Author : Hari Seshasayee

Issue BriefsPublished on May 05, 2023
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Redrawing India Latin America Relations In The 21st Century

21वीं सदी में भारत और लैटिन अमेरिका के आपसी संबंधों को फिर से निर्धारित करने की कोशिश!

  • Hari Seshasayee

    भारत के आर्थिक विकास और इसके मध्य वर्ग के विस्तार के मद्देनज़र आने वाले दशक में ये रुझान निश्चित तौर पर और अधिक गति पकड़ेंगे.

भारत और लैटिन अमेरिका आर्थिक लिहाज़ से मौज़ूदा समय में जितना एक-दूसरे के लिए प्रासंगिक हैं, अतीत में उतना प्रासंगिक पहले कभी नहीं रहे. भारत और लैटिन अमेरिका के बीच वर्ष 2022 में व्यापार 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है. हाल के कुछ वर्षों में इन बेहतर आर्थिक संबंधों के पीछे सबसे बड़ी वजह दोनों पक्षों की बढ़ी हुई और मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति है. आज दोनों ही तरफ यह उम्मीद काफ़ी प्रबल है कि भारत और लैटिन अमेरिका के देश 21वीं सदी के आने वाले वर्षों में इन प्रगाढ़ होते आर्थिक संबंधों को बढ़ाने की दिशा में अग्रसर रह सकते हैं. ऐसे में जबकि प्राइवेट सेक्टर व्यापक स्तर पर इन संबंधों को संचालित करता है, तो ज़ाहिर है कि सरकारों की सहायक भूमिका भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को गहरा करने और उन्हें विस्तार देने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकती है.


एट्रिब्यूशन: Hari Seshasayee हरी सेशासयी, “21वीं सदी में भारत और लैटिन अमेरिका के आपसी संबंधों का फिर से निर्धारण! ” ओआरएफ़ इश्यू ब्रीफ नं. 634, अप्रैल 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.


परिचय

हाल के वर्षों में भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के संबंधों में नई जान फूंकी गई है. भारत के विदेश मंत्री (EAM) एस जयशंकर ने सितंबर 2019 से लेकर अब तक चार लैटिन अमेरिकी देशों और कैरिबियाई देशों का दौरा किया है, इसके अलावा वे अप्रैल 2023 में चार और देशों का दौरा करने वाले हैं. एस जयशंकर से पहले इस रीजन का दौरा करने वाले आख़िरी भारतीय विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा थे, जो कि वर्ष 2003 में ब्राज़ील गए थे, जब BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) की परिकल्पना की जा रही थी. विदेश मंत्री बनने के बाद से एस जयशंकर ने लैटिन अमेरिका के देशों के साथ भारत के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति को प्रकट किया है, जिसका कि भारत के पूर्व विदेश मंत्रियों में काफ़ी हद तक आभाव देखा गया था.

इतना ही नहीं विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने देश में यानी नई दिल्ली में इस रीजन के महत्व पर ज़ोर देने का प्रयास किया है. फरवरी 2023 में नई दिल्ली में भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों पर आयोजित सम्मेलन में एस जयशंकर ने इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों के अपने पूर्वानुमान को "उम्मीद और आशावादी" बताया. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि लैटिन अमेरिका "एक अग्रणी वैश्विक ताक़त बनने" के भारत के बड़े लक्ष्य का अहम हिस्सा है. उन्होंने आगे कहा कि भारत को इस क्षेत्र में "ऐसे रिश्तों के साथ, जो वास्तविकता में महत्त्वपूर्ण हों और मायने रखते हों, साथ ही विभिन्न तरह के सहयोग में निवेश के साथ, जो सही अर्थों में उल्लेखनीय हों" अपनी मौज़ूदगी को बढ़ाना चाहिए.[1] विदेश मंत्री एस जयशंकर अप्रैल 2023 में गुयाना, पनामा,[a] कोलंबिया और डोमिनिकन गणराज्य का दौरा कर रहे हैं, उल्लेखनीय है कि इससे पहले किसी भारतीय विदेश मंत्री ने इन देशों की द्विपक्षीय यात्रा नहीं की है.

विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने देश में यानी नई दिल्ली में इस रीजन के महत्व पर ज़ोर देने का प्रयास किया है. फरवरी 2023 में नई दिल्ली में भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों पर आयोजित सम्मेलन में एस जयशंकर ने इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों के अपने पूर्वानुमान को "उम्मीद और आशावादी" बताया.

इन संधि प्रस्तावों का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था, क्योंकि हाल के वर्षों में भारत और लैटिन अमेरिका आर्थिक रूप से एक दूसरे के लिए और ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं. वर्ष 2022 में भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच व्यापार 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था, जो कि वर्ष 2014 में 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पिछले उच्चमतम स्तर से थोड़ा सा अधिक था.[2] यह वर्ष 2022 में भारत-वेनेजुएला व्यापार के केवल 414 मिलियन अमेरिकी डॉलर के न्यूनतम स्तर के बावज़ूद है. वेनेजुएला के साथ भारत का व्यापार वर्ष 2013 में 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था, [3]  जिसमें भारत को लगभग पूरी तरह से वेनेजुएला की तरफ होने वाला ऑयल एक्सपोर्ट शामिल था. वेनेजुएला की राष्ट्रीय तेल कंपनी पेट्रोलिओस डी वेनेजुएला पर अमेरिका द्वारा सेकेंडरी प्रतिबंध लागए जाने की वजह से वर्ष 2020 से यह देश सीन से पूरी तरह से बाहर हो गया है. [4]

कुल मिलाकर देखा जाए तो लैटिन अमेरिका अगर एक देश होता, तो यह वर्ष 2022-23 [5] में संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस), चीन, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के बाद भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होता. लैटिन अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में वर्ष 2021 में 42.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी के लिए निम्नलिखित बातों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है:

 

  1. भारत-ब्राज़ील व्यापार: भारत-ब्राज़ील व्यापार वर्ष 2022 में 16.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के शिखर पर पहुंच गया, जिसमें प्रमुख तौर पर तेल व्यापार (ब्राज़ील का क्रूड ऑयल का निर्यात और भारत का रिफाइंड पेट्रोलियम का निर्यात), खाद्य वनस्पति तेल, ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल्स और एग्रोकेमिकल्स शामिल हैं. [6] वर्ष 2022-23 में भारत द्वारा ब्राज़ील को होने वाले निर्यात ने [7] जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया को पीछे छोड़ दिया था, जो कि भारत के सबसे बड़े निर्यात भागीदारों में से हैं. वर्ष 2022 में कुल 9.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ ब्राज़ील अब भारत के शीर्ष 10 निर्यात गंतव्यों में से एक है. ब्राज़ील को होने वाले भारत के निर्यात में यह भारी बढ़ोतरी पिछले साल की तुलना में 54 प्रतिशत अधिक है और इसके लिए मुख्य रूप से रिफाइंड पेट्रोलियम की बिक्री में 295 प्रतिशत की वृद्धि सबसे बड़ी वजह है. ब्राज़ील से भारत का आयात पिछले वर्ष की तुलना में 38 प्रतिशत बढ़ गया है. ब्राज़ील से आयात में इस बढ़ोतरी के पीछे सोयाबीन ऑयल की ख़रीद में 229 प्रतिशत की वृद्धि मुख्य कारण है. [8]

 

  1. यूक्रेन में युद्ध ने खाद्य तेल का समीकरण बदला: यूक्रेन में युद्ध का एक तात्कालिक परिणाम भारत के खाद्य तेल इंपोर्ट को नए सिरे से व्यवस्थित करना है. यूक्रेन दशकों से भारत को सनफ्लॉवर ऑयल आपूर्ति करने वाले सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश रहा है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के तत्काल बाद, यूक्रेन से होने वाला भारत का सूरजमुखी तेल का आयात पिछले वर्ष की तुलना में 71 प्रतिशत कम हो गया.[9] भारत को खाद्य तेल के आयात में हुई इस कमी को पूरा करना था और ऐसे में अर्जेंटीना और ब्राज़ील जैसे लैटिन अमेरिकी देशों का इसमें प्रवेश हुआ. भारत का लैटिन अमेरिकी देशों से खाद्य तेल का आयात, जो वर्ष 2020 में 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, वह वर्ष 2022 में बढ़कर 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

 

  1. कमोडिटी की क़ीमतों और मांग में बढ़ोतरी: कमोडिटी की क़ीमतों और मुद्रास्फ़ीति में वृद्धि ने वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को नुक़सान पहुंचाने का काम किया है, लेकिन इससे कमोडिटी के आपूर्तिकर्ताओं को फायदा हुआ है. ख़निजों और पेट्रोलियम पदार्थों के प्रमुख वैश्विक निर्यातकों में से एक के रूप में लैटिन अमेरिकी देशों ने वर्ष 2022 में भारत को होने वाले अपने निर्यात में इज़ाफा किया. इस क्षेत्र का ख़निज निर्यात, विशेष रूप से गोल्ड और कॉपर अयस्क का निर्यात, जो कि वर्ष 2020 में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, वह वर्ष 2022 में बढ़कर 8.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

देखा जाए तो लंबे वक़्त से विश्लेषकों, व्यवसायों और मीडिया द्वारा भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को लेकर प्रगाढ़ता की कमी के लिए दूरी के मुद्दे के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है, ज़ाहिर है कि लैटिन अमेरिका की भारत से दूरी बहुत अधिक है. भौगोलिक दूरी के लिहाज़ से देखा जाए तो यह सही भी हो सकता है, लेकिन समुद्री रास्तों के ज़रिए व्यापार और हवाई सुविधाओं की प्रगति ने दुनिया भर में माल और वस्तुओं के परिवहन को बेहद आसान बना दिया है.

भारत और लैटिन अमेरिका को अलग करने में वास्तविक चुनौती भौतिक दूरी नहीं है, बल्कि असल चुनौती उनकी पारस्परिक समझ, विचारों, सोच और धारणाओं से जुड़ी दूरी है. भारत और लैटिन अमेरिका अक्सर एक-दूसरे को पुरातन नज़रिए के मुताबिक़ देखते हैं, जैसे कि बड़ी संख्या में भारतीय अभी भी लैटिन अमेरिकी देशों को पहले के दौर के 'बनाना रिपब्लिक' के रूप में याद करते हैं, साथ ही इन देशों को बेतहाशा मुद्रास्फीति वाली डंवाडोल अर्थव्यवस्थाओं और नशीली दवाओं की तस्करी के लिए मुफ़ीद जगहों के रूप में याद करते हैं. इसी तरह से लैटिन अमेरिकी लोग अभी भी अक्सर यह सोचते हैं कि भारत अध्यात्म और तपस्वियों, साधुओं व गुरुओं की धरती है. भारतीयों को आज के लैटिन अमेरिका के बारे में जानने-समझने और उसे तलाशने की ज़रूरत है. लैटिन अमेरिका अब पहले जैसा नहीं है, बल्कि आज यह एजुकेशन, शहरी क्षेत्रों और गवर्नेंस में तरह-तरह के नवाचारों की भूमि है. लैटिन अमेरिका की पहचान आज दुनिया के खाद्यान्न और महत्त्वपूर्ण ख़निजों के एक बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में है, साथ ही यह एक उभरता हुआ प्रमुख बाज़ार भी है. लैटिन अमेरिका को भी भारत को वर्तमान समय की वास्तविकताओं के नज़रिए से देखना चाहिए है, जैसे कि भारत आज वैश्विक विकास का प्रमुख स्तंभ है, टेक्नोलॉजी और हेल्थ केयर के सेक्टर में अग्रणी देशों में शुमार है, साथ ही स्टार्टअप्स के फलने-फूलने की एक महत्त्वपूर्ण जगह है.

बड़ी संख्या में भारतीय अभी भी लैटिन अमेरिकी देशों को पहले के दौर के 'बनाना रिपब्लिक' के रूप में याद करते हैं, साथ ही इन देशों को बेतहाशा मुद्रास्फीति वाली डंवाडोल अर्थव्यवस्थाओं और नशीली दवाओं की तस्करी के लिए मुफ़ीद जगहों के रूप में याद करते हैं. इसी तरह से लैटिन अमेरिकी लोग अभी भी अक्सर यह सोचते हैं कि भारत अध्यात्म और तपस्वियों, साधुओं व गुरुओं की धरती है.

यह संक्षिप्त विश्लेषण यह ज़ाहिर करता है कि आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भारत और लैटिन अमेरिका एक-दूसरे को किस प्रकार से देखते हैं.

लैटिन अमेरिका को लेकर भारत की धारणाएं

आर्थिक

जहां तक भारतीय बिजनेस की बात है, तो भारतीय व्यवसायों के लिए लैटिन अमेरिका तथाकथित 'गोल्डीलॉक्स ज़ोन' में स्थित है, यानी एक ऐसा स्वीट स्पॉट, जो अमेरिका और यूरोप के अत्यधिक विनियमित एवं प्रतिस्पर्धी बाज़ारों और अफ्रीका के कम प्रतिस्पर्धी बाज़ारों, जिनकी क्रय शक्ति कम है, के बीच मौज़ूद है. वास्तव में, जहां तक भारतीय व्यवसाय का संबंध है, तो लैटिन अमेरिका दक्षिण पूर्व एशिया से बहुत ज़्यादा मिलता-जुलता है, लेकिन उसकी क्रय शक्ति वहां से काफ़ी अधिक है. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के बारे में बात करें, तो वर्तमान में लैटिन अमेरिका में यह 9,350 अमेरिकी डॉलर है, जो दक्षिण पूर्व एशिया के 5,750 अमेरिकी डॉलर की तुलना में काफ़ी ज़्यादा है. इतना ही नहीं यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के वर्गीकरण यानी 7,300 अमेरिकी डॉलर के प्रति व्यक्ति जीडीपी से अधिक है, साथ ही लैटिन अमेरिका का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अफ्रीका के 2,260 अमेरिकी डॉलर से चार गुना से भी ज़्यादा है

(चित्र 1 देखें).

Redrawing India Latin America Relations In The 21st Century

चित्र 1: प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP), चिन्हित क्षेत्र

स्रोत: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष [10]

यह वे प्राथमिक दृष्टिकोण हैं, जिसके साथ भारतीय बिजनेस लैटिन अमेरिका को न केवल एक चमकती हुई जगह और बढ़ते बाज़ार के रूप में देखता है, बल्कि ऐसी जगह के रूप में भी देखता है, जो व्यवसाय का विस्तार करने के लिए एकदम अनुकूल और व्यवहारिक है. यह एक सच्चाई है कि कोई भी भारतीय कंपनी तब तक सही मायने में वैश्विक नहीं हो सकती है, जब तक उसकी लैटिन अमेरिका में पर्याप्त मौज़ूदगी न हो. इसके अलावा, यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां के मार्केट्स में ऑटोमोबाइल एवं वाहन, फार्मास्युटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी एवं सेवाओं व ऊर्जा जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के लिए अपार संभावनाएं हैं और इन सेक्टरों में भारत तेज़ी के साथ प्रगति कर रहा है. इसलिए, इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि भारत ऑस्ट्रेलिया या इंडोनेशिया की तुलना में ब्राज़ील को अधिक निर्यात करता है, उदाहरण के लिए (टेबल 1 देखें).

टेबल 1: चुनिंदा देशों को भारत का निर्यात (अप्रैल 2022 से जनवरी 2023)

Rank in India’s export basket Country Value in US$ Million
9 Brazil 8,504.75
10 Germany 8,397.79
11 Indonesia 8,278.34
15 South Africa 7,279.50
16 Italy 7,150.00
19 France 6,501.17
21 Australia 6,026.64
22 South Korea 5,626.15
29 Mexico 4,256.61
30 Spain 3,792.70
32 Canada 3,488.78
36 Russia 2,482.57
48 Colombia 1,243.45
49 Switzerland 1,154.21
50 Austria 1,068.51
51 Chile 982.84
58 Portugal 820.74
60 Argentina 815.63
61 Sweden 805.75
62 Morocco 775.51

 

स्रोत: वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार

लैटिन अमेरिका में भारत के निजी सेक्टर की भी व्यापक मौज़ूदगी है, जो कि इसके लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक व्यापार के साथ-साथ, इसके 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल निवेश के माध्यम से स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है. लैटिन अमेरिका में भारत के निजी सेक्टर द्वारा किए गए निवेश में ज़्यादातर पिछले दो दशकों में किए गए हैं. [11] हालांकि ये निवेश चीन, अमेरिका या यूरोप की तरह अधिक नहीं हो सकते हैं, लेकिन भारतीय निवेश उल्लेखनीय हैं, क्योंकि वे इस रीजन में हज़ारों की संख्या में नौकरियां सृजित करते हैं, वो भी विशेष तौर पर मूल्य वर्धित सेक्टर्स में एवं मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टरों में. फार्मास्युटिकल्स, आईटी और वाहनों जैसे कुछ सेक्टर्स में भारत अक्सर चीन को भी पीछे छोड़ देता है, जो कि ज़्यादातर दक्षिण अमेरिकी देशों के लिए सबसे बड़ा ट्रेडर बना हुआ है. 21वीं सदी के दौरान, भारत ने चीन की तुलना में लैटिन अमेरिका को अधिक फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स का निर्यात किया है. हालांकि, वर्ष 2021 में चीन द्वारा लैटिन अमेरिका को कोविड-19 वैक्सीन्स के एक्सपोर्ट की वजह से भारत थोड़ा सा पिछड़ गया था. एक लिहाज़ से देखा जाए तो इनमें सबसे अहम लैटिन अमेरिका में भारत की तकनीक़ी मौज़ूदगी है. भारतीय आईटी कंपनियां इस रीजन में 40,000 से अधिक लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराती हैं, जिनमें से लगभग सभी लोग स्थानीय हैं.

इससे यह भली-भांति समझा जा सकता है कि बिजनेस और इकोनॉमिक्स भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को संचालित करने का काम करते हैं. भारत का निजी सेक्टर लैटिन अमेरिका को अपने मुख्य विकास बाज़ारों में से एक के रूप में प्राथमिकता देते हुए सकारात्मक तरीक़े से देखना जारी रखता है.

राजनीतिक

नई दिल्ली में नीति निर्माताओं ने लैटिन अमेरिका पर बहुत कम ध्यान दिया है क्योंकि भारत का इस रीजन में कोई व्यापक राजनीतिक या रणनीतिक हित नहीं है. लैटिन अमेरिका भी शायद ही कभी खुद को भू-राजनीति की प्रतिस्पर्धा में शामिल करता है. लैटिन अमेरिका के किसी भी देश के पास परमाणु हथियार नहीं हैं और इस क्षेत्र के देशों के बीच सन 1800 के दशक के आख़िर से एक भी युद्ध नहीं देखा गया है. इसी सब का नतीज़ा है कि लैटिन अमेरिका को ऐतिहासिक रूप से भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में जगह नहीं मिली और देखा जाए तो इसे एक हिसाब से नज़रंदाज़ कर दिया गया और भारत की विदेश नीति के तीन घेरों में से आख़िरी घेरे में रखा गया है.[b] हालांकि, हाल के वर्षों में लैटिन अमेरिका को लेकर नई दिल्ली के राजनीतिक हितों में दो तरीक़ों से परिवर्तन देखा गया है:

 

  1. कार्यात्मक परिवर्तन: भारत के विदेश मंत्रालय ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र को पहले अपने प्रमुखता वाले क्षेत्रों में शामिल नहीं किया था और एक हिसाब से दूरी बना कर रखी थी. यहां तक कि यह पूरा रीजन भारत के विदेश राज्य मंत्री के दायरे में आता है, जो कि एक जूनियर मिनिस्टर होता है और विदेश मंत्री के अंतर्गत उनके निर्देशन में कार्य करता है. भारत का लैटिन अमेरिका के प्रति यह दृष्टिकोण वर्ष 2022 में उस समय बदल गया, जब G20 समूह के तीन सदस्य देशों यानी अर्जेंटीना, ब्राज़ील और मैक्सिको को सीधे भारत के विदेश मंत्री के दायरे में रखा गया. उसके बाद से भारत के विदेश मंत्री ने तीनों देशों का दौरा किया है और कई G20 प्लेटफॉर्म्स पर इन देशों के साथ अधिक गहराई से जुड़े हैं. ज़ाहिर है कि भारत वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता कर रहा है और इस दौरान भी भारत इन देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने में जुटा हुआ है.

  1. उच्च-स्तरीय संवाद: विदेश मंत्री एस जयशंकर अब तक आठ लैटिन अमेरिकी देशों का दौरा कर चुके हैं, यह एक ऐसी संख्या, जो अभूतपूर्व है और भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को गति प्रदान करने वाली है. कई लैटिन अमेरिकी नेताओं ने भी वर्ष 2022 में भारत का दौरा किया और 2023 में भी भारत के दौरे की योजना बनाई है. इन यात्राओं के दौरान आमतौर पर दोनों पक्षों के बिजनेस और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के बीच बैठकें होती हैं. भारत और लैटिन अमेरिका के बीच निरंतर संपर्क के लिए तंत्र विकसित कर लंबे समय में नए संबंध बनाने और द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए इस नए राजनीतिक हित का लाभ उठाया जा सकता है.

हालांकि, भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच संबंधों को लेकर यह सकारात्मक परिवर्तन स्वागत योग्य है, लेकिन फिर भी इसमें दो चुनौतियां बनी हुई हैं. सबसे पहले, नई दिल्ली को अभी भी लैटिन अमेरिकी रीजन के साथ समग्रता से जुड़ने के लिए या यहां तक कि क्षेत्र में उप-समूहों के साथ सार्थक रूप से संबंध स्थापित करने के लिए एक तंत्र बनाना है, जैसे कि सेंट्रल अमेरिकन इंटीग्रेशन सिस्टम ( स्पेनिश में SICA), पैसिफिक अलायंस और कम्युनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरीबियन स्टेट्स (CELAC). हालांकि, ऐसा करना तब तक मुश्किल बना रहेगा, जब तक कि लैटिन अमेरिका क्षेत्रीय एकीकरण के लिए लंबे वक़्त से चल रही अपनी कोशिशों को पूरा करने में क़ामयाब नहीं हो जाता. ज़ाहिर है कि तब तक भारत को लैटिन-अमेरिकी रीजन के अलग-अलग देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसके अतिरिक्त भारत को SICA, CELAC, Mercosur, [c] और पैसिफिक अलायंस के साथ ही एंडियन कम्युनिटी (Andean Community) के साथ नियमित संवाद के ज़रिए अपने संबंधों को मज़बूती देनी चाहिए.

दूसरा, नई दिल्ली ने अभी तक मुख्य रूप से मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर करके क्षेत्र के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के लिए अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति को प्रदर्शित नहीं किया है. मर्कोसुर (Mercosur) और चिली के साथ भारत के वर्तमान प्रिफिरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट्स यानी तरजीही व्यापार समझौतों (PTAs) का दायरा बहुत सीमित है. ये समझौते दक्षिण कोरिया, जापान या एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) के साथ भारत के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स की भांति व्यापक नहीं हैं. यह मर्कोसुर के साथ भारत के व्यापार के बावज़ूद जापान के साथ व्यापार के आंकड़ों को पार कर चुका है.[12] ऐसे में जबकि लैटिन अमेरिकी देश अपने तरजीही व्यापार समझौतों को भारत के साथ एक पूर्ण मुक्त व्यापार समझौते में अपग्रेड करने के इच्छुक हैं, लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक इसको लेकर अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

सामाजिक

भारत और लैटिन अमेरिका के बीच की दूरी, शायद दोनों पक्षों के बीच सामाजिक संबंधों में सबसे बड़ी रुकावट के तौर पर महसूस की जाती है और इसकी वजह से पारस्परिक सामाजिक रिश्ते न के बराबर रहे हैं. 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत और लैटिन अमेरिका के बीच कुछ ऐतिहासिक आदान-प्रदान हुए हैं, जो उल्लेखनीय हैं: इनमें भारत और मेक्सिको के लोगों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान शामिल हैं, जैसे कि एक भारतीय कृषि वैज्ञानिक पांडुरंग खानखोजे हैं, जिन्होंने मैक्सिको में खेती-किसानी के नए तरीक़ों को वहां पहुंचाने और कृषि की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके अलावा भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता एम एन रॉय, जिन्होंने भारतीय और मैक्सिकन दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना की. इतना ही नहीं भारत और ब्राज़ील में पुर्तगाली उपनिवेशों और परिक्षेत्रों के बीच वस्तुओं, लोगों एवं विचारों का निरंतर आदान-प्रदान भी होता था. भारत और लैटिन अमेरिका ने ऑक्टेवियो पाज़, रवींद्रनाथ टैगोर और विक्टोरिया ओकाम्पो जैसे कवि-राजनयिकों एवं साहित्यकारों के माध्यम से साहित्यिक विचारों का एक समृद्ध आदान-प्रदान भी देखा, जिनके कार्यों ने पारस्परिक विचारों एवं धारणाओं को प्रभावित करने में मदद की है.

21वीं सदी में नए सिरे से यह सामाजिक आदान-प्रदान दिखाई दिया है. इसका एक उदाहरण भारत के कवि-डिप्लोमेट अभय के. हैं, जिन्होंने लैटिन अमेरिकी रीजन पर दि अल्फाबेट्स ऑफ लैटिन अमेरिका (The Alphabets of Latin America) और दि प्रोफेसी ऑफ ब्राज़ीलिया (The Prophecy of Brasilia) जैसी कविताओं पर आधारित पुस्तकें लिखी हैं. अभय के. कहते हैं कि "टैगोर और विक्टोरिया ओकाम्पो से लेकर सेसिलिया मीरेल्स और ऑक्टेवियो पाज़ तक कवियों व लेखकों ने भारत और लैटिन अमेरिका के बीच साहित्यिक पुलों के सृजन में अहम भूमिका निभाई है. इस परंपरा ने हाल के वर्षों में ज़ोर पकड़ा है और साहित्यिक आदान-प्रदान में तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. इन सभी गतिविधियों ने भारत में लैटिन अमेरिका के बारे में और लैटिन अमेरिका में भारत को लेकर समझ-बूझ को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है.[13]

भारत और लैटिन अमेरिका के बीच 21वीं सदी में इस प्रकार के सामाजिक आदान-प्रदानों में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है और दोनों तरफ एक-दूसरे से ज़्यादा से ज़्यादा सीखने की संभावना बनी हुई है. आख़िरकार, भारत और लैटिन अमेरिका वित्तीय समावेशन, लैंगिक समानता, ग़रीबी उन्मूलन और सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने समेत कई अलग-अलग सेक्टरों में फैली एक तरह की भयावह चुनौतियों का सामना करते हैं. भारत, लैटिन अमेरिकी अवधारणाओं जैसे 'बुएन विविर', जिसका मतलब होता है 'अच्छा जीवन' से बहुत कुछ सीख सकता है और उसे सीखना भी चाहिए. इसी प्रकार से लैटिन अमेरिका में स्थानीय समुदायों में पर्यावरण के लिहाज़ से अधिक टिकाऊ समाज़ पर ज़ोर दिया जाता है, भारत उनकी इस अवधारणा से भी काफ़ी कुछ सीख सकता है. भारत की केंद्र और राज्य सरकारें सशर्त नकद हस्तांतरण (CCTs) को लेकर लैटिन अमेरिका के अनुभव से भी बहुत कुछ सीख सकती हैं, ज़ाहिर है कि लैटिन अमेरिका का क्षेत्र वैश्विक स्तर पर CCTs में अग्रणी है और उसे इस तरह के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने का तीन दशकों से अधिक का अनुभव है. आख़िर में लैटिन अमेरिका से भारत जैव विविधता के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के क्षेत्र के चलाए जा रहे कार्यक्रमों से भी सीख हासिल कर सकता है.

भारत और लैटिन अमेरिका के बीच पीपल-टू-पीपल आदान-प्रदान में बढ़ोतरी भारत के स्थानीय फुटबॉल टूर्नामेंट- दि इंडियन सुपर लीग में भी दिखाई दे रही है, इस टूर्नामेंट में 90 से अधिक लैटिन अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ी शिरकत कर रहे हैं. इसी प्रकार से भारत की विशाल और तेज़ी से बढ़ती इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लैटिन अमेरिकी मॉडल एवं अभिनेताओं की बढ़ती संख्या के माध्यम से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों तरफ के लोगों की आवाजाही बढ़ रही है और उनका मेलजोल बढ़ रहा है.

भारत और लैटिन अमेरिका के बीच 21वीं सदी में इस प्रकार के सामाजिक आदान-प्रदानों में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है और दोनों तरफ एक-दूसरे से ज़्यादा से ज़्यादा सीखने की संभावना बनी हुई है. आख़िरकार, भारत और लैटिन अमेरिका वित्तीय समावेशन, लैंगिक समानता, ग़रीबी उन्मूलन और सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने समेत कई अलग-अलग सेक्टरों में फैली एक तरह की भयावह चुनौतियों का सामना करते हैं.

हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दूरी अक्सर भारत और लैटिन अमेरिका के बीच सामाजिक संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि वहां से आने-जाने में ख़र्चा बहुत ज़्यादा होता है. इसके अलावा कई बार देखा गया है कि भारत के लोगों को भी लैटिन अमेरिका की यात्रा करने के लिए बिजनेस या फिर टूरिस्ट वीज़ा हासिल करने में कठिनाई होती है. इस सबके बावज़ूद भारत को लैटिन अमेरिका में बहुत इज्जत और सम्मान के नज़रिए से देखा जाता है, ज़ाहिर है कि वहां भारत को लेकर यह सकारात्मक नज़रिया लंबी अवधि में संबंधों को और अधिक मज़बूती प्रदान करने में मददगार साबित हो सकता है.

भारत के बारे में लैटिन अमेरिका की धारणाएं

आर्थिक

भारत ने 21वीं सदी में आर्थिक लिहाज़ से एक बड़ा बदलाव देखा है. भारत का आर्थिक विकास ग्लोबल साउथ की व्यापक कहानी का हिस्सा है, जिसका कि लैटिन अमेरिका एक अभिन्न अंग है. आज के दौर में भारत एक विशाल बाज़ार है, जिसे कोई भी देश नज़रअंदाज़ करने का ज़ोख़िम नहीं उठा सकता है. भारत आर्थिक विविधिता का एक माध्यम भी है, जो अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं से काफ़ी अलग है. लैटिन अमेरिका के लिए, भारत उसकी एक व्यापक और अति महत्त्वपूर्ण एशिया रणनीति का हिस्सा है. कोलंबिया की सुपीरियर काउंसिल ऑफ फॉरेन ट्रेड के सलाहकार सोरया कारो ने इस आर्टिकल के लेखक के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि कोलंबिया में सरकार ने पश्चिम में अपने पारंपरिक भागीदारों के लिए एक रणनीतिक और आर्थिक संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से पहली बार एशिया और भारत को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है. [14]

लैटिन अमेरिकी रीजन के लिए भारत का आर्थिक महत्व पिछले दो दशकों में बहुत प्रमुखता के साथ दिखाई दिया है. वर्ष 2012 से भारत वैश्विक स्तर पर लैटिन अमेरिका के 10 सबसे बड़े निर्यात बाज़ारों में शामिल है. वर्ष 2014 में अमेरिका और चीन के बाद भारत लैटिन अमेरिका के लिए तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य था. यह पूरा रीजन आर्थिक विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में भारत पर भरोसा करता है. इतना ही नहीं ख़निजों, ऊर्जा और एग्रीकल्चर के आयातक के रूप में, साथ ही लैटिन अमेरिका में निवेशक और रोज़गार सृजनकर्ता के रूप में भी भारत उनका एक विश्वस्त साथी है. आज, भारत वनस्पति तेलों के लिए लैटिन अमेरिकी क्षेत्र का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, तांबा अयस्क, पेट्रोलियम और गोल्ड के लिए तीसरा सबसे बड़ा और शुगर एवं लकड़ी के लिए चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है.

देखा जाए तो लैटिन अमेरिका द्वारा भारत को होने वाले निर्यात में एक बड़ा हिस्सा कमोडिटी का बना हुआ है, लेकिन इस ट्रेंड में पिछले दशक में धीरे-धीरे बदलाव आया है. अब लैटिन अमेरिका के देशों ने भारत को ज़्यादा मूल्यवर्धित और तैयार उत्पादों का निर्यात करना शुरू कर दिया है. इसमें मैक्सिको में बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स से लेकर ब्राज़ील में बनने वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का निर्यात और अर्जेंटीना से वाइन एवं चिली से ताज़े फलों का निर्यात शामिल हैं. इसके साथ ही भारत अब लैटिन अमेरिकी कंपनियों, विशेष रूप से मल्टीलैटिनस (लैटिन अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनियों) के लिए एक अहम निवेश गंतव्य बन गया है. ये कंपनियां भारत के बड़े उपभोक्ता मार्केट्स में प्रवेश करने की इच्छुक हैं. मैक्सिको की सिनेपोलिस जैसी कंपनियां, मौज़ूदा वक़्त में भारत में सबसे बड़ी लैटिन अमेरिकी निवेशकों में से एक हैं, इन कंपनियों ने भारत में दीर्घकालिक निवेश पर दांव लगाया है. तीन दर्ज़न से ज़्यादा लैटिन अमेरिकी कंपनियों ने पिछले दो दशकों में लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करते हुए भारत में अपने ऑपरेशन्स को स्थापित किया है.[15] सिनेपोलिस एशिया के प्रबंध निदेशक जेवियर सोटोमयोर ने भारत में अपनी कंपनी के 15 सफल वर्षों का श्रेय यहां की व्यापक स्तर की अर्थव्यस्था, जनसांख्यिकी और सामाजिक स्थिरता को दिया है. [16]

लैटिन अमेरिकी देशों द्वारा किए जाने वाले मूल्य वर्धित उत्पादों के निर्यात और भारत में लैटिन अमेरिकी निवेश के यह दोनों ही रुझान निरंतर बढ़ रहे हैं. भारत के आर्थिक विकास और इसके मध्य वर्ग के विस्तार के मद्देनज़र आने वाले दशक में ये रुझान निश्चित तौर पर और अधिक गति पकड़ेंगे.

राजनीतिक

भारत की वैश्विक अहमियत और इसके विशाल भू-भाग के मद्देनज़र लैटिन अमेरिकी देशों की भारत के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने में हमेशा राजनीतिक दिलचस्पी रही है. भारत की स्वतंत्रता के बाद से लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों की सरकारों के प्रमुखों ने 30 से ज़्यादा बार भारत का दौरा किया है, यह संख्या भारतीय राजनेताओं द्वारा इन देशों में की गईं  यात्राओं से कहीं अधिक है. उल्लेखनीय है कि भारत के कुल चार प्रधानमंत्रियों ने लैटिन अमेरिकी रीजन का दौरा किया है और बड़ी बात यह है कि इन यात्राओं का मकसद बहुपक्षीय मंचों की बैठकों में शामिल होना था, बजाए इन देशों का द्विपक्षीय दौरा करने का. [17]

इसके बाद भी, लैटिन अमेरिकी राजनेता और वहां की सरकारें भारत के साथ अपने देशों के संबंधों को बढ़ाने की बहुत इच्छुक हैं. भारत के साथ संबंध बनाने वालों में ब्राज़ील इन लैटिन अमेरिकी देशों में सबसे आगे है और भारत के साथ सबसे मज़बूत और व्यापक राजनीतिक संबंधों वाला प्रमुख लैटिन अमेरिकी देश बना हुआ है. यह BRICS, IBSA (भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका) जैसे बहुपक्षीय समूहों के साथ-साथ जी20 में ब्राज़ील की सदस्यता की वजह से है. G20 के अन्य दो लैटिन अमेरिकी सदस्य अर्जेंटीना और मैक्सिको ने भी भारत की G20 अध्यक्षता के कारण पिछले एक साल में भारत पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है. अर्जेंटीना, ब्राज़ील और मैक्सिको के विदेश मंत्रियों ने हाल-फिलहाल में यानी 2023 की शुरुआत में नई दिल्ली का दौरा किया है और भारत में अपने समकक्षों के साथ लगातार संवाद कर रहे हैं. भारत में पेरू के राजदूत जेवियर पॉलिनिच, जिनकी भारत में दूसरी पोस्टिंग है, के मुताबिक़ भारत और लैटिन अमेरिका जितना अधिक लोकतांत्रिक और सामाजिक विकास जैसे मूल्यों को साझा करते हैं, उतना ही अधिक पारस्परिक आर्थिक निर्भरता और विविधिता से लाभान्वित होते हैं.

लैटिन अमेरिका की तरफ से भारत के साथ राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने की इच्छाशक्ति उस वक़्त भी दिखाई दी थी, जब भारत और चिली एवं भारत और मर्कोसुर (Mercosur) के बीच PTAs पर हस्ताक्षर किए गए थे. चिली और मर्कोसुर दोनों ही भारत के साथ अधिक व्यापक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) पर हस्ताक्षर करने के इच्छुक थे, लेकिन दोनों पक्षों के बीच PTAs पर सहमति बनी, जिसे बाद में FTAs में अपग्रेड किया जा सकता था. जबकि भारत-चिली और भारत-मर्कोसुर के बीच PTAs को अपग्रेड किया गया है, लेकिन वे समझौते अभी भी FTAs की तुलना में कम व्यापक हैं. ज़ाहिर है कि इसे हासिल करने के लिए मर्कोसुर और चिली में दक्षिण अमेरिकी देशों की राजधानियां भारत के साथ अधिक सार्थक FTAs की पैरवी करना जारी रखेंगी.

हाल ही में भारत और लैटिन अमेरिका ने नई तरह की गुटनिरपेक्षता का रास्ता अपनाया है, यह रास्ता कुछ ऐसा है, जिसे नई दिल्ली ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ यानी 'रणनीतिक स्वायत्तता' कहती है, जबकि लैटिन अमेरिकी इसे ‘एक्टिव नॉन अलाइनमेंट’ यानी 'सक्रिय गुटनिरपेक्षता' (ANA) कहते हैं. चिली के लेखक जॉर्ज हेइन, कार्लोस फोर्टिन और कार्लोस ओमिनामी ने अपनी बुक 'लैटिन अमेरिकन फॉरेन पॉलिसीज इन द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर: दि एक्टिव नॉन-अलाइनमेंट ऑप्शन' में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि एक्टिव नॉन अलाइनमेंट का मतलब "मोनोटोनिक फैशन में स्थानांतरित करने को लेकर नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा नज़रिया है जो 1960 और 1970 के दशक में नई सदी की बहुत अलग वास्तविकताओं को सामने लेकर आया था. इसके उलट, चुनौती एक दूसरे युग में अवधारणाओं और शर्तों को अपनाने में निहित है, यानी एक ऐसा युग जो तेज़ी के साथ बदल रहे दुनिया के लोगों के लिए परिवर्तित हो रहा है और उसे अपने अनुकूल बनाने के लिए आवश्यक संशोधनों एवं समन्वय की आवश्यकता है."[18]

मैक्सिको की सिनेपोलिस जैसी कंपनियां, मौज़ूदा वक़्त में भारत में सबसे बड़ी लैटिन अमेरिकी निवेशकों में से एक हैं, इन कंपनियों ने भारत में दीर्घकालिक निवेश पर दांव लगाया है. तीन दर्ज़न से ज़्यादा लैटिन अमेरिकी कंपनियों ने पिछले दो दशकों में लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करते हुए भारत में अपने ऑपरेशन्स को स्थापित किया है.

वर्ष 2022 और 2023 के दौरान भारत और लैटिन अमेरिका ने यूक्रेन में युद्ध के संबंध में सक्रिय गुटनिरपेक्षता की समान स्थिति बरक़रार रखी है. दोनों ने ही अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने और मुद्रास्फ़ीति एवं ब्याज दरों पर युद्ध के व्यापक आर्थिक नतीज़ों का कम से कम असर पड़ने पर ध्यान केंद्रित करने का रास्ता चुना है.

सामाजिक

भारत के बारे में लैटिन अमेरिकी रीजन की सामाजिक धारणा को 20वीं सदी में साहित्य और राजनीति से जुड़ी कई हस्तियों ने आकार देना शुरू किया. शायद इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मैक्सिकन कवि और राजनयिक ऑक्टेवियो पाज़ हैं, जिनकी पुस्तक विस्लुम्ब्रेस डे ला इंडिया (इन लाइट ऑफ इंडिया) लैटिन अमेरिकियों के लिए भारत के बारे में जानकारी पाने के शुरुआती चरणों में से एक है. पाज़, जो कि वर्ष 1962 से 1968 तक भारत में राजदूत के रूप में नियुक्त थे, लिखते हैं: "मैंने जो कुछ भी देखा (भारत में) वह मैक्सिको की भूली हुई तस्वीरों का फिर से उभरने जैसा था." [19]

कई लैटिन अमेरिकी लोग भी भारतीय साहित्यकार और कवि रवींद्रनाथ टैगोर को अच्छी तरह से जानते हैं, जिन्होंने वर्ष 1924 में अर्जेंटीना में दो महीने बिताए थे. टैगोर की साहित्यिक रचनाएं स्पेनिश भाषा में उपलब्ध हैं और मैक्सिकन दार्शनिक जोस वास्कोनसेलोस द्वारा अनुवाद के माध्यम से पूरे रीजन में उनकी रचनाएं वितरित की गई थीं. विक्टोरिया ओकाम्पो के साथ टैगोर का रिश्ता आज भी दिलचस्पी का विषय बना हुआ है, जैसा कि अर्जेंटीना के निर्देशक पाब्लो सीजर की हालिया फिल्म 'थिंकिंग ऑफ हिम' में देखा गया है. लैटिन अमेरिका में एक अन्य प्रसिद्ध भारतीय हस्ती महात्मा गांधी हैं, जिनकी अहिंसा की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है और ब्राज़ील में पलास एथेनास (Palas Athenas) जैसे संगठनों द्वारा उन्हें सेलिब्रेट किया जाता है. 1960 के दशक में लैटिन अमेरिकी लोग भारत की एक राजनीतिक हस्ती पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से रूबरू हुए थे, जिन्होंने 1968 में आठ लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों का दौरा किया था. यह वो समय था, जब किसी देश की सरकार में महिला प्रमुख का होना दुर्लभ हुआ करता था.

कई लैटिन अमेरिकी लोग भी भारतीय साहित्यकार और कवि रवींद्रनाथ टैगोर को अच्छी तरह से जानते हैं, जिन्होंने वर्ष 1924 में अर्जेंटीना में दो महीने बिताए थे. टैगोर की साहित्यिक रचनाएं स्पेनिश भाषा में उपलब्ध हैं और मैक्सिकन दार्शनिक जोस वास्कोनसेलोस द्वारा अनुवाद के माध्यम से पूरे रीजन में उनकी रचनाएं वितरित की गई थीं.

21वीं सदी में लैटिन अमेरिका में भारत की छवि में धीरे-धीरे बदलाव आया है, लेकिन इस रीजन के ज़्यादातर लोग अभी भी भारत की वर्तमान सच्चाई से भली-भांति परिचित नहीं हैं. 2009 में प्रसारित एक ब्राज़ीलियन टेलीनोवेला (टेलीविज़न सोप ओपेरा) यानी टीवी धारावाहिक कैमिन्हो दास इंडियास (Caminho das Índias) ने ब्राज़ील के समक्ष ऐतिहासिक और आधुनिक भारत के बीच के संघर्ष का बखूबी चित्रण किया. यह ब्राज़ीलियाई टीवी धारावाहिक वैश्विक स्तर पर इतना लोकप्रिय हो गया कि इस टेलीनोवेला ने वर्ष 2009 में एमी अवॉर्ड भी जीता. यद्यपि, लैटिन अमेरिकी 21वीं सदी में भारत के बारे में और अधिक खोज़ कर रहे हैं, फिर भी भारत द्वारा इस रीजन के लोगों के 'दिलो-दिमाग' में प्रवेश करने के लिए बहुत कुछ किया जाना है. रूपकथा जर्नल में प्रकाशित ‘लीवरेजिंग इंडियाज गुडविल इन लैटिन अमेरिका एज सॉफ्ट पावर’ के मुताबिक़ “लैटिन अमेरिका में भारत की मौज़ूदगी की तुलना सिर्फ़ संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर किसी अन्य एशियाई या यूरोपीय देशों के साथ नहीं की जा सकती है. भारत लैटिन अमेरिका में आम जनता का ध्यान आकर्षित कर सके, इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है," [20]

निष्कर्ष

देखा जाए, तो 20वीं सेंचुरी के अख़िरी तक लैटिन अमेरिका के लिए भारत दूर-सुदूर स्थित एक महत्वहीन बाज़ार था, साथ ही लैटिन अमेरिकी क्षेत्र भी भारत की प्राथमिकताओं में कहीं नहीं था, चाहे वह प्राथमिकताएं आर्थिक हों या फिर राजनीतिक. 21वीं सदी में दोनों ही पक्षों का एक दूसरे के प्रति यह दृष्टिकोण अचानक और नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया है. आज, भारत लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के सबसे अहम व्यापारिक भागीदारों में से एक है, इसी प्रकार से लैटिन अमेरिका भी भारत के महत्त्वपूर्ण साझीदारों में से एक है. उल्लेखनीय है कि अगर लैटिन अमेरिकी रीजन एक देश होता, तो यह भारत के लिए पांचवां सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर होता.

ऐसे में जबकि भारत-लैटिन अमेरिका के संबंध मुख्य रूप से ट्रेड और इकोनॉमिक्स द्वारा संचालित होते हैं, या फिर कहा जा सकता है कि दोनों के रिश्ते व्यापार और अर्थशास्त्र पर निर्भर हैं, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार की सहायक भूमिका भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को न केवल और प्रगाढ़ एवं व्यापक करने के लिए उत्प्रेरित कर सकती है, बल्कि एक ज़्यादा समकालीन वास्तविकता को ज़ाहिर करने के लिए धारणाओं को फिर से तैयार करने का भी कार्य कर सकती है. वैश्विक ताक़त बनने की भारत की महत्वाकांक्षा में लैटिन अमेरिका की अहम भूमिका बनी रहेगी, साथ ही यह भारतीय व्यापार के लिए 'गोल्डीलॉक्स ज़ोन' यानी अपने बिजनेस के विस्तार का भी महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहेगा. बड़ी संख्या में भारतीय कंपनियों का भी यही मानना है कि वे लैटिन अमेरिका में अपनी उचित मौज़ूदगी स्थापित किए बगैर, सही मायनों में 'वैश्विक' नहीं हो सकतीं हैं.

एक पूर्व भारतीय राजनयिक, लैटिन अमेरिका के विशेषज्ञ और भारतीय कंपनियों के सलाहकार, राजदूत आर. विश्वनाथन ने हाल ही में इस आर्टिकल के लेखक के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि लैटिन अमेरिका भारत को चीन या फिर पश्चिमी देशों पर इस रीजन की अत्यधिक निर्भरता के विरुद्ध एक बचाव या विकल्प के तौर पर देखता है. वह कहते हैं कि भारतीय और लैटिन अमेरिकी लोग न सिर्फ़ भावनात्मक एवं सांस्कृतिक तौर पर लगभग एक समान हैं, बल्कि दोनों ही विकास से जुड़ी एक तरह की चुनौतियों का भी सामना करते हैं. [21]

नई दिल्ली के लिए यह उसके हित में होगा कि वो लैटिन अमेरिका पर पैनी नज़र रखे और दो बेहद ख़ास मुद्दों को लेकर आगे बढ़े. पहला मुद्दा है, चिली और मर्कोसुर के साथ वर्तमान PTAs को FTAs में अपग्रेड करना, साथ ही लैटिन अमरीकी रीजन के पेरू, कोलंबिया एवं मैक्सिको जैसे अन्य देशों के साथ नए और व्यापक व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करना. नई दिल्ली के लिए दूसरा मुद्दा यह है कि उसे गंभीरता के साथ लैटिन अमेरिका की लिथियम और तांबे के आपूर्तिकर्ता के रूप में अहमियत को समझना चाहिए, क्योंकि ये दोनों ही ग्रीन ऊर्जा की तरफ आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी और अनिवार्य चीज़ें हैं. हालांकि, यह सब कुछ इतना आसान नहीं है, कई ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं, जो अभी भी भारत-लैटिन अमेरिका के रिश्तों में रुकावट बनी हुई हैं, जैसे कि वित्तपोषण और व्यापार के लिए सीधे मार्गों की कमी. लेकिन इन सबमें आज भी सबसे प्रमुख चुनौती भारत और लैटिन अमेरिका के बीच फैली गलत धारणाएं और एक-दूसरे के बारे में वास्तविक जानकारी का आभाव है. हाल के राजनीतिक संधि प्रस्ताव और भारत व लैटिन अमेरिका के बीच उच्च स्तरीय अधिकारियों व मंत्रियों के दौरे सकारात्मक संकेत हैं और उम्मीद की किरण जगाते हैं. यह एक सच्चाई है कि 21वीं सदी ने भारत-लैटिन अमेरिकी देशों के संबंधों को लेकर एक भरोसा पैदा करने वाली आशाजनक शुरुआत को देखा है, लेकिन दोनों ही पक्षों को पारस्परिक रिश्तों की पूरी क्षमता हासिल करने और अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए अभी और भी बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.


हरी सेशासयी ओआरएफ़ में विज़िटिंग फेलो हैं. वह पनामा सरकार के विदेश मंत्रालय में एक एशिया-लैटिन अमेरिका विशेषज्ञ (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) और सलाहकार एवं वरिष्ठ डिस्पैच के तौर पर कार्यरत हैं.


Endnotes

[a] ये लेखक पनामा सरकार के विदेशी मामलों के मंत्रालय में सलाहकार एवं वरिष्ठ डिस्पैच हैं.

[b] पहले घेरे में भारत के पड़ोसी शामिल है. दूसरे घेरे में एशिया (साउथ ईस्ट एशिया, पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया और मध्य एशिया) के साथ-साथ रणनीतिक साझेदार शामिल हैं. अंतिम घेरे में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका, प्रशांत द्वीप समूह और अन्य देश हैं जिनके साथ इसके संबंध हैं.

[c] Mercosur एक सीमा शुल्क संघ और समूह है, जिसमें अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पैराग्वे और उरुग्वे शामिल हैं.

[1] S Jaishankar, “Addressed the valedictory session of the international conference: Connected Histories, Shared Present at India International Centre,” Facebook Watch.

[2] Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India.

[3]Trade Map,” International Trade Centre.

[4] Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India.

[5] Data based on calculations from Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India, for Financial Year 2023 (as per the latest data available, for April 2022 to January 2023)

[6] Data based on calculations from Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India, for Financial Year 2023 (as per the latest data available, for April 2022 to January 2023)

[7] Data based on calculations from Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India, for Financial Year 2023 (as per the latest data available, for April 2022 to January 2023).

[8] Data based on calculations from Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India, for Calendar Year 2022.

[9] Data based on calculations from Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India, for Financial Year 2023 (as per the latest data available, for April 2022 to January 2023).

[10] IMF DataMapper, “GDP per capita, current prices,” International Monetary Fund.

[11] Hari Seshasayee, “Latin America’s Tryst with the Other Asian Giant, India,” Woodrow Wilson Center, May 2022.

[12] Department of Commerce, Ministry of Commerce & Industry, Government of India.

[13] Personal interview

[14] Personal interview

[15] Hari Seshasayee, “Latin American Investments in India: Successes and Failures,” ORF Occasional Paper No. 321, June 2021, Observer Research Foundation

[16] Personal interview

[17] Calculations based on annual reports from Ministry of External Affairs, Government of India and the websites of Indian Embassies in the Latin American and Caribbean region.

[18] Fortin, Carlos, Jorge Heine, and Carlos Ominami, eds. Latin American Foreign Policies in the New World Order: The Active Non-Alignment Option. Anthem Press, 2023.

[19] Embassy of Mexico in India, “Remembering Octavio Paz, 20 years after,” Medium, April 20, 2018.

[20] Seshasayee, Hari. “Leveraging India’s Goodwill in Latin America as ‘Soft Power’.” Rupkatha Journal on Interdisciplinary Studies in Humanities 14, no. 3 (2022).

[21] Personal interview

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