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डोनाल्ड ट्रम्प की अस्थिर प्रवृत्ति से यूरोप तभी उबर सकेगा जब बर्लिन, लंदन और पेरिस एकजुट होकर यूरोप की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करें. इससे रूसी हस्तक्षेप का मुकाबला भी किया जा सकता है.
यूक्रेन में युद्ध आरंभ हुए दो साल बीत चुके हैं और हाल-फिलहाल इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में नवंबर में होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की सशक्त दावेदारी यूरोपीय देशों का ध्यान केंद्रित कर रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि वे वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन पर भारी पड़ रहे हैं. अनेक यूरोपीय देश वाइट हाउस में एक ऐसे राष्ट्रपति की वापसी की तैयारी कर रहे है जिसने अपने पिछले कार्यकाल में यूरोपीय हितों के खिलाफ काम किया था.
नवंबर में होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की सशक्त दावेदारी यूरोपीय देशों का ध्यान केंद्रित कर रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि वे वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन पर भारी पड़ रहे हैं.
ट्रम्प की छवि एक तानाशाह-प्रेमी नेता की बन चुकी है, जो अराजकता और अनिश्चितता को पसंद करता है. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रम्प ने अप्रत्याशित रूप से जलवायु परिवर्तन, व्यापार, सेना की तैनाती, सार्वजनिक स्वास्थ्य, परमाणु हथियार जैसे अहम मुद्दों पर अमरीका की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को जिस प्रकार तहस-नहस किया, वह बहुत चौंकाने वाला था. उन्होंने नियमित रूप से भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल किया. ब्रिटेन और जर्मनी जैसे मित्र देशों के नेताओं को अपमानित किया, और रूस के व्लादिमीर पुतिन और हंगरी के विक्टर ओर्बन जैसे अधिनायकवादी नेताओं की प्रशंसा की. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग के साथ सारहीन शिखर वार्ताएं आयोजित कीं. नाटो गठबंधन से हटने की धमकी भी दे डाली.
यूरोप में सबको पहला डर इस बात से है कि अगर ट्रम्प जीत जाते हैं तो यूक्रेन का क्या होगा. ट्रम्प की हालिया बयानबाजी से साफ है कि उनकी कथित शांति योजना में यूक्रेन के लिए हारे हुए इलाके वापस पाना असंभव होगा. ट्रम्प ने पिछले दिनों अपनी एक रैली में ऐसा बयान दिया जिसका तात्पर्य यह था कि रूस, यूरोप के उन देशों पर हमले के लिए स्वतंत्र है जो नाटो को समुचित फंडिंग नहीं देते. इस बयान की वाइट हाउस और नाटो महासचिव ने कड़ी निंदा भी की. हालाकि यूरोपीय लोग अब इस तथ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं कि यूक्रेन अपनी स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा केवल यूरोपीय संघ और नाटो में दोहरे प्रवेश के माध्यम से ही कर सकता है. ट्रम्प की वापसी की आशंकाओं के बीच फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने तो पश्चिमी देशों को यूक्रेन में सेना भेजने के लिए तैयार रहने के लिए कह दिया है.
यूरोप में सबको पहला डर इस बात से है कि अगर ट्रम्प जीत जाते हैं तो यूक्रेन का क्या होगा. ट्रम्प की हालिया बयानबाजी से साफ है कि उनकी कथित शांति योजना में यूक्रेन के लिए हारे हुए इलाके वापस पाना असंभव होगा.
जाने-अनजाने ट्रम्प ने रक्षा खर्च के पेचीदा मसले पर चल रही यूरोपीय बहस को तूल दे दिया है. जुलाई में वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन से पहले, नाटो के अधिकांश यूरोपीय संघ सदस्य अपने सकल घरेलू उत्पाद का न्यूनतम 2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने की राह पर चल पड़े हैं. हालाकि इस बदलाव क अधिकांश श्रेय तो पुतिन की आक्रामक नीतियो का ही परिणाम है, लेकिन ट्रम्प की बड़बोल भाषा ने भी यूरोपीय देशों को चिंताग्रस्त किया है. यूक्रेन के पास गोला-बारूद और हथियारों की लगातार कमी हो रही है, और ट्रम्प-समर्थक रिपब्लिकन पार्टी अभी से ही अमरीकी कांग्रेस की फंडिंग में रोड़ा अटका रहे हैं. इसलिए जोर इस बात पर है कि जल्द से जल्द यूरोपीय संघ और नाटो के बीच मनोवैज्ञानिक खाई को पाट जाए. वैसे स्वीडन के नाटो में शामिल होने के सकारात्मक परिणाम होगा.
हालांकि ट्रम्प का सबसे बड़ा योगदान इस बात को लेकर माना जायेगा कि उन्होंने यूरोप् की राजनीतिक एकता का मार्ग प्रशस्त किया है कई देशों में ट्रम्प की धमकियां उन उम्मीदवार की मदद कर सकती है जो यूरोपीय एकता एक संप्रभुता के पक्षधर रहे हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वहां ट्रम्प के समर्थकों की कमी हैं लोकलुभावन राजनीति में ट्रम्प की बराबरी करने वाले पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाल ही में कहा है कि दुनिया को आज ट्रम्प की जरूरत है. यूरोप में दक्षिणपंथी पार्टियां पुनः अपनी पैठ बनाने में लगी हैं. कई यूरोपीय विशेषज्ञ यह मानते हैं कि अमरीका के तमाम वैदेशिक संबंध सिर्फ राष्ट्रपति पर निर्भन नहीं हैं. अमरीका व्यवस्था में राष्ट्रपति की शक्तियों पर कई प्रकार के अंकुश भी हैं.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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