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प्रधानमंत्री मोदी और शेख़ मुहम्मद बिन ज़ायद, अरब सागर के एक समृद्ध समुदाय की बुनियाद डाल रहे हैं.
आज़ादी के बाद से भारत, अपने पश्चिमी तट से टकराने वाले समुद्र के साथ नाइंसाफ़ी करता आया है. हम ये भूल जाते हैं कि अरब सागर लंबे समय से विचारों, क़िस्से-कहानियों, कारोबार और संस्कृतियों के आदान प्रदान के पुल का काम करता रहा है. इसकी लहरों के ज़रिए ज्ञान के ख़ज़ाने बहकर आते-जाते रहे हैं और दोस्ती के मज़बूत रिश्ते बनते रहे हैं. अपने से पहले के किसी भी अन्य प्रधानमंत्री की तुलना में नरेंद्र मोदी इस अनदेखी से हुई नाइंसाफ़ी को कहीं अधिक समझते हैं. आने वाले दिनों में मोदी सातवीं बार अबु धाबी के दौरे पर जाने वाले हैं, जो उनके किसी भी पूर्ववर्ती से तादाद में छह अधिक है. 2015 में मोदी के दौरे से पहले, भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने तीन दशकों में एक बार भी संयुक्त अरब अमीरात की सरज़मीं पर पैर नहीं रखे थे.
वैसे तो तादाद अक्सर बेमानी होती है. लेकिन, कई बार वो अहम भी हो जाते हैं. जैसा कि बिज़नेस स्कूलों में कहा जाता है: अगर आप इसको गिन नहीं सकते, तो उसकी गिनती नहीं होती. प्रधानमंत्री के सात दौरे एक अलग ही तस्वीर बनाते हैं. इनसे दोनों देशों के रिश्तों में आए बदलाव और एक दूसरे की अहमियत को स्वीकार करने का पता चलता है. भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने मिलकर जो दोस्ती खड़ी की है, वो बेहद ख़ास है. ये दोस्ती एक नई सच्चाई को बयान करती है. वो हक़ीक़त जिसमें भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के संबंध, स्वैच्छिक नहीं, बल्कि अनिवार्य हैं. एक विकल्प नहीं, आदत बन गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी और शेख़ मुहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान ने रिश्तों की संस्थागत मरम्मत की शुरुआत की है, जिसका संदेश है: अब हम एक दूसरे के लिए अपरिहार्य बन चुके हैं.
प्रधानमंत्री मोदी, संयुक्त अरब अमीरात में पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन करने के लिए जा रहे हैं. ये मंदिर, संयुक्त अरब अमीरात द्वारा अधिक बहुलतावादी समाज को प्रोत्साहन देने की बड़ी मिसाल है.
दोनों देशों के संबंध का ये मिज़ाज ही बिल्कुल अलग है. प्रधानमंत्री मोदी, संयुक्त अरब अमीरात में पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन करने के लिए जा रहे हैं. ये मंदिर, संयुक्त अरब अमीरात द्वारा अधिक बहुलतावादी समाज को प्रोत्साहन देने की बड़ी मिसाल है. मंदिर का उद्घाटन करने के साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट में भी भाग लेंगे. ये शिखर सम्मेलन प्रशासन की उभरती हुई चुनौतियों से निपटने के लिए नए नए आविष्कारों पर परिचर्चा का मंच है. आपस में मिलकर ये दोनों ही एक व्यापक संबंध को जोड़ने का काम करते हैं: दोनों देश एक दूसरे की पहचान का जश्न मनाने के साथ साथ एक दूसरे के साझीदार बन रहे हैं. दोनों देश, एक दूसरे को बदले बग़ैर ही एक दूसरे के बदलाव के साझीदार बन रहे हैं. वैसे तो कई देशों के साथ भारत के दोस्ताना संबंध हैं. लेकिन, अक्सर इनमें से कई संबंध पहले से जुड़ी शर्तों के साथ आते हैं. जिनमें बताया जाता है कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता; भारत को क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए. भारत और संयुक्त अरब अमीरात का रिश्ता ख़ास है, तो इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि इनमें कोई शर्त नहीं जुड़ी है, इनका दायरा अथाह है.
भारत और संयुक्त अरब अमीरात के संबंध की गहराई में एक दूसरे की विशिष्ट पहचान का जश्न भी शामिल है कि हम विविधताओं वाले होने के साथ ही एकात्म भी हैं. हम अपनी संस्कृतियों और रिवाजों की वजह से बहुलतावादी हैं, और विविधता दोनों ही देशों का स्वभाव है. हम एक इसलिए हैं, क्योंकि हम दोनों ही अनजाने सफर पर निकले हैं और अपने लिए ऐसी राह चुनी है, जो पहले देखी सुनी नहीं गई. भारत और संयुक्त अरब अमीरात, दोनों ही अपने अपने इलाक़ों और आज के दौर में अपनी तरह के अनूठे देश बने हैं. संयुक्त अरब अमीरात ने सूखे और गर्म रेगिस्तान में हरी भरी अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है. भारत के सामने विकास की विशेष चुनौतियां हैं, जिनकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती. भारत के कई राज्य तो देशों से भी बड़े हैं. हम दोनों ही देशों के सामने कोई ऐसा मॉडल नहीं था, जिसका हम अनुकरण करते, कोई ऐसा खांचा भी नहीं था, जिसमें हम फिट हो पाते. दोनों देशों द्वारा एक दूसरे के प्रति सम्मान रखने की यही बुनियाद है. आने वाले समय में जब हम आमदनी बढ़ा रहे हैं, मूलभूत ढांचे को बेहतर बना रहे हैं और एनालॉग से डिजिटल दुनिया की तरफ़ बढ़ रहे हैं, तो यही सम्मान रिश्तों का मज़बूत आधार बना रहेगा.
हम दोनों देशों के रिश्तों केंद्र में प्रवासी नागरिक हैं. ज़ायद स्पोर्ट्स सिटी स्टेडियम में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन सुनने के लिए 60 हज़ार से अधिक भारतीयों ने अपना नाम दर्ज कराया है. हालांकि, इस तरह के आंकड़े, संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले भारतीयों की वास्तविक स्थिति की असली तस्वीर नहीं पेश कर पाते. सच्चाई तो ये है कि आज दुबई और अबु धाबी की आसमान छूती शानदार इमारतों के सबसे ऊंचे फ्लोर पर भारतीय भी रहते हैं. ये हैसियत जो किसी ज़माने में स्वाभाविक रूप से यूरोपीय या अमेरिकी नागरिकों के खाते में जाती थी, वहां आज बड़ी तादाद में भारतीय भी नज़र आते हैं. फिर चाहे वो वित्त हो, ऊर्जा या फिर मूलभूत ढांचे का क्षेत्र. आज भारतीयों को मूल्यवान सलाहकार, रचनात्मक प्रतिभाओं और वित्त के जादूगर के तौर पर जाना-माना जाता है. वो 21वीं सदी के संयुक्त अरब अमीरात के निर्माण में वहां के नागरिकों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं और उसके भविष्य में योगदान दे रहे हैं. अमीरातियों और भारतीयों के आपसी तालमेल से UAE हमारी सदी का वैश्विक केंद्र बन रहा है. वहीं दोनों मिलकर भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था का पावरहाउस बना रहे हैं, जो न सिर्फ़ देश के लिए बल्कि पूरे इलाक़े और मानवता के लिए लाभकारी होने वाला है.
अमीरातियों और भारतीयों के आपसी तालमेल से UAE हमारी सदी का वैश्विक केंद्र बन रहा है. वहीं दोनों मिलकर भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था का पावरहाउस बना रहे हैं, जो न सिर्फ़ देश के लिए बल्कि पूरे इलाक़े और मानवता के लिए लाभकारी होने वाला है.
जब चीन का विकास हो रहा था, तो इसका फ़ायदा, हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, लंदन और न्यूयॉर्क जैसे कुछ मुट्ठी भर शहरों को ही हो रहा था. भारत की अर्थव्यवस्था के 4 से 30 ट्रिलियन डॉलर का बनने के इस सफर से पूरी दुनिया को लाभ होगा. विकास की इस महागाथा में अबु धाबी और दुबई विशेष स्थान रखने वाले हैं. जब भारत को को लाभ होगा, तो संयुक्त अरब अमीरात की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को भी फ़ायदा मिलेगा. आगे चलकर संयुक्त अरब अमीरात, भारत के लिए नया गेटवे बनेगा. ये प्रतिभा का केंद्र होगा, जो भारत के अवसरों और प्रतिभाओं को बाक़ी दुनिया से जोड़ने का काम करेगा. ये वस्तुओ और ऊर्जा के साथ उस व्यापार का भी केंद्र होगा, जिसकी शुरुआत भारत से होगी और ये UAE से होकर गुज़रेगा. संयुक्त अरब अमीरात वित्त का भी केंद्र होगा, जहां वो भारत की लगातार बढ़ती मांग को पूरी कर सकने वाली पूंजी को जुटा सकेगा.
प्रधानमंत्री मोदी और शेख़ मुहम्मद बिन ज़ायद, अरब सागर के एक समृद्ध समुदाय की नींव डाल रहे हैं. वो समंदर को प्राचीन काल की उस मज़बूत हैसियत तक ले जा रहे हैं, जिसके हम क़िस्से सुनते आए थे.
प्रधानमंत्री मोदी और शेख़ मुहम्मद बिन ज़ायद, अरब सागर के एक समृद्ध समुदाय की नींव डाल रहे हैं. वो समंदर को प्राचीन काल की उस मज़बूत हैसियत तक ले जा रहे हैं, जिसके हम क़िस्से सुनते आए थे. उन पुराने क़िस्सों को ताज़ा करके दोनों नेता इक्कीसवीं सदी के मुताबिक़ ढाल रहे हैं. ये समुदाय, अफ्रीका, यूरोप और हिंद प्रशांत को जन-केंद्रित, विकास को प्राथमिकता देने वाले और तरक़्क़ी की अगुवाई वाले समाधान मुहैया कराएगा. खाड़ी और उप-महाद्वीप के बीच का ये विस्तार इस सदी में उसी तरह एक समावेशी भूमंडलीकरण का स्रोत बनेगा, जैसा वो एक हज़ार साल पहले था.
ये लेख मूल रूप से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था.
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Samir Saran is the President of the Observer Research Foundation (ORF), India’s premier think tank, headquartered in New Delhi with affiliates in North America and ...
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