देकर संकट के दौरान उनके ऋण संबंधी स्थिति को और भी ख़राब कर देता है. चूंकि उपनिवेशवाद की विरासत भिन्न होती है, अत: पूर्व-उपनिवेशवादियों द्वारा आर्थिक क्षति की सीमा भी भिन्न होती है. अत: इसी बात को ध्यान में रखकर ऋण रद्द करने या ऋण पुनर्गठन पर ऋण देने वालों को सहमत होना चाहिए. अधिक क्षति वाले देशों के मामलों में, लेनदारों को प्रभावित देश में आवश्यक अनुदान-आधारित जलवायु वित्त मुहैया करवाने के लिए उचित राशि का भी योगदान करने पर विचार करना चाहिए.

  1. असमानता को बढ़ाने वाले जलवायु संकट के दौरान अस्थिर ऋण अदायगी पर ध्यान देकर उसका हल निकालना
UNEP UNFCCC
UNEP की वार्षिक उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022 ने G20 देशों को GHG उत्सर्जन में 75% योगदान करने वाला माना है. इसी रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान करने वाले अफ्रीकी देश ही जलवायु के प्रभाव को झेलने के लिए सबसे अतिसंवेदनशील हैं. UNFCCC की दो नीतिगत पहलों LDF और NCQG, को क्रमशः COP 26 और COP27 में स्थापित किया गया था. इन पहलों ने निम्न-आय वाले देशों में जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देकर उनका हल करने और उनके प्रभाव को कम करने में वित्तीय अंतर पर प्रकाश डाला है. 

हितधारक: यह डेटा विकासशील और कम आय वाले देशों में बढ़ती ऋण अतिसंवेदनशीलता की दिशा में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका पर प्रकाश डालता है. यह IMF, विश्व बैंक और UNCTAD के बीच पॉलिसी फोकस में समानता पर भी प्रकाश डालता है, जिससे साफ़ हो जाता है कि नीति समन्वय की प्रक्रिया के माध्यम से सकारात्मकताओं को हासिल किया जा सकता है. ये बहुपक्षीय समूह समन्वय के साथ काम करते हुए इस बात की पैरवी कर सकते हैं कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को लेनदार ऋण पुनर्गठन के तहत एक विकल्प के रूप में ऋण राहत पर अपनी समय सीमा की समाप्ति को हटा देना चाहिए.

  1. उन असमानताओं पर ध्यान देकर उनका हल निकालना जिनकी वज़ह से अतिसंवेदनशील देश जलवायु संकट का शिकार हुए हैं
UNEP UNFCCC
UNEP की वार्षिक उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022 ने G20 देशों को GHG उत्सर्जन में 75% योगदान करने वाला माना है. इसी रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान करने वाले अफ्रीकी देश ही जलवायु के प्रभाव को झेलने के लिए सबसे अतिसंवेदनशील हैं. UNFCCC की दो नीतिगत पहलों LDF और NCQG, को क्रमशः COP 26 और COP27 में स्थापित किया गया था. इन पहलों ने निम्न-आय वाले देशों में जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देकर उनका हल करने और उनके प्रभाव को कम करने में वित्तीय अंतर पर प्रकाश डाला है. 

हितधारक: ये दो बहुपक्षीय समूह जलवायु संकट के बीच प्रभावी ऋण समाधान ख़ोजने की दिशा में एक फ्रेमवर्क प्रदान करते हैं. UNEP रिपोर्ट का इस्तेमाल सालाना GHG के शीर्ष 10 उत्सर्जकों की शिनाख़्त करने के लिए किया जा सकता है. इस सूची में 1-10 में स्थान विशेष पर खड़े जलवायु संकट में उत्सर्जकों के प्रत्यक्ष योगदान को देखकर उन्हें या तो ऋण भुगतान रद्द करने या जलवायु संकट के दौरान ऋण का सामना करने वाले प्रभावित देश के लिए ऋण पुनर्गठन पर विचार करना चाहिए. यह प्रणाली देशों को उनके उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करेगी. इसके अलावा, UNFCCC की LDF और NCQG नीतिगत पहलों को G20 DRCI की सिफ़ारिशों से लाभ होगा. क्योंकि यह देशों को उस समय अतिरिक्त जानकारी प्रदान करेगा, जब वे यह तय करते हैं कि किन देशों को इन क्यालमेट फंड  में कितना फाइनेंस  देना होगा.

  1. स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों पर जलवायु संकट के आर्थिक प्रभाव पर ध्यान देना
WHO Other Multilateral Organisations
WHO ने चेतावनी दी है कि “2030 तक जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को होने वाली प्रत्यक्ष क्षति लागत प्रति वर्ष 2-4 बिलियन US$ के बीच होने का अनुमान है.” इसके अतिरिक्त, “कमज़ोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे वाले क्षेत्र – ज़्यादातर विकासशील देशों में – इस संकट का सामना करने की तैयारी और उससे निपटने में सहायता के बगैर सबसे कम सक्षम साबित होंगे.” UNDP बुनियादी ढांचे और विकास योजनाओं पर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की लागत की गणना करने की ज़िम्मेदारी संभालता है.
जलवायु परिवर्तन पर WHO के रिस्पॉन्स में “जलवायु परिवर्तन से जुड़े उन ख़तरों के बारे में जानकारी का प्रसार करना शामिल है जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते है. इसी प्रकार कार्बन उत्सर्जन में कटौती करते हुए स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के अवसर प्रदान करने को लेकर जनजागृति करना” और “जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बीच की कड़ी पर वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करना,” शामिल है. FAO – घटते पारिस्थितिकी तंत्र और प्रभावित हो रही जैव विविधता के कारण जंगल की आग के आर्थिक प्रभाव का आकलन करता है.

जलवायु वित्त अनुदानों में शामिल किए जाने वाले कारक: जलवायु संकट के प्रभावों चाहे वह बिगड़ती सेहत हो, बुनियादी ढांचे को होने वाली क्षति हो, या फिर घटता हुआ पारिस्थितिकी तंत्र हो, की लागतों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. ये रिसर्च फील्ड  बहुपक्षीय संगठनों में उपलब्ध उन सूचनाओं की बहुतायत  को उजागर करते हैं, जिन्हें अनुदान-आधारित जलवायु वित्त के लिए यथार्थवादी लागतों को स्थापित करने के लिए टैप करने अथवा उसका  उपयोग करने की आवश्यकता है.

DRCI का संभावित प्रभाव

DRCI को यदि लागू किया जाता है, तो DRCI निम्नलिखित कारणों से जलवायु संकट के दौरान ऋण संकट को हल करने की दिशा में एक दीर्घकालिक और टिकाऊ नीतिगत समाधान हो सकता है:

व्यापक समस्या निवारण: नीति समन्वय के माध्यम से, DRCI असमानताओं के अतीत, वर्तमान और भविष्य के प्रभावों को शामिल करते हुए जलवायु संकट के दौरान ऋण संकट में योगदान देने वाली असमानताओं को पहचान कर उन्हें हल करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है.

लागत प्रभावी समाधान: DRCI संकटग्रस्त देश और जलवायु वित्त अनुदान प्रदान करने वाले देशों दोनों के लिए लागत प्रभावी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अनुदान-आधारित जलवायु वित्त लागत में प्रभावित देश के सामने मौजूद असमानताओं के सभी पहलुओं को शामिल किया जाएगा. इसके साथ ही उपरोक्त दिशानिर्देशों के माध्यम से पहचाने गए ज़िम्मेदार खिलाड़ियों के साथ अनुदान की लागत को साझा करने का सुझाव भी दिया जाएगा.

ऋण चक्र को तोड़ता हैऋण संकट का सामना कर रहे देशों के प्रति सामूहिक वित्तीय ज़िम्मेदारी एक सर्कुलर इकोनॉमी की दिशा में जाने की कार्रवाई को प्रोत्साहित करेगी. इसके चलते जलवायु आपदाएं समयबद्ध रूप से सीमित होंगी, जिसके परिणामस्वरूप ऋण संकट भी सीमित हो जाएगा.


(एट्रीब्यूशन : तान्या केसवानी, ‘‘रिड्यूसिंग  डेट ड्यूरिंग क्राइसिस थ्रू को-ऑर्डिनेशन बिटवीन मल्टीलेटरल  ग्रुपिंग ,’’ T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.)


Endnotes

[1] Olivia Rosanne, “10 costliest climate disasters of 2022. World Economic Forum. Last modified January 5, 2023.

[2] Mariam Atlaf, “Pakistan: Flood Damages and Economic Losses Over USD 30 billion Reconstruction Needs Over USD 16 billion – New Assessment World Bank Last modified October 28, 2022.

[3] IMF, “List of LIC DSAs for PRGT-Eligible Countries IMF. Last modified February 28, 2023.

[4]Tess Woolfenden, and Khushal, Sharma S, “Why climate justice must include debt justice in CAN International” .

[5] Shabtai Gold, “World Bank warns of ‘intensifying’ debt crisis for poorest nations devex. December 6, 2022.

[6] Waseem Ahmad, and Anaba Bernerd, “Colonialism and Debt.” Debt Justice.

[7] OECD, “Aggregate Trends of Climate Finance Provided and Mobilised by Developed Countries in 2013-2020. OECD Last Accessed March 30, 2023.

[8] UNEP, “What you need to know about COP27 Loss and Damage Fund. UNEP. Last Accessed March 28, 2023.

[9] OHCHR, “Acting High Commissioner: Addressing Legacies of Colonialism Can Contribute to Overcoming Inequalities Within and Among States and Sustainable Development Challenges of the Twenty-First Century. The United Nations Office Geneva. Last modified September 28, 2022.

[10] UN, “Sustainable Development Goals Report 2022 UN Last Modified July 7, 2022.

[11] Ting Yan, “IMF Managing Director Kristalina Georgieva Urges G20 Leadership to Strengthen the International Financial Architecture. International Monetary Fund. Last Modified February 25, 2023.

[12] The World Bank, “World Bank Group President David Malpass: Remarks for G20 Finance Ministers and Central Bank Governors Meeting The World Bank. Last Modified July 18, 2020.

[13]  UNEP, “Loss and Damage Fund”.

[14] WHO, “Climate Change. WHO. Last Accessed March 28, 2023.

[15] Simon Stiell, “Loss and Damage Fund Marks a New Chapter in our Solidarity With the World’s Most Vulnerable People UNFCCC. Last Modified March 27 2023.

[16] UNCTAD, “Developing country external debt: A cascade of crises means more countries face debt distress. UNCTAD.

[17] OHCHR, “Addressing Legacies of Colonialism.”

[18] The World Bank, “Debt Service Suspension Initiative. The World Bank. Last modified March 10, 2022.

[19] UNEP, “Loss and Damage Fund.”

[20] UNEP, “Loss and Damage Fund.”

[21] CAN International, “The Debt and Climate Crisis CAN International. Last modified October 17, 2022.

[22] Ting, “International Financial Architecture”

[23] G20 Turkey, “G20 Members. G20 Turkey. Last Modified 2015.

[24] UNEP, “Loss and Damage Fund.”

[25] G20 Turkey, “International Organisations. G20 Turkey. Last Modified 2015.

[26] OHCHR, “Addressing Legacies of Colonialism”

[27] UNCTAD, “Developing country external debt.”

[28] Ting, “International Financial Architecture.”

[29] The World Bank, “Remarks for G20 Finance Ministers.”

[30] UNCTAD, “Developing country external debt.”

[31] UNCTAD, “Developing country external debt.”

[32] UNEP, “Loss and Damage Fund.”

[33] Stiell, “New Chapter in our Solidarity.”

[34] WHO, “Climate Change.”

[35] UNDP, “As Turkish Economy Grows, So Does Earthquake Risk on Economy” UNDP. Last Modified September 2, 2019.

[36] WHO, “Climate Change.”

[37] Francios-Nicolas Robinne, “Impacts of disasters on forests, in particular forest fires UNFFS. Last Accessed 29 March, 2023.

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